This is not just a story but a perfect example of love and understanding. In this story you will learn how an educated and independent girl took a bold step for her daughters to change the mentality of the people living around her. It’s an inspirational story for both male and female to learn the importance of life of others. Girls are not less than boys .. Infect they are equally making proud their family and nation! My motive is to reflect women power through my words in a simple way!!!
नारी शक्ति… यह शब्द कानो तक पहुँचते ही रगो मे जोश तेज़ रफ़्तार से दौडने लगता है । नारी शक्ति के दर्जनो उदहरणसवरूप मस्तिश्क मे अनगिनत छविया उभरने लगती है कि मानो हमारे साहस को किसी ने लल्कार मारी हो …!!!
नारी शक्ति का अनुमान कोई भी पूरे एक जन्म तक नही लगा सकता । नारी को देवी के नाम से सम्मानित कर हम भारतीय अपनी पुरानी परंपरा को सम्मान तो देते है पर पौराणिक गाथाओ से लेकर आज तक के युग मे नारी की सहनशीलता का पग पग पर इम्तहान भी लेते आये है। कन्या के जन्म से ही उसके सन्घर्श की गाथा का प्रारम्भ होता है । बेटा बेटी की तुलना का घटिया खेल फिर होता है । जिसने पहले ही पग पे सन्घर्श को भापा हो उसको बचपन से ही फर्क का अनुभव होता है । मा, बेटी, बहन व पत्नि… हर साँचे में खुद को ढाल एक औरत अपने आप को सम्पूर्ण समझती है । एक शख़्सियत अनगिनत भूमिकाओं की कडियों से जुड़ कर खुद को कितने ही नाम वो देती है । ऐसे ही एक प्रभावशाली वास्तविक पात्र के जीवन के अनुभवों से प्रेरित होकर मै एक लेख अपने शब्दो मे लिख रही हू जिसमे नारी शक्ति की एक छवि से आप सबका परिचय होगा ।
एक माला शब्दो की है॥ हर नारी एक मोती है॥
एक एक मोती पिरोके मैने॥ सुन्दर रचना सन्जोई है॥
(1) शोभा – साह्सी औरत!
शोभा एक शिक्षित परिवार से बहुत सुलझी व बुद्धिमान औरत है! दिल्ली की एक शिक्षित व होशियार लड़की की किस्मत उसे दूर ब्याह कर लन्दन ले गई। उसने अपने माता पिता की पसन्द के लडके को अपना जीवन साथी मान कर उसके साथ लन्दन जाने का मन बना लिया। अपने देश व अपने लोगो से दूर उसने अपनी नयी दुनिया बसाई है।
शोभा का एक बेटा और दो बेटियां है! एक हसते खेलते परिवार को शोभा ने बहुत समझदारी से बसाया है! सभी की तरह शोभा के जीवन मे भी कई उतार चढाव आये परन्तु हार न मानते हुए वह आगे बढ़ती रही। अपनी समस्याओ का सामना कर समझदारी से उन्हे सुल्झाते हुये आम लड़कियों के लिये एक खास उदाहरण बनी।
उलझने दस्तक देकर तो नही आती पर कौन कितना अपना है ये सही वक्त ही बताता है । शोभा की शादी एक बड़े परिवार मे, एक अच्छे लडके से हुई । उसका पति सूरज उसे बहुत प्यार भी करता था ।सास ससुर, नन्द देवर, शोभा व उसका पति सब साथ मे एक सुखी परिवार की तरह आपस मे मिलजुल कर रेहते थे।
बदलाव तब शुरू हुआ जब शोभा पहली बार गर्भवती हुई। लंदन मे गर्भवस्था की बारीकि जान्च यानी की स्केन मे शिशु के विकास व वृदि के साथ साथ वह बेटा है या बेटी ये भी ग्यात हो पाता है । गर्भ मे लडकी है यह जानते ही घर वालों का व्यवहार अब बदलने लगा था। यह कहना आसान है कि हम इन्सान है और दूसरे इन्सान के भाव अच्छे से समझते है । परंतु भावो की गहराई को भाॅप पाना हर किसी के बस की बात नही होती। शोभा खुश थी क्योंकि वह पहली बार माँ बनने जा रहा थी। सभी कि तरह वह अच्छी तरह से खुद का ख्याल रखना चाहती थी। यह जानते हुए कि उसका पति अभी इतनी जल्दी बाप होने की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं था शोभा अपने फैसले पर डटी रही। अपनी कोख मे पल रहे अपने अनमोल अंश को वह कदापि खोना नही चाहती थी।
वह हर रोज़ नियमित रूप से अपने सारे काम निपटाती। घर, व्यवसाय,रिश्ते व हर ओर… किसी भी कोने को अधूरा छोडना उसे नापसंद था। अपने सारे काम वह दिल से करती परंतु जिस प्यार व दुलार की वो हकदार थी वो अब कही लूप्त होता नज़र आ रहा था।
एक पड़ोसी भी गर्भावस्था में मदद करता है परंतु क्योंकि उसका परिवार यह जानता था कि उसके गर्भ में एक लड़का नहीं लड़की है इसलिए उन्होने किसी भी कार्य मे दिलचस्पी नही दिखाई व शोभा की गर्भावस्था को लेकर लापरवाही भी बरती । वक्त पर भोजन न देना, भोजन मे पौष्टिक आहार न परोसना, बेवक्त काम करवाना, नियमित रूप से जाँच के लिये अस्पताल साथ मे न जाना ! ये सब करके भी जब उन लोगो का जी न भरा तब उन्होने शोभा और उससे जुड़े हर कार्य से मुहॅ फेर लिया।
शोभा समझदार थी पर हैरान भी थी। किंतु अपने अंश की रक्षा व पालन – पोषण हेतू वह सब कुछ नज़र अंदाज़ करती रही !समय बीतते देर न लगी और एक नन्ही गुडिया ने शोभा के जीवन मे प्रवेश किया । एक छोटी सी बच्ची ने अपनी मासूम छवी से सभी घरवालो को अपनी आकर्षित कर लिया।
सभी के चेहरे पर मुस्कान थी व घर के पहले बच्चे के लिए सभी के दिल मे बहुत प्रेम भी उमडा।
बच्ची हिना बिलकुल माँ के नैन नक्श ले कर जन्मी थी। दूधिया रंग,सुनहरे बाल, भूरी ऑखे, तीखा नाक व् प्यार भरी मुस्कान बचपन नाम ही खुशियो का है। घर आंगन खिल उठता है बच्चे की किल्कारियो से। एक प्यारी सी परी ने सबका दिल जीत लिया और दादा दादी भी यह सोच कर शान्त हो गये कि आज भगवान ने लक्ष्मी दी है तो कल को कान्हा भी घर मे जन्मेगा । अपनी छोटी गुडिया के साथ शोभा ने जीवन का हर पल बाँध दिया था। समय बीतते देर न लगी हिना पाँच साल की हो चुकि थी और फिर से एक बार सब बहुत खुश थे। शोभा फिर से माँ बनने वाली थी!
शुरु के तीन महीने सभी ने शोभा का बहुत ख्याल रखा परंतु शोभा को इतना उपरला प्यार हज़म नही हो रहा था क्योकि वह उस प्यार मे मतलब की बू को भाप पा रही थी। पोता पाने की लालसा वह घर वालो की आँखो मे साफ देख पा रही थी। अंदर ही अंदर उसका डर उसे परेशान कर रहा था… शोभा जानती थी कि इस बार उसके घर वाले जाँच के समय उसे यह पूछने को कहेंगे कि उसके गर्भ मे आखिर बेटा है या बेटी…?
