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Ghost House

Published by divyank jain in category Hindi | Hindi Story | Paranormal Experience with tag child | fear | ghost | horror

सज्जन कॉलोनी में आज फिर एक बड़ा नुकसान हो गया । ना किसी के घर चोरी हुई और ना किसी के पैसे डूबे । ना बाबू जी का चश्मा फिर टूट था । ना ही दुध वाले अंकल का टायर पंचर हुआ । वर्मा जी की सैलरी भी महीने की पहली तारीख को आ गयी थी । चौहान आँटी का नया मोबाइल भी अब तक सही सलामत था । आज ना ही पिछले महीने के जैसी कोई घटना हुई थी । पिछली वर्मा आँटी का सब्जियों से भरा ठेला भूत बंगले के बाहर से गायब हो गया था । और तो और सरदार कॉलोनी के वो लम्बे लम्बे बच्चे अपनी साइकिल दौड़ाते , ठीक भूत बंगले के बाहर गिर पड़े थे । पंडित जी ने तो कहा उस बच्चे पर अब किसी काले साये का असर है ।

खेर जो हुआ सो हुआ । लेकिन आज का नुकसान पिछले महीने हुई इन सारी घटनाओं से कई जादा बड़ा था। कॉलोनी के सबसे कम उम्र के सदस्य चिंता करते हुए ग्राउंड में लगी बेंच पर बेठ गए । कुछ तो गास में पेर पसार कर बैठे गए ।

“यार अब कौन जायगा वहाँ ?” राजीव ने धूल से भरे हाथ टि शर्ट पर रगड़ते हुए कहा । उसके माथे पर पसीने की बूंदे साफ दिखाई दे रहि थी । “ये सब तेरी गलती है बंटी ! किसने कहा इतना तेज शॉट मारने के लिए । ” विजु ने आवाज उची कर अपनी बात रखी

“यार तो इसे बोले ना .. इसकी बोलिंग कितनी गटीया है।” बंटी ने बेंच पर हथेली मारते हुए अफसोस जताया ।

“जो भी हो , बोल तो गयी ना अब उस भूत बंगले में । यार पापा मुझे अब कोई बोल नही दिलाने वाले । इस महीने की तीसरी बोल थी ये । ” चिंटू बोला ।

बात तो उसकी भी सच थी । उसके पापा ठहरे सिंधी । भला वो इतनी बोल कैसे दिला पाते । बंटी के पापा तो उसे महीने में 2 पेंसिल नही लाकर देते थे बोल तो पता नही कब देते । राजीव चार दिन पहले ही नया बैट लाया था । वो भी अब नई बोल नही ला सकता था । और विजु वो तो था ही फर्टिचर ।

बचा ध्रुव लेकिन उसके पापा थे बनिये । साफ साफ कह दिया । “विकेट तू ले जा रहा है तो बैट और बोल दुसरो से मंगवाना” । टेंशन में बैठे सभी वासुदेव कॉलोनी चैम्पियन्स के बुलन्द हौसलो फुस हो गए । उनके हाथ पैर ढीले पड़ गए जैसे उनकी सारी हवा निकल गयी हो । अब ना वो क्रिकेट खेल पायगे और ना ही अगले महीने की एक तारीख को होने वाला मैच । अब वो फिर सरदार कॉलोनी के बच्चों से मैच हार जायगे ।

“में तो कहता हूँ हमे वहाँ जाकर बोल ले आनि चाइये ।” ध्रुव ने कहा । उसे सभी ने एसे देखा जैसे वो ही उस बहुत बंगले का भूत हो । “कोन जायगा तू ?” बंटी ने कहा । “पागल है ये तो , तुझे पता नही भूत बंगले में कोन रहता है” विजु ने कहा ।

“भूत वुत में नही मानता .. ये सब तुम बच्चों के किस्से है।” ध्रुव ने जवाब दिया । “अच्छा तू तो जैसे सुपरमैन बन गया है…बात करता है.. ।” राजीव ने कहा ।

