प्रेरणा आधार है जीवन का.. हर शख़्स, हर शय व् हर व्यक्ति किसी को भी प्रेरित करने की क्षमता रखता है। मेरी कहानी की पात्रा “प्रेरणा” भी अपने हुनर व् स्वभाव से हर रोज़ किसी न किसी को प्रेरित करती है। जीवन के कड़े से कड़े इम्तिहान देकर भी वह कमज़ोर नही पड़ी, बल्कि अपनी कमज़ोरी को अपनी ताक़त मे तब्दील करके जीवन को ख़ुशी से जीने का हुनर सीख गई।अपने बीते कल के अंधकार को उसने अपने आज पर हावी नही होने दिया। एक पढ़ी लिखी,होशियार,प्रतिभावान और दबंग लड़की जो जीतनी सख़्त अपने फ़ैसलों को लेकर रही है उतनी ही दयालु व् भावपूर्ण भी है।
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सुबह की चाय लेकर मै जब फ़ेसबुक खोल के बैठी तो अपनी सहेली की ताज़ा तस्वीरों को देख कर मै दंग रह गई। सर पर हेलम्ट… तन पे काले स्पोर्टी कपड़े व् सुरक्षा जैकेट पहने लड़कों के झुंड मे वह अकेली लड़की थी, जो साईकिल पे सवार होकर दिल्ली की सड़कों पर धुँधली सुबह मे.. जाड़े की ठंड मे रंग जमा रही थी। चकित आँखो से जब मेने उसकी सारी तस्वीरें टटोली तो उसका धैर्य देख कर मुझे बहुत गर्व हुआ और मै सोचने लगी कि, “क्या ये वही प्रेरणा है जो कुछ समय पहले कई परेशानियों से घिरी एक संघर्षपूरण जीवन जी रही थी..?”
ज़िंदगी ने इस लड़की को थोड़े ही समय मे कई कठोर पाठ पढ़ा दिये। मेरी मस्तमौला दोस्त को कभी यह अंदाज़ा नही था कि उसके हिस्से मे दुख किस रूप मे आएँगे। दूर विदेश मे घर बसा कर मै अपनी ज़िंदगी मे कुछ इस तरह मशगूल हो गई कि पीछे कहाँ.. क्या हो रहा था मुझे कुछ पता ही नही चला। मेरे पास अनमोल यादों के सिवा कुछ नही था दोहोराने को। ये तो भला हो फ़ेसबुक का जहाँ कई सालों के बिचछडे कई लोग आ मुझसे मिले और कितने ही पुराने दोस्तों से मेरा सम्पर्क फिर से बन गया। आज प्रेरणा को फ़ेसबुक पर देख तसल्ली होती है कि दूर से ही सही हम एक दूसरे के जीवन मे मौजूद तो है।
देखते ही देखते मेरी सोच मुझे सोलह साल पीछे खींच लाई जब मेरी इस दबंग लड़की से पहली मुलाक़ात हुई थी…!!
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सन् 1999..! जगह “ऑलियांज फ़्रेंच” साउथ एक्स..! दिल्ली…!
पूरी दिल्ली का सबसे बेहतरीन स्कूल जहाँ लोग फ़्रेंच भाषा सीखने जाते है।
पहले ही दिन मे मुझे कई नए चहरो ने आकर्षित कर दिया था। पढ़ने से ज़ादा हम सभी को आपसी तालमेल बनाने का चसका था। सभी के हाव भाव मुझे बहुत हाई-फ़ाई से दिखे तो मै सोच मे पड़ गई कि,”यहाँ मुझ जैसी आम लड़की को कौन जानना चाहेगा?”
इतने मै मेरा धयान एक लड़की पर गया। गोरा चिटटा चेहरा था उसका.. भूरे, लम्बे व् घने बाल और बड़ी बड़ी आँखो को मटका मटका के वह सबसे बातचीत कर रही थी। उसके ख़ूबसूरत होंटो से हर शब्द आकर्षित लग रहा था.. मानो मुँह से मोती झड़ के वह बातों की माला पिरो रही हो। अपने मज़ाक़िया मिज़ाज से वह हर किसी को अपना दिवाना बना रही थी। लड़के तो उसकी बिन्दास अदा के क़ायल हुए जा रहे थे।
इतने मे उसका धयान मुझ पर आया और वह बोली, ” हैलो मिस चुप चाप!” ” कया नाम है आपका?”
