This Hindi poem tells that one should always remember his passing age and took some lessons from it as age and life teaches us many things.
उम्र ने सिखा दिया जीना …..अब नहीं ये दिल करता है ,
कि बिछौना मखमल का हो …..क्योंकि फर्श पर ही अब नींद का डेरा लगता है ।
उम्र ने सिखा दिया जीना ……अब नहीं होती ख्वाइश पकवानों की ,
रूखी-सूखी जो भी मिल जाए …..उससे ही पेट को भरना पड़ता है ।
उम्र ने सिखा दिया जीना …….कैसे ख्वाइशों को मन की दबाएँ ?
कामनाएँ गर अपना सर भी उठाती …..तो भी उनको कुचलना पड़ता है ।
उम्र ने सिखा दिया जीना …..पैसा है सिर्फ एक मोह और चाहत ,
बिन पैसों के भी तो शायद …..साँसों को चलना पड़ता है ।
उम्र ने सिखा दिया जीना …..क्यूँ द्वेष भरे भाव धरें हम ?
कल तक थे जो देख पराए …..अब उनको ही अपनाना पड़ता है ।
उम्र ने सिखा दिया जीना …..पारिवारिक सुख एक झूठ नहीं ,
ये सब बंधन होते हैं अटूट …..तभी गृहस्थ आश्रम में सबको बंधना पड़ता है ।
उम्र ने सिखा दिया जीना …..मत याद करो जाने वालों को ,
कब तक अश्कों से पेट भरोगे …..इस कड़वे घूँट को भी पीना पड़ता है ।
उम्र है एक तजुर्बा ……जिसके गुजरने पर धीरे-धीरे ,
इच्छाएँ मरने लगती हैं ……क्योंकि तब अपने आज को समझना पड़ता है ।
बहुत कम लोग होते हैं इस जहान में …..जो अपनी गुजरती उम्र को …..अपने ज़हन में रखते ,
जो भुलावे में भटकते रहते ……उन्हें एक दिन बहुत तेज़ धक्का लगता है ।
उम्र होती है बड़ी ही नादान …..जो चुप-चाप से गुज़र जाती है ,
मगर सीखने वालों को अक्सर …..उसके पाँवों को पकड़ना पड़ता है ।
उम्र ने सिखा दिया जीना ……कि जिंदगी सिर्फ एक खेल है ,
जहाँ जीतने वाले तो फिर से दौड़ेंगे …….इसलिए उनकी जीत का भी जश्न करना पड़ता है ।
उम्र ने सिखा दिया जीना ……अब नहीं ये दिल करता है ,
कि पहचाने ज़माना हमें भी कभी …..क्योंकि अब हर पहचान से डर लगता है ॥