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Sweet Box [MITHAI KA DIBBA]

Published by vidyutpatel in category Social and Moral with tag office | sweet | wife

Social Short Story – Sweet Box [MITHAI KA DIBBA]

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Sweet Box – Social Short Story
Photo credit: nasirkhan from morguefile.com

रोज की तरह आज भी आफिस से घर वापस आते ही मुझे अपनी पत्नी की प्रश्नवाचक द्ष्टि का सामना करना पडा. और हमेशा की तरह विषय को बदलने के लिए या यूँ कहें कि अपनी असमर्थता को छुपाने की गरज से मैंने आते ही एक कप चाय की फरमाइश कर डाली. पत्नी जी के किचन में प्रवेश करते ही फौरी तौर पर कुछ समय के लिए ही सही ,मैंने एक लंबी राहत भरी साँस ली. पर इस तरह की कोशिशें हमेशा कामयाब हो जाएँ ये कोई जरूरी नहीं है, खासकर जब बेडरूम केवल आप दोनों ही हों. वैसे भी मेरे ख्याल से पत्नियाँ शायद इसी वक्त का इंतजार करती हैं जब वो सारे दिन की भड़ास अपने बेचारे पतियों पर निकाल सकती हैं और उनके पास बचने का कोई रास्ता नहीं होता है. आज रात को जैसे ही डिनर के बाद हम लोग सोने के लिए गए. मुझे श्रीमती जी के उस अमोघ अस्त्र का सामना करना पडा जिससे कि मैं अब तक बचता फिर रहा था.

‘’देखो जी अगर मेरी बहन की शादी तक मेरे लिए हार न आया तो देख लेना ‘’श्रीमती जी ने धमकी वाले अंदाज में कहा.

मैं आपको बता नहीं सकता कि उस वक्त मैं अपने आपको किस स्थिति में फंसा हुआ पा रहा था. मुझे बस ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे वो कोई रिंग मास्टर हो और मै पिंजड़े में फंसा हुआ शेर. जिसके पास अपने मास्टर के आदेश का पालन करने के आलावा कोई दूसरा चारा नहीं था.

‘’संगीता बात को समझने की कोशिश करो, अगर वो तुम्हारी बहन है तो मेरी भी साली है’’ मैंने खुद को काफी जिम्मेदार साबित करने की गरज से कहा

‘’अपनी बहन की शादी में तुम्हे कुछ तो अलग दिखना ही चाहिए. देखो तुम मुझ पर यकीन करो. मैं तुम्हारे लिए हार का इंतजाम जरूर कर दूंगा पर प्लीज अभी सो जाओ ‘’ अपनी हालत को सम्हालते हुए मैंने कहा.

आज तो किसी तरह मैंने खुद को बचा लिया. पर इस तरह आखिर रोज रोज कब तक इस समस्या से बचता रहूँगा. यही सोंचते सोंचते मुझे नींद आ गई. जैसे जैसे साली की शादी का समय नजदीक आ रहा था. मेरे दिल की धड़कने बढ़ती जा रही थी. मैं सारा दिन गुणा भाग करता रहता. पर कोई ऐसा रास्ता न निकल सका कि एक अदद हार की जरूरत पूरी हो सके. इधर अब हर रोज जैसे ही मैं घर में प्रवेश करता वैसे ही मुझे श्रीमती जी की सवालिया निगाहों का सामना करना पड़ता. सच कहूँ तो मुझे अब घर में घुसने में भी डर लगने लगा था. पता नहीं कब श्रीमती जी के गुस्से का सामना करना पड़ जाये. वैसे सच कहूँ तो एक तृतीय श्रेणी कर्मचारी के लिए अपनी पत्नी की इस तरह की फरमाइश पूरी करना संभव नहीं था. पर बात जब साली की शादी में जाने की हो तो फिर हर तरह के प्रयास करना जरूरी हो जाता है.

आज ही सुबह माता जी का फोन आया था कि पिता जी के घुटनों में फिर से दर्द शुरु हो गया है. मतलब की खर्चों की लिस्ट में एक और बढोत्तरी हो गई थी. कहते हैं कि जब मुसीबतें आती है तो चारो ओर से आती हैं. बस ये समझिए कि मैं भी इस वक्त चारो ओर मुसीबतों से घिरा हुआ था. मेरी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे इस मुसीबत से निकलूं? एक समस्या से पहले ही घिरा हुआ था ऐसे में पिता जी के घुटनों का दर्द जैसे कोढ़ में खाज का काम कर रहा था. ऐसे में अब मेरी हालत अब बहुत पतली हो गई थी. अपने वादे पर खरा उतरने की अब रही सही उम्मीद भी मैंने खो दी थी.

सुबह से ही आफिस में बहुत ही भीड़ भाड़ वाला दिन था. सारा दिन काम करते करते मेरी पीठ दुखने लगी थी. दोपहर में भोजनावकाश के बाद भीड़ थोड़ी कम हो गई थी. बाहर बहुत ज्यादा तेज धूप थी. मैंने बाहर सड़क पर नजर डाली ,इक्का दुक्का आदमी ही आते जाते नजर आ रहे थे. आफिस में भी सन्नाटा छाया हुआ था. कुछ कर्मचारी गप्पें लड़ा रहे थे तो कुछ अपनी कुर्सियों पर बैठे बैठे ऊंघ रहे थे. मैं भी एक जरूरी फाइल निपटाने में व्यस्त था.

करीब तीन बजे मेरे आफिस में एक अधेड उम्र का आदमी आया, उसकी उम्र यही कोई पैंतालीस के आस पास होगी. दिखने में काफी शरीफ और ईमानदार लग रहा था. उसने एकदम नया खद्दर का कुरता और सफ़ेद रंग का पायजामा पहन रखा था जिसकी मोहरियों पर पतली सी दोहरी सिलाई की हुई थी. कुल मिलाकर उसका व्यक्तित्व काफी प्रभावपूर्ण लग रहा था. उसके आते ही मैं काफी सतर्क हो गया जैसे कि मैं प्रायः किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति से मिलते वक्त हो जाता हूँ. शायद यह अधिक सतर्कता इसलिए भी होती है कि कहीं मेरे काम में कोई चूक न हो जाये और उसे शिकायत का मौका मिले. मैं उस व्यक्ति को बिलकुल भी नहीं जानता था. आते ही उसने मुझे बड़ी विनम्रता के साथ नमस्कार किया और बैग से एक पतली सी फ़ाइल निकालकर मेरी और खिसका दी. इससे पहले कि मैं कुछ कहता वह मुझे एक मिठाई का डिब्बा थमाते हुए बोला ‘’कुमार साहब ये मिठाई भाभी जी और बच्चों के लिए लेते जाइयेगा’. इतना कहकर वह तेजी के साथ आफिस से बहार निकल गया.

उस आदमी के वहाँ से जाते ही मैंने वो मिठाई का डिब्बा खोलकर देखा. डिब्बा पूरी तरह सौ सौ की नोटों से भरा हुआ था. उस डिब्बे को देखकर मेरे सामने श्रीमती जी का हार नाचने लगा. मेरी परिस्थितियों के आगे मेरी सारी ईमानदारी जाती रही. मैंने धीरे से वह मिठाई का डिब्बा उठाया और अपने बैग में डाल लिया.

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