इन्द्रा अपने मायके आकर अपने आपको सुरक्षित महसुस करती है और उसके चेहरे पर मुस्कान वापस आ जाती है।
इन्द्रा की माँ इन्द्रा की खूब देखभाल करती है उसे समय-समय पर दबाई फल दूध इत्यादी दिया करती है इस तरह इन्द्रा के शरीर में कुछ परिवर्तन आ जाता है। और वह स्वस्थ होने लगती है इसी तरह बीतते बीतते यह दिन आ जाता है जिस दिन का इन्द्रा का कबसे इंतजार था।
दिन सोमवार का था। इन्द्रा शाम कीे चाय पी रही थी कि अचानक से उसके पेट में दर्द शुरू हो जाता है। देखते ही देखते दर्द बढ़ने लगता है। तब इन्द्रा की माँ उसे रूम में ले जाती है ओर इन्द्रा के बापू को बच्चा पैदा करने वाली दाई को बुलाकर लाने को कहती है। इन्द्रा की भाभी गरम पानी चढा देती है थोड़ी ही देर में दाई आ जाती है और इन्द्रा की माँ उसे रूम में ले जाती है। लगभग दो धंटे दर्द सहने के बाद इन्द्रा एक सूंदर से बेटे को जन्म देती है।
इन्द्रा के बेटे को देखकर घर के सभी लोग खुश होती है। इन्द्रा मन ही मन भगवान को प्रणम करती है। और उन्हें धन्यवाद करती है। ।
इन्द्रा के बापू दाई को उसकी मूँह माँगी कीमत देते हैं।
इन्द्रा के सभी भाई पूरे गाँव में मीठाई बाँटते है गाँव के एक आदमी के द्वारा मीठाई और खुशखबरी की चिट्ठी इन्द्रा के ससूराल पहुँचवाते है।
उधर इन्द्रा के ससुराल वाले चिटठी पाकर बहुत खुश होते है। इन्द्रा के पति और ससुर को खुशी का ठीकाना ही नही रहता । इन्द्रा के ससुर पुरे गाँव में मिठाई बटवाते है।
इन्द्रा की जेठानी को कोई खुशी नहीं होती है वह बस यही सोचती हे कि कैसे यह खुशी गम में बदल जाए।
इधर इन्द्रा के पति और ससुर ढेर सारी मीठाई और कपङेे लेकर छटीयारी में इन्द्रा के मायके जाते है। हरिकेष जी अपने बेटे को अपनी गोद में लेकर बहुत खुश होते है उनके आँखों में आँसू टपक पड़ते ह। वे इन्द्रा को धनयबाद कहते हैं। इनद्रा के ससूर भी इन्द्रा को धन्यवाद कहकर कहते है कि
(इन्द्रा के ससूर)
वाह इन्द्रा वाह तू तो हमरा के खुश कर देले तु हमार घर के वंश के जन्म देले बडू । भगवान तोरा और तोर बच्चा के लंबी उमर दे।
इतना कहकर उनकी आँखे नम हो जाती वह सोचते है कि आज अगर उनकी पतनी जिंदा होती तो बहुत खुश होती । उसके बाद इन्द्रा के ससूर जी पडि़त जी विदाई के लिए दिन देखने को कहते है। तब पंडित जी चार महिने बाद का दिन बतलाते ै।
सुबह फिर विदा लेकर इन्द्रा के ससुर और हरिकेष जी वापस अपने घर चले आते है। इन्द्रा अपने मायके में ही रहती है।
इन्द्रा के मायके वाले इन्द्रा का खुब ध्यान रखते है । इन्द्रा की सेहत में बहुत सुधार आ जाता है।
एक दिन इन्द्रा की माँ इन्द्रा से कहती है।
(इन्द्रा की माँ)
इन्द्रा बेटी अब तोर शरीर ठीक लगाहो। तोर बच्चा भी तन्दुस्त हो गेलो , लेकिन कुछ दिन के बाद तू आपन ससूराल चल जैमी वहा पर फिर तोर शरीर खराब हो जोतो औरो तोर दोनो बच्चा ॅिफर से ढिला जतो।
(इन्द्रा)
‘‘इ बात तो तु ठीक कहत बड़े माई हम्हें वहाँ जैबे ओर एकों महिना नै होते कि फिर से हमर तबीयत खराब होवे लगते । अब तुही बताअ माई । हम का करि हमार तो कुछो समझ में नेखे आवतै ।एक तो हमार बीमार पति, उपर से दूई गो बच्चा आरो उ घर के सारा काम अब तुही कोनो रास्ता देखा माई । माई हमरा के तो चिंता धुस गइल बा।
(इन्द्रा की माँ)
चिंता करे से कुछो ना होई तु एगो बात गाठ बाँध ले कि तोर गोतनी तोर भला देखे ने चाहहो आरो ओकर इे हमेशा कोशिश रही की तोर बेटा के कुछ हो जाए। काहे कि भगवान ओकरा बेटा नेखे देले बड़न । एहि लिए तोर बेटा ओकर आँख में खटकी ।
