गोपाल जेठ को अभिमन्य की खुली आँखों से हजारों सबाल चुभ रहे थें उसकी आँख भर आई थी उसने अभिमन्य की लाश से क्षमा मागी और उसकी आखें बंद कर उसे दुर के तलाब में फंेक दिया और वहँा से अपने घर चला गया।
इधर इन्द्रा का मन घबराने लगता है। अभिमन्य की मौत से बेखबर इन्द्रा उसकी राह तक रही थी। काफी देर हो जाने के बाद वह और उसका भाई दोनो उसे ढुढने निकल पड़ते है दोनों मिलकर अभिमन्य को खुब तलाश करते है। लेकिन अभिमन्य नहीं मिलता है इन्द्रा और रामनारायण पुरा गाँव छान मारते है लेकिन अभिमन्य का कहीं पता नहीं चल पाता। इन्द्रा का सबृ जबाब दे देता है वह रोने लगती है रोते हूए अपने भाई से कहती है कि
ं(इन्द्रा)
कहाँ वा हमर अभिमन्यु, भैया , ओकरा के ढुढ के ला दा भईया हम ओकरा बिना ना जी सकब हम मर जाईब हम मर जाईब भईया कहाँ चल गईल हमार बेटा। अभी तो हमार आँख के सामने रहे , एकटी में कहाँ ओझल हो गईल।
रामनारायण अपनी बहन की पीडा देखकर मायुस हो जाता है अब उसकी सहनशक्ति भी जबाब दे चुकी थी। फिर भी वह अपनी बहन को दिलासा देते हुए कहता है कि
(रामनारायण)
ऐसे मत रो इन्द्रा ऐसे ना रोबे के चाही अभिमन्य मिल जाइ । हम ढुढ के लाइब ओकरा । तु चुप हो जा। तु शांत हो जा अभी बहुत रात हो गइल बा ।भोर हो जाई ता फिर ढुढे जाइब तु घर चल । तु घर चल इन्द्रा ।
( इन्द्रा )
ना भईया हम कही ना जाइब । हम यही पर बैठ के भोर होबे के राह देखब हम कही ना जाइब।
रामनारायण और इन्द्रा खेतो मे बैढकर रात बिताते है सुबह सबेरे गाँव का एक आदमी शौच के लिए खेतो में जाता है उसके बाद वह हाथ मूँह धोने के लिए तालाब के पास पहुँचकर हाथ मुँह धोता हे तब उसे अभिमन्य की तैरती हुए लाशश् दिखाई पड़ती है ।वह चिल्लाकर आस-पास के लोगों को आवाज लगाकर बुलाता है। थोड़ी देर में सभी वहाँ पहुँचते है और अभिमन्य की लाश को बाहर निकालते है। अभिमन्य की लाश देखकर सारे लोग आशचर्य चकित हो जाते है वे लोग जल्दी से अभिमन्य की लाशश् को लेकर इन्द्रा के पास लाते हे। इन्द्रा अपने मासूम बेटे की लाश देखकर जोर से चीखती है औरा बोहाशेश् हो जाती है रामनारायण उसे होश मे लाता है इन्द्रा होश में आकर अपने बेटे की देखकर छाती पीटने लगती है रामनारायण और सुमित्रा भी रोने लगते है इन्द्रा को विशवास नहीें होता की अभिमन्य उसे छोड़कर हमेशा के लिए चला गया। इन्द्रा अपने भाई से कहती है कि।
( इन्द्रा )
‘‘भईया ई का हो गइल भैया हमार कलेजा के टुकड़ा बोलत काहे नाहि । उ दिन रात हमार आगे पीछे घुुमत रहे अब काहे नाहि बोलत बा । तनि बोला ना भाईया । एकरा बोल दा कि ,एक बार हमरा के माई बोल दे एक बार बोल बिटवा एक बार (रोते हुए)
(रामनारायण)
इन्द्रा का हो गइल गे। के मार के फेक देलक ऐसन मासुम निर्दय बच्चा के, के ऐसन कसाई पैदा हो गइल बा ;रेते हुएद्ध
(दोनो भाई बहन का रोते रोते बुरा हाल हो जाता है। तभी एक गाँव वाला इन्द्रा को कहता है कि)
( गाँव वाला )
इन्द्रा बेटी मत रो। चुप हो जा हमरा तो लागता कि इ सब में तोहार जेठ के हाथ बा ।काल्हे हम तोहार जेठ क उ तालाब से वापस आते देखले रहिं । हो न हो जरूर कोनो गडबड बा।
