Social Short Story – Sati
बचपन से ही सन्नो बुआ बहुत ही भोली और शाँत स्वभाव की थीं. शकल सूरत से भी वह बड़ी ही मासूम दिखती थीं. आज तक हमने उन्हें किसी बात पर लड़ते हुए नहीं देखा. जब भी देखा तो बस हँसते, मुस्कुराते हुए. बचपन में मेरे जागने से लेकर सोने तक सन्नो बुआ मेरी हर जरूरत का ख्याल रखती थीं. मुझे तो जैसे बुआ के साथ सोने की आदत सी हो गई थी.
बुआ से कहानियाँ सुने बगैर नींद ही न आती थी मुझे अपनी सन्नो बुआ से बड़ा लगाव था. बुआ घर के सारे काम बखूबी कर लेती थी. खाना बनाने से लेकर सिलाई कढ़ाई हर काम में बुआ निपुण थीं. बुआ की उम्र काफी ज्यादा हो गई थी लेकिन अभी तक उनकी शादी नहीं हुई थी. वजह थी बुआ का विकलांग होना. कभी कभी लगता था कि जैसे भगवान भी सोंचता होगा कि उससे गलती हो गई जो उसने बुआ को विकलांग बना दिया. पर बुआ को इस बात का कोई अफ़सोस नहीं था. शायद वो किसी की सहानुभूति का पात्र नहीं बनना चाहती थीं. बाबू जी ने उनकी शादी के लिए बहुत प्रयास किया पर कहीं बात नहीं बनी.
जहाँ भी बाबू जी बुआ जी की शादी की बात चलाते, बुआ जी की विकलांगता की वजह से लोग उन्हें अस्वीकार कर देते. माना की वो विकलांग थी पर इसके अलावा भी उनमे बहुत सारी खूबियां थीं. अगर कोई शादी करना भी चाहता था तो उसे मोटा दहेज चाहिए था जो की बाबू जी के बस की बात नहीं थी. लेकिन कुवांरी लड़की को घर पर कब तक बैठा कर रखा जा सकता था. कम से कम सारी उम्र तो कतई नहीं. आखिर थक हारकर बाबू जी ने भी हालात से समझौता कर लिया. और शायद सबसे बड़ा समझौता बुआ ने किया था. मजबूर होकर बाबू जी ने बुआ की शादी एक ऐसे लड़के के साथ कर दी जो एक नंबर का शराबी था. बाबू जी को लगा कि शादी के बाद शायद सब कुछ ठीक हो जायेगा. या फिर कहें कि उम्मीद करने के आलावा कोई चारा भी न था.
बुआ की शादी हो गई और बुआ जी अपनी ससुराल चली गईं. पर भाग्य फिर भी बुआ जी से रूठा ही रहा. वह लाख प्रयास करने के बाद भी अपने पति की शराब की आदत न छुडा सकीं. जो कुछ भी बाबू जी ने दहेज में दिए थे उसने सब शराब में उड़ा दिए. बुआ का पति शराब पीकर बुआ को मारता पीटता था सो अलग. बेचारी बुआ उसके इस अत्याचार को सहन करती रहीं. शायद इसे ही उन्होंने अपना भाग्य समझकर स्वीकार कर लिया था.
इस बार जब बुआ अपनी ससुराल से मायके आयीं तो बहुत दुबली लग रही थीं. उनके शरीर पर कई जगह चोट के निशान थे. मेरे पूछने पर बुआ ने हँसकर टाल दिया. बुआ के चेहरे पर हँसी तो दिखने के लिए थी पर मैंने कई बार उन्हें अकेले में रोते हुए देखा था. तब मुझे भगवान पर भी गुस्सा आता था कि वो किसी को इतना दुःख क्यों देता है. कभी सोंचती कि क्या बुआ की शादी करना जरूरी था. जैसी भी थीं कम से कम वह इस घर में खुश तो थीं. क्यों धकेल दिया बाबू जी ने उन्हें इस नर्क में जहाँ आज तक उन्हें सिवाय दुःख के कुछ नहीं मिला.
अब की बार जब फूफा जी उन्हें ले जाने के लिए आये तो मैं बाबू जी से लड़ गई थी. आखिर वो क्यों भेज रहे हैं बुआ को उस इंसान के साथ जिसने उनकी कभी क़द्र ही नहीं की. जो उन्हें एक जानवर से ज्यादा कुछ नहीं समझता है. जिसने उन्हें कभी पत्नी का दर्जा दिया ही नहीं.
और बाबू जी का वही घिसा पिटा जवाब “बेटी जिस समाज में हम रहते हैं उसके कुछ उसूल होते हैं अगर इस समाज में रहना है, जीना है तो उन्हें मानना ही पड़ेगा”.
‘’आखिर हम इस समाज से बाहर तो नहीं जा सकते. फिर भला आज तक किसी का मायके में गुजारा हो सका है.’’
इन्ही सब उसूलों की दुहाई देकर बाबू जी ने फिर एक बार सन्नो बुआ को फूफा जी के साथ भेज दिया. सही पूँछो तो बुआ का पति इंसान नहीं, कसाई था. यहाँ से बुआ के जाने के बाद उसके अत्याचार कम नहीं हुए बल्कि दिनों दिन बढते ही गए. बुआ जी के यहाँ से जाने के कुछ ही दिन बाद सुनने को मिला कि उस आदमी ने पीट पीटकर बुआ का एक हाथ तोड़ दिया है.
जब मैंने यह खबर सुनी तो बहुत देर तक रोती रही, मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि एक इंसान इतना संवेदना शून्य कैसे हो सकता? कैसे वह अपने जीवन साथी के प्रति इतना गैर जिम्मेदार हो सकता है. कुछ दिन बाद सुनने में तो यह भी आया कि उसने घर में दूसरी औरत लाकर रख ली है .सच है इंसान जब एक बार गिरता है तो फिर वो खुद नहीं जान पाता कि वो कितना नीचे की ओर जा रहा है.
एक दिन खबर आयी कि बुआ ने आग लगा कर आत्महत्या कर ली है. मैं पूरे दो दिन तक रोती रही थी. अब उन्हें हमेशा हमेशा के लिए इस नर्क से छुटकारा मिल गया था. कभी न खत्म होने वाली प्रताडना और रोज रोज ढाये जाने वाले उस जुल्म से उन्हें हमेशा हमेशा के लिए मुक्ति मिल चुकी थी. मुझे पता है कि अब सन्नो बुआ कभी नहीं आएँगी. मैं अपनी प्यारी सन्नो बुआ से अब कभी नहीं मिल पाऊँगी क्योंकि वह तो अपने पति के जिन्दा रहते ही सती हो चुकी हैं.
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