रीठे – आंवले
मुनकी जब जब अपने पुराने बंगले में आंवले और रीठे के विशाल पेड़ को देखती है ,तब तब उसे अपनी मैडम दीदी कि बहुत याद आती है , पर वह अब कहाँ होंगी ,इसका उसको तनिक भी ज्ञान नहींl
परिसर के ब्यूटी पार्लर में ,बिटिया मुनकी सहायक पद तो अवशय पा गयी है, परन्तु न जाने क्यों उसके मन में एक अजीब सा द्वन्द चलता रहता है l “यहाँ तो सभी महिलायें बढ़िया शैम्पू से सिर के बाल धोती हैं ,एक मैं हूँ , पगार इतनी कम है कि ,हफ्ते में एक बार साधारण साबुन से सिर के बाल धो लूँ तो गनीमत है” l
मैडम दीदी! “मेरा भी बहुत मन होता है कि मैं भी ,औरों की तरह अपने बाल बढ़िया शैम्पू से धोऊँ “l
“अरी ! पगली! “देख मैं तेरे लिए रीठे ,शिकाकाई और आवंला पाउडर का मिश्रण लायी हूँ ,जब तुम इससे बाल धोओगी तो पाओगी कि यह तो शैम्पू से १०० गुना बेहतर है “l
“मैडम दीदी ! आप बिल्कुल ठीक कहती हो, आज जब मैं आपके बनाये मिश्रण से बाल धो ब्यूटी पार्लर ड्यूटी पर गयी, तो सब मान गए कि तुम्हारी मैडम दीदी का नुस्खा तो परम है”
हाँ मैडम दीदी ! जब से आपने नीबू को चेहरे पर लगाने की सलाह दी है, तब से क्रीम की आवश्यकता जैसे समाप्त ही हो गयी है l हमारे बंगले के विशाल बगीचे में कितने फलों के पेड़ है आम,अमरुद,चीकू ,केला और नींबू इत्यादि l काश दीदी ! हम लोग रीठे और आवले के ,पेड़ भी अपने बगीचे में लगा लेते l
मुनकी का प्रस्ताव मैडम दीदी ने हाथों हाथ मान लिया और तुरन्त बंगले के बगीचे में रीठे और आवंले के पेड़ लगाये गये, पल पल समय बितता गया, मुनकी अब सयानी हो गयी है, बच्ची से युवती हो गयी है , रीठे और आंवले के पेड़ों में इतने फल आते की सूखने के बाद भूमि पर गिर जाते ,ऐसा लगता मानो किसी ने सूखे आंवले एवं रीठे की पेड़ों के नीचे सूखे फलों की चादर सी बिछा दी होl फलों को भरने के लिए झोले छोटे पड़ जातेl
मुनकी की मैडम दीदी, साहब-भैया एवं मुनकी इतने बहुत खुश होते , की देखते ही बनता था , क्योंकि सूखे रीठे और आंवले आस पड़ोस में बाँटने के पश्चात भी इतने बच गय़े जाते , कि अगले वर्ष तक चिंता करने की कोई आवश्यकता ही नहीं होती, मुनकी एवं मैडम दीदी रीठे संभाल कर भंडार घर में रखती और सारे साल उन्ही स्टोर करे हुए रीठों से सिर के बाल एवं ऊनी कपड़े धोती l साबुन इतना महंगा हो गया था उसकी जगह रीठा पाउडर ने ले ली थीl
इस बात की खबर तो परिसर में आग की तरह फ़ैल गयी l फिर क्या था, बंगलों की सभी मैडम दीदियों ने पूरे उत्साह से अपने-अपने बगीचे में रीठे के पेड़ लगवा दिए l यह चलन दिन प्रतिदिन बढ़ता ही गया, मुनकी की मैडम दीदी का ऐतहासिक फैसला परिसर वासियों का सत्य सूत्र ही बन गया l रीठे – आंवले के पेड़ लगाने का परिसर में चलन सा हो गया, और परिसर की हरियाली भी बढ़ती ही गयीl पर्यावरण संरक्षण की छोटी सी पहल मानो एक प्रेरणा सी बन गयीl अब परिसर की मैडम दीदियों के प्रयासों सॆ परिसर की वोमेन एसोसिएशन भी रीठे , आवंले के पेड़ लगवाने में सक्रिय हो गयी l
कुछ साल बीतने के बाद,मुनकी युवती परिणय सूत्र में बंध कर परिवार वाली सम्मानित महिला हो गयी हैl मुनकी अब अपने बच्चों एवं पति के साथ परिसर में खुशहाल जीवन बीता रही है l परिसर में अब आम और अमरुद बगिया की तरह आंवले और रीठे की बगिया भी बन गयी है l मुनकी ,जब भी अपने बच्चों के साथ रीठे की बगिया से रीठे, आंवले की बगिया से आंवले बीन कर लाती , तो आत्म विभोर हो जाती l अपनी पुराने बंगले की मैडम दीदी को याद करके गर्वित महसूस करती l हाँ ! मैडम दीदी सही कहती थी, यह पेड़ हमारे परिसर की विरासत हैं l इन्हे हमें बच्चों की तरह पालना है, और संभाल कर रखना है.
दीदी सच कहती थी! देखो आज उनके द्वारा कार्यान्वित नयी सोच से , कितना सुख प्राप्त कर रहें है हम सभी, केमिकल साबुन को जैसे भूल गयी हूँ मैं, काश! मेरी मैडम दीदी, आकर इस परिसर को देख सकती !-! तो बहुत ही हर्षित होती—
यह तो बात पक्की हैं, मेरी प्यारी कर्मठ – सुशील, मैडम दीदी जहाँ भी होंगी तो पेड़ो की सेवा और रख रखाव तो अवश्य ही कर रही होंगी —–सलाम मैडम दीदी !—सलाम मैडम दीदी!
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डॉ सुकर्मा रानी थरेजा
Alumnus IIT-K(1986)
Associate professor
Department of chemistry
Christ Church College Kanpur