“एक मिनट …” ध्रुव ने बेंच से खड़े होते हुए कहा । “सुनो…” उसने कान पे हाथ लगाते हुए कहा । बंटी , राजीव , विजु खामोश होकर सुनने लगे । “क्या..?” चिंटू बोला । “भुत बंगले से उस बच्चे के रोने की आवाज आ रही है” सभी ध्यान से सुनने लगे । उसने देखा धीरे धीरे सारे दोस्त के चेहरे के रंग उड़ गए । “भूम्म्म ” ध्रुव चिल्लाया और वो सब एक से कूद कर नीचे आ गए । ध्रुव जोर जोर से हसने लगा । इतना कि उसकी हसि ही नही रुक रही थी ।

“अच्छा बेटा अब इतना होशियार बन रहा है तो जाना तू वहाँ।” बंटी की बात में सब हां मिलाने लग गए । “ठीक है ठीक है जाता हूँ ! सब फट्टू ही रहोगे तुम ।” ध्रुव अपने शर्ट की आस्तीन चढाये वहाँ से चल दिया ।

छोटे छोटे बच्चे फिसलपट्टियों पर फिसल रहे थे और कुछ जुला जुल रहे थे । कुछ अंकल आँटी जॉगिंग कर रहे थे । कॉलोनी का पूरा ग्राउंड लोगो से भरा था । वो हरि गास पर चलता हुआ ग्राउंड के बाहर चला गया । सड़क के उस पार था वो भूत बंगला । पीले रंग का मकान मगर अब वो पिला कम काला जादा दिखाई देता था । उसकी दीवारों की हालत इतनी जर्जर थी । प्लास्टर टूट कर लोहे के तारों के सहारे हवा में झूल रहा था । घर के चारो ओर लम्बी लम्बी गास उग गयी थी । बारिश का कीचड़ अब भी जमीन पर भरा रहता था । जंगली बेले खिसकती खिसकती घर की छतों पर पहुच गयी थी ।

उसने सुना था सालो पहले वहाँ एक डॉक्टर रहता था । थोड़ा सनकी । दिन रात उसकी पत्नी और वो झगड़ते रहते थे । एक दिन उनके झगडे के बीच डॉक्टर साब ने शराब पीली और घर मे तोड़ फोड़ करने लगे । काँच का एक जार जब उन्होंने दीवार पर पटका था तो उसका एक टुकड़ा उछल कर सीधा उनके इकलौते बेटे के गर्दन में जा गुसा । डॉक्टर होकर भी वो उसकी जान नही बचा सके ।

डॉक्टर साहब का क्लीनिक ढप पड़ गया । जब उन्होंने हवन करवाया तो पंडित ने उन्हें घर खाली करने को कह दिया । डॉक्टर और उनकी पत्नी घर खाली कर के चले गए और अब वो घर चूहों बिल्लियॉ और मकड़ियों का अड्डा बन गया था । उस दिन से वो बच्चा भूत बन गया और उसकी आत्मा मोहल्ले में आने वाले हर शक्स को परेशान करती थी । उसकी वजह से ही तो इतना लंबा चोडा बंगला आज तक बिका नही था । हर महीने कोई ना कोई घटना उस घर के बाहर होती थी ।

जब ध्रुव सड़क पार कर , बंगले के बाहर लकड़ी की बॉउंड्री तक पहुँचा तो उसने बगले को देखा । उसने गले से थूक उतारा । “भूत वुत सब जुठ है” उसने खुद से कहा । लकडी से बनी हुई बाउंड्री को पार करने जब उसने अपना पैर उस पर रखा । पीछे से आवाज आई “ये क्या कर रहे हो बेटा ।” उसने पीछे देखा बूढ़े मास्टर जी चश्मे के जरिये उसे देख रहे थे । “बोल लेने जा रहा हूँ”ध्रुव ने कहा ।

“पागल हो क्या ! वहाँ मत जाओ .. वहाँ …” मास्टर जी बोलते बोलते रुक गए । “नही भूत नही होता है” ध्रुव ने उनकी बात काटी । वो बॉउंड्री से छलांग लगा कर अंदर कूद गया ।

