गुलाब के ताजे पुष्पों की सुगंध और मुख पर पड़ती धीमी-धीमी धूप की गर्मी से अचानक पूनम की नींद खुली। वो हड़बड़ा कर उठ गई।
“अरे ये क्या हो गया? आज मेरी आँख कैसे नहीं खुली। अब सारे काम शीघ्रता से निपटाने पड़ेंगे। ” पूनम अपने रेशमी बालो का ढीला सा जुड़ा बनाते हुए बड़बड़ाई।
ये क्या? पूरा कमरा लाल गुलाब के फूलों से सजा हुआ था। ये तो उसे स्मरण था कि आज उसके विवाह की प्रथम वर्षगाँठ है। पर प्रकाश उसे यूँ चकित कर देगा इसका उसे भं न था। उसने जल्दी से नहा-धोकर, प्रकाश की पसंद की हलके आसमानी रंग की साडी पहनी।उसने साडी के रंग से मेल खाती बिंदी लगाई और बहुत हल्का सा श्रृंगार किया। अपने बालों को उसने खुला ही छोड़ दिया, क्योंकि प्रकाश को उसके रेशमी खुले बाल अति पसंद थे।
पूनम, प्रकाश से प्रेम से अधिक सम्मान करती थी। वो सभी काम प्रकाश के मन के अनुरूप करती थी। ऐसा नहीं है कि वो ऐसा किसी विवशता के कारङ करती थी अपितु प्रकाश के प्रति अपने असीम लगाव के कारङ करती थी।
प्रकाश का व्यक्तित्व था ही ऐसा कि कोई भी उसे प्रेम करने लगे। अभी विवाह को मात्र एक वर्ष ही हुआ था किन्तु वो पूनम की सभी पसंद और नापसंद से अवगत था और वो केवल उसे प्रेम ही नहीं करता था अपितु सम्मान भी देता था। उसकी प्रत्येक इच्छाओं का मान रख कर उन्हें यथासंभव पूर्ण करने का भरसक प्रयत्न करता था।दिखने में प्रकाश सामान्य ही था किन्तु उसके विचार उसे भीड़ से पृथक बना देते थे। उसके पास एक कोमल ह्रदय, निस्वार्थ सेवा भाव, स्त्रियों के प्रति सम्मान का भाव, वयस्कों के प्रति आदर एवं सम्मान और बच्चों के प्रति असीम प्रेम की भावना थी।
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बालों को संवारते- संवारते आज पूनम को अपना अतीत, प्रकाश का उसके जीवन में आगमन बरबस ही स्मरण हो आया। वो एक वर्ष पूर्व की स्मृतियों में डूबने लगी। तभी प्रकाश चाय और नाश्ता लेकर आ गया।
प्रकाश मुस्कुराते हुए बोला ,” विवाह की प्रथम वर्षगाँठ की बधाई हो पूनम। मेरे जीवन को अपने प्यार से संवारने के लिए मै तुम्हे क्या उपहार दूँ , कुछ समझ नहीं आ रहा है। तनिक सहायता कर दो। ”
पूनम हड़बड़ा कर वर्तमान में वापस आ गई और हँसते हुए बोली ,” आज का दिन मेरे लिए बड़ा ही महत्वपूर्ण है। तुम्हारे जैसा पति तो किस्मत से ही मिलता है। ”
प्रकाश चुहल करते हुए बोला ,” किस्मत वाला तो मै हूँ, कहीं विशाल से तुम्हारा….. ”
पूनम मायूस हो गई।
पूनम की मनोदशा समझते हुए उसने अपनी बात आधे में ही रोक दी।
प्रकाश ,” अच्छा मै कुछ काम निपटाकर आता हूँ फिर हम फिल्म देखने चलेंगे।”
और इतना कहकर उसने पूनम के मस्तक पर अपने प्यार की मुहर लगा दी। विशाल के नाम से पूनम पुनः अतीत के पन्नों में वापस चली गई।
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पूनम आज अति प्रसन्न थी। प्रत्येक लड़की के लिए उसके विवाह का दिन अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। आज प्रकाश, सच में उसके जीवन में अपने प्रेम एवं स्नेह के प्रकाश से सभी अंधेरों को दूर करने वाला था। प्रकाश केवल, पूनम का जीवनसाथी बनकर ही नहीं आया अपितु उसने इस समाज से दहेज़ रूपी कुप्रथा को हटाने का भी प्रयास किया। इस बार विवाह का आयोजन बड़ी ही सादगी से किया गया था। इस बार? ये प्रश्न तो सभी के मन को कुरेद रहा होगा। जी हाँ, सही कहा, ये पूनम का दूसरा विवाह था। फिर प्रश्नो की एक लहर मन को हिला जाती है। पहला विवाह, संपन्न ही नहीं हुआ था केवल आयोजन ही हुआ था।
