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Indrawati Sahuwaene

Published by PINKI GUPTA in category Family | Hindi | Hindi Story with tag mother-in-law | old lady | tears

इन्द्रा के जाने से फिर से उसके मायके में उदासी छा गई लेकिन फिर कुछ ही दिनो में सब समान्य हो गया उधर इन्द्रा अपने ससूराल  में सभी का ख्याल रखने लगी। इसी तरह दिन बीतते  गए और फिर महिने बीते। एक दिन इन्द्रा खाना पका रही थी। कि अचानक उसे उल्टी सी आने लगी असका दिल बेचैन होने लगा। जो मिचलाने लगा, तभी उसकी सास वहाँ पर पहुँची । इन्द्रा की इस हरकत को देखकर इन्द्रा की सास ने बगल की एक औरत जो एक बुजूर्ग महिला है उसे बुलाया । उस बुजूर्ग महिला ने इन्द्रा को देखा और खुश होकर बोली कि इन्द्रा पेट से है । इन्द्रा माँ बनने वाली है यह खुशखबरी सुनकर इन्द्रा की सास ने पुरे घर मे परिवारर को इक्टठा किया ओर सभी को यह बात बतायी, सभी फूले नही समा रहे  थे सिवाय इन्द्रा की जोठानी के। इधर इन्द्रा शर्म से लाल हुए जा रही थी तभी इन्द्रा की सास इन्द्रा को उसके कमरे में ले जाकर उससे कहती है। कि ,
(इन्द्रा की सास)
इन्द्रा। तुने इस परिवार को बहुत बड़ी खुशी दी है। बस एक ठो और इच्छा मन में जागी है कि तु हमरा एक चाँद सा व्यारा सा पोता देईदे।
(इन्द्रा)
सासु अम्मा । आप इ का कहा तानि । बेटा बेटी तो सबहे भगवान के हाथ में है ।
(इन्द्रा की सास)
‘‘इ सब बात हम जानैये। लेकिन एगों पोता के मूँह देखेके बहुतै शौख बा। तू तो जानते बड़े  कि तोहार जोठानी के खालि बेटी बा । ऐही खातिर तोहरा से एगो आशा जागल बा। तू भगवान से प्रार्थना  करिहे कि तोरा बेटा हो । हमे भी बहुत गछती मनान करबे।
इतना कह कर इन्द्रा की सास वहाँ से निकल गई । इन्द्रा के मन की खुशी अब आधी हो चुकी थी। अपनी सास से उसे इसकी आशा नहीं थी वह सोच में डुुबी थी। उसे यह सोच कर अजीब लग रहा था कि बेटा या बेटी ता भगवान के हाथ में है लेकिन हम इंसान सोच बैठते हे कि बेटा या बेटी होन माँ के कारण होता है।  इस वजह से बेटी होन के बाद माँ  को बहुत सारी बाते सुननी पड़ती है। उसे यह एहसास दिलाया जाता है कि उसने बहुत बड़ा अपराध किया है बेटी को जनम देकर । हर इंसान जानता है कि बेटा या बेटी भगवान की देन है लेकिन फिर भी वह माँ पर दोसारोपन करता है कि यह उसकी गलती है।
इन्द्रा को गर्भावस्था के दौरान काफी तकलीफों का सामना करना पड़ा क्योंकि उस जमाने में जो महिला माँ बनती थी उसे जरूरत से ज्यादा घर का काम करना पड़ता था। उस समय उस महिला का दर्द तकलीफ कमजोरी आदि को नजर अंदाज कर दिया जाता है। और उसे बार-बार यह कहा जाता  था कि जितना काम करोगी उतना बच्चा होने में परेशानी नहीं होगी और बच्चा भी फुर्तीला पैदा होगा । इस दकियानुसी विचार की वजह से हर औरत खुशी से सारे काम करती है। इन सभी चीजों में उसे अपनी और अपने बच्चे की भलाई नजर आती है। यहाँ तक कि हर पति भी यही समझ लेते हे कि उसके परिवार वाले उसकी पत्नी को कितनी चिंता करते है और वह अपनी अर्घागनि की दुख, तकलीफ उसकी परेशानी को देखकर भी कुछ नहीं बोलते , उल्टा उसे उससे भी ज्यादा काम करने के लिए उकसाते है । उसी तरह आठ महीने पुरे हो गए एक दिन इन्द्रा की जेठानी सूलोचना  सोच रही थी की अगर इन्द्रा को बेटा पैदा गया तो इस घर में उसका ही राज होगा। घर के सभी लोग सिर्फ उसे ही मानेगें और मुझे हमेशा ताने मारेगे और कहेगे की तुझे बेटा नही होगा। तुझे सिर्फ बेटी ाही होगी और फिर सारी सम्रपति ईनद्रा को मिलेगी। यही सारी बातों सोचकर वह निर्णय लेती है कि किसी तरह वह इन्द्रा को नुकसान पहुँचा देगी तो इन्द्रा का बच्चा पेट में मर जाएगा । उसके बाद सूलोचना ने कुएँ के पास बहुत सारा तेल गिरा दिया ताकि जब इन्द्रा पानी भरने जाए तो उसका पैर उस तेल पर पड़े और वह फिसल कर नीचे गिर जाए।
