एक ऐतिहासिक यात्रा : जयपुर – गुलाबी शहर !
मैंने जयपुर के बारे बहुत कुछ सुन रखा था , लेकिन कभी देखने – सुनने का अवसर नहीं मिला था . जुलाई २०१२ को मेरे मित्र – बासुदेव बर्मन की पुत्री – श्रुति का दाखिला – पत्र आ जाने से मुझे जयपुर जाने का सुनहला अवसर मिल गया . हमलोग जोधपुर एक्सप्रेस से जयपुर मध्य रात्रि के करीब पहुंचे . स्टेसन के पास ही एक होटल में कमरे ले लिए . शुबह नहा – धोकर पूर्णिमा इंजीनियरिंग कोलेज के लिए निकल गये . स्टेसन से करीब २० किलोमीटर जाने के बाद हम कालेज केम्पस में पहुँच गये . प्रथम वर्ष में दाखिला के लिए सभी व्यवस्थाएं चूस्त एवं दुरुस्त थीं. कई चरणों में जांच – पड़ताल के पश्चात श्रुति का दाखिला प्रथम वर्ष – कंप्यूटर साएन्स में हो गया . लडकी को होस्टल भी अविलंब मिल गया . साजोसामान रखकर हम होटल चले आये . शाम के चार बज गये . हमारे हाथ में दो दिनों का वक़्त था.
हमने होटलवालों से बात की और जयपुर के दर्शनीय स्थलों को देखने की ईच्छा प्रकट की. दूसरे दिन शुबह सात बजे का वक़्त निर्धारित किया गया . हमने एक गाड़ी रिजर्व कर ली – ऑलमोस्ट सभी साईट ले जाने और वापिस शाम तक लौट आने के लिए .
जिन – जिन स्थानों को देखना था , उनकी सूची हमने पहले ही तैयार कर ली थी. इनमें प्रमुख रूप से :
१ गुलाबी शहर : जयपुर का यह गुलाबी शहर अपने आप में अनूठा है. सामने एक सिंह द्वार . चौड़ी सड़कें . सड़कों के दोनों तरफ गुलाबी रंग में रंगे हुए सारे भवन – दूकानदारी व आवास . जयपुर सीटी राजस्थान की राजधानी है. इसका निर्माण १८ नवम्बर १७२७ को महाराजा सवाई जय सिंह II – अम्बेर के शासक द्वारा किया गया . जयपुर को गुलाबी शहर के नाम से जाना जाता है. हवा महल , बाग़ बगीचे , छोटी सी झील, नहरगढ़ किला ,सवाई जयसिंह II के निवास स्थान इत्यादि यहीं थे .
२ हवा महल : यह एक राजमहल है जिसका निर्माण १७९९ में महराजा प्रताप सिंह ने करवाया था . इसकी रूपरेखा भगवान कृष्ण के मुकुट के आकार के अनुरूप किया गया . इसमें ९५३ छोटी – छोटी खिड़कियाँ हैं जिसे झरोखा कहा जाता है. इन्हें इस ख्याल से बनाया गया था कि राजकीय महिलाएं शहर की गलियों की चहल – पहल का लुत्फ़ ( आनंद ) इन झरोखें से उठा सके . वे लोगों को देख सके पर लोग उनको न देख सके . मकसद था कि महिलाएं परदे में ही दैनिक शहरी जीवन का आनंद गोपनीय तरीके से ही उठायें .
३ आमेर किला : यह जयपुर के लोकप्रिय किलों में से एक है. यह चार वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. यह जयपुर शहर से ११ किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है. यह किला टूरिस्टों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र है. इसमें दीवाने खास और दीवाने आम बने हुए हैं. यह लाल पत्थर और संगमरमर से बने हुए हैं . आमेर किला आमेर राजमहल के नाम से भी जाना जाता है. यहाँ राजपूत महाराजे और उनके परिवार के लोग रहते थे .
