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Haunted Cabin

Published by Durga Prasad in category Hindi | Hindi Story | Paranormal Experience with tag ghost | hospital | uncle

भूतहा कैबिन  (Haunted Cabin): A person was attending his sick sister in hospital but hospital room was haunted. In night, somebody came to visit the room, Read Hindi story of ghost

Sketch of Ghost - The Reaper

Hindi Story – Haunted Cabin
Photo credit: diddlydood from morguefile.com

देश आज़ाद हुए कुछेक साल ही हुए थे . अब भी पूरी तरह अंग्रेज लोग देश से नहीं गये थे . मेरी माँ की तबियत अचानक ख़राब हो गयी तो स्थानीय डाक्टरों ने सिविल हॉस्पिटल , धनबाद , रेफर कर दिया . उस ज़माने में अधिकतर डाक्टर और नर्स अंग्रेज ही थे. मेरे बड़े मामा भर्ती करवाते वक़्त साथ थे .मेरे पिता जी और मेरी दादी भी साथ में थीं. कैबिन खाली नहीं था . जनरल वार्ड में सीट खाली थी , लेकिन मामा जी कैबिन लेने के लिए प्रयत्न कर रहे थे . एक नर्स से पता चला कि एक कैबिन है . हमेशा खाली रहता है . कोई उसमें नहीं रहता . भूतहा है इसलिए . वर्षों से उसमें भूत – प्रेत का डेरा है. मामा जी ने वही कैबिन एलोट करवा लिया. हर रोज साफ़ – सफाई होती थी , लेकिन कोई रहता नहीं था. सच पूछिये तो रात को गंजेड़ी – भंगेड़ी का वहाँ जुटान होता था . लोगों से मालूम हुआ कि इन गंजेड़ियों – भंगेडियों के साथ भूत – प्रेत भी बैठकर नशा करते हैं . हकीकत क्या थी इससे हम कोसों दूर थे.

सच या झूठ बात ज्यादा देर छुपी नहीं रहती , एक न एक दिन सब को मालूम हो जाता है. हमें मालूम हो गया कि कैबिन वास्तव में भूतहा है. दादी तो अड़ गयी कि इसमें बहू ( मेरी माँ ) नहीं रहेगी , लेकिन मेरे बड़े मामा जी ने एलान कर दिया कि माँ के साथ रात में वे ही रहेंगे और भूत – प्रेत से सलटेंगे. हमलोग सभी जानते थे कि मामा जी के पास भूत – प्रेतों की जमात है. बड़े बुजुर्ग तो यहाँ तक कहते थे कि जगदेव ( मेरे मामा जी ) को भूत – प्रेत से लगाव – एक तरह से दोस्ती है और दूसरी तरफ भूत – प्रेतों को भी जगदेव से बेइन्ताहाँ दोस्ती है. एक दूसरे से वगैर मिले वे एक दिन भी नहीं रह सकते थे – ऐसी लोगों की धारणा बन गयी थी. यह बात कई बार साबित भी हो चुकी थी. किसी को भी भूत – प्रेत की साया पड़ने पर मामा जी झाड – फूंक देते थे तो भूत – प्रेत सर पर पाँव रखकर भाग जाता था.

एक बार का वाकया का जिक्र कर रहां हूँ . किसी पर प्रेत सवार हो गया . अंड – संड बकने लगा . घरवालों को भी पहचानने से नकार दिया . साठ – आठ लोगों को झटक देता था इतनी ताकत आ गयी थी उसमें . मामा जी के पास ले आये . मामा जी ने प्रेत का आह्वान किया और सवार होने की वजह जानना चाहा तो प्रेत ने बताया कि रात में उसने उससे बीडी मांगी तो उसने ठेंगा दिखा दिया तो उस पर वह सबक सिखाने के लिए उस पर सवार हो गया . मामा जी ने दस गट्टे बीडी देने का वादा किया रात के बारह बजे तो वह आदमी उठा और लडखडाता हुआ थोड़ी दूर पर जा गिरा . मामा जी एवं बाकी सभी लोग दौड़े हुए गये तो उसे अचेतावस्था में पाया . थोडा जल का छींटा चेहरे पर देने से वह होश में आ गया और बोला : मैं कहाँ हूँ ? मामा जी ने उसे उठाया और कहा कि अब भूत छोड़ कर चला गया ,

लेकिन वादा के अनुसार दस गट्टा बीडी आज रात को जोड़ा बरगद के पेड़ के पास पहुंचा देना है नहीं तो फिर …? घर के लोग उस आदमी को खुशी – खुशी ले कर चला गया तो मामा जी की जान में जान आयी .