पहला विवाह, पूनम ने अपने आदर्शों, अपने माता पिता के सम्मान और आत्मसम्मान के लिए ठुकरा दिया था ।पूनम नए युग की नई सोच रखने वाली लड़की थी।उसने दहेज़ जैसी कुप्रथा के सामने अपना सिर नहीं झुकाया।
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एक-डेढ़ वर्ष पूर्व जब उसका पहला विवाह तय हुआ था। पूरा घर दुल्हन की भांति सजा था। नाते रिश्तेदारों की चहल पहल से घर में और रौनक लगी थी। माता पिता अत्यंत व्यस्त थे। पूनम, विशाल के साथ भविष्य के सपने संजोने में खोई हुई थी। आज पूनम भी आसमान से उतरी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। और शर्म की लाली ने उसे और भी सौंदर्य प्रदान कर दिया था। पूनम को लाल गुलाब बहुत प्रिय थे। ताजे गुलाब और बेला के फूलों की सुगंध से सारा वातावरण सुगन्धित हो रहा था।
तभी पूनम को अपने पिता दिखाई पड़े जो कि अत्यंत ही चिंतित प्रतीत हो रहे थे। पूनम तुरंत उनके समक्ष पहुँच गई और उनसे चिंता का कारङ बताने का अनुरोध किया। पर पिता ने उसे समझा बुझा कर वापस उसकी सखियों के पास भेज दिया।
वो बुझे मन से अपने कमरे में आ गई। तभी उसकी एक सहेली भागती हुई आई और उसे उसके पिता की चिंता का असली कारङ बता दिया। पूनम को काटो तो खून नहीं। सारी बातें जानकार क्रोध और अपमान से उसका मुख तमतमा गया। वो उचित अवसर की प्रतीक्षा में चुपचाप बैठी रही। तभी विवाह की रस्मो के लिए उसका बुलावा आ गया।
उसने अपनी वाणी पर नियंत्रण रखते हुए विशाल से पूछा, ” क्या बात हो गई मेरे पिताजी इतने चिंतित क्यों हैं ?”
जिसका उत्तर विशाल ने नहीं अपितु उसकी माँ ने दिया, बोलीं, ” तुम्हे जानने की आवश्यकता नहीं है। तुम्हारे पिता से हमारी बात हो गई है। ”
पूनम ,” यदि बात मेरे विवाह के सन्दर्भ में है तो मुझे जानने का पूरा अधिकार है। बताइये क्या बात है ?”
विशाल की माँ क्रोधित होकर बोलीं ,” लो तो अब मुझे, तुम्हे सफाई देनी पड़ेगी? दहेज़ में थोड़ा पैसा क्या मांग लिया, आफ़त हो गई। ये कोई नई बात तो है नहीं, सदियों पुरानी परंपरा है। इसमें क्या गलत है ?”
पूनम अपने क्रोध पर नियंत्रण करते हुए बोली , ” क्षमा करियेगा औंटीजी, दहेज़ एक कुप्रथा है, परंपरा नहीं। इन सडी- गली कुप्रथाओं से बाहर आकर हम एक नए समाज की स्थापना क्यों नहीं करते? क्यों हम आज भी लकीर पीटते रहते हैं और परमपराओं की आड़ में अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं? माता पिता अपनी सामर्थ्य के अनुसार अपनी पुत्री को सब कुछ देना चाहते हैं। मेरे पिता भी कहीं न कहीं से ऋण लेकर, अपने जीवन भर की पूंजी लगाकर, आपकी मांग अवश्य पूरी कर देते। फिर इसके लिए चाहे उन्हें जीवन भर ऋण चुकाने के लिए विवश होना पड़े। किन्तु एक पुत्री होने के नाते मेरा भी ये कर्त्तव्य बन जाता है कि मै अपना संसार, उन्हें उम्र भर का कष्ट देकर न बसाऊं।विशाल, हम विवाह जैसे एक पवित्र बंधन में बंधने जा रहे हैं। तुम कुछ क्यों नहों कहते विशाल? क्या मेरा अपमान, तुम्हारा अपमान नहीं है? क्या तुम भी दहेज़ रुपी कुप्रथा को बढ़ावा देना चाहते हो?”
