गेपाल जेठ सोचते है कि उसका छोटा भाई तो बीमार हे वह तो खेती नहीे कर सकता और उसे जमीन भी मिली तो वह सब बेच के खा पीके खत्म कर देगाा इसलिए बाबाुजी उसे ज्यादा कुछ नहीं देगें और हरिकेष और उसके बीबी बच्चे के खुराक की जिम्मेदारी वह मुझे देकर कहेंग कि तुम हर महीने इसे कुछ पैसे दे देना ताकि इसका गुजर बसर हो सके। मगर ऐसा कुछ नहीं होता है ं इन्द्रा के ससूर जी सब जीमन जायदाद का बटवारा करते है। और सभी भाई का बटवारा बराबर हिस्सा करते है । और इन्द्रा की साँस के सारे जेवर जो उसके ससूर ने अपने पास सम्माल कर रखे थे। वो सारे जेवर इन्द्रा को मिलते है इन्द्रा उसे लेने से इंकार करती हेै । तब इन्द्रा के ससुर अपनी सौगंध देकर उसे वो सारे जेवर देते है इन्द्रा के हाथ में अपनी माँ के मोटे -मोटे और भारी जेबरोें के देख गोपाल जेठ और उसकी पतनी सूलोचना जल भून जोते हैै।
इन्द्रा के सूख के दिन फिर लोट आते है । वह नौकर चाकर लगाकर बड़े आराम से रहने लगती है इन्द्रा अपने पति और अपने दोनो बच्चे का भी ठीक से खयाल रखती है इन्द्रा के ससूर इन्द्रा के पास ही रहते है। और उसके जमीन जायदाद खेत आदि की देखभाल करते हे इन्द्रा के दो दोवर भी अपनी पतनियों के साथ आराम से रहते हे।।
बस इन्द्रा के जेठ ओर जेठानी ही हमेशा इन्द्रा से इष्र्या करते रहते है।
इन्द्रा की खुशी को उसकी जेठ जेठानी की नजर लग जाती है। और साल भर के बाद इन्द्रा के ससूर स्वर्ग सिधार जाते है। इन्द्रा के सर से उसके ससूर का साया हट जाता है। इन्द्रा अब अकेली ही बाहर का काम धंधा देखने लगती है। इधर सूलोचना और उसके पति गोपाल में मन में लालच पैदा होने लगता है वेदोनो इन्द्रा का हक छीन्ना चाहते थे।
इन्द्रा बडी लगन से अपने घर व बाहर दोनों जगह सम्भलती है इस तरह इन्द्रा के दिन कटने लगते है लेकिन कहते हे न कि अगर भाग्य में सुख ना हो तो इंसान कितना हि प्रयास कर ले दुख का सामना करना ही पड़ता है।
इन्द्रा के पति की हालत दिन-ब- दिन बिगडती जा रही थी। एक दिन हरिकेष जी की हालत बहुत खाराब थी। रात का समय था । हरिेकेष जी
‘‘इन्द्रा … इन्द्रा…’’
(इन्द्रा)
एतना जोर से काहे बोलत बानि । हम तो यही बानि । आपन खातिर दूध गर्म करत रही गरम-गरम दूध पी लेब ता खाँसी थोड़ा कम हो जाई
(हरिकेष जी)
ना इन्द्रा तु हमार पासे रहा । कही मत जा । हमरा के लागा ता, अब हम ना बचब । आज के रात हमार आखरी रात बा।
(इन्द्रा)
इ का अशुभ बात बोल रहल बानि। अपने ऐसन बात ना बोलि ;रोते हुएद्ध लिं इ दुध पी लिं। बस अब जल्दी से इ रात कट जाए । सुबह बैध जी आ जाई तो सब ठीक हो जाई ।
उस दिन की रात थी की कटने का नाम नही ले रही थी। इन्द्रा के दोनो बच्चे सुमित्रा ओर अभिमन्यू दोनों उठकर अपने पिता के पास बैठ रोने लगते है अभिन्यु कहता है कि
(अभिमन्यु)
बापु । तोरा का हो गइल बापु । तू ऐसे काहे बोलो तरा । तोरा अगर कुछो हो जाइ तो हमस ब अनाथ हो जैबैे
;रोते हुएद्ध
उस समय अभिमन्यु छः साल का था और सुमित्रा आठ साल की सुमित्रा भी रोकर कहने लगती है।
(सुमित्रा)