इस बात ने शोभा की रातो की नींद उड़ा दी थी, निवाले मुह से अंदर नही जा पा रहे थे यह सोच कर कि यदि फिर से लड़की हुई तो ये लोग मेरा जीना मुश्किल कर देगे और अगर भगवान कि कृपा से लड़का हो गया तो मेरी बेटी हिना की अहमियत कम हो जाएगी । उसने खुद को सम्भालते हए दिन काटे और आखिरकार वो दिन आ ही गया। जाँच से पहले अस्पताल के कमरे मे अपने पति को उसने सहम कर अपने मन का हाल सुनाया। सूरज ने दिलासा देते हुए कहा,”तुम चिंता मत करो सब अच्छा ही होगा बस तुम अपना अच्छे से ध्यान रखो।” यह सुनकर शोभा को थोड़ा चैन पड़ा और शांत मन से उसने भगवान से दुआ मांगी कि हे भगवान मेरी लाज रख लेना।
पति के कोमल शब्दो ने उस पल एक सहारे का काम किया। उसे यह महसूस होने लगा कि जिन भावो के जाल मे हर रोज़ वो खुद को जकड़ा पाती थी, उस परिस्थिति मे अब वो खुद को अकेला नही देखेगी। उसे इस बात कि तसल्ली थी कि कुछ भी हो मेरा पति मेरा साथ ज़रूर देगा। जाँच शुरू होने पर शोभा ने सूरज को अपने करीब बैठने को कहा ताकि वह सूरज का हाथ थाम कर उसका साथ महसूस करती रहे। जाँच के दौरान डॉक्टर बहुत ही अच्छे से दोनो पति व पत्नी को उनके शिशु के विकास के बारे मे समझा रहा था।डॉक्टर ने बताया कि शिशु की वृधि बिल्कुल सही रूप से हो रही है! दोनो माता पिता को यह सुन कर बहुत खुशी हुई।शोभा ने प्यार भरी आंखो से जब सूरज की तरफ़ देखा तो सूरज ने इशारे मे ही सही पर शोभा को यह समझा ही दिया की वो और क्या जानना चाहता हैा
कुछ पल जान्च मे नन्हे बच्चे की धुॅधली तस्वीर को निहार कर माता पिता अपनी आॅखो मे अपने बच्चे की पूरी छवि उतार लेते हे। उस छवि के आगे दुनिया की कोई और चीज़ नही भाती। किन्तु यदि पहला बच्चा एक बेटी हो तो यह स्वाभाविक है कि वह अगली बार एक बेटा ही पाना चाहेगे। शोभा ने भी विचार कर यह पूछ्ने का फ़ैसला बना ही लिया उसने अपनी नौका राम भरोसे छोड़ दी और सूरज को हामी भरते हुए डाक्टर से अपना सवाल पूछा जिसका उत्तर जानने को सूरज व्याकुल था।डॉक्टर ने बारीकी से देखते हुए कहा, “लगता है आपकी कोख मे एक नन्ही गुड़िया है।” शोभा ने बौखलाते हुए कहा कृपया एक बार गहराई से जॉच करके बताइए कि लडकी ही है? डॉक्टर ने दोनो मॉ बाप के चेहरे पढ लिये। उसे उनकी परेशानी ज्ञात हो चली थी।डॉक्टर बोले, “चूकि अभी जीव छोटा है व शारीरिक तोर पर वृधि धीेरे धीरे ही होती है। इस अवस्था मे मै कोई भी उत्तर ठोस रूप मे नही दे सकता! पॉचवे महीने मे शिशु के अंग थोड़े और साफ रूप मे नज़र आते है इसलिये मै चाहूँगा आप तब तक इंतज़ार करे और अपनी व अपने शिशु की देखभाल ठीक से करे।”
शोभा का निराश चेहरा देख कर डॉक्टर ने सूरज को एकांत् मे ले जाकर समझाया कि बेटा हो या बेटी आज के दौर मे दोनो का दर्जा एक समान है और शिशु के विकास से ज्यादा ज़रूरी कुछ नही होता।डॉक्टर होने के नाते उसने सूरज को समझाया कि वह शोभा का हर तरीके ख्याल रखे। कोई गहरी सोच या तनाव गर्भावस्था मे न मॉ के लिये ठीक है और न ही उसके होने वाले बच्चे के लिये। सूरज थोड़ा चिंतित था की वह घर वालों को क्या जवाब देगा। क्या कहेगा उनसे की वह उन्हे एक पोता नही दे सकता? घर का वारिस पाने की इच्छा वह अपने माँ बाप की हर उमंग मे देखता आया है। पहली बार तो वह मान गये पर अब कैसे मै उनको मनाऊँगा ??
अपनी चिंता की लकीरों को माथे से हटाकर सूरज डाक्टर की और देखते हुए उन्हे यह आश्वासन देता है की आप बिलकुल भी चिंता न करे.. मै शोभा की देख रेख अच्छे से करूंगा!
दोनो पति पत्नी जाचँ पूरी होने के बाद व डाक्टर के कहे अनुसार कमरे से बाहर आये और अस्पताल के भोजनालय मे बैठ कर दोनो सोच मे डूब गये व् डाक्टर की कही बातों पे ग़ौर करने लगे।
पास बैठी महिला ने शोभा की ओर देखा व कहा! “तुम गर्भवती लगती हो.. तुम्हारे हाथ मे अस्पताल की हरी फ़ाईल देखकर ही मै समझ गई थी!”
शोभा ने हल्के से सिर हिलाकर हामी तो भर दी परंतु अपने भावो को अपने चहरे पर आने से वह नही रोक पा रही थी। उस महिला ने शोभा को सदा हँसते रहने को कहा और ये भी कहा की तुम ख़ुश रहोगी तो तुम्हारा बच्चा भी तुम्हारी कोख मे हसता खेलता रहेगा। सूरज यह बात सुन कर सोचने लगा की इसमें शोभा का क्या दोष? इसमें कोई कुछ नही कर सकता.. ये सब ऊपर वाले के हाथो मे है। हो सकता है अगली बार जाँच मे कुछ ऐसा सुनने को मिले की सबके मन हरषा जाये। सूरज ने मन ही मन ईश्वर से विनती की और कहा हे प्रभु सब अच्छा अच्छा करना। शोभा का हाथ थामते हुए सूरज ने प्रेम पूर्वक कहा हाँ शोभा हसती रहो और ख़ूब खाओ।शोभा का होंसला और ताक़त है उसका पति.. हर हाल मे ढाल बन रक्षा करेगा उसका सूरज। सर विचार पाकर शोभा को बहुत राहत मिली।
घर आकर सूरज ने अपने माता पिता को तसल्ली देते हुए कहा सब बढ़िया है और बाक़ी सब दो महीने बाद दूसरे सकैन मे पता चलेगा। माँ ने सर पर हाथ रख कर बोला हाँ बेटे मुझे पूरा भरोसा है ठाकुर जी पर इस बार कान्हा ज़रूर आएगा। सासु माँ ने शोभा की ओर देखा व कहा बहु तुम बस अच्छे से अपना ध्यान रखो और हिना को मै सम्भाल लिया करूँगी।
