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Sachchai

Published by Ritu Asthana in category Hindi | Hindi Story | Social and Moral with tag grandmother | guilt | Mother | old age home

झुर्रियों की सच्चाई: In the race of earning more and more, we neglect love and affection of our mother and leave her all alone.Read Hindi story,

old-woman-mother

Hindi Social Story – Sachchai
Photo credit: chilombiano from morguefile.com
(Note: Image does not illustrate or has any resemblance with characters depicted in the story)

“कमला वृद्धाश्रम” में एक बड़ी सी फोटो के सामने एक नवयुवक घी का दिया जलाकर फोटो को माला पहना रहा था। लाल गुलाब के फूलों की माला से पूरा कक्ष युगंधित हो रहा था। नवयुवक बड़ा ही आकर्षक था। उसने हलके नीले रंग का कुरता पायजामा पहना था। उसकी उम्र लगभग २५ वर्ष की होगी। उजला रंग, ऊंचा कद और एक बलिष्ठ व्यक्तित्व का स्वामी था वो नवयुवक। हलकी सी मूंछें और सुनहरे चश्मे में वो एक फ़िल्मी नायक जैसा प्रतीत हो रहा था।

फोटो एक वृद्ध महिला की थी जिसका मुखमंडल पर केवल झुर्रियां ही झुर्रियां ही दिखाई पड रही थीं।महिला की फोटो देखकर ऐसा आभास होता था कि मानो उनकी आँखें किसी का पंथ निहार -निहार कर पथरा सी गई थीं। वस्त्रों से वो महिला किसी सभ्रांत परिवार की  सदस्या लग रही थी।
आज उस महिला की मृत्यु को पूरे पांच वर्ष हो चुके थे।

वो वृद्धा और कोई नहीं इस नवयुवक की दादी माँ थीं। नवयुवक अपने दोनों हाथ जोड़कर अपनी दादी माँ से क्षमा मांग रहा था। उसकी आँखों में अपनी दिवंगत दादी के लिए एक असीम सी श्रद्धा थी।आँखों से निकलते आंसुओं ने उसको और गंभीर बना दिया था। तभी एक सुन्दर सी स्त्री आई और उसने नवयुवक के कंधो पर अपना हाथ रख दिया।

यह नवयुवक था ‘राहुल’ और स्त्री थी, उसकी प्राणो से प्यारी पत्नी  ,’अनामिका’ । दोनों एक दूसरे से असीम प्यार करते थे। एक दुसरे के मन की बात वे अनकहे ही समझ जाते थे।

अनामिका , “राहुल ! तुमने दादी को जिस प्रकार से श्रद्धांजलि दी है उससे अधिक भली प्रकार से संभवतः कोई भी नहीं दे सकता है। अतः तुम्हें अब उनसे क्षमा मांगने की कोई आवश्यकता नहीं है। तुम्हारे ही कारण आज कितने बेसहारा वृद्ध दंपत्ति सुख से इस वृद्धाश्रम में रह रहे है। अपने पिता के अपराध का तुमने एक पुत्र बनकर बड़ी ही भली प्रकार कर्त्तव्य निभाया है। और तो और ये सब आज किसी अपने की प्रतीक्षा नहीं करते हैं क्योंकि ये सभी तुम्हे ही अपना पुत्र मानते है। एक अनोखा सा सम्बन्ध है तुम्हारा इन सब से, राहुल। तुमने अपनी दादी के नाम का ये वृद्धाश्रम बनाकर ना जाने कितने दुखी वृद्धों को एक सच्चा सहारा दिया है। मुझे तुम पर गर्व है राहुल।”

राहुल धीमे से मुस्कुराकर बोला , “अनु ये सब केवल तुम्हारे कारण ही संभव हुआ है। आज भी मुझे वो दिन याद है जब तुम्हारा पत्र अमेरिका पहुंचा था।
हृदय को दहलाने वाला और अंतर्मन की आँखे खोलने वाला पत्र था कसम से। ”
अनामिका शर्माकर वहां से चली गई और राहुल अपनी पांच वर्ष पूर्व की स्मृतियों में खो गया।

——-
“साब जी!!! साब जी !!! भारत से एक पत्र आया है। ” बहादुर की इस तीव्र ध्वनि प्रातः काल गूंजी।
माँ से उसे फटकार पड़ी ,”कितनी बार बोला है की पत्र पापा की टेबल पर रख दिया कर। पर जब तक ये शोर ना मचाए इसका खाना ही नहीं पचता। ”
राहुल अर्धनिद्रा में था। वो अपने कॉलेज के अंतिम वर्ष में था। राहुल ने पूछा ,”माँ !! किसका पत्र है?”
माँ ने उत्तर दिया , “अरे तू सो जा। पापा के लिए है। ”

