औपचारिक – मूल्य- शिक्षा
ये क्या ! औपचारिक- शिक्षा का पत्र है मुझे आया ,
कुछ मेरे साथी बन रहे शिक्षक ,कुछ वैज्ञानिक, कुछ अफसर नेता,
जब हवा की तरह मुझसे बातें करती , औपचारिक- शिक्षा ,
तो मैं भी आगे बढ़कर मोड़ना चाहती ज़िन्दगी को अपने ही स्तर पर .
पानी बदला लेता है ,नल धीरे खोलो बेटा ,
भोजन की थाली में झूठा मत छोड़ो बेटा,
नाली का किढ़ा बनोगे ,अन्न नाली में न जाये बेटा,
तुलसी को पानी प्रतिदिन दो बेटा,
मेहनत की क़द्र करो बेटा,
दूसरों को धोखा दे -आगे जाने की होढ़ ,
कभी तुम्हें सफल नहीं बना सकती बेटा ,
न जाने कितनी छोटी छोटी सीख ,गुलाब के फूलों की तरह,
मां की सीख – खुशबू से भरी, पंक्तिया,
मूल्य- शिक्षा मुझे कभी-कभी पत्र में लिखती,
और मेरी जिन्दगी को पढ़ती और मोड़तीll2
मैं औपचारिक- शिक्षा के चलते ,
ज़िन्दगी के लिफाफे में श्रेष्ठ ज़िन्दगी टोहती,
पर मूल्य- शिक्षा हर राह पर मुझे टोहती – समझाती,
कैसे वार्तालाप करूं ज़िन्दगी मैं तुझ से ?
कभी औपचारिक- शिक्षा मेरे आढ़े आती ,
कभी मूल्य- शिक्षा मुझे ज़िन्दगी का सार बतलाती ll3
ज़िन्दगी तुम मेरी घनिष्ट मित्र या दुश्मन ?
यह पहेली ज़िन्दगी की बार-बार मैं,
कभी औपचारिक- शिक्षा से पूछती ?
कभी मूल्य- शिक्षा से पूछती ||4
औपचारिक- शिक्षा से मिली मुझे अनेकों उपलब्धियां,
टेक्निकल एवं नॉन टेक्निकल ख़ूबसूरत सीखें,
जिनसे मैने सुधारी जन मानस की ज़िन्दगी,
जब भी मैं मूल्य- शिक्षा को जीवन- व्यवहार में लाती ,
तब तब एक नई उर्जा मेरे सीने में भरती ,
सफल जीवन जीने की तीव्र इच्छा ,
मेरे अंतस में स्पंदन ध्वनि उत्पन करती II5
यह उपलब्धियां मुझे श्रेष्ठ से ,
श्रेष्ठतं ज़िन्दगी की ओर ले जाती ,
जिसे पाकर मैं फूली नहीं समाती ,
क्योंकि मेरी वैज्ञानिक ज़िन्दगी में ,
मूल्य शिक्षा अवं औपचारिक शिक्षा ,
अपना अपना महत्व रखती।
मेरी औपचारिक- शिक्षा प्रक्रिया में ,
उत्तप्रेरक है मेरी मूल्य- शिक्षा,
–END–
सुकर्मा रानी थरेजा ,