विशाल कुछ नहीं बोला, किन्तु उनकी माँ, उसे लगभग घसीटते हुए ले गई और कह गईं कि वे इस मुंहफट लड़की को अपनी बहू कदापि नहीं बनाएंगी। पिताजी ने बहुत मिन्नत करी पर आख़िरकार बारात वापस लौट ही गई।
पूनम और विशाल एक ही कंपनी में काम करते थे। उसका व्यवहार इतना दुखदाई होगा ऐसा तो पूनम ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था। हालाँकि वे एक दूसरे को पसंद भी करते थे फिर भी उसने दहेज़ के नाम पर चुप्पी क्यों साध ली? इसी प्रकार के कई प्रश्न, पूनम को आहत कर रहे थे।कुछ दिनों तक पड़ोसियों की पैनी दृष्टि पूनम और उसके पिता को झेलनी पड़ी। धीरे धीरे सब सामान्य हो गया।
और तभी प्रवेश हुआ, प्रकाश का। प्रकाश, अपने नाम के अनुरूप ही था।
वो पूनम का नया पड़ोसी था। धीरे-धीरे उसका घर में आना जाना बढ़ गया।पूनम के पिता उसके अच्छे मित्र बन गए। पिता से वो कई विषयों पर बात करता था। अपने पिता को प्रसन्न देखकर वो उसका आभार प्रकट करना चाहती थी। पर कैसे करे, ये उसे नहीं सूझता था।
एक दिन प्रकाश ने ही पहल करी ,” पूनम जी ऐसे लगता है कि आप मुझसे कुछ कहना चाहती हैं। शाम को पार्क में मिलते है। ”
और बिना उत्तर की प्रतीक्षा किये वो चला गया। पूनम जब उससे मिली तो उसका असली रूप समझ पाई। प्रकाश पार्क में बच्चों के साथ खेल रहा था।वो बच्चों के समान ही निश्छल लग रहा था।
प्रकाश बोला, “पूनम जी खेलेंगी?”
पूनम ने न में सिर हिला दिया।
कुछ देर उपरान्त प्रकाश पसीने से लथपथ उसके पास आकर बैठ गया। उसकी ऐसी हालत देखकर पूनम बरबस मुस्कुरा दी ,” ये आपकी कोई उम्र है खेलने की ?”
प्रकाश भी मुस्कुरा कर बोला ,” तो आपकी भी उम्र नहीं है, एक दुर्घटना को जीवन भर ह्रदय से लगाकर, दुखी रहने की। ”
पूनम उदास हो गई। प्रकाश उसे दुखी नहीं करना चाहता था।
प्रकाश पुनः बोला, ” पूनम जी, जीवन कभी किसी दुर्घटना से थम नहीं जाता अपितु जीवन की प्रत्येक घटना हमें कोई न कोई सीख देकर जाती है। मै, आपके अदम्य साहस की ह्रदय से सराहना करता हूँ ।सत्य है कि दहेज़ एक कुप्रथा है। यदि सभी लड़कियां ऐसी ही हिम्मत दिखाएँ तो संभवतः इस कुप्रथा को हम जड़ से उखड फेंकने में सफल हो जाएंगे। आपको तो स्वयं पर गर्व होना चाहिए। ”
पूनम समझ गई थी कि पिताजी ने प्रकाश को सब कुछ बता दिया है।पता नहीं क्यों पूनम को उसकी बातों में इतना अपनापन लगा कि वो उसके साथ अपने सुख-दुःख बांटने लगी। धीरे-धीरे दोनों एक दूसरे के अच्छे मित्र बन गए। पूनम का एक भी दिन प्रकाश से बात किये बिना नहीं बीतता था और वही हाल प्रकाश का भी था।
और एक दिन आखिर उसी पार्क में प्रकाश ने पूनम से अपने ह्रदय की बात कह ही दी।
प्रकाश बोला ,” पूनम क्या मेरे जीवन में तुम अपने प्यार की चांदनी बिखेरना स्वीकार करोगी? ”
पूनम शर्मा गई। उसने सिर झुका कर अपना सिर सहमति में हिला दिया।और पुनम और प्रकाश दोनों विवाह रूपी बढान में सदा के लिए बंध गए।
आज भी उस समय की स्मृति में पूनम के कपोल, लाल अंगारों की भांति दहक जाते हैं। और इस प्रकार प्रकाश ने पूनम के जीवन को अपने प्रकाश से जगमगा दिया। इन्ही अतीत की स्मृतियों में कब प्रकाश वापस आ गया, उसे पता ही न चला। प्रकाश के पुकारने पर उसकी तन्द्रा टूटी।
प्रकाश ने बड़े प्यार से पूनम को पुकारा, “पूनम जल्दी करो, नहीं तो फिल्म छूट जाएगी। ”
पूनम , “जी आई। ”
पूनम ने देखा कि प्रकाश, हलके नारंगी रंग की कमीज पहने खड़ा है। प्रकाश को पता था कि पूनम को ये रंग अति प्रिय है। प्रकाश ने अपनी बाहें फैलाईं तो पूनम भागकर उसमे समा गई। हल्का नीला रंग और हल्का नारंगी रंग एक दूसरे के प्रति सम्पूर्ण समर्पण की भावना को प्रदर्शित करता है।
मानो सूर्य अपनी आभा से नीले आकाश को हलके नारंगी रंग से भिगो रहा हो।
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