मामा जी ने कैबिन को अच्छी तरह से साफ – सुथरा करवा दिया . बेडशीट पिलोकवर सभी बदल दिए गये. माँ को एडमिट कर दिया गया . अब सवाल यह पैदा हुआ कि रात को कौन पहरा देगा .

मैं दूंगा . मामा जी आगे बढ़कर इस बात की पुष्टी कर दी.

फिर क्या था जो डर सब के मन में समाया हुआ था , वह मिनटों में रफ्फू चक्कर हो गया.मामा जी की डियूटी रात को थी , इसलिए वे शुबह्वाली पेसेंजर से प्रधानखंता लौट जाते थे जब दादी या बुआ जी आ जाती थी. मामा जी की दूकानदारी थी . उनके ग्राहक लगे हुए थे . उनके न रहने पर कारबार प्रभावित हो सकता था. मैं मामा घर में ही रहता था . उम्र मेरी आठ – नौ साल की होगी. मामा का मैं बेसब्री से इन्तजार करता था क्योंकि वे मुझे भूत – प्रेत की सच्ची कहानियां सुनाया करते थे. मामा को भी मुझमें दिलचस्पी थी. इसकी वजह यह थी कि मैं उनकी बातों को अहमियत देता था तथा कहानियों को बड़े ही ध्यान से सुनता था. यह एक तरह से हमदोनों में दोस्ती थी भले ही उम्र का अंतर बहुत था.

कुली गाड़ी ( पेसेंजर ट्रेन को लोग यहाँ कुली गाड़ी कहते थे ) से मामा जी जैसे घर में घुसे , मैं पीछे – पीछे हो लिया .

मामा जी : अभी जाओ . नहा – धोकर , नास्ता करके बैठता हूँ तो रात की बात बताता हूँ.

ठीक है . तबतक मैं दूकान पर बैठता हूँ और ग्राहक को सलटाता हूँ. मैं मामा जी के साथ बैठ – बैढ़ कर दूकानदारी करना सीख गया था . सभी ग्राहकों को चेहरे से पहचानता था , जो उधार लेते थे और महीना मिलने पर पैसे देते थे. जिसे मैं बाई नेम पहचानता था उसे उधार भी दे देता था. नाम और उधार की राशि लिखकर रख लेता था . मामा जी को बाद में बता देता था.

जलपान करने के बाद मामा जी दूकान पर आगये . मैं इशारे से पूछना चाहा कि आप को कब मौका मिलेगा रात की बात बताने का .

मामा जी अपने पास बुलाये और मेरे कान में कहा : खाना खाने के बाद , गोहालवाली कोठरी में – तीन बजे के लगभग .

मुझे समझने में देर नहीं लगी कि जरूर कोई विशेष बात होगी .मेरे पेट में खलबली मची हुयी थी जानने के लिए . उधर मामा जी भी बेचैन थे बताने के लिए .
मामा जी दूकान पर बैठ गये और व्यस्त हो गये और मैं अपने साथियों के साथ खेलने निकल गया .

दोपहर का एक बज रहा था . नानी जी खाना बना चुकी थी. हमने एक साथ खाना खाया . थोड़ी देर आराम करने के बाद हम गोहालवाली कोठरी में चले आये .

मैंने ही बात शुरू की : मामा जी ! कल रात को भूत आया था क्या ?

घड़ियाल ने बारह बार घंटी बजाई. मैं सतर्क हो गया कि अब प्रेत का आने का वक़्त हो चूका है . मैंने बीड़ी सुलगा ली और पीने लगा .तभी एक लम्बा सा सख्स दूध से सफ़ेद लिवास में मेरे सामने से गुजरा . पानी के घड़े के पास गया और एक हाथ से ही घड़े को उठा लिया और घटाघट सारा पानी पी गया . फिर तुम्हारी माँ के सिरहाने तक गया – दवा की शीशियों और बोतलों को उठा – उठा कर देखा . फिर रख दी . चूँकि बीडी पीने से कैबिन में धुँवा फ़ैल रहा था . जैसे ही यह गंध प्रेत को लगा , वह मेरी तरफ मुड़ा और मुझे गौर से निहारा. मैंने तो अपना देह मंत्र से पहले ही बाँध चूका था – प्रेत मेरा बाल भी बांका नहीं कर सकता था. उसने मुझसे बीडी मांगी . मैंने एक बीडी सुलगाकर उसे खड़े होकर पकडाना चाहता था कि उसका एक हाथ पांच – छह फीट तक लम्बा हो गया . मैंने ऐसी कई कहानी पढ़ी थी . इसलिए मुझे आश्चर्य नहीं हुआ. वह करीब छह – सात फूट का था .