हर तरफ टूटे पेड़ और उनकी सुख चुकी डालिया बिखरी थी । उस मकान के थोड़ा पीछे एक विशाल बरगद का पेड़ था । जिसके पत्ते टूट कर हवा में इधर उधर उड़ रहे थे । उसने कदम आगे बढ़ाया । वहाँ की जमीन अब भी गीली और नरम थी । उसके सफेद स्पोर्ट्स शूज़ पूरी तरह खराब हो गए लेकिन वो आगे बढ़ता गया । पेड़ो के सूखे पत्ते सरसर आवाज करते उड़ रहे थे । एक तेज हवा का झोंका आया और सारे पत्ते उसके चेहरे से आकर टकरा गए ।

अपने बाल से एक पत्ता हटाया तो उसकी नजर उस मकान की एक खिड़की पर पड़ी । उसका काँच फूटा था । शायद वही से बोल गई होगी । वो धीमे कदमो से चलता हुआ घर के दरवाजे तक पहुँचा । दरवाजे के कांच फूटे हुए थे और हैंडल लटक रहा था । उसने गहरी सांस ली और पीछे देखा ।

उसके दोस्त बेंच पर खड़े होकर बतख की तरह गर्दन उठाये उसे देख रहे थे । ध्रुव ने उनकी तरफ एक मुस्कान दि । उसने दूसरा हैंडल कस कर पकड़ा और फट से वो भी टूट कर नीचे लटक गया । ध्रुव लड़खड़ाया मगर ,दरवाजे को पकड़ अपने आप को संभाल लिया । उसने दरवाजे को धक्का दिया । दरवाजा खुला गया ।

बाहर से आती रोशनी अंधेरे गलियारे में जाने लगी । रोशनी की एक किरण सामने की दीवार पर टँगी एक तस्वीर पर पड़ रही थी । ध्रुव ने नजर उठाई । उसमे एक औरत एक आदमी और उनकी गोद मे एक नन्हा सा बच्चा था । ध्रुव को लगा जैसे वो तीनो उसे गुर रहे थे । लेकिन वो बस एक तस्वीर थी ..कोई भूत नही ।

उसने गलियारे के अंदर धीरे से कदम रखा । उसके जुते की आवाज भी सारे घर मे गूंज उठी । उस जगह इतनी खामोशी छाई थी की ध्रुव अपनी साँसे और धड़कने भी खुद सुन सकता था । वो समझ नही पा रहा था । कि भूत कुछ नही होता फिर भी उसके दिल की धड़कने इतनी तेज क्यों चल रही थी ।

दीवारों पर चारो तरफ जाले लटक रहे थे और प्लास्टर निकल चुका था । ऐसा घर उसने सिर्फ भूत की पिक्चरों में देखा था । उसकी नजर बार बार दीवार पर लटकती उस तस्वीर को देख रही थी । उसने महसूस किया । पसिने कि ठंडी बूंदे उसके कान के पीछे से होती हुई गर्दन के सहारे शर्ट के अंदर तक उतर रही थी ।

वो दो कदम आगे बढ़ा और गलियारे में बाई ओर मुड़ा । जिस खिड़की का काँच टूट था वो मकान के बाई ओर ही थी शायद ऊपर वाले फ्लोर पर । उसने देखा गलियारे के बाये हीस्से में सीढिया थी । “मुझे ऊपर जाना होगा” उसने खुद से कहा ।

जैसे ही वो आगे बढ़ा उसने देखा दो पीली आँखे अंधेरे में उसे गुर रही थी । पीली और भयानक आँखे । ध्रुव के रोंगटे खड़े हो गए और उसने दीवार पर हाथ रख दिया । उसने देखा वो पीली आँखे अंधेरे में कही गायब हो गयी । अगले ही पल जहा सीढियो में खिड़की से रोशनी गिर रही थी । वहां उसे कुछ काली चीज भागति हुई दिखी “बिल्ली” उसके मुँह से शब्द निकला । उसने अपना जुता जान बूझ कर फर्श पर ठपकारा ताकि काली बिल्ली वहाँ से भाग जाए ।

जब ध्रुव की धड़कने थोड़ी धीमी हुई तो उसने लकड़ी की बनी सीढियो पर कदम रखा । वो दबे पांव ऊपर चढ़ता गया । सीढिया पूरी तरह जालो से भरी हुई थी । उसके बाल , चेहरा और शर्ट जालो से भर गया ।