राहुल के पिता एक बहुत बड़े वकील थे। और कई वर्षो पहले उन्होंने अमेरिका को ही अपना देश बना लिया था। राहुल को किसी कार्यवश आज पापा के अध्ययन कक्ष में जाना पड़ा। टेबल पर पड़े पत्र पर उसने सरसरी सी दृष्टि डाली और चला गया। किन्तु अचानक जाने उसे कौन सी अदृश्य शक्ति पुनः भीतर खींच ले गई।

टेबल पर भारत से आया हुआ एक पत्र था। पत्र, भारत के उत्तर प्रदेश के एक धार्मिक शहर बनारस से आया था। राहुल ने उसे खोला और पढ़ने लग गया।
पत्र किसी लड़की ने लिखा था। कुछ इस प्रकार से

अदरणीय———
जो कोई भी आप हों, टाटा, बिरला या अम्बानी। आपके नाम, आपकी पहचान से मुझे कोई सारोकार नहीं है। कोई भी व्यक्ति बिना माँ के इस संसार में नहीं आता। जहाँ तक मुझे स्मरण है कि आपने इन कुछ वर्षों में अपनी माँ का हाल चाल जानने की इच्छा तक नहीं की। वो माँ जिसने क्या नहीं किया आपके लिए, और प्रतिदान में माँगा तो क्या, केवल प्यार और स्नेह पर खेद है कि आप उन्हें कुछ न दे सके।रूपए, पैसे भेजकर ही आपने अपने कर्त्तव्यों की पूर्ती की। किन्तु कभी ये नहीं सोचा कि मेरी माँ अब वृद्ध हो रही हैं,अकेले कैसे रहेंगी।
कहना तो नहीं चाहिए किन्तु फिर भी कह रही हूँ कि, घिन आती है मुझे तुम जैसे निम्न वर्ग के लोगों से जिनका जीवन अपने सुख,चैन के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। तुम्हारी जननी अब मृत्युशैय्या पर है। आज वो झुर्रियों का ढांचा मात्र रह गई है। यदि झुर्रियों की सच्चाई जानने के लिए उत्सुक हो तो एक बार अपने देश, अपनी मिटटी एवं अपनी स्नेहमयी माँ के दर्शन कर लेना। और यदि नहीं तो आपके किरायदार ही उनकी देखभाल कर लेंगे और अंत में क्रियाकर्म भी कर देंगे।
पत्र का उत्तर देने का कदापि कष्ट न करें।

—-अनामिका

पत्र पढ़ते -पढ़ते राहुल की आँखों से टप -टप आंसू बहने लगें। राहुल बड़ा ही दयालु एवं समझदार लड़का था। उसको अपने पिता के इस कृत्य पर बड़ा क्रोध आया। उसने सोचा कि यदि उनका मन पत्थर का हो गया है तो क्या हुआ मै भारत जाऊंगा। और मै दादी को अपने साथ लिवा लाऊंगा। राहुल ने सायंकाल को जब अपने पापा को वो पत्र दिखाया। उन्होंने बताया कि वे आवश्यकता अनुसार पैसे भेज देते है और क्या कर सकते  हैं।
राहुल अपनी जिद पर अड़ा रहा और आखिरकार एक दिन वो भारत आ गया।

बनारस, भारत का एक बड़ा ही पवित्र एवं धार्मिक स्थल है। कहते है कि वहां के पेड़, पौधे भी मन्त्र गुनगुनाते हैं।हमारी पवित्र नदी गंगा का ये स्थान है।यहाँ की धरती अति पावन है। किसी प्रकार गलियों से होते हुए वो अपनी दादी के घर पहुंचा। वो अपनी दादी के साथ न्याय करने और उस पत्र वाली लड़की से मिलने को बड़ा ही उत्सुक था। ठक -ठक करने पर किसी लड़की ने दरवाजा खोला।

लड़की ने राहुल की और प्रश्नसूचक आँखों से देखा। राहुल पहले तो अपलक उसे देखता ही रह गया।उसका सांवला रंग, तीखे नैन और काले बदलो के सामान उसके लहराते केश देख, राहुल मानो सम्मोहित सा हो गया। इतनी सादगी?इतना सौंदर्य? सच में सच्ची सुंदरता तो सादगी में ही है।मन ही मन वो सोचने लगा कि कहीं ये अनामिका तो नहीं।
राहुल ने लड़खड़ाते हुए पुछा , ” ज जी म म मै राहुल ……मम मै अमरीका से ………. . ”
और आगे उसे कुछ बोलने की आवश्यकता ही बही पड़ी, क्योंकि, अनामिका जो थी सब कुछ बोलने के लिए,”अच्छा !! तो आ गए आप? पर आप अम्मा के बेटे तो…। ” वो कुछ असमंजस में पड़ गई।
राहुल बिना अवसर को गंवाए तीव्रता से बोला, “जी मै आपकी अम्मा का पोता, राहुल हूँ। क्या मै उनसे ?”

