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Ye Kaisa Sammaan?

Published by Yash Kulshrestha in category Hindi | Hindi Story | Social and Moral with tag father | girl

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Social Issue Hindi Story – Ye Kaisa Sammaan?
Photo credit: kamuelaboy from morguefile.com

राधा बेटा! आँटी के घर जाकर अस्तर मिलाने मे मदद तो करदे उनकी।
यह शब्द तो मानो राधा के लिए अमृत वाणी थी। के घर जाना मतलब उसे बाहर जाने का मौका मिलेगा। उसकी प्रिय रमा आँटी उसे बहुत सारे स्वादिष्ट व्यंजन खिलाएगी। और वो अपनी सारी बातें उन्हें ही तो बताने के लिए छुपा के रखती थी। वो अपनी माँ से ज़्यादा आँटी को पसन्द करती थी।
अपने कुछ जोड़ी कपड़ों मे से एक राधा पहन लेती है। और वो निकल पड़ी आँटी के घर की और।
आँटी का घर तो वैसे सिर्फ तीन गलियों के बाद ही था। पर उसको अपने घर की हज़ारों बेड़ियां, समाज के अनेक बंधन और पापा के उसकी शादी को लेकर विचारों से थोड़ी राहत मिलती थी।
राधा , जो 16 साल की है , रंग गोरा और दिखने मे बहुत खूबसूरत , घर मे एकलौती लड़की थी। उसका एक बड़ा भाई भी था।उसका परिवार कट्टर राजपूत समाज का हिस्सा है। जहां की लड़कियों को किसी दूसरी जात के लड़के से शादी करना तो दूर। घरवालों की इजाज़त के बिना प्यार करना भी संगीन जुर्म माना जाता है। ऐसा जुर्म जिसकी सज़ा भी उसके ही घर वाले तय करते है। और कानून तो जैसे उनके लिए कुछ था ही नही।
राधा हस्ते, मुस्कुराते हुए आँटी के पास पहुची। आँटी तो जैसे राधा का ही इंतेज़ार कर रही थी। उनकी कोई बेटी नही थी | बस एक बेटा था जो इंदौर मे पढ़ता था। आँटी ने आते ही जूस, फल और व्यंजन परोसे। वो उसे बहुत प्यार करती थी।

आँटी- कैसा रहा दिन बेटा?
राधा- कुछ नया नही हुआ। पापा ने कपड़ो के लिए फिर डांटा । मेरी सलवार थोड़ा भीग गयी था। उन्हें गुस्सा आ गया। और मेरे मोबाइल के लिए जो माँ ने पैसे जमा किए थे उसमे से भैया ने आधे अपने चश्मे के लिए ले लिए। अब एक साल और रुकना पड़ेगा मुझे।
आँटी – राधा! ऐसे मायूस नही होते। सब ठीक हो जाएगा। तुझे बोला तो है मैं दिला देती हूँ पसंद का मोबाइल ।
राधा- नही आँटी। मेरी माँ दिला देगी मुझे। वो मेरे लिए ही तो कमाती है।
आँटी- मैं भी तेरी माँ समान ही हूँ राधा।
राधा(नम आखों से)- आप नही होती तो मेरा क्या होता आँटी?
आँटी- देश मे हालात बहुत बदल गए है बेटा। तू चिंता मत कर। यहां भी सब बदल जाएगा। तु अच्छे से खा ले।कितनी कमज़ोर होती जा रही है!
राधा- खा तो रही हूँ आँटी।सब बहुत अच्छा बना हैं ।खीर तो बहुत अच्छी बनी है।
आँटी- जबसे बाहर गया है।बस तेरे लिए ही खीर बनती है। बूरी भी होगी तो भी नही बोलती तु।
राधा- सच्ची अच्छी है खीर माँ। (रोने लगती है)

