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Prann

Published by Seema Singh in category Family | Hindi | Hindi Story | Social and Moral with tag daughter | education | marriage

Prann (प्रण) – Hindi family story shows how an incident changed the perspective of a family towards marriage and education.

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Hindi Story – Prann
Photo credit: ecerroni from morguefile.com

सुबह से घर में गहमा-गहमी मची थी. सब भाग दौड़ में लगे थे.. “मिठाई के डिब्बे ऊपर रखना”… “और ये कपड़ों वाला बैग आगे रखना”.. बड़ी बहन के निर्देश लगातार चल रहे थे …कोने में बैठी निधि चुपचाप सारे काम देख रही थी … अचानक बहन की नज़र पड़ी तो हाथ का सामान छोड़ कर मुस्कुराते हुए निधि के पास आ खड़ी हो गई..

“सब ठीक है ना ? देख लो भई कोई कमी हो तो अभी बता दो… फिर बाद में मत कहना ..”

निधि ने शर्माते हुए मुँह घुमा लिया.. “क्या है मुझे नहीं पता…”

सब बहुत खुश थे मगर निधि वो तो जैसे समझ ही नहीं पा रही थी जो कुछ हो रहा है उस पर क्या कहे…आगे पढ़ने का मन था मगर वो लोग नहीं चाहते कि लड़की ज्यादा पढ़े…

“हमें कौन सी नौकरी करानी है अपनी बहू से” लड़के की माँ ने साफ़ कह दिया “बीए पास है बहुत है ज्यादा पढ़ कर क्या करेगी घर ही तो सम्हालना है….बाप दादों की इतनी ज़मीन जायजाद का अकेला वारिस है मेरा मुन्ना, आप की लड़की राज़ करेगी”…

माँ पापा की मृत्यु के बाद अपनी छोटी बहन को बेटी तरह पाला था प्रिया ने…बहुत छोटी सी थी निधि उस समय, जब माँ पापा का साया सर से उठ गया.. जीजाजी और जीजी की मानों तीसरी नहीं पहली औलाद थी… इतना प्यार दिया उन दोनों ने निधि को कि कोई जान ही नहीं पाता था कि बेटी नहीं है उन लोगों की, कोई फर्क नहीं किया तीनों बच्चों में …. प्रिया के पति की सरकारी नौकरी ने उन लोगों को एक जगह ठहरने ही नहीं दिया कभी. शुरू शरू में तो अच्छा लगा मगर जब बच्चों की पढ़ाई पर असर पड़ने लगा तो चिंता का विषय हो गया… दो ही रास्ते थे या तो प्रिया बच्चों के साथ रहे और पति को अकेला छोड़े या फिर बच्चे अकेले रहें. हालांकि बच्चे छोटे नहीं थे मगर माँ के लिए कब बड़े हुए हैं.

“हम रह लेंगे आप चिंता ना करो. हम अपने साथ साथ एक दूसरे का ख्याल रख सकतें है…” निधि और दोनों बच्चों ने प्रिया को तसल्ली दी थी…

“मगर तेरे जीजाजी नहीं मानेंगे निधि… माना तुम लोग छोटे नहीं हो मगर बड़े बच्चों का भी ध्यान तो रखना पड़ता है ना ?”

“आप चिंता मत करो जीजी हम रह लेंगे.” निधि ने आश्वस्त करने का प्रयास किया था. “फिर आप भी तो आते जाते रहोगे?”

“एक ही कॉलेज में जायेंगे तीनों.. सामने कॉलोनी है, वही रहने का इंतजाम हो जायेगा.”, ये सुझाव बेटे की ओर से आया था.

“ठीक है मगर एक बार तेरे पापा जाकर देख लें पहले…” प्रिया ने कहा था..

