पटना : गोलघर , गाँधी मैदान और पटना साहिब की ऐतिहासिक यात्रा (Visit Patna: Golghar, Gandhi Maidan, and Patna Sahib – A historical Trip)
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Patna Golghar (Patna)
Photo Credit: Manoj nav
मेरा अनुज रमेश जी ने प्रस्ताव रखा :
भैया , पटना चलना है .
चलना है तो चलना है , इसमें सोचने की क्या बात है ? तुम तो पटना में दसो साल तक रहे , तुम्हें तो सब कुछ मालुम है. मैं पटना कई बार गया , लेकिन मुझे कुछ देखने – सुनने का अवसर नहीं मिला . इस बार फुर्सत में हूँ . मुझे तीन दिनों में तीन जगह घूमने जाना है और पूरी जानकारी हासिल करनी है.
तुम जानते ही हो कि आजकल मैं कहीं भी जाता हूँ तो वहां के दर्शनीय स्थान का भ्रमण करता हूँ .
ठीक है . सेवानिवृति के बाद मैं भी फुर्सत में हूँ . चल चलूँगा जहां आप जाना चाहेंगे.
हमलोग लोदी रोड के एक होटल में एक कमरा ले लिया .
१. पहला दिन : पटना गोलघर
पटना गोलघर हमारे निवास स्थान से बहुत ही करीब था . हमने शाम का समय चुना . चार बजे चाय – नास्ता करके रिक्शा किया , दस मिनट में ही पहुँच गये . दूर से गोलघर दिखाई दे रहा था . शि खर पर कुछ लड़के – लड़कियां पहुंचे हुए थे. कुछ सीढियों से चढ़ रहे थे . कुछ लोग परिवार के साथ थे जो टिकट कटाने के लिए पंक्ति में खड़े थे .
हम भी पंक्ति में लग गये . दो – दो रूपये में दो टिकट खरीदी और अन्दर दाखिल हो गये . पटना गोलघर हमारी नजरों के सामने था – जीता – जागता , विशाल एवं भव्य . ऐतिहासिक आकर्षण का केन्द्र्विंदु . वास्तु कला का अनुपम मिशाल.
इसका निर्माण २० जुलाई १७८६ में कप्तान जॉन ग्रासटिन की देखरेख में किया गया. इसका उद्देश्य अनाज का भण्डारण था . इसकी भण्डारण क्षमता एक लाख चालीस हज़ार टन अनाज का है . दूर्भिक्ष या अकाल से मुकाबला करना था .
पटना गोलघर गांधी मैदान के पक्षिम में अवस्थित है.
इस भवन का आधार चौड़ाई में १२५ मीटर है और इसकी दीवार की मोटाई ३.६ मीटर है. चोटी /शिखर तक जाने के लिए सीढियाँ बनी हुयी है जो संख्यां में १४५ हैं . इसकी ऊँचाई २९ मीटर है. इसे इस ख्याल से बनाया गया है कि कुली अनाज की बोरी लेकर एक तरफ से चढ़े , अनाज के बने हुए छेद ( Whole ) में अनाज डालकर दूसरी ओर की सीढियों से उतर जाय.
हमने पटना गोलघर के चारो तरफ घूम – घूम कर इसका आनंद उठाया . कुछ युवक – युवतियां जो हमारे आँखों के सामने उतरीं , उनसे पूछा :
जब आप ऊपर पहुंचे तो कैसा फील किया ?
अंकल , अदभुत , आश्चर्यजनक ! इतनी ऊँचाई पर है कि चढ़ने के लिए दृढ़ निश्चय की जरूरत है. मेहनत व धैर्य के साथ धीरे – धीरे चढ़ा जा सकता है. कोई भी चढ़ सकता है , आप भी.
सारा पटना शहर दिखलाई देता है. गंगा नदी भी. गांधी मैदान भी . बिस्कोमान भवन भी. और हवा भी शीतल , मंद व सुगंध बहती है . सच पूछिए तो उतरने का दिल नहीं करता . उतरने में कोई विशेष थकान की अनुभूति नहीं होती.
हम बाहर निकले और पैदल ही गांधी मैदान की ओर चल दिए .
रमेश भाई ने सुझाव दिया : भैया ! गांधी मैदान में एक – आध घंटा बैठा जाय .