राधा के पापा शराब के आदी थे। वह अपनी कमाई दारु पर उड़ा देते थे। और उसका भाई जितना कमाता था उससे कई गुना ज़्यादा उसके खर्चे थे। जिसका पूरा बोझ राधा के खर्चो पर आता था।और उसे ही हर खुशी मे कुर्बानी देनी पड़ती थी। बचपन से ही लड़कियो को पराए घर की अमानत के तौर पर बड़ा किया जाता है।जब वो शादी का अर्थ नही समझती उससे पहले उसे ससुराल जाने के नाम से डरा दिया जाता है। और जब वो बड़ी हो जाती है, फिर तो उसे पराया धन, दूसरे की घर की लक्ष्मी आदि कहकर ही बुलाया जाता हैं।

राधा घर पहुँच जाती हैं ।वहां उसकी माँ उसी की राह देख रही थी। पापा से पहले उसका घर मे रहना भी ज़रूरी होता था। अन्यथा उसके पापा बेटी पर हाथ उठाने से भी नही कतराते थे।

राधा के पिता एक शराब की दुकान पर काम करते थे। पर उनकी ज़्यादातर कमाई पीने मे ही निकल जाती थी। और फिर घर मे लड़ाई झगड़े आम बात थी। उसकी माँ सिलाई बुनाई से घर के बाकी खर्च चलाती थी। और राधा कुछ छोटी लड़कियों को घर मे ही पढाके अपनी माँ की सहायता करती थी।

सब ऐसे ही सालों से चला आ रहा था। भोपाल जैसे शहर मे रहकर भी कट्टर रिवाज़ और संस्कृतियों को उनपर थोपा जाता था। बिना कारण घर की चौखट पार करना या बेवजह हँसना , मुस्कुराना या घर के मर्दों के खिलाफ लफ्ज़ निकालना, सब पाप थे।

कुछ दिनों बाद राधा के पिता ने दुकान मे ही शराब पीकर तमाशा कर दिया। ग्राहकों और मालिक को चोंटे आई। इन सब के बीच कही बवंडर की आशंकाएं दिखने लगी थी। मार पिटाई होने से बात बढ़ गयी और उनको दुकान से निकाल दिया गया। यह नौकरी उनके 4 लोगो के परिवारिक कमाई का बड़ा स्त्रोत थीं।

राधा का घर –
पिता बहुत गुस्से मे अंदर आते है।और आते ही मदिरा पान के लिए बेठ जाते है। ऐसी हालत मे वो अक्सर आकर पीने के लिए बैठ जाते थे।पर आज पहली बार उनके चेहरे पर चोंट के निशान और खरोचें भी थी। राधा की माँ बहुत सहम गयी थी।और राधा को लेकर अंदर चली गयी। ऐसी हालत मे उनसे सवाल जवाब करना अपनी मौत को बुलावा देने के बराबर था।
शराब का सेवन करके पिता सो गए। और ऐसी हालत देखकर राधा और उसकी माँ अपने आँसुं नही रोक पाए।

(रात के दो बजे)

राधा पानी पीने उठी थी। उसने अपने पिता के कमरे मे झाँका। वो हल्की नींद मे सो रहे थे। बार-बार पलट रहे थे। कोई चिंता उन्हें खा रही थी। राधा को उन्हें ऐसे देखकर डर लग रहा था। पर वो पानी पीकर सो गयी। उसने पापा से दूरी को ही सही माना।

अगली शाम तक सबको दुकान वाली घटना के बारे मे पता चल गया था। तभी राधा का एक पुराना दोस्त भी उससे मिलने आया। पापा के डर से बाहर ही खड़े होकर बात करना उसने ठीक समझा।

पापा ने आवाज़ लगाई। पर राधा भी अपने दोस्त से बहुत सालों बाद मिल पाई थी।वापस अंदर जाना उसे ठीक नही लगा। पापा नशे मे होश खो चुके थे। और वो राधा से खाना बनवाना चाहते थे। 3 आवाज़ बाद भी राधा के अंदर ना आने से उन्होंने आपा खो दिया।और बाहर आकर चिल्लाने लगे। मामला बढ़ता देख राधा जल्दी से अंदर आ गयी।और रसोई मे खाना बनाने चली गयी। पर पापा का गुस्सा शांत नही हुआ था और लड़के के साथ देखकर वो अपना आपा खो चुके थे।

पापा- ऐसे ही मुह काला करेगी तु अपना। सारे मोहल्ले के सामने लड़के से बात कर रही थी।कोन था वो आशिक़?