मुझे तो घबराहट सी होने लगी की मानो कोई इंटरव्यू लेने लगा हो। मेने हड़बड़ाते हुए कहा,” मेरा नाम पूजा है।”
“हैलो पूजा.. मेरा नाम प्रेरणा है! “बहुत अच्छा लगा तुमसे मिलकर, पर तुम इतनी चुप चुप क्यों हो?” उसने पूछा।”
उसका अचानक यू सबके बीच मुझसे सवाल करना मुझे संकोच मे डाल रहा था। बस आँखे चुराए मै बात को वही ख़त्म करना चाहती थी।
“ओ हैलो.. कहा खोई हुई हो? अपने बारे मै भी कुछ बताओ यार!!!”
मेने डरते हुए कहा, ” मेरा अंग्रेज़ी मे हाथ ज़रा तंग है बस इसलिये चुप हुँ। पर अच्छा लगा आप सबसे मिलकर।”
मेरी परेशानी जानकर कुछ तो हँस पड़े की जैसे कोई चुटकुला सुनाया हो मेने, पर प्रेरणा मेरे भीतर के डर को भाप गई और बोली।
“यार पूजा! ” यहाँ सब नए है और तुम परेशान नही होना, मै फ़्रेंच के साथ साथ तुम्हारी अंग्रेज़ी भी अच्छी कर दूँगी।”
उसकी कही वो बात मै कभी नही भूल सकती कयोकि उसने जो कहा वो कर के दिखाया। उस दिन के बाद से वो मेरी गुरू बन गई। हमारी टोली की लीडर थी वो। यूँ तो फ़्रेंच का क..ख..ग.. भी मुझसे वही छूट गया जहाँ मै फ़्रेंच क्लास लेने गई थी, पर जो नसीब मे आया वो मेरे लिये बेशक़ीमती था। प्रेरणा और मेरा साथ अटूट हो गया और वो मेरी “बी .एफ .एफ” यानी बेस्ट फ़्रेंड फोरएवर बन गई।
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(सन् 2000) जगह इंदिरा गांधी हवाई अड्डा..! दिल्ली..!
प्रेरणा का साथ मेरे लिये जीवन मे कई नयी राहें लेकर आया। प्रेरणा के पिता इंडियन एयरलाइंस मे एक बहुत अच्छे पद पर थे। उन्होंने प्रेरणा व् मुझे इंडियन एयरलाइंस के नए काल सेंटर मे काम भी दिलवाया। वही से मेने प्रेरणा की मदद से कम्प्यूटर चलाना भी सीखा। काल सेंटर का माहौल बहुत ही दिलचस्प और जोशिला था। कितने नए लोगों से हमारा सम्पर्क हुआ। पहले ही दिन से प्रेरणा का आत्मविश्वास बोल रहा था। मेरे जैसे कई अनाड़ियों को उसने अच्छी ख़ासी ट्रेनिंग दी और काम मे चुस्त बना दिया। जो काम हमें तीन चार बार समझाने पर समझ आता, वही काम प्रेरणा के लिये बाय हाथ का खेल जैसा था।
एक दिन हमारे काल सेंटर मे एक नए शख़्स की एंट्री हुई। गोरा- चिटटा नौजवान जिसकी आँखे शरारत से भरी थी। अपनी मनमोहक छवि से वह हर लड़की को अपना दिवाना बना रहा था। प्रेरणा और मेरे बीच गुपचुप बातें शुरू हो गई।
अो यार! “देख तो सही कितना गुड लुकिंग है वो.. फ़िट बॉडी है, गोरा रंग है और चेहरा किसी हीरो से कम नही.. किसकी क़िस्मत खुलने वाली है आज?” प्रेरणा बोली
“यार प्रेरणा! चल आज तेरी ही क़िस्मत चमका देते है।” यह बोल कर मै प्रेरणा की बाज़ू वाली सीट छोड़ कर उससे पिछली सीट पर शिफ़्ट हो गई ताकि वो गबरू जवान प्रेरणा के साथ बैठ सके। वह नोजवान प्रेरणा की बग़ल वाली ख़ाली सीट की और बड़ता है व् कहता है, हैलो! “मेरा नाम राहुल है… मै यहाँ नया हुँ और आज मेरा पहला दिन है.. कया ये सीट ख़ाली है?कया मै यहाँ बैठ सकता हुँ?”