कहते है! “थोड़ा सुख और थोड़ी शांति काफ़ी रहती है ख़ुशी से जीने के लिये”। इस एहसास को पाकर शोभा का दो महीने का सफ़र झट से निकल गया। भीतर की सच्चाई से अवगत होकर भी शोभा का डर अब जा रहा था। मन मे वह यह संकल्प कर चुकी थी कि ईश्वर ने उसे जो भी वरदान दिया है वह उसे ख़ुशी ख़ुशी इस दुनिया मे लायेगी। मानो ये ऊर्जा उसे ईश्वर का ध्यान देने से मिल रही थी। अपनी माँ से वह अपने मन की सारी बात फ़ोन के ज़रिये कह दिया करती थी। उसकी माँ ने उसे एक सुंदर उदाहरण देते हुए उसे उसकी ताक़त का एहसास दिलाया। उन्होंने कहा! “बेटा हो या बेटी यह कोई तय नही कर सकता.. तुम्हारे अंदर एक जीव है जो इस दुनिया मे आने के लिये भेजा गया है। तुम तो केवल एक ज़रिया हो.. आने वाला खुद की क़िस्मत साथ लायेगा। जीवन व मरण किसी के हाथ मे नही होता परंतु हम प्रेम से हर रिश्ते को सींच सकते है। बस तुम ये समझ लो की तुमको भगवान ने एक खास कार्य दिया है करने को.. दिल लगा के वह कार्य पूरा करो और तुम देखना भगवान साथ ज़रूर देंगे।
शोभा मे बहुत बदलाव आ चुका था। उसका सोया आत्मविश्वास खुल के साँसें भर रहा था। और आख़िर कार वह दिन भी आ गया जब अपनो के साथ का सच और झूठ सब सामने आ गया। डाक्टर की जाँच से यह पक्का हो गया की बेटी ही जन्म लेगी। यह ख़बर एक कड़वा सच थी घर वालों के लिये। लाख समझाया सूरज और शोभा ने उन्हे पर वह एक हठी बच्चे के जैसे रुठे हुए थे। बच्चा तो फिर भी मान जाता है परंतु माता जी को तो जैसे शोभा से नफ़रत होने लगी थी। सात महीने तक शोभा उनके कड़वे बोल व सख़्त व्यवहार बर्दाश्त करती रही पर हर हद की भी हद होती है और बेकार की वजह से यूँ नफ़रत पाल लेना भी ग़लत होता है। आठवें महीने तक शोभा सारे कम कर रही थी। घर की सफ़ाई करती, व्यवसाय के कार्यों मे हाथ बटाती, घर आकर खाना भी बनाती और हिना को अपना बचा वक़्त देती। हिना के मासूम सवाल जवाब उसे ख़ुश रहने मे मदद करते। पति को काम मे व्यस्त देख वह कभी उसे परेशान नही करती थी और सूरज भी सास बहू की घरेलू नोक झोंक मे पड़ना नही चाहता था। वह खुद को काम मे मशगूल कर रोज़ रोज़ की चिक चिक से दूर भागता था।
इस तरह उसका ध्यान शोभा पर से भी हटने लगा था। किसी को भी यह एहसास नही था की अब महीने शोभा को आराम करना चाहिये।
एक सुबह शोभा के घुटनो मे बहुत दर्द हो रहा था। उसने अपने ससुर जी से कहा पापा कल देर रात तक काम किया था स्टोर मे और ठंड भी बहुत थी इसलिये आज घुटनो मे दर्द है। शोभा छुट्टी लेकर आराम करना चाहती थी पर उसके ससुर ने उसकी बात को उलटा जता दिया और ग़ुस्से से कहा, “क्यों हम बहुत काम करवाते है तुम से? तुम क्या करती हो वहाँ आकर? हमने तो अच्छे कर्मचारी रखे है और स्टोर के कामों के लिये नौकर भी है, बस दो चार दिन वहाँ खड़े होने से तुम्हारे घुटने दुखने लगे? घर बैठ कर आलसी न बनो इसलिये तुमको काम की जगह हम बुलाते है पर तुम क्या दिखाना चाहती हो कि हम दिन रात तुम से काम करवाते है?”
इतने कड़वे बोल सुनकर शोभा क्या सफ़ाई देती और उसकी हिम्मत भी नही हो रही थी। सूरज ने तो जैसे कुछ सुना ही नही था! माता जी व बाक़ी के घर वाले शोभा को ऐसे घूर रहे थे कि जैसे वह एक अपराधी हो। शोभा की छोटी नन्द व देवर नाराज़ होकर यह कहने लगे! “आज आपने हमारे पिता को जवाब देकर उनसे बदतमीज़ी की है।”
पर शोभा ने कहा, “मैने कोई ग़लत बात नही कही बस सही बात कही जिसे आपने ग़लत समझा। मेरा आठवीं महीना चल रहा है और आजकल ठंड भी बहुत होती है।ऐसे मे मै अपने स्वास्थ्य को लेकर कोई लापरवाही नही बरत सकती।”
बस फिर क्या था.. सासु माँ को जैसे मौका मिल ही गया अपने अंदर की भड़ास निकालने का। उन्होने आव देखा न ताव बस ज़ोर ज़ोर से रोते हुए कहने लगी।”हाँ हम तो तेरे दुश्मन है जो तेरी देखभाल नही करते। सारा दिन तुझसे काम करवाते है और हम आराम करते है। बस एक पोता पाने की चाह तेरे आगे रखी जो तू पूरी न कर सकी और अब दुनिया के आगे हमें बुरा ठहरा रही है।”
माता जी बहुत भड़की हुई थी.. जाने कितने महीनों का जमा ज़हर उनके मुहँ से उगल रहा था। शोभा को बहुत दुख हुआ यह देख कर कि सब मेरे ख़िलाफ़ बोल रहे है पर सूरज चुप है? वह क्यों नही मेरे लिये सबको समझाता? वह बोली,”आप सब मुझे ग़लत समझ रहे है मै बाहर किसी के आगे घर की कोई बात नही करती। पर आप सब समझते क्यों नही है कि बेटे या बेटी होना किसी के हाथ मे नही है.. यह सब ऊपर वाला तय करता है। और बेटियाँ भी तो रौनक होती है घर की.. मै भी तो किसी की बेटी हूॅ। आज भगवान ने बेटियाँ दी है.. कल को क़िस्मत से भगवान हमें बेटे के रूप मे दो दो दामद देंगे।”
शोभा ने सबको समझाया पर शोभा की हर बात घर वालों को उल्टी ही लग रही थी। तभी सूरज ने क्रोधित होकर कहा! “शोभा बस बहुत हुआ आज तुम सबसे बहस कर रही हो। अभी सबसे माफ़ी मांगो और काम पर चलो।” यह सुनकर शोभा का दिल टूट गया.. मानो किसी खास अपने ने खुद का कांधा झटक कर शोभा को अकेला होने का एहसास कराया हो। शोभा का गला सूख रहा था व आवाज़ भारी हो चुकी थी। उसने हाथ जोड़ कर सबसे माफ़ी माँगी और कहा, “मै अभी आती हूॅ तैयार होकर काम पर चलने के लिये।”
सूरज के पिता का अहम फिर बोल उठा.. ठहरो! “कोई ज़रूरत नही है हमारे साथ चलने की। तुम्हारे बिना वहाँ काम बंद नही पड़ जायेगा और आज के बाद रसोई के काम को भी हाथ न लगाना क्योंकि तुम्हारे हाथ का बना खाना नही खाऊँगा मै अब।” यह कहकर पिता ने सूरज से गाड़ी निकालने को कहा और बाहर की ओर चल दिये।
बहुत भारी सदमा लगा शोभा को… क्या ग़लती थी उसकी? घर के सबी सदस्य ख़िलाफ़ हो गये और ख़ाली एक या दो दिन नही.. पूरा एक हफ़्ता बीत गया किसी ने शोभा से बात तक नही की। अंदर ही अंदर घुट रही थी वो मानो खुल के साँस नही भर पा रही थी। हिना के साथ होकर भी वह सोच मे डूबी रहती थी। न खाने की सुध बुध, न रातों को नींद.. बस उदासी से घिरे रहती थी। घर के नज़दीक वाले क्लीनिक मे जब वह अपनी नियमित जाँच करवाने अकेली गई तब कमज़ोरी की वजह से चक्कर खाकर गिर पड़ी। पास खड़े लोगों की सहायता से उसे डाक्टर के कमरे तक लाया गया। डाक्टर ने शोभा की हालत देखकर पूछा!”क्या आपके साथ कोई आया है जो आप का ध्यान रख सके?” शोभा ने कहा, “नही मै अकेले ही आई हूॅ।”
