मै ट्रेन की खिड़की से बाहर देख रहा था। कई दिनों के बाद मै अपने ऑफिस से छुट्टी लेकर दिल्ली जा रहा था। मैं ,यूँ ही बाहर देख रहा था कि तभी कोई जाना पहचाना मुखड़ा लोगों को भीड़ के बीच में दिखाई पड़ा। मै चौंक पड़ा। मन ही मन सोचने लगा,’ कहीं ये वही तो नहीं ?’ फिर अगले पल ही सर झटक कर मैंने स्वयं को समझाया कि वो यहाँ कैसे आएगी।
मैंने पेपर निकाला और उसे पढ़ने का भरसक प्रयास करने लगा। जब धीरे से पेपर के पीछे एक बार पुनः झाँका तो वो वहां नहीं थी। मैंने एक ठंडी आह ली और सोचा कि ये, वो नहीं है। कहीं वही होती तो? सोच कर भी मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। क्या दिन थे वो भी।
मैंने स्वयं को समझाया कि वो यहाँ कैसे आएगी, ये अवश्य ही मेरा भ्रम होगा। कुछ ही देर में जैसे ही मेरी दृष्टि मेरे ठीक सामने वाली सीट पर पड़ी तो मैं स्तब्ध रह गया। ये क्या, ये मेरे सामने ही रहेगी। हे भगवान अब तो मेरी यात्रा बड़ी ही मुश्किल होने वाली है।
अनजाने ही मैं पसीने से भीग गया। मैंने स्वयं को थोड़ा सँभालते हुए पूछा , ” त…..त …तु…….. तुम …. त … तुम अनारकली मतलब क …क……कनक ही हो ना ?”
उसने थोड़ा शर्माते हुए उत्तर दिया, ” आखिर तुम मुझे पहचान ही गए। है न मेरे सलीम !!! ”
मैंने तत्परता से अपना सर सहमति में हिलाया और इधर उधर देखने लगा। उसका हाल चाल पूछकर मै सोने का उपक्रम करने लगा। उस समय रात्रि के बारह बज रहे थे।
लेटे-लेटे ही मै चार-पांच वर्ष पूर्व की कॉलेज की स्मृतियों में खो गया।
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दिल्ली के एक कॉलेज से मै अपनी स्नातक की पढाई करने आया था।
कॉलेज के वार्षिक उत्सव के लिए मेरा चुनाव सलीम के पात्र के लिए हुआ था। मै अति प्रसन्न था। कला के क्षेत्र में मेरा कुछ अधिक ही रुझान था।
अब देखना ये था कि, अनारकली के लिए किसका चयन होता है? मुझे उसमे कोई रूचि नहीं थी। क्योंकि मुझे पता था कि यदि जीवन में एक अच्छी नौकरी करनी है तो लड़कियों से दूर रहना चाहिए अन्यथा प्यार व्यार के चक्कर में लोग अपना जीवन व्यर्थ कर देते हैं।
और कुछ दिनों में अनारकली का चयन भी हो गया। वो थी कनक। कनक , किसका अर्थ है सोना या स्वर्ण, तो वो थी भी सोने जैसी ही। उसका दमकता हुआ पीला रंग , भूरी किन्तु कजरारी आँखें और काले बादलों की भांति घने बाल। कुल मिलाकर वो किसी भी प्रकार से किसी अप्सरा से कम प्रतीत नहीं होती थी।
जब वो पहले दिन अभ्यास के लिए आई तो सारे लड़के, लड़कियां उसे अपलक निहारते ही रह गए। मै भी अपना मुंह खोले एकटक उसे ही देखता रह गया।उसका मनमोहक सौंदर्य मुझे भीतर तक सिहरा गया। ऐसा लगा कि कामदेव ने मुझे ही निशाना बनाकर अपना तीर चलाया था। मै उसकी सम्मोहिनी सी मुस्कान में खोकर रह गया।
