अंग्रेजियत का भूत – Over Obsession for English Language( Parents are obsessed to get child admitted in English medium school. This story highlights need for establishing Gurukuls promoting Indian culture.)
आज शुबह – शुबह पौ फटते ही रामखेलावन कूदता – फांदता मेरे पास चला आया . आते ही बरस पड़ा , ‘ हुजूर ! आप घोड़ा बेचकर सोते रहिये . मालूम है चौपाल के जस्ट बगल में इंग्लिश मीडियम का स्कूल खुलने जा रहा है.
तो इसमें कौन सा आस्मां फट कर गिरा जा रहा है , सैकड़ों स्कूल हैं प्रखंड में , एक दो और खुल गये तो इसमें चीखने – चिल्लाने की क्या जरुरत है ?
जरुरत क्यों नहीं है ? अब खटाल व चौपाल के बच्चे जो सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं , सब के सब यहीं दाखिला लेंगे . अंगरेजी पढेंगे और अपनी वैदिक संस्कृति , सभ्यता व संस्कार को भुला बैठेंगे . देश गर्त में चला जाएगा .
इन सभी खोखली बातों में क्या रखा है ? असली चीज है कि आजकल अंगरेजी पढ़ने – पढ़ाने से ही बच्चे – बच्चियां इंजिनियर , डाक्टर , वकील , आई.ए. एस., आई. पी. एस. बनते हैं , हिंदी मीडियम से नहीं .
हुजूर ! एक जमाना वो था कि हम विद्यालय में गांधी वर्णमाला और मनोहर पोथी पढ़ते थे . डाक्टर राजेंद्र प्रसाद , दयानंद सरस्वती , पंडित मदन मोहन मालवीय, स्वामी विवेकानंद , महर्षी अरविन्द घोष , सुभाष चन्द्र बोस , वैज्ञानिक सी. वी. रमण , जगदीश चन्द्र बोस ने तो प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में ही ली थी. रविन्द्र नाथ टैगौर ने तो गीतांजली भी बंगला ही में लिखे थे .
हम १९४७ में आज़ाद हो गये . अंग्रेज लोग भारत छोड़कर अपने मुल्क चले गये , लेकिन अंग्रेजियत का भूत अपने पीछे छोड़ गये. हमने यदि हकीक़त में तरक्की की है तो वो है अंगरेजी स्कूल के खोलने , अंगरेजी पढ़ाने – लिखाने , अंगरेजी बोलने – चालने में . एक दिन वो भी आनेवाला है जब हम हिन्दी तो हिन्दी देवभाषा संस्कृत भाषा भी भूल जायेंगे .
रामखेलावन ! इसकी कोई माकूल वजह है . सरकार भी यही चाहती है और जनता भी यही चाहती है. सिर्फ चंद लोंगो के विरोध करने से कुछ नहीं होगा , सब को एकजूट हो कर खड़ा होना पड़ेगा . कोई वैकल्पिक निदान ढूंढना पड़ेगा .
जैसे ?
गुरुकूलों की स्थापना करनी होगी , जहाँ मानवीय मूल्यों एवं आदर्शों की पाठ पढ़ाई जायेगी. बच्चों – बच्चियों को तरासा जायेगा – हीरे की तरह . परम सुख व शांति कैसे मिल सकती है जीवन में समझाया – सिखाया जाएगा . इसी १६ को संध्या समय मुझे पुणे के ऋषी गुरुकुल के एक विद्यालय के कार्यक्रम में शामिल होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. बच्चों – बच्चियों द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रम को देखकर – सुनकर मन – मष्तिष्क प्रफुल्लित हो गया . पता चला यहाँ सुखद जीवन जीने की कला एवं विज्ञान की शिक्षा दी जाती है . चरित्र का निर्माण किया जाता है . जीवन मूल्यों एवं आदर्शों का पाठ पढाया जाता है .