उसने अपने हाथ से जाले साफ किये तो उसे एहसास हुआ एक छोटी मकड़ी उसके बालो में चल रही थी । उसे अपनी हथेली से झटकते हुए उसे नीचे फेक दिया और खुद उछल कर दूर खड़ा हो गया । वो सीढिया चढ़ते चढ़ते बाई ओर मुड़ा और अचानक कुछ गिरने की आवाज आई । उसकी धड़कन जैसे एक पल के लिये रुक सी गयी । उसने दीवार पर हाथ रख खुद को सीढियो से गिरने से बचाया ।

“मुझे यहां से चले जाना चाइये” उसने खुद को समझाया । पास ही एक खिड़की से बाहर जाका , उसके दोस्त अब भी ग्राउंड में खड़े थे ।

“मुझे बोल लेकर आनी ही होगी” उसने खुद से कहा । वो आगे बढ़ा । सीढिया चढ़ ऊपर आया तो उसने देखा वहाँ एक बड़ा बरामदा था । खिड़कियों से आती रोशनी के कारण वहां ऊपर इतना अंधेरा नही था ।

उसने देखा ,बरामदे में सब कुछ बिखरा हुआ था । जगह जगह काँच के टुकड़े थे जो उसके जुतो के नीचे आकर ओर भी टूट रहे थे । हर जगह तस्वीरे थी । कोई जमीन पर बिखरी तो कोई दीवार पर आड़ी तिरछी लटकी । तस्वीरों में एक ही चीज थी । एक बच्चा । जिसके छोटे बाल थे बिल्कुल ध्रुव की तरह । शर्ट और निक्कर पहना था जैसा कि ध्रुव पहनता था । हर तस्वीर में वो बच्चा दिखाई दे रहा था । उसे गुरता हुआ । ऐसी कोई तस्वीर नही थी जिसमे वो हस रहा हो या खुश दिख रहा था । उसकी डरा देने वाली आँखे ध्रुव पर नजर जमाये हुई थी । ध्रुव की धड़कने ओर तेज चलने लगी ।

वो पूरे बरामदे में गुमा मगर वहाँ कही बोल नही मिली । उसने देखा वहां आगे एक कमरा भी था । जिसका दरवाजा खुला था और वहां लटका सफेद पर्दा हवा से लहरा रहे थे । “बोल वही गयी होगी” उसने खुद से कहा ।

वो कमरे की ओर बढ़ा । उसने अपने काँपते हाथो से पर्दे को हटाया । कमरे में रोशनि बिल्कुल कम थी । वो यकीनन उस डॉक्टर का कमरा था । जगह जगह इंजेक्शन , काँच की बोतले , दवाइयों बिखरी हुई थी । खिड़कियों पर सफेद पर्दे लटक रहे थे । “में पूरे घर मे गुम लिया , कोई भूत नही है यहाँ” उसने मुस्कुराते हुए खुद से कहा । उसने कमरे के भीतर दम रखा । नील रंग की बोल वहाँ बीचो बीच रखे पलंग पर पड़ी थी । “वो रही बोल” ध्रुव ने कहा और बोल की ओर लपका ।

पलँग पर पड़े नरम गड्ढे पर बाया हाथ टेक , दूसरे हाथ से बोल को पकड़ा । अपनी मुट्ठी में कस लिया । वो बोल को हाथ मे लिए खड़ा हुआ ही था कि उसकी नजर ऊपर उठी । ठीक उसके सामने सफेद परदों के पीछे कोई बच्चा उसे गुर कर देख रहा था । ध्रुव ने कस कर आँखे बंद कर ली । उसके हाथ से बोल गिर गयी । वो भागना चाहता था पर उसे लगा जैसे उसके पैर वही जाम हो गए । एक के बाद एक माथे से गिरती पसीनो की बूंदों ने जैसे उसे नहला दिया । उसका एक एक रोंगटा खड़ा हो गया । दिल जैसे ट्रैन की तरह दौड रहा था । बन्द आँखो में भी उसे वो गुरती नजरे दिखाई दे रही थी ।