सबसे पहले तु वहाँ जैबे तो अपन बेटा के ख्याल तोरा बढिया से राखे के होई अपन गोतनी पर तु कभी भी विशवास ना करिये । आरो तु अपन ससुर से बोल के अपन हडि़या चूला चैका अलग करवा लिहै । तु ससूर के बोल दिहे कि हम दोनो गोतनी मेें पटत नैखे । आरो हमार बच्चा भी छोटा-छोटा बा। एहिलिए हम इ हालत में सब घर के काम ना देखे पारब। एहिलिए तु हमार बटवारा कर दा।
इन्द्रा अपनी माँ की यह बात सुनकर स्तब्ध रह गयी । और अपनी माँ से कहने लगी कि
(इन्द्रा)
‘‘माई इ तु का कहा रे इ सब कैसे संभव होई हम सब शुरू से एक साथ रहल बनी । एतना दुख तकलीफ झेलनी लेकिन बटबारा के बात सोचनी भी नैखे आरो तु बटवारा करेके कहा तरे। ई सब संभव ना हो पाई हमार पति आपन भाई लोग से अलग ना होबे पाई । ’’
(यह बात सुनकार इन्द्रा की माँ गुस्सा हो जाती है और कहती है कि )
(इन्द्रा की माँ )
‘‘ तोरा हमर अच्छा बात खराब लगाहो तो ठीक बा जो आरो अपना बेटा के मार । तु देखिए इन्द्रा, आज जैबै आरो उ एक सप्ताह के अंदर तोर बच्च के खत्म कर दी। ओकर बाद तुु घर क काम करते रहिए आर उ तोर गोतनी शाढ़ीन बनके राज करी।
अपनी माँ की यह बात सुनकर इन्द्रा को अंदर की ममता जाग उठी और उसके बाद इन्द्रा ने अपनी माँ से वादा किया कि वी अपने बेटे का कुछ नहीं होने देगी। वह अपनी ससूराल जाकर अपने ससूर से इस बारे में बात करेगी। इसी तरह दिन बीतने लगे और इन्द्रा की जोठानी एक एक दिन कर इन्द्रा का इंतजार कर रही थी वह मन -ही-मन इन्द्रा के बेटे के खिलाफ योजना बनाए जा रही थी। इधर इन्द्रा भी अपने ससुराल जाने के लिए व्याकुल हो रही थी क्योंकि उसे अपने पति की चिंता सता रही थी कि न जाने इतने दिनों में उनका क्या हाल हुआ होग। वो स्वास्थ होगें या फिर और कमजोर हो गए होगें? इस तरह दिन काटते-काटते वह दिन आ गया जिसका इन्द्रा को इंतजार था। इन्द्रा के ससूर इन्द्रा को लेने के लिए आए।
इन्द्रा अपने माँ बाप भाई -भाभी से विछरने पर खुब रोए जा रही थी तक सभी ने उसे दिलासा दिया और इन्द्रा की माँ ने कहा कि
(इन्द्रा की माँ )
इन्द्रा बेटी भगवान तोरा के एगों सुंदर लाल देले बड़न । अब तु कोहे रोवतरे तोरा तो एकरा देखके खुश होवे के चाहि। जो ओरा अपन देानों बच्चा और पति के ठीक से रखिए हमलोग तोहर साथ बानि।
(तभी इन्द्रा का भाई भी सामने आकर कहता है। कि)
(इन्द्रा का भाई )
‘‘तु मत रो बहिन । हमलोग तोहार साथ बानि । कभी भी हमलोग के जरूरत पड़ी तो तू एक चिटठी मार दिये । हम सब भाई तोर दरबाजा पर आ जाइब।
(अपने भाइयों के इस बात से इन्द्रा को बहुत ढाढ़स मिला और इन्द्रा ने अपने आँसू पोछ डाले और खुशी से अपने ससूराल चली गई।
ससूराल आने के बाद जब इन्द्रा बैलगाड़ी से उतरती है तो इन्द्रा की जैठानी सूलोचना उसकी आरती उतारती है और उसे बधाई देती है। उसके बाद इन्द्रा के बेटे को गोद में लेकर उसे एक जोर की चिकोटी काटती है जिससे इन्द्रा का बेटा जाग कर पुरे जोर-जोर से रोने लगता है जब सूलोचना कहती है कि ।
(सूलोचना)
अरे मेरा सोना बेटा बड़ा नाजूक है इतनी सी चिकोटी से इतना रोने लगा। मै तो बस तुझे जगा रही थी कि बेटा। अरे ,बेटा में तेरी बड़ी माँ हूँ।
(इन्द्रा झट से अपने बेटे को अपनी गोद में लेती है ओर उसे अपने कमरे मे ले जाकर चूप कराती है। अपने कमरे में अपने पति को विस्तर में देख इन्द्रा चैक पड़ती है अपने बेटे को सूला कर अपने पति से कहती है। कि
(इन्द्रा)
सूमित्रा के बापू । का होकल बा अपने के। तबीयत तो ठीक बा ना ऐसे विस्तर पर काहे पड़ल बानि। हरिकेष जी ध्यान से अपनी पतनी को देखते है उसके बाद कहते है कि