मेरे रोंगटे खड़े हो गए, बेला-चमेली की सुगंध बिखेरती वो मेरे पास ही आ रही थी। मैंने स्वयं को अपनी लड़कियों से दूर रहने की प्रतिज्ञा याद दिलाई और थोड़ा सामान्य अनुभव किया।
और फिर हमारा अभ्यास प्रारम्भ हो गया। मै तो स्वयं को समझा चुका था कि मुझे केवल अपने अभिनय पर ध्यान देना है और कुछ नहीं सोचना है।
एक दिन कनक, दिए गए संवादों के अतिरिक्त, अपने ही संवाद बोलने लग गई। वो कुछ अधिक ही भावुक हो गई। वो मेरा हाथ पकड़ कर रोने लगी बोली, ” सलीम !! मुझे कभी अकेला मत छोड़ना सलीम, मै तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊँगी। ”
मै कुछ-कुछ समझ रहा था कि ये केवल अभिनय नहीं अपितु कुछ और ही था।मुझे आभास होने लगा कि हो ना हो ये हमारा पिछले जन्म का नाता है।मैं भी उसकी सागर जैसी गहरी आँखों में डूब गया।मन बार बार यही कह रहा था कि यही मेरी जन्म जन्मान्तर की साथी है।
तभी तालियों की गडग़ड़ाहट ने हमें सचेत किया।
अब तो पूरे कॉलेज मे हमारा चर्चा सलीम और अनारकली के रूप में होने लगा। मेरे साथी मुझे उसके नाम से चिढ़ाने लगे। ज्यों ही मुझे देखते ये दोहा गाने लगते —–
“कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय।
या खाए बौरात है, वा पाए बौराय।”
वार्षिक उत्सव बड़े ही अच्छे से संपन्न हुआ।
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आज भी मुझे होली का वो दिन स्मरण है। हम सभी मित्र किसी एक मित्र के घर के बाहर के पार्क में एकत्रित होकर होली का पावन पर्व मना रहे थे। आज किसी को किसी से कोई बैर ना था। सभी बड़े प्यार से होली खेल रहे थे और एक दूसरे से गले मिल रहे थे। मै भी इस पर्व का आनंद उठा रहा था।
तभी न जाने कहाँ से आंधी तूफान की तरह, रंगों से सराबोर एक लड़की, बुरी तरह से भीगी हुई मुझसे आकर लिपट गई। वो न जाने भय से या ठण्ड से कांप रही थी। मै भी सन्न रह गया।
तभी वो धीमे से बोली, “मुझे होली का रंग,प्यार के संग लगा दो सलीम।”
उसके उस स्वर को मैं भली भांति पहचानता था। ये तो कनक अर्थात अनारकली थी। मैं एक बुत की तरह जम गया। मन प्रसन्नता से झूमने लगा।
मैंने भी लाल रंग का गुलाल लिया और प्यार से उसकी मांग में लगा दिया।वो मेरी इस मौन स्वीकृति से निहाल हो गई।
वो फिर से बोली, ” सलीम, मुझे अपने से अलग मत करना, कुछ लोग मेरा पीछा कर रहे हैं। वे मुझे मार डालेंगे। मुझे बचा लो सलीम। ”
किन्तु मैंने स्वयं को कठोर कर उसे अपने से अलग किया और कहा, “कोई नहीं है यहाँ। ये केवल तुम्हारा भ्रम है कनक। ”
पर ये उसका भ्रम नहीं था। मैंने देखा कि उसके पीछे-पीछे कुछ गुंडे लोग आए थे। मैंने आव देखा ना ताव एक बार फिर उसे अपनी बाहों में भर लिया।
वो डर के कारण रोए जा रही थी।हम दोनों किसी और ही लोक में चले गए। मेरे ह्रदय ने मुझे उसके प्रति असीम प्रेम का आभास कराया।
कनक को वहां ना पाकर वे लोग वहां से चले गए।
तभी एक टोली के साथ कोई सज्जन आए और कनक को पुकारने लगे। कनक भी तुरंत मुझसे छिटक कर खड़ी हो गई।