इसका निर्माण राजा मान सिंह ने करवाया था .
४ सीटी पैलेस जयपुर : इसके अंतर्गत चन्द्र महल और मुबारक महल के अतिरिक्त कुछेक दूसरे महल भी आते हैं . यह राजस्थान राज्य की राजधानी है. चन्द्र महल में एक अजायब घर भी है जो आकर्षण का केंद्र है. इसके अधिकांश हिस्सों में राजकीय परिवार का निवास स्थान है. सवाई जयसिंह दो ने इसका निर्माण १७२९ से १७३२ के मध्य में करवाया था.
५ जंतर – मंतर : जंतर – मंतर खगोलीय यंत्रों का संग्रहालय है. इसके निर्माण के पीछे प्राचीन खगोलीय विद्या से लोगों को अवगत करवाना था तथा इस शास्त्र को जीवित रखना था. इसका निर्माण सवाई जयसिंह , जो औरेंग्जेब मुग़ल बादशाह के समय मुग़ल कमांडर थे , ने करवाया था.
६ : रामबाग राजमहल : रामबाग राजमहल जयपुर के महराजाओं के निवास स्थान थे. राजकुमार रामसिंह ने इसके प्रथम भवन का निर्माण १८३५ में करवाया था . १८८७ में यह महराजा सवाई मान सिंह का प्रमुख निवास स्थान था. १९४७ में देश आज़ाद होने पर जब यह सरकारी गृह बन गया और इसका रख – रखाव कठिन हो गया तो इसे होटल में परिवर्तित कर दिया गया . बर्तमान समय में यहाँ अब ताज पैलेस होटल है जो भवानी सिंह रोड पर जयपुर सीटी से ८ किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है . यह होटल दुनिया के सर्वोतम होटलों में से एक है. यह कूल ४७ एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है. विदेशी टूरिस्टों के रहने के लिए यह उपयुक्त स्थान माना जाता है. यहाँ बारहों महीने यात्रिओं का आना – जाना लगा रहता है , लेकिन शरद ऋतू में यहाँ टूरिस्टों का तांता लगा रहता है. यह वैभवपूर्ण सुख – सुविधावों से सुसज्जित है. यहाँ रहना अपने आप में एक गौरवपूर्ण बात है .
७ : जलमहल : यह मन सागर झील के मध्य में अवस्थित है . यह जयपुर सीटी के अंतर्गत आता है . जलाभाव को दूर करने के उदेश्य से इसे बनवाया गया था . अब भी यह यह जल भंडारण के रूप में प्रयोग होता है. सबसे बड़ी बात यह है कि यह जलमहल जयपुर के सौन्दर्य में चार चाँद लगा देता है. यह जयपुर शहर का एक विशेष आकर्षण स्थल है.
८ : अलबर्ट हॉल म्यूज़ियम : यह जयपुर सीटी में अवस्थित है. यह सबसे प्राचीन अजायब घरों में से एक है. इसकी नींव ६ फरवरी १८७६ को रखी गयी थी. इसकी रूपरेखा ( ढांचा ) सेमुअल स्वीनटन जैकब द्वारा १८८७ में तैयार की गयी थी. इसका नामकरण King Edward VII ( Albert Edward ) के नाम पर उनके सम्मान में किया गया था .
९ : शीश महल : शीश महल देश के कई आकर्षक शीश महलों में से एक है. यह आमेर ( अम्बेर ) किला के अंतर्गत अवस्थित है. किले के उपर जाने के बाद कुछ और ऊपर चढ़ना पड़ता है. जो भी यात्री आमेर किला देखने आता है . वह शीश महल देखे बिना अपने को रोक नहीं सकता . इस महल की विशेषता इसी बात से जानी जा सकती है कि शीशे ( दर्पण ) बेल्जियम से आयातित किये गये थे और छोटे – छोटे उपयुक्त टुकड़ों से इस हॉल की दीवारों एवं गुम्बजों को सुसज्जित किया गया था . शीश महल का निर्माण राजा जयसिंह ने १६२३ ई. में करवाया था . यहाँ वे अपने विशेष अतिथियों से गुफ्तगू करते थे .