(हरिकेष जी)
‘‘तु आ गेले इन्द्रा बड़ी दिन हो गईल इ हमार बेटा सुतल बा।
(अपने बेटे की तरफ मुख करके हरिकेष जी कहते है।)
इ हमार सोना बेटा बा। बड़ी सुंदर भईल बा इन्द्रा । अब का बताई इन्द्रा धीरे-धीरे हमर स्मरण शक्ति खो रहल बा ।पता ना हमरा का हो गइल बा। आजकल सब बात भूले लगा तानि । इन्द्रा की और देखते हुए। अब शरीर बहूत कमजोर हो रहल बा। तू एतते दिन ना रहस ता हमरा तबीयत भी ढीला हो गइल पता ना भौजी हमरा से पराया नियन व्यवहार काहे करा तिया।
(इन्द्रा अपनी पति की सारी बाते ध्यान से सुनती है। उसके बाद अपने पति को आराम करने के लिए कहती है। और फिर आपने कमरे को देखती है । उसके कमरे के कोने कोने मेे धूल जम गई थी। इन्द्रा अपने समान कपङे लतते को बक्से में डालने के लिए बक्सा खोलती है तो देखती है उसके नए-नए साडि़या उस बक्से में नहीं है फिर वह अपना दूसरा बक्सा जिसमें उसने अपन सारे जेवर गहने रखे थे उसका ताला टूटा हुआ और सारे गहने गायब हैे। इन्द्रा दौड़कर अपनी जोठानी के पास जाती है। और कहती है कि)
(इन्द्रा )
‘‘भाभी … हमार नया नया कपड़ा लता आरो जेबर गहना कहा गइल हमर बक्सा में कुछो नेखे सब खाली बा (चिंतित होकर)
( सूलोचना )
‘‘इ का कहतरू इन्द्रा। तोर जेवर तोहर बक्सा में नैखे तो कहा उड़ गइल हँ तोहार नैका साड़ी सब हम पहनले बानि ता उ सब तनि पुरान हो के फट गइल बा लेकिन तोहर जेवर के बारे में हम कुछो नैख जाना तानि । ओरो बिना देखे तू हमरा के उपर इलजाम ना लगा सके लूँ ।’’
(इन्द्रा समझ जाती है कि यह सब उसकी जैठानी का किया धरा हे इसलिए वे अपने ससूर से इन सब के बारे में जाकर कहती है तो इन्द्रा के ससूर जीे चैक पड़ते है और वे समझ जाते है कि यह सब सूलोचना की बदमाशी है । इसलिए वे सूलोचना और उसके पति दोनो को तुरंत अपने पास बुलाते हे और कहते है कि।
(इन्द्रा के ससूर)
‘‘इ सब हम का सून रहल बानि सूलोचना बहु ;क्रोधित होकरद्ध
इन्द्रा बहुँ के जेवर सब कहा गईल ।
(सुलोचना)
हमरा के नैखे पता ससूर जी । हम इ सब के बारे में कुछो ना जाना तानि’’
(ससुर )
‘‘तु ना जाना तरू ता उकर जेवर उ बक्सा खा गइल। इन्द्रा वहूँ तो अपन मेके जेवर लेके नेखे गइल बिया । उ सब जेवर आपन बक्सा के डाल के ओकरा में ताला लगाके गइल बिया । ता ओकर ताला कसै टुटल बा तू तो दिन भर घर में रहतरू तो ओकर ताला टूटत रहे तो तू कहा रहू । बोला
बोलो सूलोचना बहुँ ’’
(सूलोचना)
‘‘ हमरा के कुछ मालूम नैखे ससूर जी । इन्द्रा हमरा के उपर झूठा इलजाम लगा रहल बिया
;झूठा आँसू बहाते हुएद्ध
(ससूर जी )
‘‘झूट ना बोला बहु । जा जाके एकर सब गहना एकर हाथ में ला के दे दा । हम तोरा के माफ कर देब।
(सूलोचना अपने पति को बोलने के लिए कहती है कि क्योकि इन सब में सूलोचना का पति गोपाल भी शामिल था। यह पाप उसी के मन में पहले आया था गोपाल कहता है कि
(गेपाल जेठ)
बाबुजी । तू हमार पतनी पर गलत इलजाम लगा रह बड़ा ।बिना कोनो सबूत के तू एकरा चोर ना कहा।
(गेपाल की इस बात पर ससुर जी पुरा भड़क पड़ते हे और वह समझ जाते है कि यह पाप इन दोनों ने मिलकर किया है इसलिए वह कहते हे कि)
(ससुर जी )
‘‘ठीक बा ।हम सब समझा तानि । तु सुलोचना बहु के एतना पक्ष काहे ले रहल बड़े । अब हम तु लोगन से कूछो ना कहब । अब हम तू सब भाई के बटबारा करब । अब सब जमीन जायदाद, घर समान सब के चार हिसा होई आरो सबहे भाई अलग-अलग रही।
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