पशुपति नाथ की कहानी
एक समय था जब धरती अनगिनत प्राणियो से भरी पडी थी , मनुष्यो की भी कई प्रजातिया हुआ करती थी । कई महान प्रजातियां लुप्त हो गई , जिन्हें अब हम देवता कहने लगे हैं । अब उनका कोई अस्तित्व नहीं बचा ,लेकिन इस धरती की सुरक्षा मे उनके योगदान को नजरअंदाज नही किया जा सकता है ।
इन्हीं प्रजातियों मे एक थे “नील-मानव” , धरती के दक्षिण हिस्से मे आसमान को छुते नीले पर्वतों के बीच इनका नगर था। नीले पर्वतों के पेडो की पत्तियों की तरह इनका रंग भी नीला ही था और नगीने सी चमकदार आखे ।
भीमकाय , बलवान शरीर वाले ये नीले लोग पशुओं से असीम प्रेम करते थे , इनके लिए पशुओं का दर्जा मानो भगवान के समान था …
सम्पूर्ण धरती पर ये सिर्फ दो ही चीजों के लिए जाने जाते थे ” पशुओं से असीम प्रेम” या ” विनाशकारी गुस्सा”…नीले पर्वतों, और वहा के सभी जीवों की रक्षा का दायित्व नील-मानवो के मुखिया पर होता था , लेकिन नील मानवो के आखिरी मुखिया की मृत्यु कई साल पेहले हो गई और इसी के साथ नीले लोगो के बुरे दिन शुरू हो गए ।
यु तो नीले पर्वतों का सूर्योदय हमेशा सुंदर ही होता था , लेकिन आज कुरकुरी सी ठण्ड के कारण सुबह कि धूप काफी सुकून दे रही थी।
एक सुंदर नोजवान अपने सुराबेल(yak) के साथ सुबह की धूप सेख रहा था , अपने दाहिने हाथ से सुराबेल के नुकिले मोटे सींग को पकड कर दुसरे हाथ को उसके कपाल पर घुमा रहा था ।
“वरसभ ! एक तुम ही हो जो मेरी बातें चुपचाप सुनते हो और अपने विचार मुझ पर नही थोपते”, नौजवान ने अपना हाथ उसके सींग से हटाकर लम्बे काले बालों से भरी पीठ पर रखा , नोजवान की आखो की चमक आज फिकी पड रही थी।
“बुरा मत मानना मित्र, आज तुम्हारी सवारी करने का मन नही है “, नौजवान ने उदासी से जमीन की तरफ देखा , दुर नीले पर्वतों के पीछे से उपर उठता सुरज और सुबह की पहली उडान भरते पक्षियों को देख कर गहरी सांस ली … लेकिन ये नजारा भी उसे होसला नही दे पा रहा था ।
उसने फिर नजरे नीचे झुका ली , और इसी क्षण एक लम्बी सी परछाई आगे बढती हुइ उसके पेरो तक आ गई
“मेरे बेटे … नाथ ! तुम यहाँ क्या कर रहे हो ??”
उसने पहली बार किसी पुरुष की आवाज मे बेटा शब्द सुना , उसने जट से उपर देखा
बुढे , सफेद कपडो मे एक मुनि बड़ी सी मुस्कान के साथ खडे थे,
नोजवान नाथ खडा हो गया और सोचते हुए बोला “आचार्य स्थुलभद्र …??”
आचार्य ने लम्बी मुस्कान दी और दो कदम आगे आए, ” 20 सालो बाद भी ये जगह बिल्कुल वैसी की वैसी है” आचार्य ने चारो तरफ नजर गुमाते हुए कहा “लेकिन तुम काफी बडे हो गए हो”
नाथ ने झुकते हुए आचार्य को प्रणाम किया
“मेने सुना आज तुम अपने पिता की जगह लेने वाले हो” आचार्य ने पुछा
“वो एक महान पुरुष थे , मे अभी इस लायक नहीं हु” नाथ ने कहा
” आज इतना बडा उत्सव तुम्हारी पदवी के लिए ही रखा है”
“तो क्या आप भी उत्सव मे शामिल होने आए हैं ??”