नख से शिख तक दूध से भी ज्यादा सफ़ेद कपड़े पहने हुए था . उसके पैरों के पंजे पीछे तरफ थे . मेरे गुरु जी ने भूत – प्रेत को पहचानने के लिए यह बात बताई थी . मेरी लम्बाई महज साड़े पांच फीट . मैं उस प्रेत से कुछ गुजारिस करना चाहता था , इसलिए खड़ा हो गया . अब भी वह मुझसे ऊँचा था . वह झट अपनी लम्बाई मेरे बराबर कर दी और मुखातिब हो गया .

फिर क्या हुआ ? मैंने सवाल किया मामा जी से उत्सुकतावश .

फिर क्या था , मैंने पहल की : आप कौन हो और किसलिए रोज आते हो ?

मेरी अकाल मृत्यु हुयी है इसी अस्पताल में इसी कैबिन में. मुझे गला दबाकर हत्या कर दी गयी और उसे स्वाभाविक मृत्यु का रूप दे दिया गया . मुझे पड़ोस की एक लडकी से मोहब्बत हो गयी थी , लेकिन लड़कीवाले इस रिश्ते को मानने से इंकार कर दिए . वे सब मेरे जान के दुश्मन बन गये . लडकी को तो घर में कैद कर दिए और मौका देखकर मुझे बहुत मारा – पीटा . रात का वक़्त था . मरा समझ कर चले गये लोग , लेकिन मैं मरा नहीं था.शुबह लोंगों ने मुझे देखा और अस्पताल में भरती करवा दिया . मेरे परिवारवालों को खबर कर दी गयी . मैं धीरे – धीरे स्वास्थ्य लाभ करने लगा . मेरे पिता जी रात को इस कैबिन में मेरी रखवाली करते थे . उनकी आँखें लग गयी थीं . बस क्या था , मेरे दुश्मनों को मौका मिल गया . वे आहिस्ते से दबे पाँव आये और मेरा गला दबाकर मेरी हत्या कर दी . शुबह लोंगों ने समझा कि मैं गंभीर चोट की वजह से मर गया.

मामा जी : फिर क्या हुआ ?

फिर मैंने प्रेत योनी में जन्म ले लिया . मेरी आत्मा भटकती रही और उन हत्यारों की तलाश करती रही .

मैंने अबतक लडकी के पिता और दो भाईयों को मार डाला है . अब परिवार में लडकी की माँ और लडकी बची है .मैं लडकी की माँ को मारना नहीं चाहता .

क्यों ?

मैं बड़ा उधेड़बुन में हूँ . मैंने मरते वक़्त कसम खाई थी कि पूरे परिवार को ख़त्म कर दूंगा , तभी चैन की सांस लूँगा .मैं बड़ा धर्मसंकट में हूँ.

खुलकर बोलो , हो सकता है मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूँ .

लडकी की माँ का कोई कसूर नहीं है . वह हमारी शादी के खिलाफ नहीं थी . अब उसे मारना न्यायसंगत नहीं लगता मुझे.

और वह लडकी ? मैंने उत्सुकतावश पूछ बैठा .

वह इसी अस्पताल में नर्स है. उसे क्वार्टर मिला हुआ है . माँ – बेटी साथ – साथ रहती है .

माँ चाहती है कि बेटी शादी करके घर बसा ले , लेकिन लडकी नहीं चाहती .

लडकी क्या कहती है ?

एक बार जिसे दिलोजान से प्यार किया , उसे न पा सका तो दूसरे का सवाल ही पैदा नहीं होता .

तुम्हारा नाम क्या था ?

केशव , केशव शर्मा .

तो शर्मा जी ! मेरे विचार में उसकी माँ को बक्श देना याने जीवनदान दे देना चाहिए . और जहांतक लडकी की बात है , वह अब भी तुमसे प्यार करती है और आजीवन करती रहेगी . शर्मा जी ! तुम भाग्यशाली हो जो इतनी बफादार प्रेमिका मिली .मेरी सलाह मानो तो लडकी को देखकर उसकी माँ को मदद कर अपनी पूरी जिन्दगी काट लो .

मैं वैसा ही करूंगा जैसा आपने कहा .मैं प्रेत अवश्य हूँ , लेकिन मेरे सीने में भी एक इंसान का दिल है.कल फिर मिलूंगा और ईश्वर से प्रार्थना करूंगा कि आप की बहन शीघ्र स्वस्थ हो कर घर जाय .

फिर क्या हुआ , मामा जी ?

फिर वह पलक झपकते अंतर्ध्यान हो गया .

 

लेखक : दुर्गा प्रसाद , गोबिंदपुर , धनबाद , दिनांक : २३ मई २०१३ , दिन : वृस्पतिवार |
***

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