इन्द्रा के अपने कानों पर विशवास नहीं होता है उसे यकीन नहीं होता कि उसका जेठ ऐसा घिनौेना और दर्दनाक काम कर सकता है
इन्द्रा का रो रोकर बुरा हाल हो चुका था । जाहिर सी बात है जिस बेटे को उसने अपना खून पीलाकर पाला पोसा उस बेटे का मृत शरीर देखकर भला एक माँ कैसे सहन कर सकती थी इन्द्रा
पालगों की भाँती अपने बेटे की देख-देखकर राह तकती थी कि उसका बेटा अभी उठकर उसके गले लग जाएगा। लेकिन ऐसा ना होना था और ना ही ऐसा होगा। सभी गाँव वाले के आँखें भी नम हो चुकी थी। अभिमन्यु कीे बहन सुमित्रा अपने भाई का मृत शरीर देखकर सुब रोती है। गाँव की औरते उसे मासुम सी बच्ची को सम्भालते है।
अभिमन्यु को दफनाने के बाद कुछ दिनांे में यह बात आग की तरह फैल जाती है कि अभिमन्यु का उसे बड़े पापा ने मारा है कोई गाँव का आदमी कहता है कि उसने खुद अपने कानों से सुना है कि इन्द्रा का जेठ अभिमन्यु का कंधे मे सुताकर तालाब के पास ले जा रहा था। सभी का यह कहना था कि अभिमन्यु का गला दबाकर गोपाल जेठ उसे कंधे मे लेकर तालाब के पास उसे फेकने के लिए जा रहा था इन्द्रा
इन्द्रा सभी की बाते सुनती और सभी से पागली की भाँती पूछती कि किसने देखा है अपनी आँखों से मेरे जेठ को ऐसा करने से । लेकिन कोई यह नहीं बता सकता कि यह बात किसने कही है। क्योंकि कोई कहता है कि उसने कहा है और जब इन्द्रा उससे पुछती है वह गाँव वाला कहता है कि मुझे किसी दूसरे ने बताया था और वोे किसी दूसरे के पास जाती है तो वह कहता है कि मुझे किसी तीसरे ने बताया । इस तरह तीसरे से चैथे ,चैथे से पाँचवे , पाँचवे से छटठे के पास इन्द्रा पागलोे की भाँती जाकर सबूत ढुढती हे लेकिन उसे वो आदमी नहीं मिलता जिसने उस दिन की दर्दनाक घटना अपनी आँखों से देखी है । लेकिन इन्द्रा यह तो जान जाती है कि उसके कलेजे के टुकड़े अभिमन्यु को उसके जेठ ने ही मारा है उसे जिस बात का डर था वही हुआ। इन्द्रा को पास कोई साक्ष्य ना होकर वह खुन का धुट पीकर रह जाती है। इधर सूलोचना के कानों पर यह बात पहुँचती है कि उसके पति ने अभिमन्यु को मारा है। तब वह अपने पति से कहती हे कि
(सूलोचना)
मुनीया के बापू इे सब हम का सुन रहल बानि का ।इ सच बा कि अपने ऐसन घिनौना काम करले बानि
(गोपाल जेठ)
जुबान सम्भाल के बात करा इ का बोलत बरू । हम तो सोचले रहि कि तु हमरा के शाबासी देबु । हमरा से बोलबु कि हम ठीक करले बानि लेकिन तु हमरा के उपर गुसिया रहल बारू।
(सुलोचना)
अपने ई बात कैसे सोच लेनि कि हम धन के खातिर एक मासूम बच्चा के हथयारा के शाबासी देब। हम माना तानि कि हम लालची बानि कपटी बानि लेकिन हम्हो एगो माई बानि आर हम कभी ना चाहब कि एक माई से ओकर जिगर के टुकडा छिन ले। ओकर बुढापे का सहारा छिन ली हम ऐसन कबहों ना चाहब और हमार एक बात सून लि हम रउवा के इ बात खातिर कभी ना माफ कर सकब । हम राउर पत्नी बानि एहिलिए इ बात हम केकरो ना बताईब लेकिन जिंदगी भर रउवा के दोषी मानव सुलाचना की बात का गोपाल पर कोई असर नहीं होता है उसे कोई पछतावा नहीं होता है बल्कि वह दूसरेे दिन इन्द्रा को उसके घर जमीन खेत सभी जगह से उसका हक छीन लेता है और उसे बाहर निकाल देता है।