लड़की क्या कहना चाहती है?
सब करते हैं मुझे अपने से दूर,
जिसके कारण मरने को हो जाती मैं मजबूर,
क्या भगवान ने है मुझे बनाया,
इसमें मेरा कोई कुसूर,
मैं लड़की क्यों मजबूर?
सब कोस ते हैं: “मर जा तू !!”,
क्यों आई मेरी ज़िंदगी में यूँ?
एक तरह का बोझ है तू,
मैं लड़की क्यों हूँ?
कहते हैं, मैं बढ़ाती हूँ दूसरे के वंश का नाम,
लेकिन आपकी ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा आती हूँ मैं ही काम,
जन्म लेने से पहले कर देते मुझे भगवान के नाम,
क्यों नहीं करते मेरा इस संसार में सम्मान?
पैदा होने पर बनाते हैं शोक,
दहेज के डर से लगाते हैं मेरे सपनों पर रोक,
छोटी-छोटी बात पर मुझे ही क्यों आप हमेशा टोक?
लड़का हुआ तो महंगे लड्डू, और लड़की हुए तो सस्ते पेड़े,
हर स्तर पर करते हो मेरी तुम तुलना,
और रोकते हो मुझे तुम लोगों से घुलना-मिलना,
चाहते हुए भी ना आते हो पास,
समाज के डर से होते हो अपनी संतान से तुम दूर,
मैं लड़की क्यों मजबूर?
जानते नहीं दूसरों के नहीं,
आपके वंश का नाम आगे बढ़ाती हूँ,
परायाओं के घर नहीं,
नए-नए रिश्ते बनती हूँ,
जो थम जाए, ऐसा अँधेरा नहीं,
सदा रहने वाला उजाला लाती हूँ|
समाज जिसके बिना असहाय है, वो हूँ मैं,
जग जिसके बिना रुक जाए, वो हूँ मैं,
पुरुष को पूरा करने वाली हूँ मैं,
तुम सबको जन्म देने वाली हूँ मैं|
लड़की हूँ मैं बोझ नहीं,
किस-किस को समझाओं मैं,
लड़कों से हूँ कम नहीं,
क्यों बार-बार यह दोहराओं मैं?
एक बार मुझे अपनी ज़िंदगी में लाके तो देखो,
एक बेटी का सुख पाके तो देखो,
एक मौका मुझे देकर तो देखो,
लोगों की नहीं, मन की बात सुनकर तो देखो|
अलग सी खुशी होगी,
अलग सा आत्मविश्वास होगा,
अलग सी पहचान होगी,
और जब आपकी बेटी आपका नाम करेगी,
तो आपका भी इस दुनिया में सम्मान होगा|
- Anshika Bhardwaj