अंधा कया चाहे..? दो आँखे।
“कुआ खुद चलकर प्यासे के पास आ पहुँचे तो कोई क्यों इंकार करे?” प्रेरणा मन ही मन ख़ुश होकर आँखो से मुझे थैंक्यू कहने लगी और मुझे भी उसको ख़ुश देखकर बहुत राहत महसूस हुई कि चलो सहेली के कुछ तो काम आई मै। प्रेरणा के साथ बैठकर वह काफ़ी कुछ सीख गया और बहुत जल्द वह दोनो गहरे दोस्त बन गए। ये शुरूआत थी उनके प्यार के रिश्ते की।
प्रेरणा अकसर मेरे सामने अपना दिल खोलती और कहती, ” यार पूजा”! ” राहुल के लिये मेरे दिल मे एक खास जगह बनती जा रही है। लगता है मुझे उससे प्यार हो गया है। पर अपने प्यार का इज़हार करने से मै डरती हुँ कि कही राहुल को बुरा न लग जाए।एसे मे मै उसकी दोस्ती को नही खोना चाहती।”
प्रेरणा के लिये प्यार राहुल की आखो मे साफ़ दिखता था हम सबको, बस उसके मुँह से सुनना बाक़ी था। वह दिन भी आया जब प्रेरणा के दिल की बात राहुल ने भाँप ली और प्रेरणा के आगे अपने प्यार का इज़हार किया। प्रेरणा के लिये ज़िंदगी का सबसे ख़ुशी का दिन था वो जब राहुल ने उसका हाथ थामकर अपना प्यार ज़ाहिर किया था। ख़ुशी से उसके गोरे गालों पे गहरी लाली छा गई थी और वो बार बार मेरे आगे उस बात को दोहोरोती रही जो राहुल ने उससे कही। उन दोनो का प्यार देख मेने भी यही दुआ मंगी कि ये साथ हमेशा के लिये बना रहे और प्रेरणा राहुल के साथ हमेशा ख़ुश रहे।
किसी ने ठीक ही कहा है कि, ” ईशवर सभी की इच्छाएँ पूरी करता है, किंतु उन इच्छाओं के साथ इन्सान को कई परिक्षाओ का सामना करना पड़ता है।”
“समय, वस्तु, मनुष्य, परिसतिथी और संयोग का हमारे जीवन मे बहुत महत्व होता है। किसी भी व्यक्तियी या वस्तु का हमको मिलना या दूर होना ही हमारे भीतर बदलाव को जन्म देता है।
इन्सान ईशवर से जो माँगे, उसे वह हर हाल मे पाना चाहता है। किंतु कया उचित है कया नहीं..? यह जान पाना उस वक़्त उस इन्सान के लिये संभव नही हो पाता है। हमारी चाहतों का जुनून जब सर चढ़ कर बोलता है तब हमारे दिलो दिमाग़ पर बस उसी का रंग जम जाता है। आगे के अंजाम से बेख़ौफ़ हम बस अपनी ज़िद पर अड़ जाते है और उसे पाने के लिये ईशवर से भी लड़ते है।”
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(सन् 2002) प्रेरणा और राहुल का मिलन…!
प्रेरणा और राहुल की दोस्ती प्यार से बड़के शादी तक पहुँची और घर वालों की सहमती से दोनो जीवन साथी बन गए। दोनो नए जोड़े के रूप मे किसी फ़िल्मी हसती से कम नही लगते थे। मुझे आज भी प्रेरणा के वो शब्द याद है जो उसने मुझे कहे थे।
“पूजा! ” पंडित जी का कहना है मेरी और राहुल की जोड़ी बेमिसाल है। कयोकि हमारे छत्तीस के छत्तीस गुण मिलते है, इसलिये हम दोनो का बंधन अटूट है।”
मेरी सहेली कितनी ख़ुश थी और कितनी भोली भी.. ज़िंदगी से उसे बहुत कुछ सीखना था और उसके त्याग के बिना ये संभव भी नही था। उनकी शादी के शुरू के कुछ साल बहुत अच्छे बीते, पर अपने जीवन मे पनपती अस्थिरता को मेरी सहेली भली भाँति महसूस कर पा रही थी।
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(सन् 2003) मेरी शादी..! प्रेरणा से दूरी और मेरा इंग्लैंड बस जाना…!