इऩद्रा जब इसका विरोध करती है तो गोपाल जेठ इन्द्रा को बेइज्जत कर मारने की धमकी देता है ।इन्द्रा तो पहले से ही अपने जेठ पर आग बबूला थी और इस समय उसका खुन खौल रहा था। इसलिए वह अपने मायके वालो को साथ अपने मायके चली जाती है और वह निर्णय लेती है। कि वह अपने बेटे की कुर्बानी को यु ही नहीं गबाएगी बल्कि वह अपना हक लेकर रहेगी। इसलिए वह अपने जेठ पर केस करने के लिए अपने भाइयों से बात करती है। इन्द्रा के सभी भाई इन्द्रा का साथ देने के लिए तैयार हो जोते है
सन 1938 ई0 में इन्द्रा ने देवघर के सबजज कोर्ट में जाकर अपने जेठ के खिलाफ टाइटल शुूट केस किया टाइटल शुट में इंसान अपने हक की चीज माँगता है।
इन्द्रा अपनी बेटी के साथ अपने मायके में रहने लगी थी । इन्द्रा के लिए यह लर्ङाइ आसान नहीं थीा उसे बहुत सारी मुशिकलों से गुजरना पड़ता था । एक दिन इन्द्रा को बडे़ भाई ने इन्द्रा से कहा कि
(रामनारायण)
‘‘अगे इन्द्रा तु जाना तरे कि तोहार जेठ तोहार पर बहुत गुस्सा हो रहल बा। तोहार गाँव से ऐगों आदमी आईल रहे। तोहरा ढुढत रहे। ’’
(इन्द्रा)
‘‘का बोलत बड़ा भैया । के आईल रहे चैकते हुए’’
(रामनारायण)
‘‘तोहर जेठ ऐगो आदमी भेजले रहे हमलोग के धमकावे के खातिर उ आदमी के हम ऐसन पीटनी की उ जिदंगी में केकरो परेशान ना कर सकि।
(इन्द्रा)
‘‘का बोलत रहे भैया ।तनि हमरो बताबा ;चिंतित होकर द्ध
;रामनारायण द्ध
अरे कुछो नाहि इन्द्रा तु चिंता काहे करे लगले तोहर भाई अभी जिंदा बा। तोहरा डरे के या चिंता करे के कोनो जरूरत नैखे, तोहार जेठ तोहरा नुकसान पहुँचावे के तो दूर के बात बा उ तोहरा छु भी ना सकेला। आज अगर हम तोहर तोहार ससुराल से जल्दी लेके आ जैतनी तो हमार भांजा के उ ससुरा छू भी ना सकत रहे लेकिन का करबे इन्द्रा करम के लिखल कोनों ना मिटा सकेला । अभिमन्यु के ओतने दिन आयु रहे एहिलिए उ हमलोग के छोड़ के चल गईल
;रेते हुएद्ध
अपने भाई की बातें सुनकर इन्द्रा के जखम हरे हो जाते है वह भी फूट फूट रोने लगती है तह इन्द्रा की माँ उसे चुप कराती है
इन्द्रा का भाई इन्द्रा को मजबुत बनने के लिए कहता है। वह उसे रोने के मना करता है।
इन्द्रा के केस की पहली तारीख निकल आती है। और इन्द्रा अपने गाँव से देवधर जाने के लिए निकल पड़ती हैं। कुछ ही दूर जाने के बाद इन्द्रा को जेठ और उसके आदमी सामने खड़े हो जाते है इन्द्रा अपने जेठ को देखकर सकपका जाती है लेकिन फिर भी वो साहस कर अपने जेठ से कहती है कि
(इन्द्रा)
‘‘का भईल रउवा के अभीये से रउबा डर गेल बानि एहिलिए हमरा रासता रोके खातिर आइल बानि
इन्द्रा के आवाज मेे एक जोशा था उसकी आवाज के वो गर्मी थी जो कि एक मर्द में होती है। इन्द्रा जानती थी कि उसका जेठ उसे नुकसान पहुँचाने के इरादे से आया है इसलिए वह निडर होकर उसके सामने खडी थी ।इन्द्रा की खुन से भरी लाल आँखो को देखकर इन्द्रा का जेठ कहता है कि ’’
(गोपाल जेठ)