अगले ही पल वो चिल्ला उठा । ” भूत…..भूत…..भूत….मम्मी ….पापा…..” वो बिना सामने देखे पीछे पलटा और पर्दे को हटा बरामदे में दौड़ पड़ा । काँच के टुकड़ो से वो फिसलता फिसलता बचा ।

वो धड़ा धड़ सीढिया उतरा और दौड़ता हुआ सीधा उस भूत बंगले से बाहर निकल गया । उसने देखा उसके दोस्त उस भूत बगले के बाहर ही खड़े थे । वो दौड़ कर उनके पास गया । और लकड़ी की बॉउंड्री पार कर सीधा बंटी पर जा गिरा । बंटी और राजीव ने उसे गिरने से बचाया । “क्या हुआ मिली बोल ?” चिंटू ने कहा

“नही नही ! भूल जा बोल …वहाँ … सच मे उस बच्चे का भूत रहता है” ध्रुव को अछि तरह याद था कि उस दिन की घटना के बाद वो पाँच दिनों तक बीमार रहा । 2 इंजेक्शन और कई दवाइयों के बाद उसका बुखार उतरा । बुखार तो उतर गया लेकिन उसके दिमाग से वो भूत फिर कभी नही निकला । उसके साथ हुई इस घटना की जानकारी पूरे मोहल्ले में फेल गयी ।

उस दिन के बाद ध्रुव ने फिर उस मकान की तरफ आँख उठा कर भी नही देखा । ना जाने कितनी बोले उधर गयी और कोई उन्हें वापस लेने नही गया । उस घटना को पूरे पाँच साल बित गए लेकिन वो डर उसके मन से आज तक नही निकल पाया । अब कोई भी उसे कहता भूत वुत जुठ है तो वो उसे खरी खोटी सुना देता ।

रबर की बोल की जगह अब लेदर बोल ने लेली थी । राजीव के पापा ने MRF का नया बेट भी दिलवाया था । वो दोस्तो के साथ हर रोज वही ग्राउंड में क्रिकेट खेलता रहता था । अब तो सरदार कॉलोनी का मोंटी भी उसके मोहल्ले में रहने लगा था । जब फिर स्कूल शुरू हुए तो उसके मोहल्ले में एक लड़की रहने के लिए आई । “नेहा” उसने सबसे पहले ध्रुव से ही दोस्ती की थी । लेकिन मोंटी इस बात से जलता था ।

एक शाम क्रिकेट खेलते वक़्त ध्रुव ने फिर एक शॉट मारा ।
बोल सीधी भूत बंगले में चली गयी । “छोड़ नई बोल लाएंगे” चिंटू ने कहा । “हां भाई घर चलते है” राजीव बोला
मोंटी चल कर उनके पास आया “वो मेरी बोल थी और मुझे वो ही चाहिए” । ध्रुव ने उसे कुछ कहना चाहा मगर उसने देखा नेहा वही बेंच पर बैठी अपने पैर हिलाती उनकी बातें सुन रही थी । “ध्रुव तूने मारा तू बोल लेकर आ” मोंटी ने कहा ।

“देख मोंटी भूल जा , वो तुझे नई बोल लाकर दे देगा कल” विजु ने उसे समझाया मगर वो नही समझा ।
“ध्रुव मेरी बोल लाकर दे” वो जिद्द पर अड़ गया । ध्रुव ने नेहा की तरफ देखा और फिर मोंटी की ओर “भाई नई बोल दे दूंगा तुझे” वो बोला और नेहा ही और मुस्कुरा कर आगे चल दिया ।

“यू क्यो नही बोलता की तेरी वहाँ जाने से फटती है ..तूने बचपन में वहां भूत देखा था ” मोंटी पीछे से चिल्लाया और जोर जोर से हसने लगा । ध्रुव पलटा “में नही डरता ” उसने नेहा की ओर देखते हुए कहा । “तो जा मेरी बोल लेकर आ” मोंटी ने कहा । “ठीक है में जा रहा हूँ” ध्रुव ने बैट जमीन और पटका और गुस्से में ग्राउंड से बाहर निकल गया । पीछे से आवाज लगाते बंटी , चिंटू , राजीव और विजु कि एक नही सुनी । वो तेज तेज कदम से चलता हुआ भूत बंगले की ओर चल दिया ।

