अस्तित्त्व माँ का
Love and sacrifice is the characteristic of an ideal mother. So one should never deny one’s mother’s identity.
टन -टन -टन -टन बारह बजे का घंटा बजा किन्तु सुमन की आँखों से नींद कोसों दूर थी। उसे किसी भी करवट चैन नहीं आ रहा था। आज की एक घटना ने उसे बुरी तरह झकझोर कर रख दिया था। जिस बच्चे के लिए उसने अपने जीवन का हर पल न्यौछावर कर दिया, आज वही उसके अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा था। उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कि उसके अस्तित्व का उपहास उड़ाया जा रहा हो।
आज उसी का अपना पुत्र उसका कोमल ह्रदय दुखा के चला गया था। क्या इसी दिन के लिए थे सुमन के सारे त्याग? क्या इसी दिन को देखने के लिए उसने अपने अस्तित्व से अधिक अपने पुत्र को महत्व दिया था? और ना जाने ऐसे कितने ही अनगिनत प्रश्नो के कारङ सुमन ने पूरी रात अपनी आँखों में बिताई।
बड़े ही जतन और प्यार से सुमन ने अपना छोटा सा घरौंदा सजाया था। अति स्नेह एवं ममता से उसने अपने बच्चे की परवरिश की थी। किन्तु आज बेटे राहुल के कटाक्षों से वो बुरी तरह आहत हो गई थी। उसने कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि राहुल कभी उससे ऐसा कठोर व्यवहार करेगा। आज राहुल के नीम से भी अधिक कड़ुए शब्दों ने सुमन को स्तब्ध का दिया था। रह-रहकर कल का दृश्य उसकी आँखों के सामने बार -बार घूम रहा था।
प्रतिदिन सुमन प्रातःकाल जल्दी ही उठ जाती थी। नहा-धोकर, पूजा-अर्चना कर सुमन रसोई में चली जाती थी। पति, सुरेश और राहुल के लिए उनका मन -पसंद नाश्ता बनाकर देती थी। किन्तु आज वो सुबह नहीं उठी थी। सुमन का पूरा दिन घर के कामों में ही व्यतीत होता था। थकान होने के पश्चात भी वो सारे काम प्रसन्नतापूर्वक करती थी। उसके जीवन की धुरी, परिवार से प्रारम्भ होकर परिवार के कर्तव्यों पर ही समाप्त हो जाती थी। पति सुरेश एक सीधे -सादे व्यक्ति थे। वो भी अधिकतर अपने काम -काज में व्यस्त रहते थे।
यूँ तो राहुल अक्सर सुमन को ताना मारता था कि तुम मेरे स्कूल मत आना या तुम्हे तो कुछ भी नहीं आता और फलां फलां।सुमन का अस्त-व्यस्त रहना राहुल को अच्छा नहीं लगता था। उसके मित्रों की माएँ कितना बन संवर कर रहती थी। उसे अपनी माँ के साथ कही भी जाने में शर्म सी लगती थी। सुमन को बुरा तो लगता था किन्तु वो चुप्पी साध लेती थी। वो सोचती थी कि ये राहुल का बचपना है जो ऐसी बातें करता है। माँ को तो धरती समान सहनशील और ममतामई होना चाहिए। क्षमा करना तो जैसे एक माँ के स्वभाव का अभिन्न गुण होता है। इन्हीं सब गुणों के कारण सुमन ने कभी भी राहुल के कटाक्षों पर आपत्ति नहीं उठाई। सोचा कि समय के साथ वो सुधर जाएगा।
किन्तु आज कुछ ऐसा हुआ जिसने सुमन के अस्तित्व तक को हिलाकर रख दिया।