तेल गिरने के बाद सूलोचना चूपके से रसोईघर में जाकर काम करने लगी तभी सासुअम्मा रसोई में आती है और सूलोचना से कहती हे कि
(सासु अम्म)
‘‘अरी सूलोचना जरा सून तो। ’’
सूलोचना
‘‘ का भइल सासू अम्मा। कोनो काम बा का । हमरा के काहे आवाज देनी ।
(सासु अम्मा)
‘‘ अरे सुलोचना । हम ई कहत रहि कि आज काम करे बला कहि गइल बा। एहि खातिर आज सारा दिन तुही कुआँ से पानी भरके लैइवे।’’
‘‘सूलोचना सकपका गई उसके बाद उसने बहाना बनाते हुए कहा कि
(सूलोचना )
सासू अम्मा हम पानी भरके ला देब लेकिन अभी हमर करम बहुत दर्द करता ै एहि खातिर आप इन्द्रा से बोलके एक डेगची पानी मंगा लेई । थोड़ा देर बादि हम सबेहे में पानी भर देव।
( सासु अम्मा)
‘‘ठीक बा। लेकिन एक डेगची मगाइब काहेकि  इ समय ज्यादा कुआँ पर भेजब आरो इन्द्रा कही गिर-उर जाई तो बच्चा के नुकसान पहुँची । जा तनी। तु अपना काम कर।’’
(सूलोचना मन ही मन खुश हो रही थी और वह सोच रही थी कि उसकी चाल कामयाब होने वाली है। उधर इन्द्रा दर्द से बैचेन कराहते कराहते गोबर ठोक रही थी और वही पर सूलोचना की बेटी उर्मिला वहाँ पर खेल रही थी कि तभी इन्द्रा की सास वहाँ पर पहुँचती है और इन्द्रा से कहती है कि
(सासु अम्मा)
‘‘अरी इन्द्रा जरा सून तो।’’
(इन्द्रा)
‘‘का भइल सासू अम्मा । कोनो काम बा का ’’
(सासु अम्मा)
‘‘हाँ काम बा । इधर तोर काम हो गइल बा सबेह गोबर दीवार पर ठोकले ।’’
(इन्द्रा)
‘‘ना सासु अम्मा । अभी आधा बाकि बा। काहे कि हमर पुरा शरीर बहुत दर्द कराता। ’’
(सासु अम्मा)
‘‘देख इन्द्रा आलस करे से कुछो ना होई अगर आलसी नियन आहिस्ता -आहिस्ता काम करबि ता बच्चो आलसी पैदा होतो एहि लिए तनि शरीर मे फुर्ति लाअ। अच्छा छोड़ इ कामबा बादे करिहे  पहले जो आरो दुई डेगची पानी भरिके रसोई घर में रख के आओं ।
(इन्द्रा)
‘‘ठीक बा सासु अम्मा’’
(इन्द्रा का शरीर पुरी तरह से दर्द से बैचेन हो रहा था लेकिन फिर भी वह सास की बात को नकार ना सकी और पानी लाने के लिए हामी भर दी। यह सब सूलोचना की बेटी उर्मीला को सहन नहीं र्हुआ उसे बहुत बुरा लग रहा था कि उसकी दादी यह जानती है कि चाची की हालत ठीक नहीं है उसके बाद भी वह चाची को जानबुझ कर तकलीफ देती रहती है यह सब देखकर उससे रहा नहीं गया। और उसने दादी से कहा कि
(उर्मिल)
‘‘गे दादी काहे ऐसे करहिं गे। चाची के हालत कितना खराब है आरों तोय चाची के पानी भरेक बोलेही ’’
(दादी )
‘‘का बोल्ले गे छौरी । हमरा से सबाल जवाब करबि। ’’
(उर्मिला )
‘‘हाँ करबो गे दादी काहे कि तोय दुई डेगची पानी भर नै सकहि जे चाची के परेशान करहिं । मोटा -मोटा के तो सांढ़ हो गेले हिं । तनी काम करबे तो जरी चर्बी घटी     ;हँसते हुएद्ध।’’
(दादी)
‘‘बहुते मुँह चले लगलो तोर । तोर माई तोहरा के माथा पर चढा के रखला हो। बेटी जात के माथा पर चढैला से यही सब सूने के मिलेला। अब आपन जुबान सम्माल और जो अबेै पानी तू भरिक रसोई घर में रख के आओं नै तो तोरा के आज खाना ने  मिलतो।