बंगला पहले से ज्यादा जर्जर हालत में था और उसका रंग अब बिल्कुल काला पड़ गया था । लकड़ी की बाउंड्री के बाहर ही उसके कदम रुक गए और पाँच साल पहले देखी वो आँखे और वो तस्वीरों में डिझा चेहरा उसकी नजरो के सामने गुमने लगा । उसने पलट लर देखा । उसके दोस्त और मोंटी उसे देख रहे थे । उनके बाये खड़ी नेहा भी उसे मुस्कुराते हुए देख रही थी । वहाँ मौजूद हर कोई उस घर के आस पास जाने से भी डरता था । लेकिन किसी ने भी वो नही देखा जो उसने देखा था ।

उस लड़के की आत्मा जो अब भी उस घर मे थी । ध्रुव को याद आया कि कैसे पर्दे की आड़ में वो मर चुका बच्चा खड़ा था और हवा से उसका शर्ट हिल रहा था । जब उसकी नजरे ध्रुव पर पड़ी थी तो वो दूसरी बार उससे नजर मिलाने की हिम्मत नही कर सका था ।

ध्रुव बाउंड्री से कूद अंदर गया । वहाँ अब पहले से ज्यादा कीचड़ था और गास ओर भी लम्बी थी । उस गास और कीचड़ के सिवा वह पाँच सालो में कुछ ज्यादा नही बदल था । ना ही वो बरगद का पेड़ और बड़ा हुआ था । उसे लग रहा था जैसे वो कल ही उस घर मे बोल ढूंढने आया था और उसने वो.. वो बच्चा देखा था ।

डरते काँपते कदमो से वो आगे बढ़ा और भूत बंगले के दरवाजे तक पहुँचा । आज भी उसके दोनों हैंडल लटक रहे थे । उसने दरवाजे को छुआ । उसे लगा जैसे वो मरा हुआ बच्चा ठीक दरवाजे के पीछे ही खड़ा उसका इंतजार कर रहा होगा । उसने आँखे बंद की और कंठ से थूक उतारते हुए दरवाजे को धीमी से खोला । वो आगे जुका और गलियारे में जाका । वहां कोई नही था । उसकी नजर पाँच साल पहले देखी उस तस्वीर पर पड़ी । आज भी वो तीनो उसे गुर रहे थे ।

ध्रुव ने हिम्मत कर के आगे कदम बढ़ाए । उसने दाये बाये देखा पूरा गलियारा खाली था । धूल मिट्टी के सिवा वहां कुछ नही था ना ही उनकी बोल । वो बाई तरफ बढा जहा से सीढिया ऊपर की ओर जाती थी । उसे याद थी वो काली बिल्ली की पीली डरावनी आँखे । उसने फिर सीढियो की ओर कदम बढ़ाया । उसके पैरों को छूते हुए कुछ सीढियो पर दौड़ कर भागा । आज वह एक नही बल्कि तीन काली बिल्लियॉ थी । शायद वो उसे वहां आने से रोज रही थी । तीनो बिलकिया दौडती सीढियो के ऊपर भाग गयी ।

ध्रुव ने अपना कदम सीढियो पर रख और जालो से खुद के सिर को बचाते हुए आगे बढ़ा । धीरे -धीरे । जब वो सीढिया चड़ ऊपर पहुच गया तो । उसने देखा आज भी सारी टूटी फूटी तस्वीरे वही बरामदे में पड़ी थी । काँच के टुकड़ो के बीच 2 बोल भी दिखाई दि मगर वो मोंटी की बोल नही थी । वो इधर उधर नजर जाकने लगा कि उसे जल्द से जल्द बोल मिल जाये ।

उसे अचानक लगा जैसे किसी ने उसे पीछे से छुआ , उसकी मुठिया कस गयी । वो झटके से पलटा । वो सिर्फ एक पर्दा था जो खिड़की से आती हवा से उड़ रहा था । उसने गहरी सांस ली लेकिन उसकी धड़कने तेज तेज चल रही थी । उसके रोंगटे खड़े थे । पसीने ने उसके टी शर्ट को भीग दिया था । उसे लग रहा था जैसे वो बच्चा उसके पीछे पीछे चल रहा था । उसने कई बार पलट कर देखा । मगर वहां कोई नही था । पूरे बरामदे में कही भी मोंटी की बोल नही दिखी । “शायद उसी कमरे में हो” उसने सोचा । “नही नही में वापस वहां नही जाऊंगा” उसने कहा