“हा हा हा .. चलो अन्दर चलते है” आचार्य ने कहा और महल की ओर चल पडे
नाथ के पिता नीले पर्वतो के आखिरी अधिपती थे , उनके बाद अब नाथ की बारी थी, लेकिन अभी नाथ स्वयं को इस काबिल नहीं समझता था । सारे रिश्तेदार और नगर के बडे लोग नाथ को पदवी स्वीकार करने के लिए कह रहे थे लेकिन नाथ एसा नहीं चाहता था ,
नाथ ने अपने सुराबेल की पीठ थपथपाई और आचार्य के साथ चल दिया। नीले पर्वत के बिच बसा ये नगर हर तरह के जानवरो से भरा पडा था , चूहे से लेकर हाथी तक ।
आज पुरा दिन नगर मे उत्सव मनाया गया लेकिन नाथ इसमे शामिल नहीं हुए, शाम के समय नाथ दुर नीले पर्वत एक आरामदायक स्थान पर अपने सुराबेल के साथ बैठे थे , डुबते सूरज की रोशनी से आकाश नारंगी हो चुका था , बची कुची किरणे पिछे नगर मे महल पर पड रही थी लेकिन नाथ की नजर एक भी बार महल पर नहीं पडी ।
आचार्य नाथ को ढूंढते- ढूंढते वहा पहुंचे
“तो तुम यहाँ हो …”
नाथ ने उन्हें प्रणाम करते हुए उठना चाहा , “बेठो बैठो ” आचार्य ने कहा और वे भी वही बैठ गए
“आप यहा कैसे आए”
“30 साल पेहले जब मे आया था , तुम्हारे पिता मुझे यहा लाए थे”
“मुझे लगता है नगर मे चल रहा उत्सव जादा मनोरंजक होगा” नाथ ने कहा
“बच्चे मे यहा इस उत्सव मे शामिल होने नही आया” आचार्य ने कहा
नाथ ने बनावटी मुस्कान देते हुए आचार्य की बात को खत्म करना चाहा , लेकिन आचार्य के मन मे कुछ ओर ही था ।
“तुम्हे पता है तुम्हारे पिता भी एक सुराबेल से बहोत प्यार करते थे”
नाथ ने आश्चर्यपूर्ण नजरों से आचार्य को देखा , “क्या सचमुच ??”
“तुम्हारी उम्र मे वे बिल्कुल तुम जैसे दिखते थे….” आचार्य ने कहा “अगर तुम अपने पिता के काबिल बनना चाहते हो तो तुम्हें उनके आदर्शों का पालन करना होगा ”
“कैसे आदर्श … आचार्य ?”
“तुम्हारे पिता सभी पशुओ से अत्यंत प्रेम करते थे … जब वो थे तब किसी की हिम्मत नहीं होती थी कि वो पशुओं को मारे ”
” पशुओं से लगाव तो मुझे भी है” नाथ ने कहा
“इसीलिए मे यहा आया हूँ, तुम मे तुम्हारे पिता की छवि दिखती है …तुम ही मेरा कार्य कर सकते हो”
आचार्य उठकर दो कदम आगे बढ़ गए, पर्वत की चोटी के किनारे पर खडे रहकर अपने हाथ कमर पर बाँध लिए, डुबता सुरज उनकी आँखो मे दिख रहा था ।
नाथ भी उनके पास आ कर खडे हो गए
“कैसा कार्य आचार्य ??”
“यहा से कुछ ही दुर दक्षिण का राजा एक यज्ञ करने वाला है …’अश्वमेध’ ” आचार्य नाथ की तरफ मुडे ” 101 अश्वो की बली दी जाएगी”
नाथ के हवा मे लहराते लम्बे बाल उसकी आँखों को छु रहे थे जो की अब आश्चर्य से दुगुनी हो गई, क्यो की नाथ एक एसे वातावरण मे बडा हुआ जहा सिर्फ पशुओं से प्रेम किया जाता था , वो कुछ कहता उसे रोकते हुए आचार्य बोले
“उसे रोकना बहोत मुश्किल है .. पर सिर्फ तुम ये कर सकते हो…. अपने पिता के काबिल बनने का मोका है तुम्हारे पास…अपने पूर्वजों द्वारा शुरू किए इस अभियान को आगे बढाओ ”
नाथ के पास कहने को कोई शब्द नहीं बचे थे , आचार्य उसकी चमकती नारंगी आखो मे देखते रहे , और कुछ ही क्षण मे सुरज पर्वतों के पिछे छिप गया …
उस रात नाथ को नींद नहीं आई, आचार्य ने उसके मन मे आत्मविश्वास का बिज बो दिया था , वो अपने पिता के साहस के किस्से सुनकर बडा हुआ था लेकिन अब वो खुद वो सब करना चाहता था।
वो चाहे या ना चाहे कल उसकी पदवी तो निश्चित थी लेकिन अब उसे खुद को साबित करना था की वो अपने पिता के काबिल है
सुबह होने से पेहले ही वो अपने प्रिय सुराबेल “वरसभ” पर बैठ निकल पडा दक्षिण की ओर …
लम्बी दूरी तय करने के बाद वो दक्षिण मे पहुँच गया …. उसने विशाल तरासे हुए किले मे प्रवेश किया।
नगर वासी किले मे बने मैदान मे इकट्ठे हो रहे थे … मैदान के बिचो बिच यज्ञ का मण्डप बना हुआ था ..
