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Magical Wand

Published by Durga Prasad in category Hindi | Hindi Story | Paranormal Experience with tag ghost | Love | marriage | uncle

जादुई छडी – Magical Wand:(One ghost was worried about his girlfriend and with help from a friend he convinced his girlfriend for a better life,Read ghost story in Hindi )

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Hindi Story – Magical Wand
Photo credit: caldosh from morguefile.com

मामा जी को अबतक यकीन हो गया था कि मेरा उनके साथ रात में कैबिन में रहना खतरे की बात नहीं है. ये भी समझ गये थे कि उनका भगिना अब साथ – साथ ही रहेगा . इसलिए आज मुझे धनबाद अस्पताल उनके साथ जाने के लिए जिद नहीं करनी पडी . वे खुद बुलाकर मेरे मन की बात जाननी चाही :
आज भी चलोगे क्या ?

बेशक ! आपने ही तो जादुई छडी के बारे बताने की बात कही थी. आप अपने वादा से पीछे हट नहीं सकते .

ठीक है . पांच बजे तक तैयार हो जाना . आज तुम्हारे भूत मामा से जादुई छडी के बारे में बात करूँगा .

हम नियत समय पर स्टेशन आ गये और कुली गाड़ी पकड़ ली. आठ बजे अस्पताल पहुँच गये . माँ की नज़र दरवाजे पर टिकी थी. मुझे देखते ही उछल पडी :

बेटा ! मामा के साथ आते हो तो मुझे बहुत अच्छा लगता है.

माँ ! अब मैं रोज आया करूंगा . आधी रात को भू …

मामा जी बीच में ही मुझे रोक दिया :दीदी ! भूख लगती है इसे रात को .

मामा जी ने बात को मोडते हुए माँ को बताया . वे नहीं चाहते थे कि भूतवाली बात माँ को बेवजह बताई जाय. बात को दूसरी ओर मोडते हुए सुनकर मैं अब जान गया था कि मामा जी भूतवाली बात बताकर उन्हें परेशान करना नहीं चाहते .

माँ : कल रात को किसी ने एक टोकरी सेव देकर गया है . बेटा ! बिलकुल ताजा है. एक खाकर तो देखो .

मैंने कोने में देखा एक टोकरी सेव पडी है . मुझे कल रातवाली बात याद आ गयी. मैंने एक सेव उठा लिया और खाना शुरू कर दिया .मामा जी को मालूम हो चूका था कि भूत मामा ने ही सेव भेजवाए थे.

मामा जी बाहर निकले तो मैं भी उनके साथ हो लिया . रात के करीब दस बज रहे थे . मामा जी एक नर्स से बात कर रहे थे . क्या बात हुयी मैं सुन नहीं सका क्योंकि मैं टॉफ़ी लेने के लिए गुमटी पर रुक गया था . हम आध घंटे में घूम कर कैबिन में आ गये. बुआ जा चुकी थी और माँ खाना खाकर सो गयी थी. मैं मामा जी के साथ चादर ओढ़कर बैठ गया . आज ग्यारह बजे भूत मामा को आना था . पूर्णिमा से उसकी मुलाकात करवानी थी. ठीक उसी तरह खिड़की के परदे हिलने लगे. बत्तियां गुल हो गईं. तेज हवा चलने लगी . बूंदा- बूंदी भी होने लगी . देखा वही नर्स कैबिन में दाखिल हुई . मुझे समझने में देर नहीं लगी कि ये सब स्थितियां पूर्णिमा को कैबिन में लाने के लिए भूत मामा ने पैदा की है . भूत मामा पूर्णिमा के सामने आना नहीं चाहते थे बिना मामा जी के आह्वान किये . मामा जी ने पूर्णिमा जी के लिए स्टूल बढा दिया.

वह बैठ गयी और बोली :

क्या बात है , दादा ? बहन ठीक है न ?

हाँ , ठीक है , पहले से बेहतर है .

स्पीडी रिकोवरी हो रही है. फिर भी दस पंद्रह दिन तो लग ही जायेंगे . बच गयी , ईश्वर की कृपा से . नॉर्मली ऐसे रोगी नहीं बचते.

पूर्णिमा जी ! आप बहुत ध्यान देती है मेरी बहन पर अपने डियूटी आवर्स में , इसके लिए मैं आप का …

यह तो मुझे करना ही है. मेरी जिम्मेदारी है और कर्तव्य भी . नर्स होना ही बड़ी बात है और उससे बड़ी बात है ईमानदारी से फर्ज निभाना . मैं तो इस प्रोफेसन में आ गयी तो मेरा वक़्त आराम से कट जाता है और काम करने में जो शुकून मिलता है , उसकी तो बात ही मत पूछिए.