डाक्टर ने संदेह पूर्वक देखते हुए कहा, ” आप अपने पति से फ़ोन पर मेरी बात करवाइये.. मै उनसे पूछना चाहूँगी कि आख़िर क्या वजह है जो उन्होंने अपनी पत्नी की एसी हालत मे उसके साथ आना ज़रूरी नही समझा।”
शोभा ने घबराते हुए कहा, “नही नही एसी कोई बात नही है दरअसल वह काम मे व्यस्त थे तो मैने ही उनसे कहा मै चली जाऊँगी।”
डाक्टर समझदार थी व शोभा का चेहरा अच्छे से पढ पा रही थी। उसने शोभा को पानी मे गुलुकोस दिया और कहा, “पहले आप इसे पी लीजिये मै फिर आपको समझाती हूॅ।”
शोभा ने डाक्टर की बात मानते हुए पूरा पानी पिया और उनकी बात सुनने का इंतज़ार करने लगी। डाक्टर ने कहा,”तुम पढीलिखी व समझदार माँ हो तो तुम्हें पता होना चाहिये की अपने होने वाले बच्चे की देख रेख की पूरी ज़िम्मेदारी है तुम पर। तुम्हारा चेहरा कमज़ोरी से पीला लगता है और ब्लड परैशर भी कम है। ऐसी स्थिति आगे भी रही तो तुम व तुम्हारे होने वाले बच्चे की जान को ख़तरा भी हो सकता है। तुम्हें अगर कोई परेशानी है तो तुम मुझसे कह सकती हो मै तुम्हारी मदद करूँगी। पर इस वक़्त तुम्हें सब कुछ भूल कर अपने होने वाले बच्चे की सेहत को लेकर अपना अच्छे से ध्यान रखना है।”
शोभा चाह कर भी कुछ अपना दिल नही खोलना चाहती थी यह सोच कर की जब घर वाले मेरे इतने ख़िलाफ़ होते जा रहे है तो मै बाहर कैसे किसी से मदद लू उन्हे मनाने की? ऐसे तो वह लोग मुझे और भी ग़लत समझेंगे। इस विचार को लेकर शोभा ने डाक्टर साहिबा को आश्वासन देते हुए कहा! “आप फ़िकर न करे ऐसी कोई बात नही है मै बस अपने मम्मी डैडी जो कि भारत मे रहते है उन्हे याद करके थोड़ा उदास थी। आप चिंता न करे मै अपना और बच्चे का पूरा ख़याल रखूंगी।”
डाक्टर से कुछ अच्छी सलह व विटामिन की दवाइयाँ लेकर शोभा घर की चलने लगी।
“पैर तो भारी थे ही, दिल भी भारी हो चला.. ग़ैरों को तो सब दिखता है.. क्यों अपनो की आँखो मे है पत्थर पड़ा? ”
न पग बढ रहे थे घर को और न आँसू थम रहे थे उसके। उसने सूरज को फ़ोन लगा कर अपना दिल खोलना चाहा पर सूरज ने यह कह कर फ़ोन रख दिया की अभी वह काम मे व्यस्त है व घर आकर बात करेगा।पास के पार्क मे एकांत मे जा कर बैठ वह पीछे की हर बात सोचने लगी। “आख़िर कहा ग़लत हूॅ मै? क्या मुझे ख़ुश रहने का हक़ नही?कोई और साथ हो न हो पर सूरज क्यों मुझसे दूर होता चला जा रहा है? क्या कोई नही है मेरा यहाँ? मम्मी डैडी भी दूर बैठे मुझे सुखी परिवार की हँसमुख बहु समझते होंगे। मै किसी को कोई सुख न दे पाई। क्यों आई मै इस दुनिया मे जो किसी के कोई ख़ुशी नही दे सकती।बस ईश्वर अब और बर्दाश्त नही होता, मुझे सही राह दिखाओ… इस नन्ही सी जान को मेरे हिस्से की सज़ा मत दो।”
कहते है भगवान कण कण मे है और हर दिल की आवाज़ सुनते है, जब सच्चे दिल से कोई उन्हे याद करता है तो वह अपने होने का प्रमाण ज़रूर देते है.. उसे भी जो विश्वास रखता है और उसे भी जो अंधविश्वास मे जीने लगता है। जैसे एक सही वक़्त का इंतज़ार था रब को, एक माँ के सोए होंसले को जगाने का।
शोभा का फ़ोन बजा और उसने धुँधली आँखो से देखा किसका नम्बर है, फ़ोन पर लिखा था प्यारी मम्मी। शोभा ने फ़ोन चूमा और कान पर लगाया, माँ की एक आवाज़ ने शोभा के मन के सारे तार छेड़ दिये। माँ बोली,”बेटा कहाँ हो एक हफ़्ते से? मैने इतना फ़ोन मिलाया और तुमने भी नही किया। हमें तो फ़िकर हो रही थी बेटा तू ठीक तो है? बोल बेटा चुप क्यों है?”
शोभा ज़ोर ज़ोर से रोने लगी और कहने लगी! “मम्मी मेरा दम घुटता है यहाँ, कोई बात नही कर रहा मुझसे और न कोई ध्यान रखता है मेरा। सूरज भी बात नही करते माँ मै कहा जाऊँ? ”
शोभा की पूरी बात सुनकर माँ बहुत परेशान हुई और कहने लगी तू चिंता न कर मै सूरज से बात करूँगी।”
एक चिंतित मा जो दूर है और बेबस थी,अपने बच्चे को रोता हुआ सुन कैसे शांत बैठ सकती थी?माँ ने सूरज के मोबाइल पर फ़ोन लगाया और चिंतित स्वर मे पूछा! “बेटा क्या हुआ तुम शोभा से बात क्यों नही करते? वह क्यों परेशान रहती है? बेटा ग़लतियाँ तो सबसे होती है पर मेरी बेटी तो बहुत समझदार है कि अपनी ग़लती को समझ कर उसे जल्द ही सुधार लेती है। अगर तुम्हें उसकी कोई बात बुरी लगी हो तो आपस मे बात करके उसे समझाओ, अकेले रो रो कर वह अपनी व् अपने होने वाले बच्चे की तबियत ख़राब कर लेगी।”
बस इतना सुनना ही काफ़ी था सूरज के लिये, वह बहुत ग़ुस्सा हुआ कि शोभा ने घर की बातें अपना माँ से की है और मेरे माता पिता को ग़लत ठहराया है।अपनी दिमाग़ की उपज से सूरज ने न जाने कितनी ही उल्टी सीधी बातें सोची जिसका नतीजा उसकी शादी शुदा ज़िंदगी के लिये बिलकुल ठीक नही था। उसने कहा!”मम्मी जी ऐसी कोई बात नही है आप बेकार ही चिंता कर रही है मै घर जा कर शोभा की सारी शिकायत दूर कर दूँगा।”
शाम हुई व सूरज अपने पिता के साथ घर पहुँचा, उसने अपनी माँ से पूछा, कहाँ है शोभा?”
माँ ने कहा कमरे मे ही होगी। वह सीधा ऊपर कमरे मे गया और शोभा से ग़ुस्से मे कहने लगा! “आख़िर क्यों तुम इस परिवार की दुश्मन बन बैठी हो? क्या किया हमने तुम्हारे साथ? कैसे परेशान करता हूॅ मै तुम्हें ज़रा मुझे समझाना? सारा दिन काम मे थक के चूर होता हूॅ। दिन भर मेहनत करता हूॅ ताकि घर मे किसी चीज़ की कोई कमी न रहे। हिना को हर चीज़ माँगने से पहले मिल जाती है, सबकी सब ख़्वाहिशें अच्छे से मै पूरी करता हूॅ फिर मै कहा ग़लत हूॅ?”