प्रेरणा की शादी के ठीक एक साल बाद मेरा भी ब्याह हो गया और मै दूर इंग्लैंड आ कर बस गई। हम दोनो बहुत उदास थे एक दूसरे के बिना कयोकि साथ मे गुज़ारे हर पल याद आते थे हमको। हर रोज़ छोटी से छोटी बात पे हम बार बार एक दूसरे को फोन किया करते थे पहले,एक साथ घूमते थे, शोपिंग करते थे, हर काम एक दूसरे की सलह से करते थे, अपनी हर तकलीफ़ हम दूसरे को ही बताते थे और हमने कभी यह सपने मे भी नही सोचा था कि हमारे बीच इतना फ़ासला आ जाएगा कि एक दूसरे की एक झलक पाने के लिये भी हमको सालों इंतज़ार करना पड़ेगा।
अपने मन को पक्का कर व् अपनी ज़िम्मेदारियों को समझते हुए हम अपनी अपनी शादीशुदा ज़िंदगी मे व्यस्त हो गए।
सन् 2003 मे ही प्रेरणा और राहुल के प्यारे से बेटे ने जन्म लिया, जिसका नाम उन्होंने किशन रखा। किशन बहुत ही प्यारा, गुबबलु सा और श्री कृष्णा की छवि लिये जन्मा था। मेरी प्रेरणा के सबसे अनमोल और सबसे प्यारे किशन को देखने को मेरी आँखे तरसती थी, पर मेरे इंडिया आकर उन सबसे मिलना मुमकिन नही था। मै गर्भवती थी और नयी जगह आकर मै नए माहौल को समझने व्यस्त थी। शुरू शुरू मे मेरा और प्रेरणा का संपर्क ई-मेल और फोन के ज़रिये नियमित रूप से हो जाया करता था, परंतु धीरे धीरे हमारा सारा समय गरहसती के कामों मे लगने लगा और हमारी बातें कम होने लगी।
सन् 2004 मे मेरी बिटिया ने जन्म लिया। अब तो मेरा एक एक पल मेरी नन्ही परी के संग जुड़ गया। जिस तरह मै शादी के पहले साल माँ बाप से दूर यहा बैठ उदास होती थी, अब वैसी बात नही थी। मेरे दिल को एहेसास हो गया था की ये ही मेरा घर है और यही मेरी दुनिया है। मेरी नन्ही गुड़िया के पालन पोषण मे मै इतनी अन्तर्भावन थी कि बाहरी दुनिया से मेरा संपर्क अब फीका पड़ रहा था।
कुछ समय बीता और मै इंडिया सह परिवार आई। अब दिल्ली मे रहना वो पहले जैसी बात न थी।
“बेफ़िक्री से दोस्तों के संग घूमना, जब चाहे कही भी चल पड़ना, आलस के मारे बिस्तर पर पसरे रहना, घंटों फोन पे गप्पें हाँकना और अपने मन की करना।”
अब तो हर बात पर ज़िम्मेवारी पहले और हर दूसरी चीज़ पीछे ही रहती।
प्रेरणा ने मेरा बदला रूप देखा तो उसे दुख हुआ कि अब सब कुछ पहले जैसा नही है। अब पूजा वो पहले वाली मेरी पक्की सहेली पूजा नही रही। मेने उसे समझाते हुए कहा, “देख यार”! ” मेरे लिये सब रिश्तो को संपूर्ण रूप से निभाना अभी संभव नही है। मै कितने ही रिश्तो व् कार्यों मे उलझी हुई हुँ… मै कया बताऊँ?”
” मुझे थोड़ा समय दे यार ताकी मै जीवन को अच्छे से समझ पाऊँ और अपने नए परिवार मे अपनी अहमियत को बना पाऊँ।”
मेरी कही बात को प्रेरणा समझ तो पा रही थी पर हम दोनो की दूरी वह बर्दाश्त नही कर पा रही थी।
छुट्टियाँ ख़त्म होते ही मै इंग्लैंड वापस आ गई और अपना नियमित जीवन जीने लगी। बीच बीच मे मै प्रेरणा से संपर्क करती थी पर उसके जीवन मे आए बदलाव से मै बेख़बर थी।
“हर रिश्ता विश्वास और समय से बँधा होता है। ईशवर ने हमारे अपनो के संग एक अजीब सी डोर बाँधी है, जो कभी दिखती नही। चाहे साल-दो साल हम अपनो को न देखे पर जैसे ही ऊपर वाले का संकेत मिलता है तो वो अनदेखी डोर ज़ोर पकड़ती है, और हमें हमारे किसी अपने की तरफ़ खींचती है।”
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(सन् 2007) प्रेरणा और राहुल के रिश्ते मे दरार….!