राहुल के साथ उसके कुछ मित्र भी घर आ गए। सुमन ने बड़े ही प्यार से सबको नाश्ता इत्यादि कराया । यही उसके व्यक्तित्व का एक अमूल्य गुण था कि वो सब पर प्यार और ममता ऐसे लुटाती थी मानो ममता एवं स्नेह का कोई खजाना हो उसके पास। इस सब में उसे ये ध्यान नहीं था कि उसके वस्त्र मैले एवं बाल भी अस्त -व्यस्त थे। राहुल को सुमन की ऐसी हालत से क्रोध आ गया। उसे लगा कि सभी मित्रों की माएँ तो कितना बन -संवर कर रहती हैं और एक मेरी माँ है, जिन्हे कोई सलीका ही नहीं है।
वो अपने उद्वेग को नियंत्रण ना कर सका और सबके जाते ही सुमन पर बरस पड़ा, “माँ ! कैसे रहती हो आप ?आपके वस्त्र तो देखो, किसी कामवाली बाई जैसे ही प्रतीत हो रहे हैं। इतने मैले वस्त्र पहन कर तुम्हे मेरे मित्रों के सामने नहीं आना चाहिए था। क्या सोचेंगे वे लोग मेरे बारे में?मुझे तो बताने में भी शर्म आ रही थी कि ये मेरी माँ हैं। अपना हुलिया देखो तनिक आईने में। अब कल सारे मित्र मेरी अवश्य ही खिल्ली उड़ाएंगे। आगे से मै उन्हें कभी भी घर नहीं बुलाऊंगा। ” पैर पटकते हुए राहुल अपने कमरे में चला गया और धड़ाम से दरवाजा बंद कर लिया।
सुमन तो सन्न रह गई। उसे काटो तो खून नहीं। उसे अपने कानों और राहुल के इस कठोर व्यवहार की कदापि आशा नहीं थी। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ये वही राहुल है जो माँ का आँचल कभी नहीं छोड़ता था, बिना ये परवाह करे कि आँचल मैला है अथवा स्वच्छ। माँ के बिना उसका एक पल भी नहीं व्यतीत होता था और आज ? आज उसी ने अपनी माँ के ह्रदय को, उसके अस्तित्व को छलनी कर दिया। आज उसके लिए बाह्य आडम्बर ही सब कुछ था, माँ के अतुलित प्रेम उनके अस्तित्व को उसने बड़ी आसानी से नकार दिया था।
इसी घटना से सुमन बुरी तरह आहत हुई थी। मन की व्याकुलता के कारण नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी। सुमन ने जैसे -तैसे पूरी रात बिताई। व्याकुल सुमन अत्यंत ही सकते में आ गई थी कि ये अचानक क्या हो गया ? राहुल इतना कैसे बदल गया ? क्या कमी रह गई मेरी ममता, मेरे प्यार में ?
“सुमन !!!!! ओ सुमन !!!!!!! उठो देर हो गई आज। ” राहुल के पापा की आवाज से अचानत उसकी तन्द्रा टूटी। “राहुल!!!!!राहुल !!!!!!! उठ जाओ। आज स्कूल नहीं जाना है क्या ? जल्दी करो नहीं तो देर हो जाएगी।
राहुल के पापा उसे स्कूल जाने के लिए उठा रहे थे।सुमन उठ तो गई किन्तु वो गुमसुम सी ही रही।आज वो अत्यधिक निराश एवं दुखी प्रतीत हो रही थी।आज सुमन ने ना तो राहुल को प्यार से जगाया था और ना उसका टिफ़िन बनाया था।
राहुल बड़बड़ाते हुए उठा ,”पता नहीं माँ ने जल्दी क्यों नहीं उठाया ? पता नहीं मेरे कपडे कहाँ हैं ?टिफ़िन भी संभवतः नहीं मिलेगा, आज कैंटीन में ही खाना पड़ेगा। ”
इसी तरह हड़बड़ी में राहुल और उसके पापा चले गए। सुमन पुनः अपने विचारों से जूझने लगी। सुमन को अपने पुराने दिन रह-रहकर ध्यान आ रहे थे।उसकी आँखों के सामने उसका पिछला जीवन मानो एक चलचित्र की भांति घूमने लगा।