शोभा चुप चाप खड़ी सब सुन रही थी, वह सूरज के ग़ुस्से की वजह को भाप चुकी थी। वह समझ चुकी थी कि उसकी मम्मी ने सूरज को फ़ोन पे कुछ कहा होगा। पर सूरज मे इतना बदलाव देखकर वह बहुत दुखी थी। वह हर बात को उल्टी ही ले रहा था, मानो सबकी बातों ने उसे बेहद ख़िलाफ़ कर दिया हो। शोभा बोली, “तुम मेरी कही सभी बातों को ग़लत लेते जा रहे हो सूरज, यह वक़्त लड़ने झगड़ने का नही है। मुझसे पूछो मै कितना अकेलापन महसूस करती हूॅ? आज क्लीनिक मे चक्कर खा कर गिर पड़ी, कोई नही था मेरे साथ। डाक्टर को भी लगा की मुझे यू अकेले नही आना चाहिये था। मै बहुत रो रही थी कि तभी मम्मी का फ़ोन आया और मै खुद को रोक न पाई।”
सभी घर वाले सब कुछ सुन रहे थे। सभी गुस्साई नज़रों से शोभा को देखने लगे कि जैसे उसने कोई बहुत गहरा अपराध कर दिया हो। माता जी बोली,”क्यों? ऐसा कौन सा काम हमने तुझसे करवाया जो तू चक्कर खा कर गिर पड़ी?” और अगर तबीयत इतनी ख़राब थी तो क्यों अकेले गई? हमसे पूछा होता तो कोई भी साथ चल देता तुम्हारे। बाहर जा कर दुनिया के आगे बेचारी बन जाती है और सबके आगे हम बुरे साबित हो जाते है। हर काम अपनी मर्ज़ी से करती जा रही है, कोई रोक टोक नही है फिर भी हमको बदनाम करती है सब जगह।न जाने कौन कान भर रहा है इसके? पता नही इसकी मम्मी क्या पट्टी पढाती है?
शोभा बोली बस कीजिये, आप मेरी मम्मी को क्यों इन सब बातों मे ला रही है?
सूरज बोला चुप हो जाओ शोभा, मेरी माँ से ज़ुबान लड़ाती हो और अपनी मम्मी की ग़लती को सुनना नही चाहती? सच तो यही है कि ये आग उन्हीं की लगाई हुई है।
पास खड़े ससुर जी क्यों चुप रहते? वह तो पहले से ही खुंदक खाये बैठे थे। बोले तुम मेरे बेटे का दिमाग़ ख़राब रखती हो, वह काम कैसे करे कोई? न सास ससुर को इज़्ज़त मान देना, ज़ुबान लड़ाना,पति की बात न मानना, बस अपनी मनमानी करना.. बस ये सब ही सीख के आई हो अपने माँ बाप के घर से?
शोभा को यह झूठे इल्ज़ाम अपने ऊपर लेना कदापि मंज़ूर नही था और अपने माँ बाप का अपमान तो कोई बेटी नही सह सकती। सबको अपने ख़िलाफ़ खड़ा देख उसने खुद को कमज़ोर नही समझा, उसकी ताक़त उसकी सच्चाई थी। कठोर स्वर मे वह बोली,” बस अब अगर किसी ने भी मेरे मम्मी डैडी के ख़िलाफ़ एक शब्द भी कहा तो मै किसी का कोई लिहाज़ नही करूँगी। न वे ग़लत है और न मै.. ग़लत तो आप सब लोग है जो बेटा और बेटी के बीच फ़र्क़ जताते है। याद रखिये आपकी भी एक बेटी है जो कल को ससुराल जाएगी भगवान न करे यदि उसको भी ये सब झेलना पड़ा तो आप लोगों की अक्ल ठिकाने आएगी। ”
सूरज ने शोभा को तमीज़ मे रहने को कहा तो उस पर गुस्साई शोभा ने उसे भी ख़ूब सुनाई। वह कहने लगी, ” तमीज़ का मतलब पहले आप सीख कर आओ। पत्नी का गर्भावस्था मे कैसे ख़्याल रखते है पहले वह जान कर आओ। खुद के माता पिता कोई भी ग़लत बात कहे तो भी वह ठीक है और मेरी माँ पर बिना वजह इल्ज़ाम लगा दिये तुमने।अगर तुम्हारी भावनायें केवल तुम्हारे माता के लिये है तो याद रखो की मै भी किसी की बेटी हू और उनके ख़िलाफ़ कुछ नही सुनूँगी मै।”
सूरज ने ताव मे आकर कहा, “अगर इतने ही हम ग़लत है तो फोन करके बुला लो अपनी मम्मी को और कह दो आकर तुम्हें ले जाये। जिस लड़की को अपने ससुराल वालों की इज़्ज़त करनी नही आती, ऐसी लड़की के साथ नही रहना है मुझे!”
शोभा ने तो जैसे चंडी रूप धारण कर लिया था, सांसे तेज़ व आँखे लाल हो चुकी थी उसकी। वह बोली, “क्यों? वह क्यों आएँगी? मै खुद जाऊँगी उनके पास, मेरा दम घुटता है यहाँ। अब और नही बर्दाश्त होता मुझसे। मै हिना को लेकर चली जाऊँगी अपने मम्मी डैडी के पास क्योंकि पूरी दुनिया मे मुझे बस उनपे भरोसा है। जब आप मेरा कहीं साथ नही दे सकते तो आप से कोई उम्मीद भी नही रखनी है अब मुझे।”
आँख से अंधा तो सूरज था ही.. व्यवहार से रूखा बन अपने शादीशुदा रिश्ते को खो रहा था। अपनी बच्चे से मुँह फेर वह एक कोने मे जा कर खड़ा हो गया और नफ़रत भरी नज़रों से शोभा को देखने लगा।
तभी ससुर जी ने बोला, “अगर यहाँ से जाना है तो वापस नही आना कभी.. तुम्हारे लिये यहाँ के दरवाज़े हमेशा के लिये बंद हो जायेंगे याद रखना।”
कभी कभी छोटी नाराज़गिया भी दिलो मे विष भरने का काम करती है। अक्सर ऐसा देखा गया है कि समझदार होते हुए भी कोई इन्सान अगर ग़ुस्से की चपेट मे आ जाये तो नुक़सान करके ही छोड़ता है। नुक़सान अपना भी और खुद से जुड़े रिश्तों का भी। बात अब काफ़ी बढ गई थी। सभी का अहंकार सर चढ़ कर बोल रहा था। कोई भी हिना व हिना की होने वाली बहन के बारे मे नही सोच रहा था। सास ससुर को अपना घमंड प्यारा था, सूरज को अपना झूठा अहम। सूरज के भाई बहन भी उसी नौका मे सवार हुए जहाँ का पलड़ा भारी था। ऐसे मे शोभा की ज़िद ने क्रांति का रूप धारण कर उसके आत्मविश्वास को हवा दी। उसने तुरंत अपनी मम्मी को फोन किया व अपनी पूरी आपबीती चंद शब्दों मे बयान कर दी। एक माँ अपने बच्चे की हर आह को पहचानती है और शोभा की माँ तो दूर बैठे ये भाप गई थी कि उनकी बेटी तकलीफ़ मे है। उन्होंने शोभा को शांत हो जाने के लिये कहा व साथ ही अपनी समधन से फोन पर बात करने की इच्छा जताई।सूरज की माँ बहुत ही अकड़ के साथ फोन पर आई व कहने लगी,” कैसे संस्कार दिये है आपने अपनी बेटी को? न सास ससुर की इज़्ज़त करती है और न पति को मान देती है। बस दुनिया के आगे हमें बदनाम कर रही है कि हम इसका ध्यान नही रखते। एक पोता तक तो यह दे न सकी कम से कम ससुराल मे क़ायदे से तो रहे!”
