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Lavasa – A Sweet Journey

Published by Durga Prasad in category Hindi | Travel with tag car | Kids | road | son

लवासा – एक सुखद यात्रा ! – Lavasa – A Sweet Journey: Travel experience of Lavasa, night stay and visit nearby tourist places. Lavasa is developing tourist place. Its natural beauty attracts many tourist.

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Lavasa Trip 1
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Lavasa Trip 2
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Lavasa Trip 3

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Lavsa Trip 4
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Lavasa Trip 5

लवासा के बारे में मैंने बहुत कुछ सुन रखा था , लेकिन देखने का मौका नहीं मिला था . जब श्रीकांत मकर संक्रांति में सप्ताह भर के लिए घर आया तो मैंने अपने मन की बात उसके सामने रखी .

सोचने की क्या बात है ? मैं लौट कर पुणे जाता हूँ और सब से बात – चीत करके प्रोग्राम बना देता हूँ . सच पूछिये तो इसी बहाने हम भी देख लेंगे . हमने भी आप की तरह बहुत कुछ सुना है , लेकिन देखने का अवसर नहीं मिला आजतक .

और कोई जगह देखने लायक उसी रूट पर हो तो उसे भी टैग किया जा सकता है इस प्रोग्राम के साथ . चूँकि श्रीकांत प्लान मास्टर है , इसलिए मैंने सबकुछ उसी पर छोड़ दिया . एक दिन फोन आया उसका कि सभी व्यवस्था कर ली गयी है. आप और मम्मी पहले हैदराबाद , फिर बैंगलोर होते हुए पुणे आ सकते हैं . सप्ताह भर का प्रोग्राम है यहाँ .

हम एक अप्रील को सिकंदराबाद एक्सप्रेस से सिकंदराबाद आ गये . यहाँ हम अपने एक नाती – शुभम एवं एक नतिनी – मोनिका के साथ कुछेक रोज के लिए अपने लड़के रमाकांत के यहाँ रूक गये. रमाकांत की शिकायत थी कि हम मम्मी-डैडी उससे मिलने नहीं आते , जबकि काम करते साल भर से ज्यादा हो गया . हम दस दिनों तक रहे . घर में काफी जगह थी और सभी सुविधाएँ उपलब्ध थीं. मेरा एवं मेरी पत्नी का वक़्त घर के काम – धंधों में ही निकल जाता था . शाम को थोडा वक़्त मिलता था तो हम महाभारत सीरियल डी वी डी पर देख लिया करते थे . नौ तारिख को शुभम एवं मोनिका का एग्जाम था . ग्यारह अप्रील को हम बैंगलोर चले आये. ग्यारह से पंद्रह तक हम अपने लड़कों के पास रहे . तीन दिन अपने सगे – सम्बन्धियों से मिलने – जुलने में ही बीत गये. पहला दिन तो हरिबाबु जो मेरे साढू हैं उनसे मिलने शांतिनगर , बसप्पा रोड गये. दुसरे दिन अपने समधी कमलेश जी के यहाँ गये. तीसरे दिन गीता बहन और उनके पति पुरषोतम जी से मिलने गये. एक दिन हम नहा – धोकर भगवान शिवजी का दर्शन करने निकल पड़े. साथ में मेरी पत्नी थी. दोनों लड़के शिवाकांत एवं चंद्रकांत भी थे जो हमारी सहायता में लगे हुए थे. हम यहाँ के लिए बिलकुल नये थे . एक बार ही २००५ के फरवरी महीने में ज्येष्ठ पुत्र श्रीकांत के रिंग सेरेमनी में हमें बैंगलोर आने का अवसर मिला था .

हम गुफा द्वार से होते हुए मुख्य स्थान पर जैसे ही पहुंचे आसन्न मुद्रा में भगवान शिवजी की भव्य मूर्ति को देखकर आश्चर्यचकित हो गये. ६५ फीट ऊँचे इस विशाल मूर्ति को देखकर अभिभूत तो हुए ही , रोमांचित भी हो गये. ऐसा प्रतीत हुआ कि कैलाश से शिवजी पृथ्वी पर साक्षात अवतरित हुये हैं . कलाकार ने अपनी विलक्षण प्रतिभा से शिवजी की मूर्ति को मानो जीवंत बना दिया है. हम वहीं जमीन पर बैठ गये और अपलक उनको निहारते रहे . हमने प्रार्थना की कि “ सर्वे सुखिन भवन्तु , सर्वे सन्तु निरामया ’’ अर्थात सभी व्यक्ति सुखी हों और सभी निरोग हों . मैं सपत्निक सोलह तारिख को गो इअरवेज से पुणे चला आया .
आते ही श्रीकांत ने बताया कि लवासा जाने का सारा इंतजाम हो गया है . अठारह तारिख को जलपान करके कार द्वारा निकल जाना है. हम सीधे लवासा नहीं जायेंगे . पुणे से जंगल – जंगल पहाड़ियों की वादियों से होकर सूर्य शिबीर ( शिविर ) पहुँचेगें . वहां दो दिनों का पेकेज है. अठारह दिन भर , रात्रि विश्राम , दुसरे दिन लवासा के लिए शाम चार बजे चल देना है. उन्नीस को रात्रि में लौट जाना है.

