This Hindi Story is about street children and their dreams . It makes us realize about our social responsibilities for them and how to fulfill their dreams.
दोस्तों कभी कभी मैं ये सोचता हु की हमारी ज़िंदगी कैसे आगे बढ़ती है। शायद हमारे सपनो की वजह से. अब देखिये न ये सपने ही तो हैं जो हमें अपने जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं. सपने भी न जाने कितने तरह के और जाने कितने रंग के होते हैं। ये कभी हमें हसते हैं, कभी रुलाते हैं,कभी डराते हैं,कभी गुदगुदाते हैं. हर age -group के अपने ही सपने होते हैं. आज मैं सपनो की बात इसलिए कर रहा हु क्यूंकि मेरी आज की कहानी ऐसे ही कुछ सपनो पे आधारित हैं, शीर्षक है “गरीबी के सपने “. दोस्तों सपने न अमीरी गरीबी के मुहताज होते हैं न ही उम्र के. मेरी आज की कहानी उन गरीब बच्चो के सपनो के बारे में है जिनका बचपन फूटपाथ से शुरू होकर फूटपाथ पे ही खत्म हो जाता है.
तो चलिए सुनते हैं मेरी सतरंगी दुनिया की कहानिओं की श्रृंखला से मेरी आज की कहानी।
दोस्तों नौकरीशुदा लोगो की ज़िंदगी बहुत ही अजीब होती है न ? ऐसा लगता है लाइफ एक वीडियो रीप्ले की तरह हर दिन एक ही कहानी को दुहराती रहती है.
वही डेली सुबह उठना ,ब्रेकफास्ट करना,बस स्टॉप की तरफ भागना। ऑफिस पहुँचते ही कंप्यूटर लोगिन, मेल चेक करना, काम करना और फिर शाम में बस से घर लौट जाना। फिर डिनर खत्म करना , मित्रो संग इधर उधर की बातें करना और सो जाना। अगले दिन फिर वही रूटीन।
मेरे घर के पास में ही मुन्ना की चाय की दुकान है। बिना उसके हाथो की चाय पिए कोई भी दिन मानो अच्छा नहीं गुजरता. पास की ही फूटपाथ पे एक झोपडी डाल रखी है उसने. उस छोटे से आशियाने में मुन्ना अपनी बीबी रधिआ और दो छोटे छोटे बच्चो के साथ रहता है. बेटा गप्पु पांच साल का है जबकि बेटी झुमकी की उम्र है तीन साल.
आज सुबह सुबह ऑफिस जाने के लिए निकला। रस्ते में ही मुन्ना का घर परता है। मुन्ना तो सुबह तड़के ही दुकान पे चला जाता है. उसकी बीबी घर में बच्चो को संभालती है। पास में ही गप्पु और झुमकी खेल रहे थे। मुझे देखते ही दोनों शर्मा जाया करते थे और जा छुपते अपनी माँ के पीछे। आज भी ऐसा ही हुआ ,लेकिन मैंने भी सोच लिया था की आज तो उन से बात कर के ही दम लूंगा। बस जेब से चॉकोलेट निकली और उन्हें दिखाया।
दोनों ने शरमते हुए अपनी माँ के पीछे से हल्का सा चेहरा बाहर निकाला। फिर आहिस्ता आहिस्ता से थोरे सकुचाते हुए दोनों मेरे करीब आये.
मैंने लड़के से पूछा “कहानी है ? ” जवाब लड़की से मिला “हाँ “. मैंने चॉकलेट्स बच्चो की तरफ बढ़ा दी। लड़के से पूछा ” स्कूल नहीं गए ? “.
लड़के ने ना में सर हिलाया। मैंने पूछा “क्यों?” . गप्पु बोला “हम तो कभी स्कूल नहीं जाते. पापा भेजते ही नहीं “. मुझे महसूस हुआ की बेकार ही ये सवाल पूछा मैने. भला मुन्ना की आमदनी ही कितनी है ? हजार -दो हजार शायद कमाता हो। मैंने पूछा “पढ़ना चाहते हो ? ” . दोनों ने हाँ में सर हिलाया।
मेरे दिमाग में शायद पहली बार ही ये ख्याल आया की न जाने ऐसे कितने ही बच्चे होंगे जिनका बचपन फूटपाथ की इन गन्दी गलिओं में ही खोया होगा.
पता नही सरकार का ध्यान इस ओर क्यों नहीं जाता। क्यों उनके चुनावी घोषणापत्रों में इन बच्चो के लिए कोई भी योजना नहीं होती. शायद इसलिए की ये उनके वोट बैंक नहीं हैं. बेमन से ही मैं ऑफिस पंहुचा। रह रह कर उन बच्चो का चेहरा मेरे जेहन में आ रहा था. काम करने की इच्छा ही नही हो रही थी।
सोच रहा था की क्या सारी जिम्मेवारी सिर्फ सरकार की ही है ? हमारी कोई जिम्मेवारी नहीं इस समाज के लिए? आखिर ये बच्चे भी तो इसी समाज का एक हिस्सा हैं. पर मैं एक नौकरीशुदा आदमी जिसकी तनख्वाह महीने के आखिरी हफ्ते के पहले ही अपना दम तोड़ देती है ,भला क्या कर सकता हु। तभी एक विचार आया। फ़ौरन ही ऑफिस से निकला और जल्द ही घर पहुंचा। आनन फानन में सारे पड़ोसिओ को कॉल कर के इकठा किया. सब ने पूछा की भाई बात क्या है। मैंने उन्हें सारा वृतांत कह सुनाया। मिश्रा जी बोले ” भाई आप की सोच तो एक दम सही है ,पर भला हम सब आम लोग इसमें क्या कर सकते हैं। जिम्मेवारी तो सरकार की है।
मैंने पूछा ” क्या हम इस समाज में नहीं रहते ? इस समाज ने ही हमें नाम मान सम्मान,खाने को रोटी और सोने को छत दी है.तो क्या इस नाते हमारी भी इस समाज के प्रति कोई जिम्मेवारी नहीं बनती है ? ”
शुक्ल जी बोल पर “एक दम सही बात. इस नजरिये से तो हम ने कभी सोचा ही नहीं था. आप के पास कोई सुझाव है ?
मैंने कहा “एक उपाय है। हमारे मोहल्ले में ऐसे कुछ सात आठ बच्चे होंगे. क्यों न हम सब मुहल्ले वाले मिलकर मिलकर उन बच्चो की पढाई का खर्च उठा लें? हम कुछ NGOS से भी बात कर सकते हैं. ”
सभी को मेरा सुझाव पसंद आया और फिर हम लग गए एक मिशन पर। और फिर हम ने श्री नरेंद्र मोदी जी के सफाई अभियान का मॉडल उठाया। यानि की मोहल्ले का हर सदस्य अपनी जान पहचान के नौ लोगो को इस मिशन के लिए आमंत्रित करेगा. यानि की एक बहुत बड़े ह्यूमन चैन की नीव दाल दी गई। और जल्द ही हमारा ये अभियान सारे हिन्दुस्तान में फेमस हो गया.
आज फिर मैं रोजाना की तरह अपने ऑफिस के लिए निकला। आज रस्ते में झुमकी और गप्पू नहीं दिखे। रधिया ने बताया की बच्चे स्कूल गए हैं.
रधिया के भर आये नैन मानो बिना कुछ कहे ही मेरा शुक्रिया अदा कर रहे थे। आज मेरे दिल में सुकून पंहुचा और मैंने सोचा “शायद जल्द ही पुरे होंगे गरीबी के सपने “.
—–Shubh-Arambh —-