रचनात्मकता
नन्ही चिड़िया के नन्हें –नन्हें बच्चे पंखो को फड़फड़ाते ,चीं –चीं करते ,इधर –उधर फुदकते –विहान के लिए इससे अच्छा मन को लुभाना वाला कोई खेल नहीं हो सकता था । विहान को चिड़ियो के बच्चो के साथ चहकते देखकर सरला भाव –विभोर हो उठती । विहान तीन साल का ही था अभी ,असमय पापा की मृत्यु से उसके आसमान के छोर विखर गए थे,पिता शब्द को अभी समझ भी नहीं पाया था आने वाले समय की आहट से बेखबर था ,सरला को ही इसके मायने से रुबुरु कराना था।
विहान को मुसकाए काफी दिन हो गए थे , सरला जीतने अच्छे डॉक्टर को दिखा सकती ,दिखा चुकी थी ,सारे खेल कर चुकी थी ,गीत गा चुकी थी ,भभूत भी लगा के देख चुकी थी ….पर आज उसके कानो में बड़े दिनो के बाद ये किलोल की आवाज आई थी ,सरला को सकूँ मिला ,उसकी हंसी भी विहान की मुस्कान के साथ एक हो गई थी। विहान को खेलने के लिए दोस्त मिल गए थे । विहान भी सारा दिन फुदूकता रहता चिड़िया के बच्चो की तरह ।
घर में बिखरे तिनके ,चिड़ियों की बीट,टूटे पंख सरला को परेशान कर देते ,पर विहान की हंसी देखकर सारी परेशानी काफ़ूर हो जाती। चिड़ियो को घर से बाहर निकालने को सोचा तो कई बार था पर कभी कुछ – कभी कुछ में ऐसा हो नहीं पाया और अब इस विचार की इमारत कमजोर हो गई थी क्योंकि उस पर विहान की मुस्कराहट की मचान जो बन गई थी ।
विहान अब स्कूल जाने लगा था , समय पर लगा कर उड़ रहा था । नए दोस्त ,नए महोल में विहान को गढ़ रहे थे । चिड़ियो की ओर अब उसका ध्यान कम ही जाता था ,कभी चिड़िया ही उससे मिलने आ जाती या शोर मचाकर उसका ध्यान खींचना चाहती ,इसको विहान खुद की निजता में दखल समझने लगा , विहान का एक जुड़ाव उन पक्षियों के साथ था जिसे वो समझा ही नहीं था । सरला भी विहान के नाश्ते ,खाने के साथ-साथ अनायास ही पक्षियों को भी दाना – पानी दे देती । जब कभी विहान कोई गलती करता और सरला उसे डांट लगाती ,अजीब इतेफाक था ,चिड़िया पूरे परिवार समेत कुछ न कुछ उधम मचा ही देती और मामला कहाँ से कहाँ पहुँच जाता । गुस्सा और उफनता तो पर अब उसको सहना चिड़ियों को पढ़ता ,कभी –कभी तो उनकी जान पर बन जाती ,सरला के जो हाथ में आता ,फेंककर मार देती थी ,पर विहान और विहान की दोस्त चिड़िया एक –दूजे के रक्षक बन ही जाते । माँ –बेटे में कहा सुनी हो जाती चिड़ियो को घर से निकालने को लेकर पर कोई फैसला नहीं निकल पाता था ,कभी माँ की अकड़ कम हो जाती कभी बेटा ही जिद छोड़ देता ।
विहान स्कूल की दुनिया में रमता जा रहा था , स्कूल की दुनिया –हाँ जो विहान को नए आयाम दे रही थी ,अच्छा बोलना ,एक – दूसरे की मदद करना , निर्देशों को झट समझकर पूरा का देना ,विनम्रता से सरोबर रहना ऐसी ही और दस – बीस हिदायते दी गईं थी ,पुस्तकों के साथ ये सब मिलकर उन्हें कोई मुकाम दिलाते थे ,उसी की कोशिश में सारे शिक्षक लगे रहते और बच्चे भी उसे ढूंढ पाते या नहीं ,ऐसी दुनिया खोज पाते या नहीं पर दिखाना तो ये ही था – उनको एक दौड़ में भी तो शामिल कर दिया था इसी स्कूली दुनिया ने ,अब दौड़ शुरू हो गई थी बीच में रुकना इस दुनिया की बात नहीं थी । विहान की कक्षा को पक्षी मेले की तैयारी करनी थी ,सभी बच्चो को रोचक टास्क मिल गए थे ,ये प्रदर्शनी भी उनकी दुनिया में खास जरूरी थी ।
विहान को इस अवसर पर कुछ अच्छा सूझ ही नहीं रहा था ,नए – नए चित्र बनाता ,रंग भरता ,अपनी माँ को दिखाता ,किस बच्चे की माँ को अपना बच्चा और उसका काम पसंद नहीं आता ,सरला भी इसी दुनिया की थी ,तारीफ करते – करते थक गई पर विहान को कुछ कमी हमेशा महसूस होती । उसे संपूर्णता की बाकी बच्चो से अच्छा करने की परिभाषा बताई गई थी ,तमाम अच्छे प्रयासो के बाबजूद उसे संतोष नहीं मिल रहा था । अगले दिन कक्षा के बच्चे अपने –अपने माडल दिखा रहे थे , शिक्षक ने ऊपरी तौर पर तो प्रसंशा की थी पर उन्हे भी मेले के दिन किसी तारीफ मिलने का दमखम वाली कला नजर नहीं आई थी , विहान को आज चेतावनी देकर छोड़ दिया गया था ,दो दिन बाद मेला था। विहान को अब बाकी के पत्ते तो दिख गए थे उसे बस अपनी चाल चलनी थी ,पर कला ,माडल में तो बाकी साथी विशेष कर ही चुके थे उसे कुछ सूझ नहीं रहा था ।
मेले वाले दिन और स्कूल के बच्चे भी प्रतिभाग करने के लिए आए हुए थे ,सभी में होड़ थी एक –दूसरे से ,प्रसंशा तो जारी थी एक –दूसरे की पर एक अजनबी जलन के साथ ,जो चाहे –अनचाहे इस स्कूली दुनिया में उनमें समा गई थी । सभी को प्रतीक्षा थी अब परिणाम की ,सबसे बेहतर चित्र ,माडल किसका है –ये जानने की ,आल द बेस्ट एक दूसरे को दे रहे द पर मन में अपने ही जीतने की प्रार्थना भी । जैसा सभी को ये तो पता ही चल चुका था की प्रथम किसको आना है ,उन्हे तो इंतज़ार था दूसरे व तीसरे क्रम का । वास्तव में विहान की कृति सब में अनोखी बन पड़ी थी । चारो तरफ आकाश ,रंग आदि की कला तो बाकी जैसे ही थी पर जो उसे अलग कर रही थी वो थी असली चिड़िया के पंख लगे पक्षी । किसी को इससे सरोकार नहीं था की वो कहाँ से आए पर सभी विहान के रचनात्मक दिमाग की तूती बखार रहे थे।
विहान अपनी रचनात्मकता के शिखर को जान चुका था –माननीय शिक्षा अधिकारी ने उसे सहारते हुए अपने विचार व्यक्त किए।
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