It’s a true experience of my younger sister who went to “Asha Kiran” Sanstha for Mental challenge children/elders.. She went there with her team to do the Dental treatment for all.. At 1st she was so proud to be a part of it but she was so disappointed as well to see their condition.. She explained her feelings then I wrote a poem about it!
आज एक नेक दिल से बहुत गहरी आवाज़ आई..
कितनो की तकलीफ़ को देख उसकी आँखे भर आई।
वो खुद बहुत दयालु है.. इसलिये है ख़ुशनसीब भी..
ईशवर के बंदों की अपने हाथो से सेवा वो कर आई।
मुझसे बोली दीदी आज तो दिल पसीज ही गया..
जीवन के आइने मे एक सच और दिख गया।
उनके मासूम चहरो ने मुझे हक़ीक़त से था अवगत किया..
मेने पाया ये जीवन है उनके लिये कठिनाईयो भरा।
पूछा तो बोला! गई थी “आशा किरन” संस्था मे अपने कार्य से..
946 बच्चो व् बड़ों का था वहाँ हमें दाँतो का इलाज करना।
अनाथ थे.. और प्रेम के भूखे भी थे वह मासूम चहरे..
उनके बीच कुछ पल रह कर मेने अपने होने की वजह को जाना।
कुछ थे यतीम.. कुछ थे माँ बाप के होते हुए भी अनाथ..
क़सूर ये है उनका..मानसिक रोग की चुनौती के है वो शिकार।
खुद से खाना,पीना,पहनना न हो संभव..न बोलने की शक्ति है उनमें..
भावनाएँ तो ज़रूर उनके अंदर होंगी..न है वो शक्ति जो दे उनको उभार।
सभी से प्रेम और खुद के लिये सबसे समय चाहते है वो भोले चहरे..
उनकी ख़ाली आखो को कभी कोई भर न सका।
उनका डर, उनकी कमज़ोरी.. उनके जीवन का ख़ालीपन है शायद..
यह वो गहरी खाई है..जहाँ से निकलना उनके लिये संभव न रहा।
एक ने मुझे “माँ” कह कर स्नेह भरी आवाज़ से मेरे कानों मे रस डाला..
पयार से जब मेने उसे बैठाकर.. उसके उपचार का ज़िम्मा था सम्भाला।
आसान नही था भावो को रोकना.. मै भावुक होके उसे तकने लगी..
वहाँ पे खड़े कर्मचारी ये बोले.. इनके लिये वे “माँ” ही है जो दे इन्हें पयार अपना।
फ़र्श पे सोना, बेबस हो रोना.. और नही उपचार बस आश्रित रहना..
सज़ा ये कैसी है इनको..? क्यों जीवन मे इनको हर पग संघर्ष है सहना?
बाल थे छोटे, सादा पहनावा.. स्वरूप था सच्चा न बनावट मे रहना..
भूल से भी न भूल सकूँ.. व्यक्तित्व मे मेरे वास किया जो व् सोच का मेरी निखर जाना।
न फ़र्क़ करे कोई बेटा या बेटी..न धन दोलत का गुमान है रखना..
कृतज्ञ रहे पग पग ईशवर के..जो सुख से भरा है ये जीवन अपना।
न माँग करे.. न आस करे, जीवन यू बेकार न करना..
चुस्त, तंदरूसत है हम क़िस्मत से.. थोड़ा स्नेह व् समय दीन दुखियों को है देना।
ये प्रण है मेरा! न अभिमान करूँ मै.. प्रार्थना व् सेवा भाव मे ही ये हाथ उठेगा।
जहाँ जहाँ तक पहुँच सकू मै.. कर्तव्य से बड़के सबको पयार मिलेगा।
कमी किसी कि न हम पूरी कर पाए..पर कोशिश तो कर सकते है..
और नही तो ईशवर से विंती व् थोड़ा पयार उन आखो मे हम भर सकते है।
आज एक नेक दिल से बहुत गहरी आवाज़ आई..
कितनो की तकलीफ़ को देख उसकी आँखे भर आई।
वो खुद बहुत दयालु है.. इसलिये है ख़ुशनसीब भी..
ईशवर के बंदों की अपने हाथो से सेवा वो कर आई।
***