मेरी बड़ी बेटी को दीदी बनाने के लिये मेरी छोटी बेटी ने जन्म लिया। अब मेरे काम पहले से दुगने हो गए थे। रात को जब थककर चूर होकर सोने जाती तो बिस्तर पर लेटे हुए उन सब को याद करती जो मेरे जीवन से जुड़े है पर मुझसे दूर है।
एक लम्बे इंतज़ार के बाद मुझे यह एहसास हुआ कि मै अपने पुराने रिश्तो को पीछे छोड़ बस आगे का रास्ता अपनाए चली जा री हुँ और चाह कर भी मेरा उन सबसे सम्पर्क संभव नही हो पा रहा था कयोकि अब सब अपनी ज़िंदगी मै व्यस्त है। ओरों की तरह मेरा भी मुँह धयान भी अपने काम काज व् बच्चो की देख रेख मे था।
किंतु इस बार मेने भी खुद का मन पक्का कर रोज़ के कामों को कुछ पल परे रख फ़ेसबुक एकाऊंट बनाया और अपने पुराने दोस्तों को वहाँ खोजना शुरू किया। देखते ही देखते एक के बाद एक कितने ही दोस्त व् क़रीबी रिश्तेदार मेरी फ़्रेड लिस्ट मे जुड़ गए। वहाँ मुझे प्रेरणा और राहुल का एकाऊंट भी मिला। दोनो की तस्वीरें देख कर मै तो निहाल होए जा रही थी। उनका बेटा किशन भी कितना बड़ा हो गया था। प्रेरणा का फ़ेसबुक देखने के बाद मुझे उसकी बहुत याद आई और मेने उसे फोन लगाया।
“हैलो… हैलो.. प्रेरणा!”
“कौन बोल रहा है?… ओह पूजा तू?”
“यार तेरा नम्बर चेंज है… मै पहचान नही पाई। कैसी है तू और कहा रहती है? इंग्लैंड जा कर मुझको भूल ही गई तू.. आज कैसे याद आई मेरी? मेने तो तेरे कहने पर तुझे परेशान करना बंद कर दिया कयोकि तूँ अपनी लाईफ़ मे बीज़ी जो है। पर कया तुझे मेरी थोड़ी भी याद नही आती?”
प्रेरणा की अनेकों शिकायतें थी.. पर मरे जवाब वही थे। मुझे उसकी नाराज़ देख बहुत शर्मिंदिकी हो रही थी। फिर मेने कहा, ” माफ़ करना यार जो तेरा दिल दुखाया। बहुत याद आ रही थी तेरी। देख मेने तेरे लिये फ़ेसबुक एकाऊंट बनाया है। अब हम दोनो हमेशा टच मे रहेंगे।”
प्रेरणा बोली! ” हाँ मेने तेरी फ़्रेंड रिकयुएसट एकसेपट कर ली है। बहुत अच्छा लगा तेरी तस्वीरें देख कर, पर तूने बताया क्यों नही तेरी दूसरी बेटी के बारे मे? तुने तो खुद को मुझसे बहुत दूर कर लिया यार… तेरी बहुत ज़रूरत है मुझे। अब फ़ेसबुक पे एक्टिव रहना।”
प्रेरणा से बात कर मेने उसकी नाराज़गी को हल्का किया और यह विश्वास दिलाया की मै आज भी उसके साथ हुँ। परंतु उसकीआवाज़ मे मौजूद दर्द का एक एहेसास मुझे चिंता मे डाल रहा था। मेने घुमा फिरा कर उसको टटोलना चाहा पर उसने मुँह न खोला। हार कर मेने पूछ हि लिया….
प्रेरणा! “कया बात है…? तू पहले की तरह रोचक बातें नही कर रही, और तेरी आवाज़ मे मुझे कुछ अधूरापन महसूस होता है।घर पर सब ठीक तो है…? एसी कया बात है जिसने तुझे इतना बदल दिया..? मुझे तेरी चिंता हो रही है यार… कुछ बोल।”
मेरे बार बार पूछने पर प्रेरणा बात को टालने की कोशिश किए जा रही थी, पर जब मेने उसे अपनी क़सम दी तो उसकी आवाज़ भारी हो गई। वह खुद को रोक न सकी और रोते हुँ स्वर मे उसने कहाँ, “मेरे साथ धोखा हुआ है… मेरा दिल टूट गया पूजा!”