विवाह के पूर्व, सुमन का व्यक्तित्व बहुत ही आकर्षक था। उजला रंग, तीखे नैन-नक्श, ऊंचा कद और छरहरा बदन। वो एक बैंक में उच्च पद पर कार्यरत थी। इसी कारण उसका विवाह भी झटपट हो गया। पति,राजेश भी एक अच्छे पद पर थे। चंद दिनों में ही सुमन ने अपने सद्व्यवहार और मीठी बोली से पूरे परिवार का मन जीत लिया था। विवाहोपरांत भी सुमन अपनी नौकरी करती रही। और समय पूर्ण होने पर उसने एक स्वस्थ बालक को जन्म दिया। वो अपने शिशु की ममता में खो सी गई। उसने अपनी पक्की नौकरी छोड़कर बच्चे को पूरी तरह से समय देने का मन बनाया। राजेश के लाख समझाने पर भी सुमन ने नौकरी छोड़ दी और अपने बेटे को पालने में ही अपना सर्वस्व लगा दिया।
उधर राहुल स्कूल की कैंटीन में कुछ खा रहा था। वो भी माँ के इस बदले हुए व्यवहार से अचंभित था। आज के पहले तो कभी भी ऐसा नहीं हुआ था। राहुल विचारमग्न था कि , ‘पता नहीं माँ को क्या हो गया है? आज सुबह मुझे स्कूल के लिए जगाया भी नहीं और तो और खाना भी नहीं दिया। किसी सी बातचीत भी नहीं कर रही थीं। ‘
राहुल ने जीवन में पहली बार अपनी माँ का ये रूप देखा था। इतना निराश, इतना चिंतित, उसने माँ को कभी भी नहीं देखा था। यदि उन्हें किसी की कोई बात बुरी भी लगती थी, तो भी वो उसे हंसकर टाल देती थीं। क्षमा करना तो जैसे उनके रक्त में ही प्रवाहित हो रहा था। राहुल को कुछ अपराध बोध तो हो रहा था किन्तु उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो कहाँ पर गलत है।तभी राहुल के कुछ मित्र भी वहां आ गए। वे सब राहुल की माँ से अत्यधिक प्रसन्न थे। उनका स्नेह, उनका प्रेम ही था जो सबको अपना बना लेता था।
सुरेश बोला , “चल यार आज सब के सब फिर से राहुल के घर चलते हैं। कम से कम घर का पका कुछ खाने को तो मिलेगा। ”
बॉबी बोला ,” हाँ भाई, किन्तु अभी कल ही गए थे। ”
कृष्णन् ने कहा , “सच में आंटी इतना स्वादिष्ट खाना पकाती हैं कि उसकी कोई बराबरी नहीं है। और उससे भी अधिक, वो इतने प्यार एवं आग्रह से खिलाती हैं मानो अपने ही बच्चों को खिला रही हों। ”
सुरेश ने उत्साहित होकर कहा, “आंटी से मिलकर ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे हमारी माँ मिल गई हो।इतनी ममता तो असली माँ ने भी कभी नहीं लुटाई होगी। ”
बॉबी दुखी होकर बोला, “एक मेरी मॉम हैं, जिन्हे अपने सजने-संवरने और अपनी किटी पार्टी से ही समय नहीं मिलता। तुम बहुत ही भाग्यशाली हो राहुल जो तुम्हे इतना प्यार करने वाली माँ मिली हैं। ”
सुरेश बोला, ” बिलकुल सही कहा तुमने बॉबी। मेरी माँ अपने सामाजिक कार्यों में ही स्वयं को व्यस्त रखती हैं। हमारे लिए उनके पास समय नहीं है। ”
कृष्णन् भी धीरे से बोला, “ऐसी ही होती है भारतीय माँ, दोस्तों। राहुल ! मुझे तुम्हारी किस्मत से जलन होती है पर मै प्रसन्न भी हूँ कि चलो अपना राहुल वो सुख पा रहा है जो संभवतः हमें नहीं मिला। इतना प्यार-दुलार करने वाली माँ तो पूजा योग्य है। ”
राहुल जो आश्चर्य से सबकी बातें सुन रहा था बोला , ” क्या कह रहे हो तुम लोग? मेरी माँ ? पूजा योग्य? मै भाग्यशाली ?मतलब ……. मै कुछ समझ नहीं सका। ”
