This Hindi poem highlights the death of a messenger, as Telegram commonly known, who is going to be discontinued from the 15 th of July 2013
एक धक्का सा लगा मुझे ……
जब कल पढ़ा मैंने अखबार में ,
कि “Telegram” बंद हो जाएगा ,
अब सन्देश भेजने के लिए दूरसंचार में ।
पन्द्रह जुलाई 2 0 1 3 का दिन …..
लिखने वाला है इतिहास में ,
जब आखिरी “Telegram” भेजा जाएगा ,
ना जाने किसे इस संसार में ?
BSNL वालों को …..
यूँ अचानक से ना जाने क्या सूझा ?
जब अपनी 1 6 3 वर्षों की सेवा को ,
ख़तम करने का एक “Circular” उन्होंने भेजा ।
क्यूँ नहीं सोचा उसने ….
उन “कर्मचारियों” का एक भी बार ,
जो सालों से सेवा कर रहे थे जोड़ने की ,
लोगों के दिलों के टूटे हुए तार ।
कहाँ जाएँगे अब “वो” …..
अपनी नौकरी को छोड़कर ,
जिसे उन्होंने समझ रखा था ,
अपनी उम्र भर की “धरोहर” ।
गर दूजी जगह कोई नया काम ……
उन्हें मिल भी जाएगा ,
तो क्या उनका इस काम से जुड़ा “Sentiment”,
उसका “Pressure” झेल पाएगा ?
दयनीय स्थिति बन गई है अब ……
वहाँ के “कर्मचारियों” की ,
जिन्हें पहले सम्मान दिया जाता था उनके “सन्देश” भेजने पर ,
आज उन्हीं को “सन्देश” दिया ….एक नए “स्तीफे” पर ।
जो कभी अपना नाम ……
“तार बाबू” सुन इठलाते थे …..
आज वही Telegraph office के “Guide” बन ,
जनता को “Museum” घुमाते हैं ।
“Telegram” अब एक “Messenger” नहीं …..
जिसे भेज अब “सन्देश” दे कहीं ,
अब तो ज़माना ही “Internet” की Emails का है ,
फिर कैसे टिक पाएगी इस “Messenger” की कोई छवि यहीं ?
“Mobile” के SMS का है ये दोष सारा ….
जिसने “Telegram” को बना दिया एक बेचारा ,
जिसे भेजने में लोग अब कोई रूचि रखते नहीं ,
शायद इसीलिए उसकी “मृत्यु” को जानकार भी रोते नहीं ।
मगर “मैं” इस सदी की आखिरी गवाह बनूँगी ,
हाँ …इस मरते हुए “Telegram” की अंतिम साँस तक लडूँगी ,
क्योंकि मुझे दर्द हुआ बहुत ये जानकार ,
कि “Telegram” मर रहा है देखो ……कैसे अपना सीना तानकर ?
कोई भी “मर्द” नहीं …यहाँ इस संसार में ,
जो बचा सके इस “धरोहर” को …..लगा कर अपने गले ,
क्योंकि शायद हम अब सब बिक चुके हैं ,
इन SMS और Emails की गलियों में भटक चुके हैं ।
तभी तो “Telegram” अब ……
एक “सबूत” के तौर पर भेजा जाता है ,
जब अपना मुकदमा लड़ने कोई “मुजरिम” …..
Court में हाजिरी लगाने आता है ।
पर क्या हुआ जो हम ……
ऐसे ही इसका इस्तेमाल करते ,
कम से कम इसकी मृत्यु पर ……
इतने “अश्क” तो न बेवजह भरते ।
हाँ ….मैं “Countdown” करने लगी इसका अभी से …..
शायद इसलिए क्योंकि मैं “दगाबाज़ ” नहीं ,
जिसे कभी जनम दिया था हमने …..
आज उसी की उम्र पूरी होने का …..मैं भी रखती नहीं कोई हिसाब यहीं ।
जी तो चाहता है मेरा ……
कि गर दौलत इतनी देता भगवान मुझे ,
तो हर नए “Telegram” को उसके नाम रोज़ भेज ,
मैं भी रख पाती जीवित इसे ।
मगर शायद सच में …..
इस युग का पतन होने वाला है ,
तभी तो अब हर वस्तु का ,
एक “Extinct Category” में बोलबाला है ॥
A Message To All-
मत भागो यूँ “सरकारी नौकरी” की चाह में …….
देखो इसकी भी कोई औकात नहीं ,
कल तक जो सालों से बसे थे एक चाह लिए ,
आज उनकी रोटी की भी कोई आस नहीं ॥