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Bejor dosti

Published by sukarma Thareja in category Hindi | Hindi Story | Social and Moral with tag forest | friendship

बेजोढ़ दोस्ती

red-flowers-buds

Hindi Story of Friends – Bejor dosti
Photo credit: rollingroscoe from morguefile.com

मै – नीलू ! मेरे दादा, दादी ,पड़दादा एवं पड़दादी सभी यहाँ, इस वैज्ञानिक संस्थान परिसर के आस पास के जंगल में रहते थे l यह वैज्ञानिक संस्थान शिक्षा में सर्वोपरि है, और रहेगा ऐसा मैंने अपने पूर्वजों से सुना है l कुछ साल पहले यहाँ एक विशाल जंगल था, और हमारे संयुक्त परिवार के सदस्यों की संख्या भी कम थी, इसलिए हमें कभी भोजन के लिए भटकना नहीं पडता था l

मै नीतू ! मै भी इसी परिसर में पली बड़ी हुई l पर दुर्भाग्य वश अब मैं अन्धी हो गयी हूँ। इसीलिए ज्यादा दौड़ -धूप कर नहीं पाती l परन्तु परिसर कॆ नॆक शिक्षक एवं कर्मचारियों की मैं धन्यवादी हूँ जो सुबह -सुबह परिसर की टी -शॉप में मुझे जलेबी पकोड़ी का नाश्ता करवा कर मुझे सराबोर कर देते हैं l ज्वलंत विषयों पर शिक्षकों का वाद-विवाद सुनकर मैं आत्म विभोर सी हो जाती हूँ, और सोचती हूँ ,काश ! मैं भी पढ़ी होती और इस वाद- विवाद में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती l

नीतू ! तुम तो बहुत भाग्यशाली हो, क्योंकि परिसर में तुम्हे इतना अपार स्नेह जो मिला है l परन्तु मेरा और मेरे परिवार के सदस्यों का अनुभव इतना अच्छा नहीं है l जंगल संकुचित हो गया है l हमारी संख्या बढ़ गयी है l जंगल का भोजन हमें पर्याप्त नहीं होता, इसीलिय भोजन की खोज में कभी- कभी जंगल से परिसर में जाना पड़ता है l जिससे परिसर वासी असुविधा महसूस करते हैं l संकोच करते है ,सहम जाते है और कभी – कभी सुरक्षा अधिकारियों की लाठियों का सामना भी करना पड़ता है l तब हम कभी -कभी उग्र रूप भी धारण कर लेते है l इन सबके चलते परिसर वासियों से, हम लोग चाहते हुए भी, मधुर सम्बन्ध बनाने में असमर्थ हो जाते है l

नीतू ! लोग बदल रहे है ,समाज बदल रहा है l हम सभी जीवों के जीवित रहने की आयु में भी परिवर्तन आ रहा है l तुम अपनी दृष्टिहीनता से घबराओ नहीं, हमारे जंगल में होते हुए, यह दृष्टिहीनता तुम्हारी खुशियाँ नहीं छीन सकती l हम सभी प्राणी एक दूसरे पर निर्भर है, ये समीकरण जब आशीर्वाद के रूप में हमें ईश्वर ने दिया है ,तो आओ उसे व्यवहार में लायें l तुम जब चाहो जंगल में आ सकती हो, मुझसे एवं मेरे परिवार से मदद ले सकती हो l हम तुम्हें पनाह देकर बहुत ही हर्षित होंगे l

यह बात किसी से छुपी नहीं थी, नील गाय के शावक, नीतू को सही रास्ता दिखाने में मदद देते, और नीतू रात को जब खतरे का एहसास करती तो ,भौक करके वह नीलू एवं परिवार के सभी सदस्यों को समय से खतरे की सूचना देती l

नीलू! तुम और तुम्हारा परिवार धन्य है! जब से मैं आप सब के संपर्क एवं पनाह में आई हूँ ,मेरे जीवन का रोम -रोम खिल गया है, दृष्टिहीनता से मेरे व्यक्तित्व में आया रिक्त स्थान भर गया है् l मेऱी कुंठा गायब हो गयी है l सच तो यह है , तुम्हारे शावकों के साथ खेल कर मैं भरप़ूर जिंदगी जी रही हूँ l ईश्वर तुम्हे सदियों तक सलामत रखे l

नीलू! इस वैज्ञानिक संस्थान के परिसर एवं जंगलो में एक सत्य स्वरूप चेतन तत्व विद्यमान है l ऐसा मेरा मानना है l

नीतू! तुम क्या कह रही हो? मेरी समझ से बाहर है l —–

नीलू देखो ना! समझने की कोशिश करो ,कहाँ पूरे विश्व में अशांति है,परन्तु यहाँ के परिसर एवं जंगल में आलौकिक शांति है ,इसपर मेरी तुम्हारी सुन्दर गहरी दोस्ती l एक तरफ मै नीतू -दुखित, गरीब गली का दृष्टि हीन कुत्ता, दूसरी ओर तुम -नीलू ; सुंदर, सुरीखी, सक्षम उछलती कूदती नील ग़ाय l बेजोढ़ सा लगता है l यह दोस्ती इस परिसर एवं जंगल का चेतन तत्व है l ईश्वर करे यह दोस्ती अमर रहे l मेरा पूरा विश्वास है कि वह दिन दूर नहीं जब नीतू-नीलू की सयानी दोस्ती के किस्से सभी के जुबान पर होंगे l भविष्य में यह दोस्ती, नीलू-परिसर वासियों की उभरती दोस्ती के लिए प्रेरणा स्रोत होगी l सभी की भूरी-भूरी सराहना का बहुचर्चित विषय होगी l

#-#-#-
सुकर्मा थरेजा
एलुम्नुस आई आई टी कानपुर(1986)
Christ Church college
Kanpur,UP,India

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