सज्जन बोले।, “बेटी तुझे मना किया था कि आज के दिन घर से मत निकल पर तूने मेरी एक ना सुनी। देखा , अभी अभी एक हादसा टल गया।ये हिन्दुओं का पर्व है, हमारा नहीं। आपसी द्वेष भूलाकर गले मिलने का इनका केवल ये दिखावा मात्र है। इन होली के रंगो में ये प्यार और सद्भावना के रंग कभी नहीं मिलाते। तू चल ,मत मना ये झूठा पर्व, मत मना मेरी बच्ची। ”
कनक ने बताया, “अब्बूज़ान!! ये सलीम हैं।आज इन्होने ही मेरी जान बचाई है। ”
उस सज्जन ने मेरी ओर एक भरपूर दृष्टि डाली। और कनक को लेकर वहां से चले गए।
एक ही पल में कनक के प्रति मेरी सारी भावनाएँ कपूर की तरह हवा हो गईं। मै ठहरा एक उच्च कोटि का ब्राह्मण और वो एक मुसलमान ? मन ही मन स्वयं को तमाम गालियां दे डालीं, मैंने। तुरंत ही जाकर नहा धोकर स्वयं पर गंगा जल छिड़का। बचपन से जो बातें सिखाई जाती हैं, वही मेरे अंदर कूट कूटकर भरी हुईं थीं। मैंने कई बार माँ को कहते सुना था कि हिन्दू धर्म से श्रेष्ठ कोई धर्म नहीं है और मुसलमान का छुआ तो वो पानी भी नहीं पी सकतीं। इसीलिए मै भी स्वयं को श्रेष्ठ और मुसलमानो को निम्न जाति का समझता था।
बस उस घटना के बाद तो मैंने कनक हो या अनारकली, उसकी ओर देखना भी बंद कर दिया। मेरे साथियों ने बताया कि उसकी माँ एक हिन्दू और पिता मुसलमान हैं। पर मुझे इससे क्या ? मैं अपना धर्म भ्रष्ट नहीं करूंगा, मेरा अटल निर्णय था।
धीरे -धीरे मैंने उससे दूरी बनाना प्रारम्भ कर दिया। अब कनक चुप-चुप सी रहने लगी थी। उसने अनेकों प्रयास किए मुझसे बात करने के पर मै पत्थर की तरह ही अड़ा रहा।
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कॉलेज समाप्त कर मै बिना उससे मिले अपने घर जयपुर वापस आ गया। फिर MBA और फिर एक अच्छी नौकरी पाने के बाद मै कुछ संतुष्ट हुआ। इस बीच न तो कभी कॉलेज के साथियों से बात हो सकी और न मैंने कभी कनक अर्थात अनारकली के बारे में पता ही किया।
तभी ट्रेन की तीव्र ध्वनि से मेरी तन्द्रा टूटी। मैंने सोचा कि एक बार देखूं उसे, सो रही है अथवा जाग रही है। उसके अति प्रेम से भी मै भयभीत रहता था। पता नहीं यहाँ सबके सामने कैसा व्यवहार करे। हिम्मत कर मैंने अपना सर उसकी सीट की ओर धीरे से मोड़ा, किन्तु वो सीट पर नहीं थी। मै तत्काल उठ कर बैठ गया। मैंने सोचा कि संभवतः यहीं कहीं गई होगी अभी आ जाएगी। पर जब आधा घंटा बीत जाने पर भी वो कहीं दिखाई नहीं दी तो मैंने पास की सीट पर बैठे एक सज्जन को उठा ही दिया।
मैंने पूछा ,” भाईसाहब !! भाईसाहब !!! क्या अभी कुछ देर पूर्व ट्रेन कहीं रुकी थी?मेरे सामने एक लड़की बैठी थी, जो लगता है उतर गई। ”
उसने क्रोध में बोला ,” क्या आपको नहीं पता कि ये ट्रेन सीधे दिल्ली ही रुकेगी? पता नहीं रात को ३ बजे कौन ट्रेन से उतरेगा? कोई भूत, चुड़ैल तो नहीं थी भैया,जो चलती ट्रेन से उतर गई ?”