सभी पण्डितो ने मंत्रो का जाप शुरु कर दिया , आखिर दक्षिण के राजा ने मैदान मे प्रवेश किया और उनके पिछे सेकडो सैनिक रस्सीयो से बंधे घोडो को खीच रहे थे
घोडो को बिच मैदान मे लाया गया , मंत्रो की स्वाहा -स्वाहा की ध्वनि चारो ओर गुंजने लगी ।
पण्डित के कहने पर राजा खडे हुए ओर एक सुंदर सफेद घोडो को आगे लाया गया , पण्डित ने घोडो के मस्तिष्क पर तिलक लगाया और राजा को सोने की तलवार थमा दि ।
रस्सियों से बंधा घोडा अपने आप को आजाद करने की काफी कोशिश कर रहा था , राजा ने घोडे की गर्दन पर वार करने के लिए तलवार उठाई और तभी कानो को भेदती तेज आवाज आई
“रुक जाओ राजा” …
सभी की नजर सुराबेल पर बैठे नाथ पर पडी , “एक नील मानव ???” ” यहा नील मानव” सभी के मुह से यही शब्द निकल रहे थे आखिर सालो बाद उन्होंने किसी नील मानव को देखा था …
नाथ अपने सुराबेल से उतर गए और राजा की तरफ बढे ।
“इन्हें छोड़ दो राजन”
राजा को ये दुस्साहस बर्दाश्त नहीं हुआ और अपनी सोने की तलवार नाथ की तरफ उठाई , “चले जाओ यहा से ”
नाथ ने घोडो की आखो मे गुरते हुए देखा और पिछे मुड गए , घोडे तो जैसे पागल हो गए …उनका बल सो गुना बढ गया और सैनिको को अपनी लातो से दुर फेक दिया और सारी रस्सिया तोड कर भागने लगे ।
101घोडो के मजबूत खुरो से यज्ञ का मण्डप तहस नहस हो गया , राजा की आखो के सामने सारे घोडे दोडते हुए किले से बाहर चले गए ।
नाथ अपने सुराबेल के पास पहुंचे , गुस्से से जल्लाया हुए राजा ने किले के दरवाजे को बंद करने का आदेश दिया।
नाथ ने अपने सुराबेल की पीठ थपथपाई और राजा की तरफ बढने लगे , सुराबेल अपने सिर को जुकाते हुए दरवाजे की तरफ दोड पडा और सींगो से किले के मजबूत दरवाजे चकनाचूर कर दिए और वापस नाथ के पास आ गया ।
राजा ने अपने सबसे ताकतवर योद्धाओ को नाथ से लडने भेजा , लेकिन नाथ के सिर्फ एक प्रहार से वो दुर कोने मे जा गिरे ।
राजा का कोई भी सेनिक लडने के लिए तैयार नहीं था , राजा के पास घुटने टेकने के अलावा कोई चारा नहीं बचा ।
नाथ वरसभ पर सवार हो गए , सुराबेल की गरजदार हुंकार से किले की दिवारे काप उठी …
नाथ यज्ञ के सारे घोडो के साथ नीले पर्वतों की ओर बढ गए , वरसभ पर बैठे नाथ आगे चल रहे थे और पीछे 101 घोडे उनकी सेना की तरह चल रहे थे … नाथ ने घोडो के साथ नगर मे प्रवेश किया , नीले पर्वतों पर प्रतिक्षा कर रहे सभी लोग ये नजारा देख कर दंग रह गए ।
सभी ने नाथ का शानदार स्वागत किया ।
आखिर 30 सालो बाद किसी ने वो कर दिखाया जिसके लिए हर नील मानव का जन्म हुआ था , अब नाथ सम्मान और आत्मविश्वास के साथ पिता का स्थान ले सकते थे ।
और मृत्यु के मुख मे जानेवाले 101 घोडो को एक सम्मान की जिन्दगी मिल गई ।
नाथ ने आचार्य के पेर छुए और अपने पिता का स्थान ग्रहण किया ।
इसी के साथ नीले पर्वतों और सम्पूर्ण पशुओं के नए अधिपति के जयकारे लगाए गए ।
उस दिन आचार्य “स्थुलभद्र” ने उन्हें नाम दिया , सभी पशुओं के रक्षक “पशुपति-नाथ” .. ।।।।।।
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