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Chidiya

Published by nupur mishra in category Family | Hindi | Hindi Story with tag friendship | Rent | small girl

चिड़िया: This Hindi story is about a man and a little girl which tells us that blood relation or relations approved by the society are not required for a beautiful relationship to flourish.

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Family Hindi Story – Chidiya
© Anand Vishnu Prakash, YourStoryClub.com

नए शहर में घर तलाशना कितनी मुश्किल का काम हैं। उफ़! ऊपर से ये गर्मी का मौसम।

आखिर दो दिन ही तो बचे है नए ऑफिस को ज्वाइन करने में, तो इतनी मेहनत तो करनी ही पड़ेगी। इतना घूमने के बाद थक हार के मेरे दोस्त रमन को फ़ोन करना ही पड़ा। मै बिना किसी की मदद के किराये का घर ढूँढना चाहता था पर इतना आसान कहा था मेरे लिये और वैसे भी आज कल एक अकेले आदमी को कोई रुम कहा देता हैं। ‘शादीशुदा’ होने का सर्टिफिकेट हो तो ही आप वैलिड हैं वरना भूल जाइये आपको एक पैर रखने की भी जगह मिलेगी एक रुम मिलना तो बहुत दूर की बात हैं। खैर, मेरे प्यारे मित्र रमन ने मुझे उसके किसी दूर के रिश्तेदार का पता दिया। ठीक उसी पते पर पहुच गया।

रमन के दूर के रिश्तेदार का घर काफी बड़ा था। उनके परिवार में सिर्फ दो ही प्राणी थे,माधव अंकल और उनकी पत्नी राधा आंटी। बच्चे सब बाहर सेटल थे सो इतने बड़े घर की देखभाल करना उनके लिए मुश्किल का काम था और बच्चे भी साल में एक दो बार ही आते थे। इसलिए उन्होंने घर के ऊपर वाले पूरे पोरशन को किराए पे दिया हुआ था। चार या पांच रुम थे जिसमे से एक रुम खाली था। रमन ने तो पहले ही बात कर रखी थी, तो कोई समस्या ही नही हुई और रुम भी अच्छा मिल गया था। अंकल को एडवांस किराया दे कर ऊपर आया तो देखा कि मेरे बाजू वाले रूम के बाहर एक छोटी सी प्यारी सी लड़की गेट के बाहर खड़ी हुई थी। होगी कोई सात या आठ साल की। रेड कलर की फ़्राक पहनी हुई थी। उसके चेहरे की मासूमियत किसी को भी अपनी तरफ आसानी से आकर्षित कर सकती थी। पर उसके मासूम चेहरे पर गुस्से ने कब्जा कर रखा था। शायद डांट पड़ने की वजह से मूह फुला के बाहर खड़ी थी मैडम। खैर, आदतन मैंने उसकी तरफ मुश्कुरा के देखा और ‘hi’ बोला। उसने कोई जवाब ना दिया, बस एक नजर मेरी तरफ देखा और अपने रुम के अंदर चली गई। सोचा…बच्ची है किसी अजनबी को देख के भला क्यों मुश्कुराएगी। मै भी अपने रुम पे आ गया। सामान रखा, हाथ मुह धोके लेट गया। थका था..सो गया। शाम 6 बजे मेरी आँख खुली। कोई शायद बाजू वाले रुम का गेट खटखटा रहा था। मै भी रुम से बाहर आ गया। मिस्टर गुप्ता गेट खुलने का इंतजार कर रहे थे।

‘hii!मेरा नाम अमरदीप हैं। बस आज ही शिफ्ट हुआ हू आपके बाजू वाले रुम पे। और आप मिस्टर..?????’ मैंने हाथ आगे बढ़ाते हुए बोला।

ओह्ह…अच्छा! अच्छा! मै अवनीश गुप्ता…पिछले दो साल से यहा हू अपनी फॅमिली के साथ।’

मिस्टर गुप्ता मुश्कुराकर हाथ मिलाते हुए बोले। चिड़िया तब तक गेट खोल चुकी थी।

‘चिड़िया! अमर अंकल को hii बोलो। ये आज ही हमारे बगल वाले रुम पे शिफ्ट हुए हैं।’

चिड़िया ने एक हल्कि मुश्कान के साथ hii बोला। मै भी मुश्कुराया। यही से हमारी दोस्ती का श्री गणेश हुआ। पडोसी और अकेला होने के कारण मिस्टर गुप्ता के घर आना जाना और खाना पीना लगा रहा। चिड़िया से दोस्ती हो चुकी थी।वो काफी घुल मिल चुकी थी मुझसे। चिड़िया बहुत बातूनी थी। एक बार चालू हो जाये तो चुप होने का नाम कहा लेती थी।बस..पूरा टाइम चिडियों की तरह यहाँ से वहां फुदकती रहती, चहकती रहती। मेरे इतना सर चढ़ चुकी थी कि मेरा नाम गाना गा गा कर बुलाती….,’अमर अकबर एंथोनी अंकल!’ मै भी उसे प्यार से ‘चुहिया’ बुलाता। कभी अपनी बनाई ड्राइंग दिखाती, कभी मुझसे कहानी सुनती और कभी खुद सुनाने लग जाती। उसकी इन्ही प्यारी प्यारी हरकतो और छोटी छोटी शरारतों ने मेरे अंदर वात्सल्य जगा दिया था। अब मेरा मन कहा लगता था चुहिया के बिना।

दो दिन बाद चिड़िया के स्कूल खुल गये, वो स्कूल जाने लगी और मैंने ऑफिस ज्वाइन कर लिया।चिड़िया पहले ही घर आ जाती और मै शाम को घर आता। पर चिड़िया रोज मेरा इन्तजार करती बालकनी पे खड़ी हो के। मुझे आता देख दूर से ही चिल्लाती…”अमर अकबर एंथोनी अंकल!” और मै हसते हुए दूर से ही हाथ हिलाता। अब तो ये हर रोज का सिलसिला था। लेकिन ये सिलसिला महज दो साल तक ही चल सका। कंपनी ने मेरा ट्रांसफर मेरे ही शहर कानपुर में कर दिया था। मेरे लिए ये ख़ुशी की भी बात थी और ग़म की भी। मै चिड़िया से अब दूर जा रहा था। ये पल मेरे और चिड़िया के लिए चुड़ैल वाली कहानी से भी भयानक था।

मैंने अपना सारा सामान पैक किया। रुम पे ताला लगाके चाभी माधव अंकल को पकड़ा दी। चिड़िया आँखों में आंसू लिए चुपचाप बालकनी पे खड़ी थी। जैसे ही जाने के लिए उसे बाय बोलने गया…चिड़िया मुझसे लिपट के ज़ोर ज़ोर से रोने लग गयी…और..मै भी खुद को ना रोक सका…”अमर अकबर एंथोनी अंकल! प्लीज!!! मत जाओं ना! प्लीज!!!” उस पल पहली बार खुद को इतना लाचार बेबस महसूस किया। काश!!!! चिड़िया को मै अपने साथ ले जा सकता….!’ कर भी क्या सकता था, वो पल मेरे वश में कहा था। सामान उठाया और बोझल मन से चल पड़ा अपनी मंजिल की ओर….चिड़िया मुझे तब तक जाते हुए अपलक देखती रही जब तक कि मै उसकी नज़रों से ओझल ना हो गया….।
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