“पापा ही क्यों आप, हम, सब चलतें हैं. मन भरे तो ठीक नहीं तो कुछ और सोचेंगे…”

“सच ये है माँ कि हम आप दोनों को अलग अलग नहीं देखना चाहते बेटे ने अपने मन की बात माँ के सामने रख दी..” पापा को आपकी हम से भी ज्यादा ज़रूरत है ..

निधि और स्वीटी ने भी हाँ में सर हिलाया… “ठीक है कल सन्डे है अगर पापा फ्री होतें है चल कर देख लें.. अगले सप्ताह से क्लास शुरू हो जायेंगी…”

सब अगले दिन गए भी थे संजू का इंतजाम अच्छा था, सबको पसंद आया… वापसी में प्रिया के चेहरे पर संतुष्टी के भाव साफ़ दिखाई दे रहे थे जैसे कोई बड़ा बोझ उतर गया हो दिमाग से… संजू ने भाग दौड़ शुरू कर दी. जिस से क्लास शुरू होनें से पहले ही एडमीशन हो जाए.. अभी शिफ्ट हो भी नहीं पाए थे कि पंडित जी आ धमके …

“श्रीमान जी आप चल कर मिल लीजिए एक बार, बड़ा ऊँचा खानदान है उनका..” पानी की ट्रे लेकर कमरे में जाती निधि के कानों में जैसे ही ये शब्द पड़े, उसको पूरा मसला समझ आ गया.. उसने पानी संजू से भिजवा दिया और खुद अंदर वाले रूम में जा कर बैठ गई… पंडित जी की चाय आदि का प्रबंध स्वीटी ने कर दिया.

निधि इस रिश्ते के बारे में जानती थी. प्रिया ने बताया था उसको … “शादी तो करनी है ना, कभी ना कभी..फिर वो खुद रिश्ता मांग रहे हैं.. ये तो इज़्ज़त की बात है बेटा”, प्रिया ने निधि को समझाते हुए कहा ..

“मगर जीजी…” इस से आगे निधि बोल नहीं पाई..

“तू क्यों परेशान हो रही है ? हम पूरी खोज बीन कर के ही बात आगे बढ़ाएंगे… फिर जिस घर में लडकियां होती हैं वहाँ सौ जगह बात चलाई जाती है. बात चलने का मतलब ये नहीं होता कि शादी हो ही जाएगी पागल…” कह कर प्रिया ने अपनी डरी सहमी सी बहन को प्यार से गले लगा लिया था… मगर आज पंडित जी के आने से भूत फिर पिटारे से बाहर आता दिखने लगा था निधि को…

अपने मन के बात किस से कहे निधि, ना तो उसको शादी से इनकार था और ना कोई ऐसा प्रण लिया था कि शादी करनी ही नहीं है.. वो तो बस अभी शादी नहीं करना चाहती थी और सबसे बड़ा डर जो था उसके मन में वो था इतने रईस खानदान में जाने का. कहाँ उसका मध्यमवर्गीय पढ़ा-लिखा खुली सोच और विचार वाला परिवार कहाँ वो अल्पशिक्षित तथाकथित रईस… कैसे तालमेल बैठा पाएगी वो वहाँ…

लड़के वालों के बारे में जितना सुनने को मिलता, मन ही मन और घबराती. वैसे स्वभाव के बुरे नहीं थे वो लोग.. मगर माताजी की एक ही बात ने हिला दिया था उसको, “कौन नौकरी करानी है हमको”. क्या पढ़ने लिखने का एक ही उद्देश्य है अच्छी नौकरी मिल जाए बस… क्या पढ़ाई जीवन में पग पग पर काम नहीं आती… और सबके ऊपर यह कि निधि जो उस परिवार से जुड़ी तक नहीं है अभी, उसके बारे में फैसला लेना अभी से शुरू कर दिया और जो कहीं उनके परिवार का हिस्सा बन गई तो… सारे फैसले उनके ही हो जाएंगे फिर तो… बस यही डर भीतर भीतर खाए जा रहा था निधि को… जब अपने मन का डर अपनी बहन प्रिया के सामने रखा तो उनको इतना परेशान होने लायक कुछ भी नज़र नहीं आया इस में…