रास्ते में हमें आयुक्त कार्यालय – पटना प्रमंडल, जिलाधिकारी , पटना का निवास स्थान , अनुग्रह नारायण सिंह समाज अध्यन संसथान , गांधी संग्राहलय , शहीद पीर अली खान पार्क आदि मिले .
सड़क पार करके हम गांधी मैदान पहुंचे . बड़ी शीतल हवा चल रही थी. मूंगफली खरीद कर रमेश भाई ले आया . दूसरे दिन आने की बात कहकर हम वहां से चल दिए .
२ . दूसरा दिन : गांधी मैदान :
गाँधी मैदान अपने आप में इतना लोकप्रिय है कि इसके बारे में ज्यादा कुछ बताने की आवश्कता नहीं . लोग पटना में किसी स्थान के बारे लैंडमार्क बताते हैं तो बीच में गांधी मैदान टपक पड़ता है. ऐसा है अनोखा हमारा , आपका व सबका गांधी मैदान . पटना का हृदय – स्थल . मुख्य क्षेत्र में अवस्थित जहां से शुरू होती है अशोक राज – पथ , डाक बंगला , बैल्ली रोड , फ्रेज़र रोड , एक्स्जिबिसन रोड जो शोपिंग के लिए सबसे उपयुक्त स्थान माने जाते हैं.
![gandhi-maidan-patna](https://yourstoryclub.com/wp-content/uploads/2013/05/640px-Gandhi_Maidan.jpg)
Gandhi Maidan (Patna)
Photo Credit: Heax18
गांधी मैदान के लिए दो अलग अलग समय का निर्धारण किया गया – एक गोधुली बेला दूसरा सूर्यास्त का समय .
सुबह नहा – धोकर हम साढ़े चार बजे पैदल ही निकल पड़े . पहुँचते ही हमने वो नज़ारा देखा जिसे शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता.
सैकड़ों लोग – स्त्री – पुरुष , युवक – युवतियां , बच्चे – बच्चियां , जवान – बूढ़े – सभी उम्र , सभी जाति , धर्म , संस्कृति एवं सम्प्रदाय के विभिन्न रंग – विरंगे परिधानों और पोशाकों में प्रभात फेरी करते हुए, व्ययायम व कसरत करते हुए. हर तबके के लोग . हर पेशे के लोग . अमीर – गरीब , कर्मचारी एवं अधिकारी . यहाँ हमें सम्पूर्ण भारत एक स्थान पर दिखलाई पड़ा. अनेकता में एकता . गांधी मैदान का क्षेत्र गोलाई में है . चहारदीवारी बनी हुयी है. इसके भीतर दीवार से हटकर मैदान के चारो तरफ चौड़ी पगडंडी बनी हुयी है जिसपर लोग अबाध गति से तेज गति से , मद्धिम गति से और धीमी गति से दौड़ते हैं या चलते हैं . अपनी आवाश्क्तानुसार कई बार चक्कर लगाते हैं . मुझे मालूम हुआ कि इस घुमावदार पगडंडी की लम्बाई ६४४० फीट है अर्थात २१४६ गज अर्थात १९६३ मीटर . एक चक्कर लगाने से करीब दो किलोमीटर ( १९६२.९ मीटर ) की दूरी तय होती है . पांच बार चक्कर लगा लेने से दस किलोमीटर . ऐसी धारना है कि कोई व्यक्ति यदि पांच बार चक्कर लगा लेता है नित्य शुबह तो वह घातक बीमारी जैसे रक्तचाप, मधुमेह , हृदयाघात , क्षयरोग आदि बीमारियों से कोसों दूर रहता है.
हम भी अपने को रोक नहीं सके एक चक्कर बड़े आराम से लगाया . महात्मा गांधी की प्रतिमा के समक्ष हम बैठ गये . ठंढी हवा बह रही थी. मन को बड़ी ही शीतलता मिल रही थी. हमने नवनिर्मित प्रतिमा का अवलोकन किया . किसी यात्री ने सुझाव दिया :
आप शाम को आयें तो बिजली के प्रकाश में मूर्ति देखने में अपूर्व आनंद की अनुभूति होगी .
आप का सुझाव सर आँखों पर , हम पुनः शाम को आयेंगे .
हमने अपने अनुज से इस बारे में बात की तो वह तैयार हो गया .
हम सात बजे तक होटल लोट गये .