मै भय के कारण पसीने से लथपथ हो गया। पता नहीं क्यों तब मुझे स्वयं पर ही क्रोध आने लगा कि क्यों मै स्वप्न को ही सच समझ बैठा। मै पुनः सोने का प्रयास करने लगा।
प्रातः जब मैंने चाय और समोसे वालों का शोर सुना तो पता चला कि दिल्ली आ गया है। स्टेशन पर लोगों की चहल पहल देखकर मै सामान्य होने लगा।
अपना काम समाप्त कर मैंने सोचा कि कॉलेज के पास वाली कैंटीन से ही कुछ खा लेता हूँ। मैंने अपने एक साथी को भी फोन कर वहीँ बुला लिया था।
ज्यों ही मैंने चाय की पहली चुस्की ली, किसी की चिरपरिचित मधुर पुकार ने मुझे एक बार फिर चौंका दिया।
“सलीम !!!!!! सलीम !!!! तुम आ गए अपनी अनारकली के पास। ” ये कनक का मीठा स्वर था।
मैंने उसे अपने ठीक सामने बैठा पाया। कत्थई रंग के सलवार कमीज में वो क़यामत ही ढा रही थी।
मैंने क्रोध से पूछा, “कनक तुम ट्रेन से कहाँ अदृश्य हो गई थीं। मैंने तुम्हे कितना ढूंढा ? ”
बिना कोई उत्तर दिए वो मुस्कुराती रही।
तभी किसी ने मेरे कंधे पर अपना हाथ रखा तो मै चौंक गया।
” क्यों भाई यूँ अकेले में क्या बड़बड़ा रहे हो ?” केशव हँसते हुए बोला।
“अरे केशव ! आ गया तू।? ये देख ये कनक मतलब अनारकली मुझे बड़ा तंग कर रही है।इसके कारण तो मै बावला ही हो जाऊंगा।” मैं बोला
केशव आश्चर्य से बोला, “राजीव यहाँ तो कोई भी नहीं है। चल तू मेरे घर चल। प्रतीत होता है कि तू अत्यधिक थकान का अनुभव कर रहा है। ”
मैंने चकित होकर सामने देखा तो वहां सच में कोई नहीं था। मैंने एक ही सांस में उसे ट्रेन का सारा वृत्तांत सुना डाला।
वो दुखी स्वर में बोला, “अरे राजीव बावला तू नहीं है। बावली तो वो थी तेरे प्यार में। ”
मै आश्चर्य से उसका मुख ताकने लगा। वो कहता गया, “तेरे जाने के बाद वो सबसे तेरा पता पूछती रहती थी। पल-पल तेरी प्रतीक्षा में घुलते हमने देखा है उसे। होली के पर्व और उसके रंगों को तो उसने फिर कभी हाथ भी न लगाया। बहुत सच्चा प्रेम करती थी तुझसे बेचारी। ”
यूँ लगा जैसे किसी भारी पत्थर ने मेरे ह्रदय को बुरी तरह से कुचल दिया है। मस्तिष्क चाहे कितनी ही दलीले क्यों न दे दे, किन्तु ह्रदय से कभी भी जीत नहीं सकता। मेरा ह्रदय किसी अनजाने भय एवं चिंता से उसके बारे में जानने को आतुर हो उठा। उस समय विरह के असहनीय दर्द से मेरी आँखे भर आईं।
मै सकपका कर बोला, “थी का अर्थ ? क्या हुआ उसे ? कहाँ है वो ? सच तो ये है कि झूठे धर्म और जाति के बंधनों के कारण मैंने अपने प्रेम की पवित्र भावनाओं को कुचल डाला था। पर अब और नहीं कनक, अब और नहीं मेरी अनारकली, मै तुन्हे छोड़कर अब कभी नहीं जाऊंगा, कभी नहीं। बता न केशु, कहाँ है वो ? मेरा मन बहुत घबरा रहा है। बता दे न यार। ”
केशु बताने लगा , “एक दिन हमारे किसी साथी ने उसे हंसी में कह दिया कि तुझे भूल जाए और किसी और को चुन ले क्योंकि तू मर चुका है। बस फिर क्या था वो एक चलती बस के सामने कूद गई। ”
“क……क़……क्य……क़्याआ ???? हे ईश्वर !! इतना प्रेम ???? मुझे तो विश्वास ही नहीं होता ” मै दर्द से चीख पड़ा।