“पढ़ाई करनी है ? अभी शादी नहीं करनी है ? ठीक है…” प्रिया ने कहा “चलो हम उन लोगो से बात कर लेंगे कि जब तक हमारी निधि का एम.ए. नहीं हो जाता है हम शादी नहीं करेंगे…” शं

कित सी निधि ने पूछा था,“सच में जीजी ?” “और नहीं तो क्या? खुद रिश्ता माँगा है इतनी बात तो माननी पड़ेगी हमारी…” प्रिया ने गंभीर मुद्रा में कहा था तो निधि को थोड़ी राहत मिली. “तू चिंता ना कर मैं खुद बात कर के कम से कम दो साल का टाइम मांग लूंगी”, प्रिया ने निधि को भरोसा दिलाया… प्रिया के पति भी यही चाहते थे… लड़की एम.ए. तो कर ही ले पढनें में भी कितनी तेज़ है…

प्रिया ने पंडित जी द्वारा अपनी बात कहला दी थी कि हम दो साल बाद ही विवाह करेंगें.. कोई आपत्ति ना करने को अनुमोदन मान लिया गया था… इस बीच संजू, स्वीटी और निधि तीनों ने कॉलेज जाना शुरू कर दिया और इस किस्से को भूल कर अपनी अपनी पढ़ाई में जुट गए थे…

दिन बीतते गए… पढ़ाई चलती रही निधि और स्वीटी कला विषयों के साथ और संजू विज्ञान विषयों से अपनी अपनी पढ़ाई करने लगे.. अचानक एक दिन निधि और स्वीटी कॉलेज से घर आए तो देखा गेट पर गाड़ी खड़ी है अंदर जाकर पता चला गाड़ी घर से आयी है उन तीनों को घर बुलाया है पहले तो दोनों डर गईं, “सब ठीक तो है ना संजू?” निधि ने कांपती आवाज़ में पूछा,

जवाब ड्राइवर ने दिया, “हाँ दीदी जी, सर और मैडम जी बिलकुल ठीक हैं… आप लोंगों को घर बुलाया है.”

संजू बोला “चलो मौसी, मैं रास्ते में बताता हूँ..”

तीनों गाड़ी में सवार हो कर चल दिए संजू ने बताया, “मेरी माँ से बात हो गई है आप परेशान मत हो…”

घर पहुंचने पर प्रिया ने बच्चों का गेट पर ही स्वागत किया… फिर तो जैसे सवालों की बौछार ही कर दी तीनों ने… “क्या हुआ ऐसे अचानक क्यों बुलवाया?… सब ठीक तो हैं? पापा कहाँ हैं?”

“ओहो अब तुम लोग अंदर भी चलोगे?”, हँसते हुए प्रिया ने कहा. अंदर पहुँच कर पता चला कि निधि का रिश्ता पक्का हो गया है … और शादी चाहे जब करें, मगर लड़के के लिए रिश्ते लाने वाले परेशान कर रहें है इसलिए लड़के वाले चाहतें है कम से कम वरीक्षा तो कर ही दी जाए… “तुम सब को इस लिए बुलवाया है. बस कल का दिन है तैयारी करने के लिए शुक्रवार का मुहूर्त निकला है…”

संजू और स्वीटी खुशी खुशी जुट गए माँ की मदद करने… और निधि… उसको तो समझ नहीं आ रहा था कैसी प्रतिक्रिया दे…उसकी ज़िंदगी का इतना अहम दिन और वो तो जैसे मूर्ति बन गई.. किसी ने थकान माना तो किसी संकोच… मगर ये क्या था ये तो खुद निधि भी नहीं जान पा रही थी… माँ जैसी बहन की खुशी देख कर रही सही हिम्मत भी जवाब दे गई… ‘कितने खुश है सब …कितना प्यार मिला है उसको इस घर से… अपने शंकालु मन के भय से सबकी खुशियाँ कैसे छिन्न भिन्न कर सकती हूँ…’ निधि के मन में ऐसे ही ना जाने कितने विचार आ रहे थे… तभी बहन का अचानक से तैय्यारी को लेकर सवाल करना.. निधि गुमसुम सी बैठी रही…