पूर्णिमा जी ! आपने अभी तक शादी क्यों नहीं की ? शादी की उम्र … ?

दादा ! औरत की जिन्दगी में जब एक मर्द आ जाता है जिसे वह बेहद प्यार करती है , तो उसके जेहन में दूसरा मर्द का ख्याल स्वप्न में भी नहीं आता .

क्या कोई है जो ..

हाँ , है . मेरे मोहल्ले में एक नवयुवक रहता था जिससे मुझे प्यार हो गया था . उसका मेरे घरवालों ने क़त्ल कर दिया .

क्या नाम था उसका ?

केशव – केशव शर्मा .

क्या तुम अब भी उससे प्यार करती हो ?

बेशक .

केशव चाहता है कि तुम घर बसा लो .

आप को कैसे मालूम ?

यह मत पूछो , तो अच्छा है.

दादा ! मुझे शादी करने की ईच्छा नहीं होती . मैं अपने प्यार को कलंकित नहीं करना चाहती.

जब केशव अपने मुँह से कहे तो …

यह कैसे हो सकता है ? उसके गुजरे पांच साल हो गये .

पूर्णिमा ! जानती हो आत्मा कभी नहीं मरती . जो असमय ही मर जाता है , वह प्रेत योनी में जन्म लेता है . जब आयु ख़त्म हो जाती है , तो प्रेत योनी से छुटकारा मिलता है.

आपका कहने का अभिप्राय क्या है ?

केशव यहीं है और वह हमें देख रहा है और सुन रहा है लेकिन हमलोग नहीं . कहो तो मैं उसे साक्षात बुला दूं . उसी के मुँह से सुन लेना कि मेरी बात सच है कि झूठ है.

मैं उसे एक बार अपनी आँखों से देखना चाहती हूँ , उससे मिलना चाहती हूँ . जो भी बात कहते हैं , उसे जरूर मानूँगी .

मैंने केशव को चाल किया तो वह अपने असली रूप में हाजिर हो गया . पूर्णिमा को तो पहले अपनी आखों में यकीन नहीं हुआ , लेकिन जब उसने पूर्णिमा कहकर संबोधित किया तो जानी पहचानी आवाज सुनकर विश्वास हो गया .

दोनों एक दूसरे को अपलक देखते रह गये .

केशव ! तुम्हारे बिना मेरी जिन्दगी अधूरी है . मैं एक जिन्दा लाश हूँ .

ऐसा मत बोलो . मुझे दुःख होता है.

क्या तुम लौट के नहीं आ सकते ?

कभी नहीं .

तो ?

मुझे यदि तुम खुश देखना चाहती हो तो तुम शादी करके घर बसा लो . माँ की भी यही ईच्छा है.

ठीक है . आपकी बात मानकर …

दिल से शादी करो और सब कुछ भुलाकर एक नयी जिन्दगी जीओ – यही मेरी गुजारिश है तुमसे .

मैं चला . कहकर भूत मामा अंतर्ध्यान हो गया .

मामा जी पूर्णिमा को वार्ड तक छोड़ कर चले आये .

बाहर कुत्ते भूंक रहे थे . हवा बहुत तेज़ चल रही थी. पेड़ के पत्ते जो – जोर से हिल रहे थे . शाखाएं आपस में टकरा रहीं थीं. उनसे अजीब किस्म की आवाज़ निकल रही थी. मामा जी दस मिनट में लौट आये . दरी बिछा दी और बगल में सो जाने के लिए कहा . मुझसे रहा नहीं गया . मैंने सवाल दाग दिए :

मामा जी ! आपका जादुई छडी का क्या हुआ ?

आज जो भी हुआ सब तुम्हारी आँखों के सामने हुआ , फिर भी पूछते हो ?

आज भूत मामा का मूड ऑफ़ था . ऐसे में मैं उनसे जादुई छडी के बारे में कैसे कह सकता था . कल रात को तुम्हें जरूर दिला दूंगा .

बात भी सही थी , इसलिए मैं बिना जिद किये सो गया.

लेखक : दुर्गा प्रसाद , गोबिंदपुर , धनबाद , दिनांक : २५ मई २०१३ , दिन : शनिवार |
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