इतना काफ़ी था सुन कर समझ जाना की हो न हो प्रेरणा किसी संकट मे है और बहुत परेशान है। जितना मै प्रेरणा को जानती थी, वर किसी भी तकलीफ़ से इतनी जल्दी हार मानने वालों मे से नही थी। फिर एसा कया हो गया जो वह को कमज़ोरों की तरह बेबसी के स्वर बोल रही थी..?
“पूजा, मै तुझे अभी और कुछ नही बता सकती, मै तुझे ईमेल भेजूँगी, तूँ पढ़ लेना और मुझे बताना मै कया करूँ।”
इतना बोल कर प्रेरणा ने फोन रख दिया, पर मेरे कानों से उसके बोल जा ही नही रहे थे, मानो एक अजीब सा डर उसने मेरे अंदर डाल दिया हो।
मै बेचैन होकर उसके ईमेल की प्रतीक्षा करती रही, और पूरे एक हफ़्ते बाद उसका “संदेश” ईमेल के ज़रिये मुझ तक आया।
अपने दुख की दास्ताँ को उसने कितने ही दर्द भरे शब्दों मे लिखा था। मै मन ही मन सोचती रही कि जब पड़ते पड़ते मेरे आँसू खुद ब खुद बाहर आ रहे थे तो उसकी आप बीती का उसपर जाने कया असर होता होगा? उसके तो आँसू ही नही थमते होंगे।
जिसे मेरी सहेली ने दिल से पयार किया और सबसे ज़्यादा विश्वास किया.. उसी से धोखा खाकर वह पूरी तरह से हताश हो चुकी थी। मेने तुरंत प्रेरणा को फोन किया और उससे बात कर उसका मन हल्का करने की कोशिश की। किंतु मेरे बस मे कुछ न था। मै उसको सुनती रही और कहती रही कि, “प्रेरणा तू भगवान पर विश्वास रख सब ठीक हो जाएगा ।
उससे बात करने के पश्चात मै अपने कामों मे हाथ चलाने लगी पर मेरा मन मस्तिष्क पूरी तरह से प्रेरणा तक पहुँच चुका था। उसकी पूरी कहानी मेरे ज़हन मे घूम रही थी। बहुत सहा उस मासूम लड़की ने जिसे मदद और पयार के सिवा कुछ और ज्ञात नही था। उसकी दर्द भरी दाँसता मेरी सोच पर हावी हुई जा रही थी।
उसने मुझे बताया कि कैसे राहुल ने एक दूसरी लड़की के साथ गुप्त सम्बंध जोड़ लिये थे व् पकड़े जाने पर भी वह बाज़ न आया। हर बार झूठ बोल बोल कर वह उस लड़की से मिलता रहता और अब वह प्रेरणा को वो पयार व् सम्मान भी नही देता जिसकी वह हक़दार है।
सब कुछ बर्दाश्त कर रही थी प्रेरणा.. पर फिर भी अपनी शादीशुदा ज़िंदगी को पहले जैसा करने मै जुटी थी। अपने बैटे को उसके पापा से अलग नही करना चाहती थी। परंतु “कुत्ते की दुम भला सीधे हुई है कभी?” चोर चोरी नही तो हेरा फेरी से ही पहचाना जाता है।
राहुल की झूठी बातों ने और औछी हरकतों ने तो जैसे सारी हदें तोड़ दूँ थी।
जब राहुल रंगे हाथो उस लड़की के साथ पकड़ा गया तो प्रेरणा ने अपने रिश्ते को जोड़ने की सीरी उम्मीदें खो दी। अपने पिता को उसके दमाद का असली चेहरा दिखा कर प्रेरणा ने बहुत बहादुरी का काम किया। वह जानती थी कि अब कुछ भी पहले जैसा न होगा। अपने जीवन साथी को किसी ओर की बाँहों मे देख उसकी आँखे पत्थर हो रही थी.. जिनमें न कोई भाव ठहर रहे थे न आँसू पनप रहे थे। पकड़े जाने पर राहुल बहुत भड़क गया और उसका असली रूप सामने आया। प्रेरणा के पिता व् भाई के साथ राहुल की बहुत बहस बाज़ी हुई और राहुल ने क्रोध मे आकर प्रेरण के पिता पर पास पड़ा फूल दान दे मारा। अब पानी सर के ऊपर से जा चुका था। वह सभी जन राहुल को उस लड़की के साथ छोड वहाँ से रवाना हुए और प्रेरणा को उसके पिता ने अपने घर रहने को मना लिया। उन्होंने राहुल के ख़िलाफ़ पुलिस मे शिकायत दर्ज की व् प्रेरणा को पूरी तरह से सहारा दिया।