अरी इन्द्रा तोहार बेटा मर गइल तोहार मर्द भी नैखै अब कोई नैखै तोहार पास फिरो तू काहे के एतना जोखिम उठा रहलबड़ु काहेकोर्ट में केस कैयलु ।के बचल बा हिस्सा ले वे के खातिर ।हम अभी भी प्यार और इज्जत से सम्झा रहत बानि आपन केस वापस लेइ ला । नै तो ऐसन हाल करब कि दुनिया के मूँह न दिखा पैवे हम तोहार जीना मुशिकल कर देवा।
(इन्द्रा)
हमरा के अब धमकी से डर नैखै लागत ।का करब रउबा हमार साथ। तनि बोली ना। अरे हमार कलेजा के टुकडा हमार लाल के तो मार के फेक देइला अब एकरा से ज्यादा कोन दुख देवा हमरा ।रउवा अगर मर्द रहतनि ना ,ता हमार बेटा के ना मारतनि अरे रउवा तो कायर बानि। हम रउबा से नैखे डरा तानि ।रउवा के जे करना वा करि ।
इन्द्रा का जेठ गुस्से से आग बबुला हो जाता है। और इन्द्रा को मारने के लिए लाठी उठाता है कि तभी उसके भाई पीछे से आकर उसे रोकते है उन दोनो में खुब झडप होती है औ अंत में इन्द्रा का जेठ दुम दबाकर भाग जाता है। उसके बाद इन्द्रा कोट में हाजिरी देकर घर आती है। कोट ने अगली तारीख दे दी थी इन्द्रा और उसके मायके वाले अगली बार ज्यादा चैकन्ना हो जाते है और वे लोग वक्त से पहले ही रात में ही निकल पड़ते है। क्योंकि उन्हें पता चल जाता था कि इन्द्रा का जेठ बहुत सारे आदमियों को लेकर आनेवाला है इसलिय वे लोग रात में ही पैदल जंगलों के रास्ते से होते हुए देवघर सबजज कोट पहुच जाते है।
इन्द्रा के उपर हर अगली तारीख बड़ी मुशिकल से भरी होती थी उसे अपने गाँव से देवघर का रास्ता जंगलों से होते हुए पैदल ही तय करना पडता था । हर बार इन्द्रा का जेठ इन्द्रा को पकड नहीं पात था।
इन्द्रा की बहादूरी और जज्बे को देखकर इन्द्रा के ससुराल के गाँव वाले भी इन्द्रा का साथ देने लगे उन्होंने भ कोट में जाकर गवाही दी कि इन्द्रा का हक उसे मिलना चाहिए । इन्द्रा का जेठ इन्द्रा को उसका हक देने से मना कर रहा है। उसने गलत तरीकेा से सब कुछ अपने नाम करवा लिया है। इस तरह दिन बीतते -बीतते चार साल हो गए। आखिर वे दिन आ ही गया जिसका इन्द्रा को लेबे समय से इंतजार था। कोट का फैसला इन्द्रा के हक में हुआ। आखिर में 1942 में उसने अपनी जीत हासील की इन्द्रा के जेठ को इन्द्रा का हक उसे वापस करना पड़ा इन्द्रा ने कानूनी तरीके से अपना घर जमीन खेत आदि हासिल कर लिया कोर्ट ने गोपाल जेठ को सख्ती से हिदायत दी कि अगर भविष्य में उसने कभी भी किसी भी प्रकार से इन्द्रा को कोई नुकसान पहुचाया या कभी भी उसका हक वापस लेने की कोशिशश् की तो उसे कड़ी से कड़ी सजा हो सकती है
इन्द्रा अपने गाँव वापस आ जाती है। इन्द्रा का भाई रामनारायण कहता है।
(रामनारायण)
इन्द्रा आज सत्य के जीत होकर बा आज हमरा के कानून पर विशवास हो गईल वा कि उ हमेशाश् से ही सच के साथ देला । आज तोहर जीत भईल बा गे इन्द्रा । अब तु खुशाी से रहा। हमसब भाई अब ऐगो पारी बाँध लेब ।ऐगो जाई तब एगों भाई तोहरा पास आ जार्ह । हमसब भाई कभीयों भी तोहरा अकेला ना छोड़ब इन्द्रा खुशाी से अपने भाईयों के गले मिलती है ओर अपने सभी भाइयों से कहती है कि
इन्द्रा