सब तैयार होकर निकलने लगे.. संजू, स्वीटी, प्रिया, उसके पति और पंडित जी… “पांच! कितनी शुभ सदस्य संख्या के साथ जा रहे हैं हम… सब शुभ ही शुभ होगा.. श्रीमान जी !” पंडित जी ने अपने दांत दिखाते हुए कहा… हाँ जी, हाँ जी कहते हुए संजू ने उन्हें गाड़ी में बैठने का इशारा किया.. और एक बार मौसी को गले लगाकर परिवार के साथ गाडी की ओर चल पड़ा… पता नहीं कब से आँखों में रुके दो आंसू मौक़ा पाकर निधि के गालों पर उतर आए… बहन ने देख कर कहा, “तुमको नहीं ले जा रहे हैं इस लिए रो रही हो?” सब जोरदार ठहाका मार कर हँसते हुए गाडी में बैठ कर निकल गए….

निधि के लिए पूरा दिन पहाड़ सा हो गया… बस पहुंचने का एक फोन आया था उसके बाद से कोई खैर खबर नहीं.. मन हजारों बातें सोच सोच के थक गया.. प्रतीक्षा करते करते थक कर निधि लेट गई.. बार बार घड़ी की ओर देखती – दस बज चुका है.. इतनी देर रात चलने वाला रास्ता भी नहीं है … सब ठीक तो है.. सोचते हुए निधि की पलकें कब मुंद गईं उसको खुद भी पता नहीं चला… बाहर गाड़ी की घरघराहट और फिर गेट बंद होने की आवाज़ से निधि चौंक कर जगी और तेज क़दमों से बाहर निकली तो सबसे आगे उसके जीजाजी थे… बिना कुछ कहे अपने कमरे में चले गए… आगे बढ़ कर निधि ने देखा संजू और स्वीटी सामान उतार रहे हैं … “इतना सामान” निधि ओठों में बुदबुदाई… मगर ये क्या ये तो वही सामान था जो सुबह रंगबिरंगी पन्नियों में लिपटा था… और प्रिया सबको ठीक से रखने की हिदायत दे रही थी. तभी गाड़ी से प्रिया निकली बेहद उदास और थके चेहरे के साथ.. चुपचाप भीतर चली गई.. संजू और स्वीटी भी एक एक सामान उठा कर लाए और मेज़ पर रख कर सोफे पर बैठ गए… पीछे से बचा सामान लेकर ड्राइवर आ गया…

“ये कहाँ रखना है दीदी जी ?”

“यहाँ इधर रख दो”, निधि ने हाथ से एक कोने में इशारा करते हुए ड्राइवर से कहा.. वो भी सामान रख कर चला गया.. निधि किचेन में जाकर एक पानी की बोतल और चार गिलास ले आई… गिलासों में पानी डालकर सबकी ओर बढाया. संजू और स्वीटी ने पानी ऐसे खत्म किया जैसे पूरे दिन के प्यासे हो…फिर बहन के कमरे की ओर दो गिलास लेकर बढ़ी ही थी कि प्रिया बाहर आ गई… उसनें लपक कर निधि को अपनी बाहों में भींच लिया…

“क्या हुआ जीजी?” कांपती आवाज़ में निधि ने प्रिया से पूछा…

प्रिया का चेहरा आंसुओं से भीग गया. उसका गला रुंध गया… शब्द जैसे गले में ही अटक गए… “बहुत बड़ा छल किया उन लोगों ने हमारे साथ..”