सुरेश ने समझाया, “इसमें ना समझने वाली कौन सी बात है भाई मेरे। एक तेरी माँ है जिसने स्वयं के अस्तित्व की बलि चढ़ाकर तुझे पाला- पोसा। तेरा जीवन संवारने के लिए अपना अस्तित्व तक मिटा दिया। धन्य है वो माँ जो स्वयं मैली रहकर अपने बच्चे को संवारती है, स्वयं कम खाकर अपने बच्चे का पेट पहले भरती है, रातों को जागकर अपने नौनिहालों को सुलाती हैं और स्वयं गीले में सोकर अपने शिशु को सूखे में सुलाती है। ऐसी ही हैं तेरी माँ राहुल, बिलकुल ऐसी ही। हम सब तो माँ के प्यार उनके दुलार को तरसते रहते है। यही तो सही पहचान है एक हिबदुस्तानी नारी की जो हर सम्बन्ध बड़ी ही निष्ठापूर्वक निभाती है। जो धरा की भांति सहनशील , नदिया की भांति निर्मल और पुष्पों की भांति सदा ममता की सुगंध बिखेरती है। वो अपने अस्तित्व तक को भुलाकर हमें बनाती है।
बॉबी ने समर्थन किया , “स्वयं जो कष्ट सहकर हमें कष्टों से बचाती है, ऐसी होती है माँ।राहुल ! सच में तेरी माँ में ये सारी अच्छाइयां हैं। और ऐसी माँ के चरण छूने को बारम्बार मन करता है। ऐसा गौरवशाली होता है अस्तित्व माँ का। ”
सभी की आँखे नम हो गई। आज सबने अपने ह्रदय की बात पह्की बार राहुल से कही। और राहुल ………… वो स्तब्ध रह गया। अब उसे सनझ आ गया था कि उससे कितना बड़ा अपराध हो गया है। इतनी प्यारी, इतनी सरल, इतनी भोली माँ का ह्रदय जो दुखाया था उसने। राहुल अपनी भूल समझ गया था। राहुल को समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे वो अपनी ममतामई और करुणामयी माँ से क्षमा मांगे ?
इसी चिंता में राहुल घर पहुंचा।राहुल उधेड़बुन में था कि, ‘ क्या करे और क्या ना करे? कैसे अपनी भूल की क्षमा मांगे माँ से? माँ का ह्रदय दुखाकर मैंने अच्छा नहीं किया। ‘
पर कहते है ना कि माँ तो माँ होती है। सागर जैसे विशाल ह्रदय की स्वामिनी होती है माँ। माँ का मन मोम सरीखा होता है जो तनिक से स्नेह से पिघल जाता है।
ज्यों ही राहुल ने सुमन की गोद में सर रखा और कहा, “मुझे क्षमा कर दो माँ, मुझे क्षमा कर दो। आपके अस्तित्व पर प्रश्न उठाकर, मैंने स्वयं के अस्तित्व पर भी एक प्रश्चिन्ह लगा दिया है माँ। आप बहुत अच्छी हो माँ। मैं आपके बिना नहीं रह सकता माँ। आज मुझे आभास हुआ कि आपने क्या-क्या त्याग नहीं किए हमारे लिए। मैंने इश्वर को तो नहीं देखा किन्तु ये पूर्ण विश्वास है कि यदि वो होगा तो बिलकुल आपके जैसा ही होगा माँ। मै आपसे बहुत प्यार करता हूँ माँ। मुझे क्षमा कर दो मेरी भोली माँ। किन्तु माँ कुछ समय अपने लिए भी निकला करो माँ। ऐसा करने से आप और प्रसन्न रहोगी। अपना जीवन भी जिओ और अपनी इच्छाएं भी पूरी करो माँ। ”
सुमन तो धन्य हो गई। अपने बच्चे राहुल को उसने अपने आँचल में छिपा लिया मानो वो एक अबोध बालक हो। राहुल और सुमन की आँखें प्यार और ममता से छलक पड़ी।
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