“फिर उसे लेकर सब हस्पताल भागे। जान तो बच गई किन्तु उसकी मानसिक हालत बिगड़ गई। ” केशु दुखी होकर बोला।
मै स्वयं को कोसने लगा, ‘ क्या मै उसके प्यार को अपना नहीं सकता था ? क्या ये धर्म और जाति की जड़ें हमारे प्यार से भी मजबूत थीं। क्यों नहीं मैंने ईश्वर द्वारा बनाए इस प्रेम के पवित्र बंधन को पहचाना, आखिर क्यों नहीं? भगवान ने केवल एक ही धर्म बनाया था, वो था मानवता का, उसे त्याग कर हमने इतने धर्म बनाए और मानवता के धर्म का गला दबाकर हत्या कर दी।’
” तू चाहे तो मै तुझे उससे मिलवा सकता हूँ। ” केशु आगे बोला।
“हाँ, हाँ कृपा कर मुझे उससे मिला दे केशु , मेरे भाई, मै तेरा ये उपकार कदापि नहीं भूलूंगा। ले चल मुझे उस बावरी अनारकली के पास। ले चल मुझे। “मै धीरे धीरे अपनी चेतना खोने लगा था।
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“होली है भाई होली है। बुरा ना मानो होली है। ” बच्चों की टोली की गूँज से मेरी नींद खुली।
खिड़की से बाहर झाँका तो देखा सभी ओर होली का रंगीन पर्व मनाया जा रहा है।
मैंने केशु को पुकारा,”केशु आज होली का पर्व है जो उसे अति प्रिय था। चल हस्पताल चलते हैं। चल आज मै उसे होली के रंगों से ही नहीं अपितु अपने प्रेम के रंग से भी रंगना चाहता हूँ।”
केशु और मैं हस्पताल पहुंचे। जब अनारकली /कनक के बारे में पता किया तो नर्स ने हमें एक कमरे में पहुंचा दिया। मैंने विनती की कि कुछ देर मुझे अपनी अनारकली से अकेले में बात करने दे। केशु और नर्स बाहर चले गए।
मै अपने घुटनों पर बैठ गया और बोला, ” देखो अनारकली, सलीम आ गया है। अनारकली! आज होली के इस पावन पर्व पर मै ये स्वीकार करता हूँ कि तुम्हारा सलीम तुमसे अत्यधिक प्यार करता है और तुम्हें छोड़कर जाने की सोच भी नहीं सकता।आज मै ऊँच-नीच, रंग-रूप, जाति-पाँति, छोटा-बड़ा सारी दीवारें तोड़कर तुम्हारे पास आया हूँ। मेरा प्रेम रामायण की चौपाइयों और कुरान की आयतों से भी पवित्र है। मेरा प्यार स्वीकार करो अनारकली। स्वीकार करो। आज मै तुझे होली का रंग ,प्यार के संग लगाना चाहता हूँ। ”
मै पश्चात्ताप के कारण फूटफूटकर रोने लगा। कुछ समय पश्चात मुझे आभास हुआ कि उसने अपनी कुर्सी मेरी ओर अब तक नहीं घुमाई थी। मन अनायास ही एक अंजानी चिंता में पड गया ,’तो क्या अनारकली मुझे क्षमा नहीं कर सकेगी? तो क्या आज भी वो मुझसे रूठी रहेगी ?’
तभी एक डॉक्टर ने कमरे में आकर कहा, “किससे बात कर रहे हो श्रीमान ? यहाँ कोई नहीं है। कल रात को ही उस लड़की की मृत्यु हो गई थी। अभी ये कमरा खाली है। ”
मैंने तुरंत उस कुर्सी को घुमाया जिस पर मेरी अनारकली नहीं केवल उसकी कत्थई रंग की चुनरी पड़ी थी। दीवार पर कहीं सलीम तो कहीं अनारकली लिखा था।
मेरी सहनशक्ति समाप्त सी हो गई थी।मै विक्षिप्त सा होकर चिल्लाने लगा ,”अ ना… र क…लिईई !!!!!!! अ ना… र क…लिईई !!!!!!!”
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