इतना बोल कर प्रिया की आवाज़ पूरी तरह रुलाई में बदल गई… आगे जो कुछ संजू, स्वीटी और प्रिया ने बताया सुन कर निधि सन्न रह गई … वो लोग जब उनके घर पहुँचे तो वहाँ ऐसा कुछ भी प्रबन्ध नहीं था जिस से ऐसा लगे कि कोई कार्य-क्रम है उनके वहाँ.. घर के सदस्य घर से गायब थे … घर पर काम करने वाली नौकरानी थी… जिस से पता चला कि घर के लोग बाहर हैं … बार फोन करने पर तो वापस आए, आने पर बड़ी बेशर्मी से बताया कि “हम एक बार फिर से विचार करना चाहते है इस रिश्ते पर…”

संजू ने बताया, “पापा ने गुस्से में कहा कि ‘अब तक सोच विचार ही नहीं कर पाए थे तो हमको क्यों बुलवा लिया’ तो कुछ बोलते नहीं बना…

पापा ने काफी समझाने का प्रयास किया मगर वो लोग टस से मस ना हुए….अपनी इज़्ज़त की भी दुहाई दी.. हार कर हम लोग वापस चलने को उठ खड़े हुए और पापा ने कह दिया ‘हमारी लड़की मान है हमारा, बहुत अच्छा किया जो तुमने अभी अपना असली चेहरा दिखा दिया. अगर ये रिश्ता हो जाता तो मुझसे बड़ा पाप हो जाता… कन्याबलि का… तुम जैसे तथाकथित रईस हो ही नहीं उसके लायक… तुम करो सोच विचार… मैंने फैसला कर लिया है अब ये रिश्ता कभी नहीं हो सकता. किसी कीमत पर भी नहीं हो सकता…’ और हम बस चले आए…” प्रिया का चेहरा अब भी आंसुओं से भीगा था…

“सच तो कहा जीजाजी ने” काफी देर बाद स्वयं को संयत करते हुए निधि ने कहा “जीजी जिन लोंगो को शिक्षा तक का महत्व नहीं पता है उनसे आप और क्या उम्मीद कर सकती हो? सच में हमारे साथ तो बहुत बुरा हो सकता था हम खुश नसीब है जो बच गए… और आप दुखी हो रही हो. ये समय दुःख मनाने का नहीं ईश्वर को धन्यवाद देने का है…”

“और तुम दोनों क्या चेहरा लटका कर बैठे हो चलो उठो हाथ मुँह धो कर आओ हम सब कुछ खाते है …” निधि ने उदास बैठे संजू और स्वीटी को ठोकते हुए कहा…

अपनी बहन को देख कर निधि ने फिर से कहा, “जीजी ! कमऑन किस सोच में हो ?”

प्रिया ने सर उठाया तो उसकी नज़र निधि के पीछे खड़े अपने पति पर पड़ी.. वो जाने कब से खड़े निधि की बातें सुन रहे थे.. और मन ही मन प्रसन्न हो रहे थे… होते भी क्यों न आखिर निधि भी उनकी आत्मजा न सही परन्तु पाल्या पुत्री तो अवश्य थी…आगे बढ़ कर उन्होंने भी अपनी दुखी पत्नी को समझते हुए कहा… “देखा प्रिया तुमने बच्चों को कितने अच्छे संस्कार दिए हैं. तुम चिंता न करो हमारी बेटियां अवश्य ही सुयोग्य वर पाएंगी .. हम उनका विवाह करेंगे, लेकिन उनकी शिक्षा पूरी हो जाने के बाद.

अब शायद प्रिया को भी अहसास हो गया था अपनी गलती का… पति की बात सुन कर अपना सर कुछ ऐसे हिलाया जैसे अपने ही मन में प्रण ले रही हो… बेटियों को उच्च शिक्षित करने का…

***

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