शाम को पांच बजे हम गाँधी मैदान के लिए पैदल ही प्रस्थान कर गये. वहाँ मुख्य द्वार खुला मिला . हम मैदान के भीतर प्रवेश कर गये . बहुत से लोगों को टहलते हुए देखा. ज्यादातर लोग हमें बुजुर्ग ही मिले जो अपने स्वाश्थ्य के प्रति सजग थे . मोटी व ठिगनी औरतें भी देखने को मिली जो मोटापा ( Obesity ) रोग से पीड़ित थीं. चिकित्सकों का मत है कि टहलना मोटापा घटाने के लिए राम बाण है. सबसे बड़ी बात जो हमें देखने को मिली वो थी बच्चों द्वारा ग्रुप बनाकर क्रिकेट खेलना . पूरा मैदान भरा हुआ था. तरह – तरह के खेलकूद में लड़के लगे हुए थे. सभी के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव साफ़- साफ़ नजर आ रहे थे . १५ मई को राजद द्वारा चेतावनी रैली का आयोजन के सिलसिले में वरिष्ठ नेतागण का उसी वक़्त आगमन हुआ . वे लोग चारों तरफ घूम –घूम कर के सभा स्थल का मुआयना किये . मंच पर से अपने मातहतों को दिशा निर्देश दिए. यह महज संयोग ही था कि हमें राजद के दिग्गज नेताओं को देखने – सुनने का अवसर मिला . चूँकि मेरे अनुज सभी को जानते – पहचानते थे , इसलिए एक – एक कर सभी नेताओं के बारे में प्रकाश डाले. उनमें सांसद भी थे और विधायक भी थे. साथ में उनकी सुरक्षा के लिए कड़े प्रबंध किये गये थे.
हमने एक चक्कर लगाया और महात्मा गांधी के ७२ फीट ऊँचाई वाली प्रतिमा के चारो तरफ परिक्रमा की तथा जानकारी हासिल की.
हमें जो जानकारी मिली वो हैं :
१५ फरवरी २०१३ को माननीय मुख्या मंत्री श्री नीतीश कुमार जी ने महात्मा गांधी के इस प्रतिमा का लोकार्पण किया – विशेष कर बिहार की जनता को . यह विश्व की सबसे बड़ी प्रतिमा है. इसकी ऊँचाई कूल ७२ फीट है जिसमे से मूर्ती की ऊँचाई ४० फीट है और आधार की ऊँचाई ३२ फीट है. यह किसी उपयुक्त धातु से निर्मित हुयी है . राज्य सरकार के आर्थिक सहयोग से इसका निर्माण वर्षों के अथक प्रयास एवं एक्सपर्ट के दिशा निर्देश से करवाया गया है. महात्मा गांधी की प्रतिमा के जस्ट नीचे एक दार्शनिक सन्देश लिखा हुआ है : मेरा जीवन ही मेरा सन्देश है . चारों तरफ चार महत्वपूर्ण चित्र लगे हुए हैं . पहला : डंडी मार्च १९३० दूसरा : भारत छोडो आन्दोलन १९४२ तीसरा : चंपारण सत्याग्रह १९१७ और चौथा : गांधी जी को चरखे पर सूत काटते हुए दर्शाया गया है . विद्युत् प्रकाश का समुचित प्रबंध है . पता चला बड़े – बड़े प्रकाश स्तम्भ लगाने की योजना है. इस स्थल को दर्शनीय एवं अलौकिक बनाने का प्रयास किया जा रहा है ताकि लोग जाते समय गांधी मैदान की स्मृति को अपने साथ ले कर जाएँ . अभी यहीं बात ख़त्म नहीं होती जबतक इसके ऐतिहासिक पहलु पर प्रकाश न डाला जाय.
गांधी मैदान अपने में १९१७ का चंपारण सत्याग्रह एवं १९४२ का भारत छोडो आन्दोलन का शंखनाद अपने हृदय में समेटे हुए है. आजादी का शंखनाद इसी मैदान से किया गया था. राष्ट्रीय स्तर के दिग्गज नेतागण जैसे महात्मा गांधी, डाक्टर राजेंद्र प्रसाद, सरदार बल्लभ भाई पटेल, डाक्टर अब्दुल कलाम आज़ाद आदि ने यहीं से आज़ादी के बिगुल फूंके थे.
जयप्रकाश नारायण जी ने इसी ऐतिहासिक मैदान से इंदिरा गांधी सरकार को उखाड फेंकने का आह्वान किये थे . फलतः कांग्रेस पार्टी बुरी तरह हार गयी थी और केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी थी.