प्रेरणा अपने बेटे के साथ अब अपने माता पिता के घर रह रही थी। उसे समझ नही आ रहा था कि उससे कहा ग़लती हुई और कहा कोई कमी रह गयी जो राहुल ने उसके साथ धोखा किया।
प्रेरण बहुत हताश थी, उसके पिता ने उसे समझाते हुए कहा, बेटा ! ” तू मेरे घर की रोनक है.. तू तो लाखों मे नही करोड़ों मे एक है। उस पापी को तेरी क़दर नही थी इसलिए उसने पाप का दामन न छोड़ा। ” तू तो मेरी बहादुर, निडर बिटिया है.. एक पढ़ी लिखी और बहुत क़ाबिल लड़की जो हर काम पूरी लगन से करती है। चल अब वकत आ गया है परीक्षा का.. अब तु फिर से काम करना शूरु कर दे, जहा से तूने कुछ साल पहले छोड़ा था।”
“मै तुझे उस दरिंदे के पास दोबारा नही भेजूँगा। इस घर पर तुम्हारा उतना ही हक़ है जितना तुमहारे भाई का। अब तुम यही रहो और अपने भविष्य को नया आकार देते हुए आगे बड़ों।
प्रेरणा ने अपने माता पिता की बात मानते हुए नौकरी पर फिर जाना शुरू किया व् साथ ही राहुल को तलाक़ का नोटिस भी भेजा दिया।
मै दूर रह कर सिर्फ़ दुआ ही कर पा रही थी कि मेरी सहेली का घर न टूटे। राहुल को अपनी पत्नी और बच्चे की क़दर हो और वह गलत रिश्ते को त्याग कर वह घर पर धयान दे। परंतु यह तो तभी संभव होता जब राहुल अपने पाप का समझ कर पश्चात्ताप करता। कोई मर्द अपनी मर्दांगी पर इतना घमंड करता है, यह मेने पहली बार देखा।
कुछ समय पश्चात मेरी प्रेरणा से फिर बात हुई ओर उसने बताया कि तलाक़ के समय भी कोर्ट मे राहुल ने उसके आगे एक सोदा रख दिया। उसने कहा, “मै तुम्हें तुम्हारे पिता की दी प्रोपर्टी और पैसा वापस दूँगा, और साथ ही अपने तरफ़ से पूरा हर्ज़ाना दूँगा। पर मेरी शरत ये है कि मेरा बेटा मेरे साथ रहेगा।”
अपनी बात को आगे बड़ाते हुए राहुल ने कहा.., ” मै अपने बेटे की परवरिश खुद करूँगा और तुम बदले मै सब कुछ ले लो। किंतु अपने बेटे पर फिर तुम्हारा कोई हक़ नही रहेगा।”
यह सुनते ही प्रेरणा के पैरों तले ज़मीन खिसक गई!! अपने भीतर क्रोध की ज्वाला को बड़ने से वह नही रोक पाई। अब तो उसकी पत्थर आँखो मे ख़ून उतर अाया। माँ सब बर्दाश्त कर सकती है पर अपने बच्चे का सोदा कदापि नही कर सकती। वह बोली, “एक माँ को अपने कलेजे के तुकडे करने को बेल रहे हो..??जा नामर्द!! तू कया परवरिश देगा मेरे बेटे को..? तुझ पर सौ लानतें। मै अपने बेटे पर सब कुछ वारती हुँ और मुँह पर मारती हुँ तेरे सारी प्रोपर्टी मै।”
प्रेरणा का बेटा उसके जीने की वजह है। वह सब कुछ हार चुकी थी, बस अपने बेटे का साथ नही गँवाना चाहती थी। अपने पयार को किसी ओर का होते देख वह बर्दाश्त कर चुकी थी, किंतु बेटे को वह किसी भी सूरत मे अपने अलग होने देना नही चाहती थी। यूँ तो प्रेरणा का बेटा किशन महज़ छह साल का था, परंतु अपना माँ की तकलीफ और पिता की छल उसे साफ़ दिखता था। उसने भी अपना फ़ैसला माँ के हक मे सुनाया।