भाइया रउवा लोग के इ बतावे के कोनो जरूरत नैखै कि रउवा लोग हमरा कितना ध्यान देत बानि हमरा को मालूम बा कि अगर आज रउवा लोग हमार साथ ना देतनी ता हम कभीयों इ जंग ना जीत सकतनी हम तो भगवान से इही प्रार्थना करव कि रउवा जैसन भाई सबहे बहिन के मिले।
इस तरह इन्द्रा अपना गुजर बसर करने लगी लेकिन उसकी कठिनाईया कभी कम नही हुई। गोपल जेठ उसे हमेशा किसी न किसी तरीेक से परेशान करता रहता रातों को अपने आदमियों द्वारा इन्द्रा के खेतो से धान चुरा लेता या कभी खेतो मे आग लगा देता । इन्द्रा को हमेशा अपने खेतो की चैकसी करवानी पड़ती थी।
इसी तरह इन्द्रा के जेठ को इन्द्रा की हाय पड़ी और एक दिन उसे भीख मागने के नौबत आन पड़ी इन्द्रा के दो और देवर निसंतान ही अपनी पतनी समेत स्वर्ग सिधार गए। इन्द्रा के जेठ ने गरीबी की हालात में अपने प्राण छोडे । आज इन्द्रा सहुआइन अपनी बेटी के बच्चों को देखकर अपना जीवन गुजार रही है इन्द्रा सहुवाइन की बेटी सुमित्रा को तीन बेटी ओर तीन बेटे है। इन्द्रा की बेटी अपनी माँ के साथ ही रहती है
आज इन्द्रा एक सो नौ या दस के आस-पास हो चुकी है उसकी देखभाल उसके नाती करते हे उनका सबसे बडा नाती रामजीबन साह जिसकी उम्र करीब पचपन या साठ 55-60 के आस पास होगी वे अपनी नानी पर जान छिडकते हे वह अपनी नानी का पुरा ख्याल रखते हे बिल्कुल अपनी माँ की तरह इन्द्रा सहुआइन के बाकी नाती और नातीन भी उन्हें बहुत मानते है। इन्द्रा सहुआइन का अब भरा पुरा परिवार है वे आज भी इस उम्र में सुबह 4 बजे अपने नियमानुसार जग जाती है। ओर सुबह की सैर को निकल जाती है। ठीक 3 -4 साल पहलेे वी अपने जगह जमीन और खेतों में हुए धान का हिसाबा खुद अपने दिमाग में रखती थी। उसने कोई वही खाता नहीं रखा था। आज सभी चीजों का हिसाब किताब उनके तीनों नाती रखते है लेकिन वो आज भी अपनी जरूरी काम जैसे शौच जाना नहाना अपने कपड़े वो खुद धोना पसंद करती है वो आज भी शीश् आईने से अपने बाल खुद सवारती है उनके आँख मे आज तक कोई चशमा नहीं लगा है इन्द्रा सहुवइन कुदरत का एक करीशमा य अजूबा हे जिनकी शरीर की फूर्ती को देखकर आज भी जबान औरत हक्की बक्की रह जाती हैं कि वो अभी तक बिना चशमें के कैसे देख लेती है। वो अपनी दिनचर्या के काम खुद कैसे कर लेती है।
वाकई मंे इन्द्रा सहुवाइन काबिले तारीफ है ओर में पिंकी गुप्ता उन्हें सलाम करती हुँ वो आज की पीढ़ी के लिए एक सबक हे जिन्होने इतने दुख और तकलीफ को सहन करने के बाद भी अपने आपको सम्भाले रखा और अपनी आखों से अपने परिवार को हरा-भरा देख रही है और उन सभी को जिदंगी जीने का गुण भी सिखाया है।
मै पिंकी गुप्ता इन्द्रा सहुवाइन के नाती रामजीबन साह की बडी बहु हँू। मैने भले ही इन्द्रा सहुवाइन का चुनौती भरा जीवन अपनी आँखों से ना देखा हो लेकिन उनकी आपबीती उनके मूँह से सुनकर उन मुशिकल क्षणों को महसुस किया है।
इसलिए में यह कहाना चाहुँगी कि मैने अपनी कलम से जो भी महसुस कर लिखा है अगर मैं उन्हें दोबारा या फिर अनगिनत बार भी पढुगी तो मेरो आँखे जरूर नम होगी । इसलिए में उन्हें प्रणाम करती हूँ और अपनी लिखावट में समाप्त करती हूँ।
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Pinki Gupta, W/o Sri Sanjiv Kumar,