बापु तु ठीक हो जैबा तु आराम करा। बापु तु बीमार ता बहुते दिने से बड़ा लेकिन जिंदा बड़ा ता हमलोग के मन में एगो शांति वा। तोहरा देखके हमलोग जी रहल बानि । अगर तोहरा के कुछो हो जाइै तो हमलोग कैसे जीयब । उपरवाला एतना निर्दयी ना हो सके लन (रोते हुए)
(हरिकेष जी अपने परिवार को रोते देख खुद भी रो पड़ते है और साभी से कहते हे कि)
( हरिकेष जी)
‘‘तु लोग ना रोआ । तु लोक हमरा के वचन दा की अगर हमरा के कुछो हो जाई ता तु लोग टुटबा ना बल्कि जिंदगी के दुख का सामना करवा।
खॅंासते हुए।
(हरिकेष जी की हालत में जरा भी सुधार नहीं आता है। बल्कि उनकी हालत और बिगडती जाती है इन्द्रा और उसके बच्चें का रोते रोते बुरा हाल हो जाता है। हरिकेष इन्द्रा के गोद में अपना सर रख कर कहते है। कि)
(हरिकेष जी)
‘‘इन्द्रा .. हमरा के नींद आ रहल वा तोहर गोद में बहुत सुकून मिल रहल वा। इन्द्रा चुपचाप अपने पति की बात सुनती है ं एगो गीत सूनेवे इन्द्रा हमरा के बहुते मन कर रहल बा।
(इन्द्रा)
इ का कहा तानि । हमरा से गीत ना गाईल जाई । हमरा के माफ करि।
(हरिकेष जी)
ऐसे मत बोल इन्द्रा तू हमार बात ना मानवे देख तोहरा के हमार क्रिया ऐगो गीत सूना दे हमार के बहुत जोर क नींद आ रहल बा तु एकटि गैव तो हम सूत जाईब।
(इन्द्रा को लगता हे कि उसके पति को कमजोरी की वजह से सूस्ती आ रही है इसलिए वो को लोरी सूनाकर आराम करना चाहते है इसलिए वह कोई टूटा-फुटा गीत गुनगुनो लगती है । यह गीत इस प्रकार है।
दुखवा तु हमरा अपार देइला प्रभु
सुखबा देखाबा ना.. प्रभु
सुखबा देखाना ना
जिदंगी में उलझन अपार देइला प्रभु
चैेनवा देखावा ना प्रभु
चैनवा देखाबा ना …।
(इन्द्रा को यह गीत गुनगुनाते -गुनगुनात सुबह हो चुकी थी इन्द्रा के दोनो बच्चे वहीं जमीन पर सो चुके थे। हरिकेष जी इन्द्रा के गोद में दम तोड़ चुके थे लेकिन इन्द्रा को लगा थी कि वह सो रहे है इसलिए उन्हे रात भर अपनी गोद में ही सुलाए रखा था। सुबह इन्द्रा हरिकेष जी को उठने के लिए कहती है लेकिन हरिकेष जी को कोई प्रतिक्रिया ना होते देख उसके प्राण सुख जाते हे। इन्द्रा पागल की भाँती अपने पति को उठाने लगती है । उसे यकीन नहीं होता की उसकी दुनिया उजड़ चुकी है इन्द्रा के दोनों बच्चे उठकर जोर-जोर से रोने लगते है इन्द्रा जोर जोर से दहाड मार कर रोने लगती है । उसका रोना सुनकर आस-पङोस के सभी लोग इक्टठा हो जाते है इन्द्रा अपने हाथों की चुडि़या अपने पति की छाँती पर तोड़ते हुए कहती है कि।
‘‘इन्द्रा ’’
‘‘उठी ना सुमित्रा के बापू ऐसन ना हो सकेला.. हाय रे दृ फूटल करम अब हमलोग के के देखी । काहे हो भगवान , का गलती करले रहि। जो हमरा के एतना बड़ा दुख दे देला । हमरा के भी आपना पास बुला ला. हो गे मइयया दृ हमरा के भी बुलाला सुमित्रा के बापू । हम ना जी सकब।
(इन्द्रा पर माेनो पहाड़ टूट पड़ा । उसे ऐसा लग रहा था कि उसका सब कुछ खत्म हो गया उसकी आखेंे रोकर सुख चुकी थी और अब उन आँखों से खून निकलना बाकि था। किसमत ने उसे बड़ी ही मुशिकल घड़ी में लाकर छोड दिया था अब वह बिल्कूल अकेली थी। उसके सर प न सांस सुसुर थे और ना ही उसका पति । उसे ऐसा लग रहा था कि काश यह धरती फट जाए और वह उसमे समा जाए।