मुझे तसल्ली थी कि प्रेरणा अकेली नही है और न ही अब वो कमज़ोर है। मै बस ईशवर से प्रेरणा के लिये इंसाफ़ की दुआ करती रही।
कोर्ट कचेहरी के चक्कर लगा लगा कर कुछ वर्ष बीते और 2010 मे आख़िरकार वह दिन भी आया जब प्रेरणा को राहुल से पूरी तरह छुटकारा मिल गया।
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(2010 से अब तक का सफ़र)
शुरूआत मे तो प्रेरणा बहुत परेशान थी व् अपने और अपने बेटे के भविष्य को लेकर चिंतित थी। परंतु धीरे धीरे उसको हर पड़ाव मे चुनौतियों ने उसे खूब तराशा व् उसके जीवन मे कई नई उपलब्धियों का जनम हुआ। उसने कार्य के क्षेत्र मे बहुत सफलता हासिल की ओर अपनी खुद की एक पहचान बनाई। जब मै उससे मिली तो वह बहुत ख़ुश और पहले से बहतर लग रही थी। उसने मुझे जताया कि अब वह किसी राहुल की मोहताज नही है। ” मेरा जीवन मेरा खुद का है और मै अपने हीरे जैसे जीवन को व्यर्थ नही गँवाऊँगी, बल्कि इसे खूब तराशूँगी।”
प्रेरणा ने मुझे यह आश्वासन दिया की वह अब बहुत ख़ुश है और बस आगे बडना चाहती है। मुझे तसल्ली हुई मेरी सहेली की बातें सुन कर और विश्वास भी हुआ उस कहावत पर ” भगवान के घर देर है, पर अंधेर नही !!” कहावत बनाने वाले ने भी अपने जीवन मे ईशवर के होने का प्रमाण पाया होगा।
मै तो वापस अपने घर आ गई और आज तक अपनी दिनचर्या मे पहले जैसे व्यस्त हुँ। प्रेरणा की उपलब्धियों के बारे मे फैसबुक पर अकसर पड़ती हुँ व उसकी तस्वीरों को देख उसको हर बार निखरा पाती हुँ। उसने सही कहा था कि वह अपने हीरे जैसे जीवन को तराशेगी।वह एक सुंदर, शिक्षत, सफल व् स्वावलंबी लड़की है जिसने मुश्किलों से हार नही मानी, बल्कि मुश्किलों को रण मे हरा वह हर जगह विजय हुई है।
प्रेरणा अपने दफ़्तर मे एक ऊँची कोटी की ज़िम्मेदार लड़की है जो हर वर्ष दफ़्तर की ओर से विश्व के अन्य देशों मे अपने काम की पहचान बड़ाने जाती है। वह न सिर्फ़ बाहर बल्कि घर पर भी अपने माता पिता और बेटे को हर प्रकार से ख़ुश रखती है।
आज प्रेरणा हर क्षेत्र मे सफल है। लाखों लोग उसे जानते है। भले लोगों की संगत मे वह आज एक जानीमानी महिला है जो मेहनती होने के साथ साथ एक अच्छी साईकल चालक है। प्रेरणा और उसके सभी साथी साईकिल पर सवार होकर न सिर्फ़ दिल्ली मे, बल्कि बाहर के और क्षेत्रों मे भी अपना कीर्तिमान साबित कर चुके है। इन सभी का उद्देश्य जनता मे अच्छे स्वास्थ्य और आनंद पाने के उचित तरीके को प्रोत्साहन करना है। जिसमें यह सभी काफी सफल रहै है। हर हफ़्ते अखबारो व् सोशल मीडिया मे इन फ़ैमस साईकल चालकों की उपलब्धियों का ज़िक्र होती है। फ़िट रहने के साथ साथ यह सब एक दूसरे का साथ पाकर बहुत ख़ुश है।
मै प्रेरणा के लिये बहुत ख़ुश हुँ इसलिये अपने अंदर की भावनाओं को एक कहानी का रूप देते हुए आप सभी के सम्मुख रख रही हुँ। मै चाहती हुँ कि प्रेरणा की तरह हर लड़की स्वाभिमानी और आत्मविश्वासी बने, ताकी कोई और दूसरा राहुल बनने की हिम्मत न करे।
“प्रेरणा और उसके जेसी हर लड़की को सलाम !!”
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