हम बहुत से लोगों से मिले जुले और महत्वपूर्ण जानकारी हासिल की . हमें एक अधेड़ उम्र प्रायः पचास पचपन के लगभग की महीला मिली . वह महात्मा गांधी जी की प्रतिमा के पास सुस्ता रही थी . आप को मैंने शुबह देखा और शाम को देख रहा हूँ . आप बड़ी तेजी से चलते हैं . कितनी बार चक्कर लगाते हैं ?
पांच बार – शुबह – शाम मिला कर .
आप कब से यहाँ आ रहीं हैं ?
१९९८ से.
आप क्या करती हैं ?
मैं शिक्षिका हूँ . मेरे पति बैंक अधिकारी थे . हाल ही में सेवानिवृत हुए हैं .
सच पूछिए तो इस गांधी मैदान ने मुझे जीवन दान दिया है. मैं काफी मोटी थी. ब्लड शुगर और ब्लड प्रेसर की पेशेंट थी. दवा कोई काम नहीं कर रहा था . उठना – बैठना भी मेरे लिए मुश्किल होता था . मैंने दृढ़ निश्चय कर लिया शुबह – शाम टहलने का . अब मैं बिलकुल फीट हूँ . मैं राजस्थानी हूँ , लेकिन इस गांधी मैदान के चलते हम यहीं सेटल हो गये . पास ही में हमारा फ्लेट है. घर में भी हमारे पास टी एम टी मशीन है. जिस दिन नहीं आ पाती ,उस दिन उस मशीनपर चल कर कोटा पूरी करती हूँ .
आप क्या करते हैं ?
मैं ? अब आप को क्या बताऊँ , क्या न बताऊँ ?
मैं एडवोकेट हूँ . २००६ में सेवानिवृत हुआ और वकालती शुरू कर दी. मन लगा नहीं . तब मेरे हिन्दी के गुरु ने सुझाव दिया लेख, कहानी , व्यंग्य , यात्रा- वृतांत आदि लिखने का . २००७ से लगातार विभिन्न विषयों पर लिखते आ रहा हूँ .
यह तो अच्छी बात है.
कोई अगली योजना ?
जाते ही पटना गोलघर , गांधी मैदान और पटना साहिब के बारे में लिखूंगा .
आप जरूर कामयाब होंगे – ऐसा मेरा विश्वास है.
अब मैं …
नमस्ते !
नमस्ते !
थोड़ी ही देर के बाद एक नब्बे साल के वयोवृद्ध से मुलाक़ात हुयी. वे हरी घांस पर बैठ कर सुस्ता रहे थे .
हम उस नब्बे साल के वयोवृद्ध के प्रति अपना आभार प्रगट करते हैं , जिन्होंने हमें अतीत के घटनाओं के बारे में पुख्ता ( ठोस ) जानकारी दी. हमने उनके दीर्घायु जीवन की कामना की. हमने घंटों उनसे बात – चीत की. . जब अलग होने लगे तो दोनों भावुक हो उठे. उनके साथ एक स्टिक थी . मैंने जब छड़ी पकडाई तो वे अंतर से दर्वित हो गये. हम भी …… हुए बिना अपने को रोक नहीं सके. रात्रि के नौ बज गये थे. हम टहलते – टहलते अपने होटल तक आ गये.