अनामिका कुछ कहती, इसके पहले ही राहुल घर के भीतर चला गया। एक टूटी सी चारपाई पर उसकी दादी लेटी हुई थीं। दादी क्या, वो तो एक झुर्रियों की गठरी सी प्रतीत हो रही थीं। राहुल ने कभी स्वप्न में भी ये नहीं सोचा था कि उसकी दादी इस बुरे हाल में मिलेंगी। वो सकपका गया और बोला, “दादी!!!! ओ दादी !!! देखो मै आया हूँ। ”
कमला ने अपने कांपते हुए हाथ उठाए और बोली , “आ गया मेरा लाल? बस ये साँसे तुझे देखने को ही व्याकुल थी मेरे बच्चे, मेरे राकेश। ”
राहुल रोते-रोते बोला, ” पर दादी मै तो र ………
राहुल पूरा बोलता, तभी किसी के कोमल हाथ ने उसे चुप करा दिया।
अनामिका बोली , “नहीं राहुल सच नहीं। उन्हें, तुम्हे अपना राकेश ही समझने दो ताकि उनकी कोई इच्छा अधूरी न रह जाए।

राहुल, दादी को गले लगाकर बहुत रोया। कुछ ही देर में दादी इश्वर को प्यारी हो गई।दादी की साँसे जैसे उसकी प्रतीक्षा ही कर रही थीं। राहुल के पश्च्चात्तप का कोई पारावार ना था। वो बिलख-बिलख कर रोया। उसने प्रण कर लिया कि  पिता की इस भूल का सुधार वो स्वयं करेगा। राहुल ने बनारस में एक वृद्धाश्रम बनवाया और कभी वापस न जाने की शपथ खाई।

अनामिका अब तक उसकी एक अच्छी मित्र ही नहीं अपितु उसकी जीवनसंगिनी बन चुकी थी।

——
अनामिका ने प्यार से उसके कंधे हिलाये, “राहुल !! चलो आज सब तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे है। आज के दिन तुम अपने हाथों से सबको खाना खिलाते हो ना।

राहुल वापस वर्तमान में लौट आया अपनी आँखों में जीवन जीने की एक नई चमक और एक नवीन उत्साह लिए। राहुल ने सभी वृद्ध जनों को बड़े ही स्नेह एवं आग्रह से भोजन कराया। तभी अनामिका घबराई सी आई और बोली , “राहुल बाहर एक नए दंपत्ति आए हैं। ”

राहुल तीव्रता से अपने ऑफिस में गया, उस दंपत्ति की पीठ राहुल की ओर थी। वो दरवाजे से ही बोला ,” जी बताइये मै आपकी क्या सहायता कर सकता हूँ ?”

उन दोनों ने एक ही स्वर में कहा, “बेटा हमें भी इस वृद्धाश्रम में तनिक स्थान दे दो । हम भी अपने अपराधों का पश्च्चात्ताप करना चाहते है। ”

अब तक राहुल अपनी कुर्सी तक पहुँच चुका था। अपने माता -पिता को समक्ष पाकर उसे बड़ी हैरानी हुई। राहुल अपने रोते हुए माता -पिता को दादी की फोटो के समक्ष ले गया।

राहुल  अपने दृढ स्वर में बोला, “आज पांच वर्ष पश्चात्,  अपने पुत्र से बिछड़कर संभवतः आप को स्मरण हुआ होगा कि पुत्र के यूँ अकेले छोड़ जाने पर माता – पिता को कितना हृदयाघात लगता है। मैंने आपको कष्ट देने के उद्देश्य से नहीं बल्कि उन तमाम वृद्धो को जीने का एक सुनहरा अवसर देने के लिए ही दादी की स्मृति में ये वृद्धाश्रम बनवाया है। यदि आप अपनी माँ से तनिक भी स्नेह रखते हैं तो कुछ ऐसा करिये अपने वृद्धों के लिए, अनाथों के लिए जिससे कि दादी ना केवल आपको क्षमा कर दे अपितु अपना स्नेहशीह भी आप पर सदा ही बनाए रखें। आज संभवतः आपको अपनी माँ की झुर्रियों की सच्चाई और उनके दुखों का आभास हो गया है। उन झुर्रियों के पीछे कितने दर्द, कितनी पीड़ा एवं कितना त्याग छिपा है इसका अनुमान भी लगाना असंभव है।  पर मै क्षमा चाहता हूँ यहाँ पर आपके लिए कोई स्थान नहीं है। ”

इतना कहकर अपने दोनों हाथ जोड़कर राहुल अपने वृद्ध जनो के बीच में चला गया।

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