एक वृद्धा थी। वह अकेली थी। वह ठीक से देख भी नहीं सकती थी। वह गाँव के बाहर अपनी झोंपड़ी में रहती थी। वहीं कुछ फूलों के पौधे लगाकर, उन फूलों की मालाएँ मंदिर के पास बेचती थी। उससे मिलने वोले कुछ पैसों से ही अपनी जीविका बिताती थी। भगवान के प्रति उसकी बड़ी श्रद्धा और भक्ति थी। रोज भगवान की पूजा करने के बिना वह कुछ भी खाती या पीती नहीं थी।
उसके मन में भगवान को अपने हाथों से एक बार भोजन खिलाने की बड़ी लालसा थी। इसके लिए कुछ महीनों से उसने कुछ रकम बचाकर रखी। उस रकम से अच्छा खाना बनाकर भगवान को खिलाना उसका विचार था।
एक दिन उसके सपने में भगवान दिखाई पड़े तो वृद्धा ने अपने मन की इच्छा प्रकट की।
“भगवन, मैं अपने हाथों से खाना बनाकर आपको खिलाना चाहती हूँ। आप मेरे हाथों से खाना खाने के लिए कब आएंगे?“ वृद्धा ने पूछा।
“मैं कल दुपहर को तुम्हारे घर में आकर तुम्हारे हाथों का खाना खाऊँगा।“ भगवान ने वृद्धा को वचन दिया।
सपने में भगवान का वचन पाकर वृद्धा बहुत खुश हुई। दूसरे दिन तड़के ही उठकर, नहाकर तैयार हुयी। भगवान की पूजा करके, कुछ खाये-पिये बिना ही वह बाजार में गई। अच्छा खाना बनाने के लिए आवश्यक भोजन की सामग्री उसने खरीद ली।
सीधे घर में आकर वह वृद्धा भगवान के लिए खाना बनानॆ में लग गई। बड़ी श्रद्धा से उसने खाना बनाया। पहले भगवान आकर उसके हाथों से खाना खा लें, फिर स्वयं खायेगी, यूं सोचकर वह भगवान के लिए प्रतीक्षा करने लगी।
भगवान नहीं आये। वृद्धा को जोर की भूख भी लग रही थी। भगवान के लिए वह प्रतीक्षारत थी। उसने प्रतीक्षा की और प्रतीक्षा की। इस प्रतीक्षा में ही उसे निद्रा आई। उसी समय में घर के बाहर किसी वृद्ध दम्पति की आवाजें सुनाई पड़ीं।
“माता, जोर की भूख लग रही है। खाने को कुछ दो माता..” किसी वृद्ध की सिहरती हुई आवाज वृद्धा को सुनाई पड़ी।
वृद्धा ने बाहर आकर देखा। उसे अपने आंगन में एक वृद्ध और वृद्धा खडे हुए दिखाई पड़े। उनके बदन पर चीथड़ें थीं। कई दिनों की भूख से उनके पेट और पीठ एक जैसे लग रहे थे। उन्हें देखते ही वृद्धा का मन विकल हो उठा।
‘भगवान आयेंगे तो उनको और एक दिन आने के लिए कहूंगी। पहले इनको खाना खिलाऊँगी।” वृद्धा ने मन में सोचा।
“महानुभाव, आपके लिए खाना गरम-गरम तैयार है। आप नहा धोकर आइय़े। मैं आपके लिए खाना परोसकर रखूँगी।” वृद्धा ने कहा।
वृद्ध दम्पति को उस ने घर के अहाते में स्थित कुँआ दिखाया। घर में रहे कुछ धुले हुए कपड़े भी उन्हें दिये। वे बूढ़े कुँए के पास जाकर नहाकर धुले हुए कपड़े पहनकर आये।
उन्हें केले के पत्तों पर गरम-गरम खाना परोसकर वृद्धा ने उन्हें बड़े प्यार से खाना खाने को कहा।
“माता, तुम भी आकर हमारे साथ खाओ ना। लगता है, तुम ने भी अब तक कुछ खाया नहीं।” वृद्ध दम्पति ने कहा।
“आप पहले खाइये। बाद में मैं खाऊँगी।” वृद्धा ने कहा।
मगर वे नहीं माने। इस लिए वृद्धा भी उन के साथ बैठकर खाना खाया। उस दिन का खाना उसे अमृत जैसे बहुत ही अच्छा लग रहा था। यह तो भागवान का खाना है, इसी लिए यह इतना स्वादिष्ट है – वृद्धा ने सोचा।
खाना खाने के बाद वृद्ध दम्पतियों ने वृद्धा को आशीर्वाद दिये और वहाँ से चले गये।
भगवान के लिए दुबारा खाना बनाने के लिए वृद्धा के पास पैसे नहीं थे। उसने सोचा कि भगवान खाना खाने के लिए नहीं आये, उन्हों ने वचन देकर फिर वचन भंग किया। इस बात पर वह दुखी थी। उसने सोचा कि भगवान नहीं आये, अगर आते तो भी अपनी ओर से भी वचन भंग होगा, क्यों कि उन्हें खिलाने के लिए घर में कुछ भी नहीं था।
उस दिन रात को सपने में भगवान दिखाई पड़े तो वृद्धा ने रोते हुए कहा, “भगवन, मुझे क्षमा कीजिए। मुझ से वचन भंग हुआ। आपके लिए खाना बनाकर दूसरों को खिला दिया। उनकी बेहाल हालत को देखकर मुझ से रहा नहीं गया।” वृद्धा ने माफी मांगते हुए कहा।
इस पर भगवान हँस पड़े। उन्हों ने कहा, “वचन भंग कहाँ हुआ?”
“भगवन, आप नहीं आए तो इसके अनेक कारण हो सकते हैं। अपके अनेक भक्त हैं, आपके अनेक काम हैं। आज नहीं तो और एक दिन आप मेरे घर में आ सकते हैं। इस लिए आपके नहीं आने से ज्यादा मेरा ही वचन भंग हुआ। आपको अच्छा खाना खिलाने के लिए मुझे और दो तीन महीने इंतजार करना होगा, तभी मैं इतना पैसा फिर से जुटा सकती हूँ। “ वृद्धा ने अपनी हालत समझाई।
वृद्धा ने जब यह कहा तो भगवान की आँखें पसीज गईं।
“माता, आज तुम ने मुझे मेरी देवी को बढ़िया खाना खिलाया। मैं और मेरी देवी तुम्हारे घर वृद्ध दम्पति बनकर आये और तुमने हमें बढ़िया खाना खिलाया है। इस लिये हम में से किसी की ओर से वचन भंग नहीं हुआ।“ भगवान ने इतना कहकर वृद्धा के स्वप्न से अंतर्द्धान हो गये।
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