रामखेलावन पुराना तावा बजाते हुए , “ मेरे पिया गये रंगून , वहां से किया है टेलीफून , तुम्हारी याद सताती है , तुम्हारी याद सताती है , जिया में आग लगाती है ”.
चौपाल में घुसा तो मैं कोमेंट किये बिना अपने को रोक नहीं सका :बड़ा चहक रहे हो , रामखेलावन ! क्या बात है ? रेल मंत्री या कानून मंत्री बनने के फिराक में तो नहीं हो ?
हुजूर ! आप भी मुझे दिवास्वप्न दिखाने में कोई कौर – कसर नहीं छोड़ते . मैं न तो लोकसभा का , न ही राज्य सभा का , सदस्य हूँ , तो कैसे बन सकता ?
क्यों नहीं बन सकते ? तुम मंत्री की बात करते हो , प्रधान मंत्री तक बन सकते हो .
वो कैसे ? हुजूर !
अल्ला मेहरवान तो गदहा पहलवान – यह कहावत तुमने सुनी है ?
हाँ , हुजूर ! ई तो हमको मालूमे नहीं था . अपुन नहीं बनेंगे तो कोई के लिए तो गोटी सेट …
हाँ , कोई के लिए तो गोटी सेट कर ही सकते हो .
वही होता है , जो मंजूरे खुदा होता है . आख़िरकार सोनिया जी को हस्तक्षेप करना ही पड़ा और दोनों के दोनों …
कौन – कौन ? जरा हिंदी में बताने का कष्ट करे.
आज का हेडलाईन न्यूज़ है , और तुम्हें कुछ पता नहीं , अजीब बात है !
बंसल जी और अश्विनी जी दोनों को हाँ – ना , हाँ – ना के खेल में अपने – अपने पद से इस्तीफा देना ही पड़ा .
हुजूर ! नहीं देते तो क्या होता ?
क्या होता ! संसद का कार्य सुषमा जी चलने नहीं देती . साक्षात चंडी का रूप धारण किये हुए थी . कटारी और खप्पर ले कर . छोटा – मोटा बिल भी पास नहीं होने देती . संसद का बहुमूल्य वक़्त बर्बाद होता सो अलग .
बहुमूल्य कैसे ? हुजूर !
इसी तथ्य से जानो कि संसद का एक घंटे का व्यय ( खर्च ) पचास लाख रुपये है . तो न्यूनतम आठ घंटे का क्या हुआ ?
चार करोड़ .
वो भी चाहे संसद चले या न चले . व्यय का मीटर उठता जाता है .
जैसे किसी ओटो में चढो , जाम रहे , ओटो खडी भी रहे , तो मीटर उठता ही रहता है.
बाप रे ! बाप ! रोज इतना खर्च !
इतना पैसा आता कैसे है ? सरकार हमारे और तुम्हारे से यैन – कैन – प्रकारेन वसूलती है.
खून – चूसवा की तरह .
हाँ , गदहा हो फिर भी अक्लमंद घोड़े की तरह तुरंते समझ जाते हो |
ई तो हुजूर ! आप की संगति का असर है | वो कहावत नहीं सुनी ?
पहेलियाँ मत बुझाओ , मुखिया जी की तरह सरल व सहज भाषा में समझाओ |
वही तो ! संगत से गुण होत है , संगत से गुण जात …? विषयान्तर मत होखिये , इसे डिरेल मत कीजिये बेमतलब, बात को पटरी पर लाईये |
बोल ( Ball ) तो तुम्हारे कोर्ट में है , सेंटर फोर्वाड करो |
समझ गया तो … ई सब एकाएक कैसे घटित हो गया ? पा जी तो नहीं चाहते थे कि कोई …..
पार्टी कमान का आदेश था . उसे हर हाल में मानना ही था.
हुजूर ! सब खेल करनटकआ का खेल है . उधर पार्टी की भारी जीत हुयी . जनता का विश्वास मिला. तो इस कदम को उठाकर पार्टी ने जनता के विश्वास को और मजबूत कर दिया . साबित कर दिया कि हम इन्साफ पसंद हैं. जनता की भावना का हम क़द्र करते हैं . सामने चुनाव है . विपक्ष हाथ धोकर पीछे पड़ा हुआ है – पटकनिया देने के लिए .
हुजूर ! तो ऐसी हालत में पार्टी क्या करे ! सात – सत्तर साल का तजुर्बा है , उनका तो सही वक़्त में सही तरीके से इस्तेमाल होना चाहिए न !
कांग्रेस पार्टी खून – पसीना एक करके इस मुकाम तक पहुँची है , ऐसे ही राज – काज को अपने हाथ से गैर के हाथों में जाने देगी क्या ?
कहने का मतलब ईंट से ईंट बजाना पड़े तो, तो बजा देगी परन्तु …..
परन्तु गद्दी नहीं छोड़ेगी . हुजूर ! अब मैं पास हो गया न समझदारी की परीक्षा में .
इसमें भी कोई शक की बात है क्या ? डिसटिंकसन के साथ उत्तीर्ण हुए .
रामखेलावन एक दूसरा तावा बजाकर ही उठो .
जैसा हुक्म . रामखेलावन मौका से कहाँ चुकनेवाला था .
लय, सूर व ताल के साथ गाया तो मन प्रसन्न हो गया :
पिंजरे के पंछी रे , तेरा दर्द न जाने कोय …
बाहर से तू खामोश रहे तू ,
भीतर – भीतर रोये रे ,
भीतर – भीतर रोय . तेरा दर्द न जाने कोय .
कह न सके तू अपनी कहानी , तेरी भी पंछी क्या जिंदगानी रे ,
किसी ने तेरी कथा लिखी , आँसू में कलम डूबोय ,
तेरा दर्द न जाने कोय , तेरा दर्द न जाने कोय |
( फिल्म : नागमणि ( १९५७ ) , गायक एवं कवि : प्रदीप )
***
लेखक : दुर्गा प्रसाद , गोबिंदपुर , धनबाद , ११ मई २०१३ , दिन : शनिवार |
*****