(उर्मिला)
‘‘ठीक हो ला देबे पानी । जादे भाषण नै दे।’’
(उर्मिला पानी भरने के लिए जाने लगती है तो इन्द्रा उसे रोकती है और कहती है कि
(इन्द्रा)
‘‘अरे उर्मी बेटी । लाओं डेगची हमरा दे । तु अभी छोटा बड़स । इ सब काम करेके खातिर पुरा जिदंगी पड़ल बा। तु छोड हम पानी ला देव।’’
(उर्मिला)
‘‘नै चाची । हम ना देव डेगची । तोर हालत खराब वा । तोहरा के आरो तकलीफ हो जाई । एहि लिए हमरा के पानी लाई दो ।
(इन्द्रा)
‘‘ना उर्मी । तु ना लाबे पड़वे पानी तु कुआँ के गिर जैवे। वहाँ पिछड़ वा। ’’
(उर्मिल )
‘‘ देख चाची । तोहरा के हमार क्रिया । अब हमरा के जाई दे । हम पानी भर लेव ता फिर तोहरा साथ खेलब  । हम  जा तानि।
इन्द्रा के मना करने के बाद भी उर्मीला ने बात नहीं मानी और पानी भरने चली गई । उधर सूलोचना मन ही मन खुश हो रही थी कि अब इन्द्रा की चिल्लाने की आवाज आएगी और इधर उर्मीला डेगची लेकर कुएँ के जाती है और पानी भरने लगती है । पानी भरने के बाद वे डेगची के माथे के उपर रखती है और आगे जाने के लिए जैसे ही उर्मीला अपना पैर बढ़ाती है उसका पैर उस तेल पर पड़ता है जो उसकी माँ ने इन्द्रा के लिए गिरा रखा था । तेल पर पैर पड़ते ही वह बहुत जोर से धड़ाम होकर डेगची सहित कुएँ के पक्के पर गिरती है और उसका माथा फट जाता है। वह जोर से चिल्लाती है । इन्द्रा दौड़ कर उसके पास पहुँचती है । सूलोचना के कानो में उसकी बेटी के चीखने की आवाज पड़ती हैं तो वह चैक पड़ती हैं और दौड़ी -दौड़ी कूए के पास जाती है और कुएँ के पास खून से लथपथ बेटी को देखकर उसे लगता है कि उसे काटों को खुन नहीं । वह जोर से चिल्लाती है और अपनी बैटी को छाती से लगाती है। उर्मीला के माथे से खुन पुरा बहने लगता है। सभी लोग दौड़े -दौडे वहाँ पहुँचते है । सभी के मूख से बोली जैसे कोई छिन लेता है । सभी लोग अवाक रह जाते है उर्मीला अपनी माँ से कहती है कि ।
(उर्मीला)
‘‘माई ….।
माई हमरा के बचा ले माई  । हम मरे नैखे चाहतानि
(सूलोचना)
‘‘हाँ गे बेटी । हम तोरा कूछो ने होबेा देब। तोरा कूछो ना होई उर्मी । तु ठीक हो जाइबें गे। हे देवी मईया…. । हमार बेटी के बचाइले मईया …।
( सूलोचना पागलों की तरह चीखने लगी उसे अपने आप पर पछतावा होने लगौम् उसे अपनी मुर्खता पर सहन  नही हो रहा था । वो असहाय जैसी अपनी माँ की गोद मंे छटपटाने लगी वह बोल नहीं पा रही थी। बड़ी मुशकिल से उसने अपना आखरी शब्द कहा कि ।
(उर्मीला)
‘‘माँइ गे… । हमरा के बचाइ ले ..अगे .. अगे ..।
(इतना कहकर उसने अपनी माँ की गोद में दम तोड़ दिया । कुछ देर के लिए ऐसा लग रहा था कि संसार रूक गया है। अजीब सी चारों तरफ उदासी छा गई । सूलोचना के मुँह में जैसे आवाज ही नही रहीं । उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी उर्मी उसे छोड़ कर जा चुकी है। इन्द्रा जोर से चीख पड़ती है उसके चीखने से उसके पेट मंें दर्द उठ जाता है।  उसका दर्द बढ़ने लगता हैं तो इन्द्रा की सास जल्दी से उसे कमरे में ले जाती है । जल्दबाजी में इन्द्रा की सास रोते – रोते दाई जो बच्चा खलास करती है। घर के बगल से बुलाती है। और फिर थोडी ही देर में इन्द्रा एक बेटी को जन्म देती है सभी लोग कहते हे कि उर्मीला वापस आ गई । कही ना कही सुलोचना को भी लगता है कि उसकी उर्मी वापस आ गई और वह दौडकर उस नन्हीें से बच्ची को गले से लगा लेती है

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