उसके सारे दोस्त और वो मोंटी और तो और नेहा सब नीचे खड़े उसका इंतजार कर रहे होंगे । अगर में बोल नही लेकर गया तो वो क्या कहेंगे ? नेहा क्या सोचेगी ? उसने अपने डर भूल कर आगे बढ़ने की कोशिश की उसी कमरे की ओर । उसका दरवाजा आज भी उस के लिए खुला था । शायद वो बच्चा वही बिस्तर पर आराम से बैठा उसका इंतजार कर रहा होगा । या वहां पर्दे के पीछे उसे मारने के लिए तैयार खड़ा हो । ना जाने क्या क्या ख्याल उसके मन मे घर करने लगे पर फिर भी वो आगे बढ़ा । कमरे के सफेद पर्दे को मुट्ठी में कस लिया । “गॉड” उसने कहा ।

पर्दा झटके से हटाया । दवाइया , काँच की बोतल और इंजेक्शन वही बिखरे थे लेकिन कमरे में ओर कोई नही था । उसने हर कोने में नजर डाली वहां सच मुच् कोई नही था । उसने बिस्तर पर देखा । मोंटी की बोल वही पड़ी थी जहाँ पाँच साल पहले उसे बोल दिखी थी ।

“आगे मत जा” उसके मन मे आवाज आई और उसके कदम रुक गए । क्या उसी बच्चे ने ये बोल यहाँ रखी । क्या वो भूत मुझे यहाँ तक लेकर आया । वो वही पर्दे के पीछे खड़ा होगा । “बोल सामने पड़ी है में लेकर भाग जाऊँगा” उसने खुद को समझाया । वो धीमे कदमो से आगे बढा । बाय हाथ बिस्तर पर टेक दूसरे हाथ से बोल पकड़ी । वो ठीक से खड़ा हुआ । लाख कोशिशों के बाद भी उसकी नजर सामने लहराते पर्दे के पीछे पड़ ही गयी । और उसने फिर आँखे कस कर बढ़ कर ली ।

वो भूत । वो बच्चा वही था । पर्दे के पीछे खड़ा उसे देख रहा था । वो शायद अब बड़ा हो गया था । अब उसने हाफ पैंट नही बल्कि जीन्स पहनी थी । “वो तो कई साल पहले मर गया था । अब कैसे बड़ा हो सकता है , और जीन्स ? क्या भूत कपड़े बदलते है?

ध्रुव ने फिर आँखे खोली और देखने की हिम्मत की । उसका मुह खुल का खुला रह गया । वो पलँग पर चढ गया और दौड़ कर वहां पहुँच गया । उसने पर्दे को हटाया और दो कदम आगे बढ़ाए । वो हस्ते हुए देखने लगा । वहाँ कोई भूत नही था बल्कि एक आइना था धूल से भरा हुआ था । पाँच साल पहले उसने किसी भूत या किसी बच्चे की आत्मा को नही देखा । बल्कि उसने खुद की एक झलक देखी थी । वो अपनी बेवकूफी पर जोर जोर से हसने लगा ।

जब वो बोल लेकर दोस्तो के पास आया तो बंटी ने कहा । “तू इतना खुश क्यो है ? और अंदर इतना हस क्यों रहा था ?”

उसने बोल मोंटी के हाथ मे पकड़ाई और कहा । “अंदर कोई भूत नही है बेवकूफों… में कहता था ना भूत वुत कुछ नही होता” । ध्रुव नेहा की ओर मुस्कुरा कर देखने लगा ।

पांच साल तक उसे लगा कि भूत – बंगले के भुत ने सबके मन मे डर पैदा कर दिया था । आज उसे पता चला कि वो सबके और उसके मन का डर ही था जिसने भूत को पैदा किया था ।

–END–

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