3. तीसरा दिन : पटना साहिब : गुरुद्वारा :
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Harmandir Patna Sahib
Photo Credit: Neelsb
आज हमारा पटने में तीसरा दिन था . ६ बजे तक स्नान – ध्यान करके हम तैयार हो गये . कारगिल चौक से सिटी के लिए ओटो पकडे. बीस रुपये एक सवारी का भाड़ा बतलाया चालक ने. रमेश ने मुझे बतलाया सिटी यहाँ से करीब बीस – पचीस किलो मीटर है . रास्ते में हमें बी एन कालेज , गिरिजा घर , महेन्द्रू घाट , रानी बाग़ , गोबिंद मित्रा रोड , मखनियां कुआँ , दरभंगा महाराज घाट , खुदाबक्श पुस्तकालय , टी. के. घोष हाई स्कूल ( जहाँ डाक्टर राजेंद्र प्रसाद , भारत के प्रथम राष्ट्रपति , ने शिक्षा ग्रहण की थी ) , कुनकुन सिंह लेन , गाय घाट , महात्मा गांधी सेतु , छोटा गुरुद्वारा होते हुए करीब ८ बजे हम पटना साहिब गुरुद्वारा पहुँच गये . यह मुख्य मार्ग पर ही अवस्थित है. भव्य द्वार है . गुरु गोबिंद सिंह का जन्म इसी गुरुद्वारा के प्रांगन में २२ दिसंबर १६६६ में हुआ था .इनके पिता का नाम गुरु तेग बहादुर था . इनके पिताश्री सिख के नौवें गुरु थे . जब गुरु गोबिंद सिंह जी पटना में थे तो बाल्यकाल में इन्होंने हिंदी और संस्कृत की पढ़ाई की . उस ज़माने में हिंदुस्तान में मुगलों का शासन था , इसलिए इन्होंने पर्सियन की भी शिक्षा ली . ये जब महज नौ वर्ष के थे तब इनके पिताश्री ने सिखों के नेता के रूप में अपनी गद्दी सौंप दी. ये तब से सिखों के दसवें गुरु के नाम से जाने गये. इनकी माताश्री का नाम माता गुजरी था.
वीर भोग्या वसुंधरा सर्वकालिक नीति रही है . यह युग भी उन्हीं लोगों का था जो वीर हुआ करते थे. इसलिए गुरु गोबिंद सिंह जी को बाल्यकाल से ही युद्ध कौशल का प्रशिक्षण दिया गया ताकि वक़्त आने पर अपने दुश्मनों और विरोधियों का सामना कर सके . हुआ भी यही . गुरु गोबिंद सिंह की वीरता की कहानी इतिहास के सुनहले पन्नों में भरी पडी है . ३० मार्च १६९९ वैशाखी पर्व के दिन गुरु गोबिंद सिंह जी ने आनंदपुर में सिखों की सभा बुलाई. जब पांच सिख बलिदान देने को तैयार हो गये तो इन्हें पंज पियारे का नाम दिए. खालसा पंथ चलाये . सिखों का उपनाम सिंह रखा गया. इन्होंने बहुत सी लड़ाईयां लड़ी. मुग़ल शासक इनसे खौफ खाते थे. धोखे से नानदेद में , जब ये अपने कक्ष में आराम कर रहे थे , किसी ने इन्हें छुरा भोंक दिया . ७ अक्टूबर १७०८ को इनका देहावसान हो गया . अपने पीछे पवित्र पुस्तक गुरु ग्रन्थ साहिब छोड़ गये और कह गये कि जहाँ कहीं भी यह पवित्र पुस्तक ५ सिखों के साथ होगी , वहीं – वहीं गुरु होंगे. उन्होंने गुरु ग्रन्थ साहिब को अपना उतराधिकारी घोषित करके इस संसार से विदा ले ली.
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Guru Gobind Birth Place (Patna Sahib)
Photo Credit: Neelsb
तख़्त श्री हरमंदिर साहब जी , पटना साहिब देश के पांच प्रतिष्ठित तख्तों में से एक है. हम जैसे ही अन्दर प्रवेश किये , दाहिनी ओर गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्मस्थली दिखलाई दी. गुरुद्वारा में प्रवचन चल रहा था . नियमानुसार हमने सर पर रूमाल बाँधा , जल से पाँव धोया और गुरुद्वारा में प्रवेश कर गये. बहुत से सिख श्रद्धालु कालीन पर बैठकर पूरे मनोयोग से प्रवचन सुन रहे थे. हम भी कालीन पर शांति से बैठ गये . प्रार्थना के अंतिम क्षण तक हम वहीं रहे . बाहर निकले . फिर अजायब घर देखने गये . यहाँ दसों गुरुओं की जीवनी के बारे बतलाया गया है. जितना संभव हो सका , हमने जानकारी हासिल की. फिर हमने प्रसाद ग्रहण किया .
दस से ऊपर ही बज रहा था . हमने ओटो ले ली और लोदीपुर चले आये . हम तो तख़्त श्री हरमंदिर साहब जी , पटना साहिब का दर्शन करके लौट तो आये , लेकिन मुग़ल काल में सिखों की बलिदानी की कथा हमारे मन – मानस को झकझोरती रही.
लेखक : दुर्गा प्रसाद , गोबिंदपुर , धनबाद , दिनांक : १० मई २०१३ , दिन : शुक्रवार