शीश महल एक अनुपम व अद्वितीय कला का प्रतिक – चिन्ह है. इन दर्पणों से जब प्रकाश की किरने परावर्तित होकर लौटती है तो छठा मन को मोह लेती है.
१० : बिड़ला मंदिर : ऐसे तो जयपुर एवं इसके आस – पास अनेको मंदिर हैं . जयपुर को मंदिरों का शहर कहा जाय तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी . यही वजह है कि जयपुर को छोटी काशी की संज्ञा दी गयी है. इस मंदिर को लक्ष्मी नारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है , चूँकि इस मंदिर में भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की भव्य प्रतिमा स्थापित है. यह मोती डूंगरी किले के सतह – स्थल पर अवस्थित है. यह हिंदुओं के प्राचीन परंपरा एवं संस्कृति का प्रतीक है. समक्ष बेली फूलों का बगीचा है . इस बगीचे से होकर ही मंदिर जाना पड़ता है. बीच में छोटी – छोटी पगडंडी बनी हुयी है जिससे होकर मंदिर तक पहुंचा जाता है. जिस समय ( ऋतु ) में हम यहाँ पहुंचे बेली फूल खिले हुए थे . सारा वातावरण इसकी सुगंध से महक उठा था . मंदिर का सम्पूर्ण प्रांगण विशुद्ध श्वेत संगमरमर से निर्मित है . कारीगरी इतनी आकर्षक है कि मन को मोह लेती है.
इस मंदिर से संलग्न एक म्युजियम भी है जिसमें बिरला परिवार का कुर्सीनमा है . गण्यमान्य व्यक्तियों के साथ खींचे हुए तस्वीर भी देखने को मिलते हैं.
इतना सबकुछ एक दिन में देखने के बाद हम इतने थक गये थे कि और कहीं जाने की शक्ति नहीं रही. लेकिन रास्ते में हम रजाई की दूकान पर जरूर गये. जयपुर की रजाई पूरे विश्व में लोकप्रिय है. हमने ऊँचे से ऊँचे व कम से कम मूल्यों की रजाई देखी . हमने यादगार के लिए एक – एक रजाई खरीदी . रात के करीब नौ बजे होटल लौट आये . दूसरे दिन हमने कम्प्लीट रेस्ट किया. तीसरे दिन हम धनबाद लौट आये .
हम तो लौट आये , लेकिन हमारे मानस पटल पर जयपुर की स्मृति कौंधती रही महीनों . जो हमें विशेषरूप से आकर्षित किया वे थे – यहाँ के लोगों की आवभगत , उनकी संस्कृति, उनके शाकाहारी व्यंजन , तरह – तरह की मिठाईयां और नमकीन . साफ़ – सुथरी सड़कें और पगडंडियाँ , और इन सबों से ऊपर चुस्त – दुरुस्त प्रशासनिक व्यवस्था .
मैंने जब अपने पुत्र श्रीकांत से अपनी यात्रा के सुखद क्षणों का शेयर किया तो वह एकबारगी चिहुंक उठा. कहा : हमने देश – विदेश के अनेक दर्शनीय स्थानों का भ्रमण किया है , लेकिन … ?
लेकिन जयपुर नहीं . मैंने झट बात पूरी कर दी .
नवम्बर – दिसम्बर के महीने अति उपयुक्त होते हैं. मन छोटा मत करो . प्रोग्राम बनाओ और सपरिवार घूम आओ इस साल .
लेखक : दुर्गा प्रसाद , गोबिंदपुर , धनबाद , दिनांक : १८ मई २०१३ , दिन : शनिवार |
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