उस गाँव में सरपंच का चुनाव हो रहा था। उस पद के लिए दो ही व्यक्ति चुनाव लड़ रहे थे। एक था रामकुमार जो एक नौजवान और आदर्शवादी था। वह शहर में पीजी करके, गाँव की हालत को बदलने के लिए वहाँ आया था। उसका पिता वहीं एक गरीब किसान था। रामकुमार की पढ़ाई में ही उसकी संपत्ति खतम हो गई। लेकिन उसका बड़ा अच्छा नाम था। गाँव के लोग उसे एक शरीफ और ईमानदार आदमी के रुप में देखते थे। उसका नाम था रतनप्रसाद।
दूसरा व्यक्ति जो यह चुनाव लड़ रहा था, उसका नाम था करीम। करीम के कई धंधे थे और उसने खूब ज्यादा पैसा कमाया था। गाँव में करीम ही अकेला आदमी था जिसकी दो कारें थीं। उसका मकान आलीशान महल जैसा था। उसके नौकर चाकर अनेक थे। गाँव में किसी को पैसे की ज़रूरत होती थी तो करीम ही एकमात्र व्यक्ति था जो कर्ज देता था और कुठ महीनों में ही सूद के साथ कर्ज को दुगुना कर देता था। करीम के आगे गाँव का कोई व्यक्ति उसकी बात को नकार नहीं सकता।
अब चुनाव का वक्त आ गया तो करीम के मन में उस गाँव के लोगों पर अपार दया उमड़-घुमड़ कर आई। वह लोगों को धोती-साड़ी और मिठाइयाँ तोफा में देना शुरू कर दिया।
रतनप्रसाद का बेटा गरीब था, उसके साथ गरीब दोस्त थे। लोगों से वे मिलते थे और उनके कुछ बोलने के पहले लोग कहते थे कि उनके मत उसको ही मिलेंगे। लोग बाहर कहने लगे कि करीम ही जीतेगा, मगर मन में फुसफुसाने लगे कि जीत रामकुमार की होगी।
करीम की गाँव भर में बीवियाँ और रिश्तेदार हैं। उसका गर्व था कि जीत उसकी होगी। गाँव के लोग भी यही कहने लगे।
रामकुमार का शहर में एक दोस्त था। उसका नाम था अहमद। वह शहर में चेरमेन के पद में था। वह चाहता था कि रामकुमार उस गाँव का सरपंच बने।
चुनाव का वक्त आया। कई लोग रामकुमार को मत देने लगे। पुलिस का कड़ा पहरा था कि कोई अनहोनी घटना न हो। अहमद भी आया और उसका नाम सब को मालूम था, इस लिये उसे लोगों ने नहीं रोका। उसने चुनाव की प्रक्रिया देखने के लिए इधर उधर घूमकर कहा कि सब कुछ प्रबन्ध बहुत अच्छा है।
करीम किसी भी तरह जीतना चाहता था। इस लिए उसने आसपास के गाँवों से अपने कुछ रिश्तेदारों को बुलाया। वे सब औरतें थीं, और बुरक़ों के अन्दर उन सब ने करीम को मत दिये।
करीम चौंकने लगा कि दूसरे गाँवों से अपनी रिश्तेदार औरतें अनुमान से ज्यादा आई थीं। इस लिए उसने अपनी जीत को पक्का मान लिया।
चुनाव के परिमाण आये और रामकुमार जीत गया।
करीम की समझ में नहीं आया कि आसपास के गाँवों से रिश्तेदारों को बुलाने पर भी वह क्यों नहीं जीता।
अहमद ने जिन औरतों को बाहर से बुलाया था, उन्हों ने बुरक़ों के अंदर से रामकुमार को मत दिये। इस इंतजाम के बारे में अहमद ने रामकुमार से नहीं कहा, क्यों कि वह ऐसी बात के लिए कभी नहीं मानेगा।
रामकुमार सोचने लगा कि गाँव के लोगों ने उसकी बातों पर विश्वास किया और उसे जिताया।
करीम सोचने लगा कि गाँव के लोगों ने उसे बहुत कम मत दिये और उसे हराया।
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