घर का आँगन, तुलसी सी पावन
रात का काजल, और भोर का आँचल
हर माँ की परछाई है बेटी!
शादी हो के जिस घर जाये, लक्ष्मि जैसी वो बन जाये
बचपन घर जो सूना कर जाये, आँखों मे मोती दे जाये
ऐसी पापा की शान है बेटी!
क्रोध आये तो ज्वाला बन जाये, माँ के बचन को भी वो निभाए
देश की खातिर जो मीट जाये, आन- वांनं पर मर-मर जाये,
ऐसी लष्मी बाई है बेटी! इतनी सोच बड़ा के देखो,
नाज़ करोगे तुम उस पर जब हिन्दुस्थान महकाएगी बेटी!
मत मारो उसको कोख मे, बिन उसके संसार अधूरा,
तरसोगे उस प्यार को फिर तुम, जब घर नएगी कोई बेटी!
रूढ़ जाएगी, मनालो उसको, गले से फिर तुम लगा लो उसको,
हाथ लगे जो पापी का तो, गर्दन काट गिरा दो उसको (पापी को),
बेटी कोई बोझ नहीं है, इतनी सोच बड़ा के देखो,
जीत लेगी वो दिल सबका जब हिन्दुस्थान महकाएगी बेटी!
कल-कल जल सी वो वह जाये, हाथ मे आके माटी बन जाये,
फूल है वो तो हर आंगन का, काँटों को भी वो सह जाये!
रूप है उसके न्यारे – न्यारे, आँखों मे हैं प्यार के धारे,
रूप कालका वो धर जाये, नदियों सी भी बहती जाये!
समझ सको तो समझ लो उसको, इतनी सोच बड़ा के देखो,
प्यार करोगे तुम उससे जब हिन्दुस्थान महकाएगी बेटी!
बोझ धरे जब घर से निकले सातों बचन निभाने को वो,
छोड़ चली जाये वो बचपन, माँ का आँचल, बाबुल का आंगन!
समझोगे तो पीड़ा होगी कैसे कोई करे ये सब,
इसीलिए तो बेटी दुनिया की सबसे पायरी मूरत होती,
जनम लेती है जिस घर मे भी उस घर मे लक्ष्मि सी होती!
समझ लिया है अब सब कुछ तो, फिर इतनी सोच बड़ा के देखो,
बेटी को बचा के देखो, अपने गले लगा के देखो!
सर ऊँचा हो जायेगा तेरा, जब हिन्दुस्थान महकाएगी बेटी!
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