जैसा प्रोग्राम था उसके अनुसार हम अठारह को दस बजे शुबह निकल गये. खडकवासला डेम , पंचीत डेम होते हुए हम बरस गाँव पहुंचे. सभी मोड़ पर सूर्य शिबीर ( शिविर ) का पोस्टर लगा हुआ था , इसलिए हमें पहुँचने में कोई दिक्कत या परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा. हम करीब दो – सवा दो घंटे में ५३ किलोमीटर की दूरी तय की. मौसम तो सुहाना था ही , साथ ही साथ अद्भुत प्राकृतिक छठा ने हमारा मन मोह लिया . चारों तरफ पहाड़ ही पहाड़ – हरे – भरे वृछों से आच्छादित . बीच में झीलों व नदियों की कलरव करती जलधारा – सुदूर तक फ़ैली हुयी मनोरम घाटियाँ . इन सबों के बीच से पहाड़ काटकर बनाई हुयी सड़कें . सड़कों के किनारे हरे – भरे पेड़ – पौधे . कहीं – कहीं लाल – पीले , गुलाबी व सफ़ेद फूलों के वृक्ष – हमारे मन – प्राण को आकर्षित करने के लिए प्रयाप्त थे.

हमें शीघ्र ही दो सुसज्जित कमरे दे दिए गये . लंच का समय हो रहा था , इसलिए जल्द हम सामान वगैरह रखकर डायनिंग हाल में आ गये . सैकड़ों स्कूली बच्चे – बच्चियां लंच कर रहे थे. समर स्पेश ल पैकेज हैं – तीन दिन , चार दिन एवं छ दिनों के लिए . सभी तरह के खेल-कूद एवं मनोरंजन की व्यवस्था यहाँ पर है. हम बच्चों एवं बच्चियों के सभी प्रोग्राम में शरीक हुए तो हमें बहुत सी बातों की जानकारी मिली . घूमते – फिरते हम काफी थक चुके थे. रात्रि में चारों तरफ शान्ति – निश्तब्धता . दुसरे दिन भी हमारा वक़्त घुमने – फिरने एवं जानकारी हासिल करने में बीता. संध्या साढ़े चार बजे के करीब हम लवासा के लिए निकल पड़े. हम सर्पीली सड़कों से चलते हुए साढ़े पांच के लगभग लवासा पहुंचे. अठारह किलोमीटर की दूरी सूर्य शिबीर ( शिविर ) से. लवासा का सौन्दर्य देखकर हम चकित हो गये. चौड़ी सड़कें . जगह – जगह सुरक्षा – प्रहरी , मनमोहक पुष्प लताएँ एवं वृक्ष , शहर के मध्य में अति सुन्दर एवं मनोरम झील . झील के किनारे खुबसूरत रंगों में रंगे व सजे – सजाये पंक्तिवध बहुमंजली मकान . होटल एवं रेस्तोरां , आवास – गृह एवं अतिथि – गृह , बैंक एवं एटीएम की सुलभ सुविधाएँ . सरकारी एवं गैर सरकारी सूचना – केंद्र . झील में बोटिंग करने की सुविधा , रेलवे इन्जिननूमा बस में ‘मेरी गो राउंड ’ विशेष कर शिशुओं के लिए चारों तरफ घुमाने का प्रबंध . हम झील के पूल तक गये और बीच में लवासा के मनोरम छवि के अवलोकनार्थ कुछेक मिनट के लिए रूक गये. हम जिधर नजर दौड़ाये , उधर ही मनमोहक दृश्य जो नयनों के अतिरिक्त हमारे मन व प्राण को भी शीतलता प्रदान कर रही थी. समय रूकता नहीं . किसी की प्रतीक्षा भी नहीं करता. वह मंथर गति से आगे बढ़ता ही जाता है.

धीरे – धीरे अँधेरा छाने लगा. सूर्यदेव नित्य की भांति अस्त होने लगे. हम पोता स्पर्श के जिद करने पर चिल्ड्रेन पार्क की ओर चल दिए. पता चला समय – सीमा समाप्त हो जाने से न तो झील में बोटिंग की जा सकती है न ही ‘ मेरी गो राउंड ’ का आनंद उठाया जा सकता है. श्रीकांत ने कहा , ‘ हम दूसरी बार आयेंगे तो जल्द आयेंगे और बोटिंग और मेरी गो राउंड का लुत्फ़ उठाएंगे. देखा पोते की आँखें इन सब का आनंद न उठाने की वजह से आंसुओं से डबडबा गईं . हमें भी थोड़ा अफ़सोस हुआ. लेकिन सबसे ज्यादा दुःख उसकी माँ अमृता को हुयी जिसे शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता.

शिशु का लगाव जितना माँ से होता है , शायद किसी से नहीं . इसलिए शिशु को किंचित मात्र कष्ट पहुँचने पर माँ को बहुत कष्ट होता है.

हम सात बजे के करीब पुणे के लिए निकल पड़े . टू लेनिंग रोड – पूरी पक्की – बीच में विभाजन . शहर में स्ट्रीट लाईट . हम चलते रहे – चलते रहे – रास्ता ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था . पता चला लवासा से पुणे कूल सत्तर किलोमीटर है. पहाडी घुमावदार सड़कें हैं , इसलिए दो – तीन घंटे का वक़्त लग सकता है पहुँचने में . हम दासवे रोड से चल रहे थे . सीमा ख़त्म हुयी तो जान में जान आयी.

हमने रास्ते में ही एक होटल में खाना खा लिया . आवास पहुँचे तो रात्रि के करीब दस बज रहे थे .

लवासा एक विकाशशील पर्यटक स्थल के रूप में उभर रहा है. इसका सौन्दर्य – विशेषकर प्राकृतिक छठा , अनुपम है. आनेवाले समय में यह स्थान पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केद्र होगा – ऐसा मेरा विश्वास है .

***

लेखक : दुर्गा प्रसाद . तिथि : २० अप्रील २०१३ , पुणे .

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