In this poem I’m highlighting those weak areas of our society. We say we are open minded and independent but there are still endless problems in India we face which we can improve but corruption in system and lack of faith makes it worst.. We need to learn that “together we can make it” and if one person take a stand to change for a better future for all then we should support him.. !!!
ये कविता मेने सत्यमेव जयते के कार्यक्रम से प्रेरित हो कर लिखी थी। समाज की अनगिनत बुराइओ को सामने रखना मुझ जेसे आम नागरिक के बस में तो नहीं परन्तु प्रेरणा से बहुत कुछ सीखा जा सकता है !
हम आज़ाद हिंद के वासी आज भी अपनी सोच को बांधे रखे है! मेरी यह कविता देश की आम बीमारियो पर रौशनी डालती है!
हम कहते है खुद को आज़ाद भारतीय,
और अपनों की आजादी के आड़े भी आये..
कभी नारी है हारी गोहार लगाये,
अपनी वो इज्ज़त वा लाज बचाए..
कभी बच्चे भटकते दर दर हो बेबस,
सड़को पे लोगो की दुत्कार खाए..
हम कहते है खुद को आज़ाद भारतीय,
और भारत की इज्ज़त की धज्जिया उडाये..
रोज़ है सुनते ढेरों कथाये,
सद्बुधी फिर भी किसी को न आये..
योन शोषण हो या हो कन्या भ्रूण हत्या,
आज भी अपराध होते है आये..
हम कहते है खुद को आज़ाद भारतीय,
और पापो की गिनती बढ़ाते ही जाए..
भगवान को पूजे.. बुजुर्गो को कोसे,
सम्पति, ज़ेदात ही हमको भाये..
वृद्ध तो होना सभी को है एक दिन,
किस्सा वही फिर इतिहास दोहोराये..
हम कहते है खुद को आज़ाद भारतीय,
और बुजुर्गो को बंधी बनाना हम चाहे..
भेद भाव, छुआ छुत के चलते,
ऊँच नीच के भाव पनपते..
उस बेचारे के भाग ही फूटे,
जो दलित वर्ग के घर में जन्मे..
हम कहते है खुद को आज़ाद भारतीय,
और भिन्नता के तुच्छ दायरे में हम पलते..
राजनीती बनी हउवा सबके लिए,
पल्ले किसी के न कोई दावपेच आये..
मेहेंगाई भी मारे.. और दोखे भी खा रे,
सरकार के हाथो बने कठपुतली सारे..
हम कहते है खुद को आज़ाद भारतीय,
और सरकार हमारी हमपर शासन चलाये..
बरोजगारी जो मारे तमाचे,
युवाओं के आत्मविश्वास टूटे..
भ्रष्टाचार.. घूसख़ोरी के चलते,
भारतवासी एक दूजे से भटके..
हम कहते है खुद को आज़ाद भारतीय,
अपनी इक्छाओ के दम पर दूसरो को निगलते..
सुरक्षा कर्मचारी या डाकू लूटेरे,
बहू बेटी के दामन पे डाके ये डाले..
सरकार ने पाले है खुद के संरक्षक,
आम नागरिक की मुश्किल ये क्या सुलझाए..?
हम कहते है खुद को आज़ाद भारतीय,
पर फ़रियाद अपनी न कोई सुन पाए..
सहेमत है हम सब है कितनी बुराई,
आजादी को पाकर समझदारी न आई..
उत्पन्न हो जोश जब बुराई को देखे,
पर अगले ही पल सुस्ती विचारों को आये..
जो कहलाना चाहे हम आज़ाद भारतीय,
अपनी सोच को पहले हम आजादी दिलाये..
हम कहते है खुद को आज़ाद भारतीय,
और अपनों की आजादी के आड़े भी आये…
***