शोभा की मम्मी एक पढी लिखी व क़ाबिल शिक्षिका हैं और स्वाभिमानी होने के नाते वह शोभा के ऊपर लगे सारे इल्ज़ाम नकारती है व कहती है “मै मेरी बेटी को बहुत अच्छे से जानती हूॅ। वह कभी किसी के लिये ग़लत बात ज़हन मे भी नही लाती। आप लोगों ने ज़रूर उसको इस बर्ताव के लिये उकसाया होगा। शोभा आज के ज़माने की होशियार बेटी है और मुझे गर्व है उसपर। आप लोगों की घटिया सोच व सूरज के रूखे व्यवहार ने मेरी कोमल बच्ची के ह्रदय को बहुत चोट पहुँचाई है। उसके हर आँसू व दर्द का मै हिसाब रखूंगी। एक माँ अपने कलेजे का टुकड़ा निकाल कर जब किसी को उनकी अमानत के रूप मे सौंपती है तो पलट कर कभी भी सवाल नही करती कि आपने उनकी दी अमानत को कितना अपना समझा। बजाये शोभा का आप हौसला बढ़ाते. आपने तो उसे दिन रात रोने के लिये छोड़ दिया ताकि वह रो रो कर अपनी तबियत बिगाड़ दे। हमारे घर के ऊँचे व अच्छे संस्कार शोभा की रग रग मे बसे है। उसका स्वभाव सेवा व प्रेम का प्रतीक है। किन्तु, अगर कोई उसके स्वाभिमान को ठेस पहुँचाता है तो याद रखिये की वह एक नारी है और नारी शक्ति अपने असली रूप मे आ जाये तो इंसाफ़ करके ही छोड़ती है। आप खुद एक माँ है, पर एक माँ की भावुकता को नही समझ पाई।मेरी बेटी कमज़ोर नही है और न मै ऐसी माँ हूॅ जो इसे बिखरते देख अपनी आँखे बंद कर लूँगी।”
अपनी मम्मी के कहे अनुसार शोभा ने अपना सामान बाँधा और डाक्टर की सलाह के अनुसार दिल्ली पहुँचने का सारा इंतज़ाम कर लिया। गर्भावस्था के आठवें महीने मे हवाई जहाज़ का सफ़र आसान नही होता, यह जानते हुए भी वह अपने फ़ैसले पर अटल थी। इस वक़्त उसके दिमाग़ मे केवल एक ही बात थी कि वह अपनी नन्ही परी को एक अच्छे व ख़ुशी के माहौल मे जन्म देगी। हिना के साथ जब वह यात्रा के लिये निकली तो सूरज के अलावा घर का कोई भी सदस्य अपने कमरे से बाहर नही आया।
सूरज ने कहा” हिना बेटा आप नानी के घर जा रही हो, अपना व अपनी मम्मी का ध्यान रखना और अपने पापा को फोन करना।”
शोभा को यह देख अपने यक़ीन पर कोई संदेह न रहा कि सूरज के दिल मे आज भी उसके लिये प्रेम है। जो प्रेम आज ग़लतफ़हमियो का शिकार है एक न एक दिन आज़ादी की साँस ज़रूर भरेगा। शोभा ने सोचा आज नही तो कल सब पहले जैसा हो जायेगा। इस यक़ीन को साथ लिये शोभा घर से हवाई अड्डे पहुँची। सूरज उन्हे जहाज़ मे बिठा कर उदास मन से घर को लौट रहा था। मानो उसका कुछ खो गया हो। घर पहुँचा तो माँ ने एक अजीब शर्त उसके आगे रख दी, “कि यदि कल को वह लड़की इस घर मे वापस आई तो मै घर छोड़ दूँगी। साथ ही सूरज को अपनी क़सम देते हुए कहा कि तुम न तो उसको फोन करोगे न ही अब तुम्हारा उससे कोई सम्बंध है। भूल जाओ उसे और अपने जीवन मे की गई ग़लती को सुधारो। जो लड़की ससुराल को त्याग कर, हम सबको बदनाम करके चली गई, उसके लिये इस घर के दरवाज़े हमेशा के लिये बंद है।”
सूरज की ज़बान पे ताला पढ़ गया था व सोच जम चुकी थी। सही और ग़लत कुछ भी नही समझ पा रहा था वह। शायद वह पछतावे के भाव घर लेकर लौटा था और उसपर माँ की दी हुई क़सम ने उसे मौन कर दिया।वह चुपचाप अपने कमरे मे चला गया और अपने दैनिक कार्यों मे जुट गया।
शोभा अपनी माँ के घर आकर आ कर चैन की साँस भरती है व सूरज के कहे अनुसार उसे फोन करती है ये बताने के लिये कि वह सकुशल अपनी माँ के घर पहुँच गई है। परंतु सूरज ने माँ की क़सम का मान रखने हेतू शोभा का फोन नही उठाया व अपने कार्य मे मशगूल हो स्वयं को इन सब बातों से परे रखने की कोशिश की। शोभा ने डाक्टर के कहे अनुसार भरपूर आराम व पौष्टिक भोजन का सेवन कर खुद को तंदरूस्त करना शुरु कर दिया था। यूॅ तो वह ख़ुश थी कि अब वह खुली हवा मे साँस ले पा रही थी परंतु सूरज की ओर से कोई संपर्क न पाकर वह थोड़ी फ़िक्रमंद भी थी।
हिना के जन्मदिवस पर दोनो माँ बेटी को यह विश्वास था कि घर से आज फोन ज़रूर आएगा। किंतु सबकी नाराज़गी व सूरज पर क़समों की बेड़ियों ने हिना का मासूम दिल तक दुखा डाला। उसके सवालों का कोई सही जवाब नही था शोभा के पास। शोभा बस यह कह कर टालती रही कि शायद फोन ख़राब है उनका। उधर सूरज अपने परिवार को दूर भेज कर मन ही मन खुद को कोस रहा था पर ऊपर से वह ऐसे पेश आता जैसे उसे कोई फ़र्क़ नही पड़ता।काम के सिवा उसे और किसी बात का होश नही था अब। दोस्तों के साथ मिलने से वह कतराने लगा, क्योंकि वह जानता था कि उसके घर के चर्चे अब सब जगह होते होंगे। सूरज की माँ ने भी अपने जानने वालों के आगे शोभा को ही ग़लत ठहराया। खुद पे कोई इलज़ाम न लगे इसलिए सबके आगे यही बात फैलाई कि “हमारी बहु मायके जा कर बैठ गई है। हमने बहुत रोका उसे पर वह एक न मानी और बोली कि मै अपनी मम्मी के घर ही अपने बच्चे को जन्म दूँगी।”
बातें तो बहुत उठी, बातों को हवा भी लगी। किन्तु होनी को टालना तो किसी के हाथ मे नही है।समय तेज़ी से बीता और नवरात्री के पावन पर्व मे माँ दुर्गे की शक्ति ने शोभा की कोख से जन्म लिया। बच्ची के चहरे पर बहुत तेज था,मानो सभी देवी देवतों का वरदान मिला हो उसे। शोभा की मम्मी ने कहा ” बेटा देख स्वयम् देवी माँ पधारी है तेरे सारे दुख दूर करने। सब चिंताओं को त्याग कर अपनी नन्ही परी की अच्छे से सेवा करनी है हमें।” हिना भी अपनी छोटी बहन को देख ख़ुशी से नाच रही थी।
इधर शोभा सूरज को फोन मिला कर यह ख़बर देने को उत्सुक थी और उधर माँ दुर्गे की कृपा सूरज पर होने लगी थी। सूरज को उसका बचपन का दोस्त घर मिलने आया जो सूरज के चेहरे को भली भाती पढ पा रहा था। उसने सूरज से कहा ” यार तू तो वही स्कूल वाला सूरज है जो किसी से अपनी तकलीफ़ नही बाँटता था पर मुझसे हर बात करता था। तेरी मेरी यारी तो इतनी पक्की है कि किसी तकलीफ़ की क्या मजाल जो मेरे यार के दिल मे घर कर ले? वहाँ तो मेरा डेरा है भाई। तो बता आज क्यों परेशान है? तू बोल के तो देख मै सब ठीक कर दूँगा।”