राधा- बचपन मे साथ पड़ता था पापा

पापा- तो बचपन की दोस्ती को जवानी मे क्यों चला रही है! मै नही देखता तो जाने कहाँ चले जाती उसके साथ!

राधा- नही पापा! ऐसा कुछ नही है।

राधा के जवाब के साथ ही पापा का हाथ उठ जाता है और राधा को बहुत ज़ोर से चांटा पड़ता है। नशे के असर से पापा को कुछ आभास नही रहता और वो गेस पाईप से उसका गला दबा देते है। राधा छुटने की बहुत कोशिश करती है।पर उसका दम घुटने लगता है।

तभी माँ वापस आ जाती है और राधा को छुड़ाने की कोशिश करती है।पर तब तक वो बेहोश हो चुकी थी और सांसें फूल रही थी। माँ पहले पिता को होश मे लाने की कोशिश करती है और फिर राधा की साँस का जायज़ा लेती है।

अगर अस्पताल ले जाएंगे तो गले के निशान से डाक्टर को शक हो जाता की मारने की कोशिश की गयी थी। पिता को अपनी बेटी की कुर्बानी मंज़ूर थी पर अपनी इज़्ज़त पर आंच बिल्कुल नही।

अंततः राधा की हत्या की कोशिश को आत्महत्या दर्शाने की कोशिश की शुरुआत होती है। उसके दुप्पटे से फांसी का फंदा तैयार किया जाता है। और उसे पंखे पर लटका दिया जाता है। उसके बाद शोर मचाकर पड़ोसियों को बुलाया जाता है।
खबर पहुचते ही रमा आँटी भी 5 मिनट मे वहा पहुच जाती है ।और उसे नीचे उतारने मै मदद करती है। राधा की साँसे चल रही है। वो कुछ बोलने की कोशिश करती है।पर शायद गले की नस उसे बोलने मै सहायता नही दे पा रही थी।
पड़ोसी की कार से ले जाते वक़्त माँ – बाप किसी और को उससे बात नही करने देते।और अस्पताल पहुचने से पहले हमारी राधा की मौत हो जाती है।

उसकी गर्दन पर अलग अलग निशान देखे जा सकते थे। पर पापा जांच के लिए नही मानते और अगली ही सुबह पहली किरण के साथ बिना जांच के उसका अंतिम संस्कार कर दिया जाता है। माँ भी अपनी बेटी को अपने पति के लिए कुर्बान कर चुकी थी।और एक राधा हमेशा के लिए अस्त हो गयी। राजपूतों मे मर्द की इज़्ज़त के लिए औरत, बेटी और माँ को भी अनेकों कुर्बानियां देनी पड़ जाती है।और अनेकों राधा किसी न किसी कारण से हर साल कुर्बान हो जाती है।

एक तरफ कृष्ण जी की राधा थी जिसको कान्हा के हर रूप के साथ पूजा जाता है। जिन्की तस्वीर उनके घर मे आज भी हमारी राधा के साथ लगी है। और एक तरफ इतनी छोटी सोच और इंसाफ के साथ इतनी ज़्यादा नाइंसाफी की कानून, इंसानियत जेसी चीज़ों के कुछ मायने ही ना रह जाएं।

आँखें खुली है ,सब आपके सामने हो रहा है। कोई अनदेखा कर रहा है तो कोई देखकर भी कुछ नही कर पा रहा है। आपको सोचना है की हम देश को किस दिशा मे ले जाएंगे।और लड़कियों को आगे बढ़ाना ही है तो उनके अपने घरो से आज़ादी दिलवाइए।फिर कहीं जाकर समाज के बारे मे सोचा जाएगा। नही तो लाखों राधा ऐसे ही झूठे सम्मान बचाने के लिए बलिदान कर दि जाएंगी।

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-यश कुलश्रेष्ठ

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