अंग्रेजियत का भूत किस प्रकार दोहन कर रहा है हम सब को , जरा मेट्रो सिटी में घूमकर आओ , दो तरफ़ा मार समझते हो ?
नहीं , हुजूर !
तो समझो , सोनी दीदी की तरह .
नंबर एक : आभिभावक की दीवानगी ( दिवालापन समझने की भूल मत कीजिये ) कि हम बच्चे को पढ़ाएंगे तो इंग्लिश मीडियम स्कूल में ही चाहे पेट ही क्यों न काटनी पड़े , कर्ज ही क्यों न लेनी पड़े आदि – आदि ( झंझट – झमेले सैकड़ों हैं , किसको गिनाऊँ , किसको छोडूं )
नम्बर दो : पढ़ – लिख कर अंगरेजी स्कूल में लड़के – लड़कियां भले ही इंजिनियर , डाक्टर , प्रशासक बन गये – ढेर सारे रुपये कमाने भी लगे , क्या भाग – दौड़ की जिन्दगी व नाना प्रकार के झंझट – झमेलों के सिवाय कुछ ( रत्ती भर भी ) सुख व शांति मिली ?
हम अभी हाल ही में हैदराबाद , बैंगलुरू ,पुणे व कोलकता से घूमकर लोटे हैं .
क्या – क्या देखें ? हुजूर !
शुबह से ही माता – पिता को अपने – अपने बच्चों – बच्चियों को लेकर बस स्टॉप की ओर बेतहासा दौड़ते हुए – भागते हुए – पैदल , दो पहियों पर , मोटरकार में , रिक्शा व ओटो में …….. ओर …
ओर क्या ? हुजूर !
मासूम बच्चों ( साढ़े तीन वर्ष से सात वर्ष के ) की नाजुक पीठ पर पंच्सेरी -दस्सेरी किताबों एवं कापियों की बेरहम बोझ.
मुझे देखकर रोना आ गया – आत्मा चीत्कार कर उठी . अनायास ही फूट पड़ा , “ हे भगवान ! ये सब आप कैसे सहन कर रहे हैं ? हे साईं बाबा , इन माता – पिताओं को सीख दीजिये और मासूम बच्चें – बच्चियों पर रहम कीजिये !
हुजूर ! इतनी उम्र में तो हमलोग खेला – कूदा करते थे . माँ का दूध पिया करते थे . और अब तो … ?
उसकी चर्चा न ही करो तो अच्छा है.
हुजूर ! आये थे हरिभजन को , औटन लगे कपास . कल विधायक जी अंग्रेजी मीडियम स्कूल का ओपनिंग करनेवाले हैं . क्या होगा ?
होगा क्या ? वही होगा जो मंजूरे खुदा होगा . खुलने दो , खुलने दो . मत रोको.
रामखेलावन ! अब कुछ दिन , कुछ वर्ष इन्तजार करो . अभिभावक को जब जबरदस्त ठेस लगेगी तो समझ पायेंगे अंग्रेजियत का भूत असली में होता क्या है ?
वो कैसे ? हुजूर !
मुंबई , बैंगलुरू व पुणे में ऋषी परंपरा के अंतर्गत गुरूकुलों की ओर अभिभावक की रूझान ( आकर्षण ) . अब वह दिन दूर नहीं जब बच्चों – बच्चियों को लोग इन्हीं गुरुकुलों में पढने – लिखने भेजा करेंगे .
तब तो अंग्रेजियत का भूत सर पर पाँव रखकर भाग खड़ा होगा , हुजूर !
इसमें क्या शक है ?
तो इसी खुशी में एक – एक कप चाय हो जाय .
नेकी और पूछ – पूछ . देखा रामखेलावन जोगाड़ – पाती के लिए रसोई घर में जा रहा है .
लेखक : दुर्गा प्रसाद , गोबिंदपुर , धनबाद | दिनांक : २५ अप्रील २०१३ |
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