इतना काफ़ी था सूरज को पिघलाने के लिये। वह भावुक होकर अपने मित्र को अपनी हर ग़लती बताने लगा व अपनी माँ की दी क़सम का भी ज़िक्र किया। सारी बातें सुन कर सूरज के दोस्त ने कहा, ” यार ये तूने क्या किया? क्यों भाभी को घर से इस तरह गर्भावस्था मे जाने दिया? यह तो बहुत ग़लत हुआ, आख़िर उनकी ग़लती क्या थी? बेटी को जन्म देना कोई क़सूर नही। भाग्यशाली होते है वो घर जहाँ बेटियाँ जन्म लेती है। तू आज के दौर मे इन दक़ियानूसी बातों की वजह से अपने बसे बसाये घर को अपने हाथो से उजाड़ रहा है यार। ज़रा उनके बारे मे सोच जिनकी कोई औलाद नही होती। क्या बीतती है उनपर क्या तुझे ज़रा भी अंदाज़ा है?अगर तेरे माता पिता ग़लत बात पर जिद करते है तो उनको समझाना तेरा कार्य है और साथ ही अपनी पत्नी व बच्चो की रक्षा करना तेरा कर्तव्य है। तू परिस्थिती से भाग कर अपने कर्तव्यों से मुँह कैसे फेर सकता है? अभी भी समय है बिगड़े हालातों को ठीक करने का। यार ये क़सम वसम कुछ नही होती। सही का साथ देने से क्यों डरना? शान से कह मै मेरी शोभा के बिना नही रह सकता। तू अपनी बीवी व बच्चो के पास जा, उनको तेरी ज़रूरत है।”
इतना काफ़ी था सूरज के सोए ज़मीर को जगाने के लिये। उसने अपने दोस्त को गले से लगा कर उसका धन्यवाद किया और कहा, “अब नही समय बरबाद करूँगा, सीधा उड़ कर जाऊँगा उनके पास।”
अपने दोस्त के जाने के बाद सूरज पूरे घर मे बहुत उत्सुकता से चक्कर लगा रहा था, मानो खोये ख़ज़ाने का पता पाकर जोश भर आया हो उसमें। इससे पहले वो शोभा को फोन लगाता, शोभा की मम्मी का घर पर फोन बज पड़ा। सूरज फोन पर शोभा की मम्मी से ख़ुशी की ख़बर सुन कर कहता है “मम्मी जी बहुत अच्छी ख़बर सुनाई। आज मुझसे धनवान कोई और न होगा।मै जल्दी ही आप सबके पास पहुँच रहा हूॅ। मै बहुत शर्मिंदा हूॅ अपने बर्ताव के लिये।मै मेरे हर बुरे व्यवहार के लिये आपसे माफ़ी माँगता हूॅ। आप मुझसे नाराज़ मत होना और शोभा से कहना सूरज हमेशा उसके साथ है।”
शोभा की मम्मी ने कहा,”बेटा मै एक माँ हूॅ! कोई माँ भला अपने बच्चो से नाराज़ होती है क्या? छोड़ो पुरानी बात, वह समय ही भारी था। शोभा तुम्हारी कब से राह तकती है।बस अब जल्दी आकर अपने परिवार को इज़्ज़त के साथ घर लेकर जाओ।”
सूरज ने यह ख़ुशी का राज़ अपने परिवार से बाँटा। वहम से भरी माँ उसकी उत्सुकता देख अचंभित रह गई व सोचने लगी कि यह मेरे बेटे को किसकी हवा लग गई। माँ बोली, “हाँ तो कौन सी बड़ी बात हो गई.. लड़की ही हुई है न? तो कौन से बड़े तीर मार लिये उसने अपनी माँ के घर जा कर। यहाँ इतना हंगामा कर के गई थी अब किस मुँह से वापस आएगी? हम तो नही जाएँगे वहाँ।”
“मै जाऊँगा!”.. सूरज ने एक साहसी मर्द के जैसे अपनी पत्नी व परिवार के लिये सही तरीके से आवाज़ उठाई और कहा “हाँ मै ही जाऊँगा अपने परिवार को लेने। मै नही रह सकता उन सब के बिना। आप लोगों की ज़िद ने मेरी सोच पे भी परदे डाल दिये थे। अगर आप पोता पाने की लालसा मे शोभा के ख़िलाफ़ न होती तो शोभा ऐसा व्यवहार करती ही नही। आप बताइये माँ, यदि आज आपका पोता हुआ होता तो भी आप अपनी बहु से मुँह फेर लेती? क्या बेटी को जन्म देना पाप है? आपकी भी एक बेटी है और कल जब इसकी शादी होगी, तो क्या आप चाहोगे कि इसके साथ भी वैसा ही वयहवार हो जैसा हमने शोभा के साथ किया।”
सूरज की बातें राम बाण का काम कर रही थी और वह चुप नही रहा। वह बोला, ” माँ मै आपकी और अपने पिता की बहुत इज़्ज़त करता हूॅ। इसलिये आपके लिये किसी से भी लड़ सकता हूॅ। पर एक सच यह भी है कि मै अपनी पत्नी व बच्चो से बहुत प्यार करता हूॅ। मै उनके बिना जी नही पाऊँगा। मैने हर फ़ैसले मे आपका साथ दिया है और आज आपसे ये निवेदन करता हूॅ कि आप मेरी बात पर ग़ौर करिये और जानिये कि हमारा परिवार सबके साथ रहने से ही ख़ुशहाल रहेगा। बेकार की बातों मे नाराज़गिया पालने से व नफ़रतों को बढ़ावा देने से यह परिवार बिखर जाएगा।”
सूरज के माता पिता यह समझ चुके थे कि सूरज अब उनकी नही मानेगा। उनके मन मे यह डर बैठने लगा कि कहीं हमारा बेटा यह घर छोड़ कर न चला जाए। सूरज के पिता का व्यवसाय व सारे घर की ज़िम्मेदारी का भार सूरज के ही सर था। ऐसे मे उसका अलग हो जाना उसके पिता को कतई मंज़ूर नही था। वह दोनो गहरी सोच मे थे।माता पिता की चुप्पी देख सूरज ने कहा, ” तो ठीक है आप अपने अहम को लेकर बैठे रहिये। मै जा रहा हूॅ अपने परिवार के पास।”
सूरज अगले ही दिन दिल्ली के लिये रवाना हुआ। उसकी उत्सुकता जहाज़ की गति से भी तेज़ थी। अपनी शोभा को बाँहों मे भरकर अपना बेशुमार प्यार लुटाना चाहता था वह। अपने बच्चो को गोद मे बैठा कर खेलना चाहता था वह।ढेर सारा प्यार व उपहार सहित वह दिल्ली पहुँच गया। हवाई अड्डे से बाहर निकल वह घर की ओर रवाना हुआ।
शोभा को यह ज्ञात न था कि आज उसे जीवन की सारी ख़ुशियाँ मिलने वाली है। वह बिस्तर पर बैठी अपनी परी के सुंदर नाक नक़्श को देख सूरज को ही याद कर रही थी। “छोटी गुड़िया बिल्कुल अपने पापा जैसी है।” यह सोच उसकी आँखे भर आई, और वह शांत होकर एक टक खिड़की से बाहर ताकने लगी जहाँ पेड़ पर एक चिड़िया का घोंसले था। चिड़िया को अपने अंडों की हिफ़ाज़त करते देख वह सोचने लगी परिवार सभी को प्यारा है। इस दृश्य ने शोभा के उदास चहरे पर अंक मुस्कान भर दी।
इतने मे सूरज ने दरवाज़े पर दस्तक दी। शोभा के डैडी ने दरवाज़ा खोला और ख़ुशी से आवाज़ लगाई, ” शोभा की मम्मी ज़रा बाहर आकर देखो कौन आया है!”
यह शोर सबने सुना.. बरामदे मे खेलती हिना भागी आई। मम्मी जी भी रसोई का काम छोड़ बाहर आई। शोभा ने जैसे ही आवाज़ सुनी, उसे अंदर से कुछ महसूस हुआ… वही पुरानी ख़ुशबू का एहसास हुआ। इससे पहले की वह कमरे से बाहर आती, हिना ज़ोर से चिल्लाई!, ” पापा.. पापा.. मेरे पापा!”
“पापा मै कब से आपका इंतज़ार कर रही थी। मैने फोन भी किया आपको पर मम्मी ने कहा आपका फोन ख़राब है।आपने मुझे जन्मदिन पर भी नही फोन किया। क्या आप को पता है मेरी छोटी बहन आई है..परियों के देश से। आओ आपको दिखाती हूॅ।”
सूरज ने हिना को गोद मे उठाकर उसका माथा चूमा व उससे माफ़ी मांगते हुए कहा, “बेटा अब कभी नही देरी करूँगा.. और न ही तुमको अपने से अलग करूँगा।”
शोभा के मम्मी डैडी से मिलकर सूरज शोभा के कमरे की तरफ़ बढा तो उसके दिल की धड़कने तेज़ थी व थोड़ा डर भी अदंर से उभर रहा था कि इतना दिल दुखाने के बाद वह किस मुँह से अपनी पत्नी का सामना करेगा। शोभा भी तो कब से सूरज का ही इंतज़ार कर रही थी।
“कहते है कि जब दो दिल एक जैसी भावनाओं मे डूबे हो तो अपने जज़्बातों को ज़ाहिर करने के लिये वह लफ़्ज़ों के मोहताज नही होते।”
“बस दो आँखो का मिलना था.. सारी बात समझने को॥”
“हाथ ने थामा हाथ तो जाना.. प्यार है काफी घावो को भरने को॥”
शोभा और सूरज अब हमेशा के लिये साथ थे। अपनी नन्ही परी का नाम उसकी नानी ने रखा। वह बोली! ” ये माँ दुर्गे का आशीर्वाद ले कर आई है हम सबके लिये इसलिये इसका नाम हम दुर्गा रखेंगे।”
शोभा,सूरज व अपनी दोनो बेटियों सहित अपने मम्मी डैडी के घर मे ही रही। दो महीने कैसे बीत गए पता ही नही चला। सूरज को एक चिंता थी कि अगर उसके माता पिता उसकी बात समझते तो आज वह मेरे साथ होते। शोभा ने सूरज की उदासी जानकर उसे समझाते हुए कहा,”हम उनको समझायेंगे और मुझे यक़ीन है कि एक दिन हमारा पूरा परिवार साथ होगा। आप एक बार उनको फोन करो और कहो हम वापस आ रहे है।”
मानो उस वक़्त शोभा की ज़बान से माँ सरस्वती के बोल निकले। सूरज ने शोभा की बात मान घर पर फोन लगाया।फोन पिता जी ने उठाया व थोड़ी ढीली आवाज़ से बोले, “हैलो! कौन बोल रहा है?”
सूरज ने चिंतित स्वर मे पूछा, ” पिता जी आप!” “इस समय आप घर पर कैसे? इस वक़्त तो आप काम पर होते है। सब ठीक तो है न..? माँ कहाँ है.. वह ठीक तो है?”
पिता ने कहा, ” हाँ बेटा सब ठीक है यहाँ, बस तुम सबकी याद मे तुम्हारी माँ थोड़ी उदास हो गई है। उसकी तबियत थोड़ी सी ढीली थी इसलिये मैने काम से छुट्टी ले ली।”
आगे पिता जी बोले, “बेटा ये सब छोड़ो पहले ये बताओ बहु और बच्चे कैसे है? रोज़ सोचता हूॅ तुम्हे फोन करूँ पर कामकाज मे ही सारा समय निकल जाता है।घर बहुत ख़ाली लगता है तुम सबके बिना बेटा.. कब आ रहे हो?”
सूरज का तो गला भर आया व हाथ काँपने लगे। पिता की बोली मे पछतावे के स्वर साफ़ सुन पा रहा था सूरज। वह बोला, ” पिता जी आप चिंता न करे हम जल्दी ही घर आ रहे है आप सबके पास। आप मेरी माँ से बात करवाइये।”
माँ के फोन पर आते ही सूरज ने उनसे उनका हाल पूछा व कहा माँ! ” मुझे माफ कर दीजिये!! ” आपको दुख देने का मेरा कोई ईरादा नही था। मै बस इतना चाहता था कि मेरा पूरे परिवार एक साथ एक ही घर मे रहे।”
माँ ने अपने बेटे की बात सुनकर उत्तर दिया व कहा, ” बेटा तू जब घर से निकला मुझे परिवार की परिभाषा समझ मे आ गई। जब हम तेरे बिना नही रह सकते तो तू कैसे अपने बच्चो के बिना रह पाएगा? मै किस मुँह से बहू से माफ़ी मांगू? एक माँ होकर भी मै उसकी भावनायें नही समझ पाई। उसने ठीक ही कहा था कि जब भगवान ने दो दो बेटियाँ दी है तो बेटे के रूप मे दो दो दामाद घर आएँगे। घर परिवार से बनता है और हमारा परिवार तुम सबके बिन अधूरा है बच्चो। तुम्हारे पिता भाई बहन सब राह देख रहे है तुम्हारी। हम क्षमा चाहते है कि हमने हमारे अहम के सामने तुम सबका प्यार न देखा।”
माँ को शांत करते हुए सूरज उन्हे यह आश्वासन देता है कि वह बहुत जल्द शोभा, हिना और दुर्गा के साथ घर लौटेगा और हमारा पूरा परिवार फिर से एक सुखी परिवार बन जाएगा।
दो दिन बाद सूरज सहपरिवार शोभा के मम्मी डैडी से विदा लेकर वापस अपने घर लौटता है। घर मे ख़ुशी का माहौल छा जाता है। हिना और दुर्गा को दादा दादी का भरपूर प्यार मिलता है और शोभा को उसका खोया सम्मान वापिस मिलता है।
“समय अति बलवान है और अपने आगे किसी की नही चलने देता। कभी कभी कुछ बातें हमें समय पर भी छोड़नी चाहिये।”
शोभा अपने हर कार्यों मे पहले जैसी चुस्त रही। उसने अपने ससुर जी की आज्ञा से अपने पैरों पर खड़ा होने की सोची। उसने एक शिक्षिका बनकर अपनी मम्मी का नाम रोशन किया।शोभा जैसी स्वाभिमानी और समझदार शिक्षिका को पाकर स्कूल के प्रिंसिपल को यह विश्वास रहा कि उनके स्कूल के बच्चे अच्छे व लायक ही निकलेंगे। शोभा ने भी अपने हर कार्य मे जम कर मेहनत की और किसी को भी शिकायत का कोई मौक़ा नही दिया।
ईश्वर की अपार कृपा से तीन साल बाद शोभा ने एक बेटे को जन्म दिया। तीसरा बच्चा पैदा करने का फ़ैसला भी शोभा का खुद का था। इसलिये नही कि उसको बेटा चाहिये था, बल्कि इसलिए क्योंकि उसने भविष्य मे अपने बच्चो के लिये एक बड़े व ख़ुशहाल परिवार का सपना देखा था। अपने सुंदर परिवार के साथ आज शोभा बहुत ख़ुश है।
“कौन कहता है कि बेटियाँ बोझ होती है? आज की बेटियाँ पूरे समाज को सम्भालने का हौंसला रखती है!”ऐसा कोई कार्य, क्षेत्र व संबंध नही जो लड़कियों के बिना सम्पूर्ण हो।
शोभा जैसी लड़किया मिसाल है दुनिया के लिये.. एक उचित उत्तर है उन लोगों के लिये जो बेटियों के पैदा होने पर सवाल खड़ा करते है।अपनी बुद्धिमत्ता व हौसले को लेकर शोभा ने जो लंबा सफ़र तय किया वह क़ाबिले तारीफ़ है। सूरज जैसे पति को पाकर शोभा का जीवन पूर्ण है। जिसने अपने जीवन साथी की भावनाओं और प्रेम को मान दिया व समय रहते अपनी ग़लती को सुधार लिया।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि बेटियों को बेटों से कम नही समझना चाहिये। और बेटों को यह शिक्षा देनी चाहिये कि वह हर नारी का सम्मान करे। हर घर मे शोभा जैसी बेटी व सूरज जैसा बेटा जन्मे तो कोई परिवार कभी न बिखरे। यदि हम बच्चो मे बचपन से ही समानता के बीज बोएँगे तो वह बड़े होकर भिन्नता का व्यवहार नही करेंगे।
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