ऐसी दुख की अवस्था में इन्द्रा के माँ बाप ने बड़ा सहारा दिया उनलोगों ने इन्द्रा की खुब समझाया उसके दोनों बच्चों को कसम देकर उसे शांत किया। दिन गुजरने लगे। इन्द्रा किसी तरह अपना काम धंधा देखने लगी , इन्द्रा को उसका सफेद लिवाज उसे जैसे काटने को दौडता लेकिन फिर भी वह बड़ी मुशिकल से अपने आपको सम्भाला कर अपने दो छोटे बच्चों को खातिर दिन काट रही थी । इधर इन्द्रा की जिंदगी मंे जैसे पहाड़ टूट पड़ा था और उधर इन्द्रा के जेठ जेठानी उसके जमीन जायदात हथियाने की योजना बना रहे थे। एक दिन सुलोचना अपने पति से कहती है कि
(सूलोचना)
अजी सुनते हो कुछ सोचे हें कि नाहि अपन के भाई के गुजरल छः महिना हो गईल आर आप अभी योजना ही बना रहल बानि।
(गोपाल)
तु एतना काहे परेशाान होबत तरे।
हम सोचले बानि एगों तरिका
(सुलोचना)
का तरिका सोचले बानि। हमरा के ना
सुनाइब
(गोपाल)
अरी सुलोचना । तोहरा ना सुनाइब तो का पड़ोसी के सुनाइब । सुन इधर देख, बापू जब बटवारा करले रहन तो खाली मुँहे से बोळले रहन कोनो लिखा पड़ी नैखैे ता अब हम काल्हे सबेरे जाके ओकर सब अधिकार छिन लेब । आरो उ इन्द्रा हमरा कुछों ना बिगाड़ सकी और ना ही की कोनों गाँव समाज एकरा में पड़ी ।अब सब काल्हे सबेरे के इंतजार करा । कालहे हम तोहरा के माला माल कर देवे।
सूलोचना खुश होकर कल सूबह का इंतजार करती है इधर इन्द्रा अपने बच्चे को खाना खिलाकर सूला देती है । इन्द्रा को किसी तुफान के आने की आशंंका होने लगती है इसलिए वह रात आँखों -आखें में काट लेती है। सुबह सुरज की पहली किरन से इन्द्रा का ध्यान टूटता है कि वह साफ सफाई में जुट जाती है थोडी देर बाद इन्द्रा का जेठ और जेठानी अपने साथ गाँव के चार पाँच आदमी को लेकर इन्द्रा के घर आ धमकते है। इन्द्रा अचानक से इन बिन बुलाए मेहमान को देख चैक पड़ती है। और वह समझ जाती है। वे लोग को कोई गलत योजना बना कर मुझे फिर से परेशान करने आए है लेकिन वह शांत होकर बड़े धैर्य और आदर से उनलोगों को बैठने के लिए कहती है और सभी को चाय बनाकर पीलाती है उसके बाद सभी से घर आने का कारण पूँछती है तब गोपाल जेठ कहता हे कि
(गोपाल)
देखो इन्द्रा ;आवज में थोडा दबाब बनाकरद्ध
हमलोग तोहरा से जरूरी बात करे खातिर आईल बानि । एहिलिए हमार बात तु ध्यान से सुनबु?
(इन्द्रा)
ठीक बा जेठ जी हम आपलोगन के बात ध्यान से सुनब। इन्द्रा के दोनो बच्चों इन्द्रा के पास आकर बेठ जाते है।
(गेपाल जेठ)
देखा इन्द्रा ?अब हरिकेष तो ना रहल बाबुजी भी स्वर्ग सिधार गेल बड़न । हम ई कहे चाहतानि की बाबुजी जो हमार छोटका भाई हरिकेषवा के जमीन जायदाद जे भी देले रहन ओकर कोनो लिखा पड़ी तो नेखे ?ता बात ई भइल कि बाबुजी के मरला के बाद बाबुजी के सब जमीन जायदाद के मालिक हम बनि काहे की हम उनकर बड़ बेटा भैनीो । हमी फैसला करब कि अपन जायदाद हम केकरा देब कैसे देव आर केतना देव । आर हरिकेष के स्वर्ग सिधारे के बाद ओकर हिस्सा में जे रहल उ हमार हो गइल ता हम सीध-सीधा कहा तानि कि तु हमार सब कुछ वापस कर दे और राजी खुशी से अपन माई बाप के घर चल जो। इन्द्रा सब कुछ ध्यान से सुनती है। और अब उसके सबृ का बंाध टुट चुका था और वह समझ चुकी थी कि उसका जेठ अपने छोटे भाई का धन हड़पना चाहता है इसलिए इन्द्रा कहती कि
;इन्द्राद्ध
जेठ जी हम राउर बात ध्यान से सून लेनी और समझ भी लेनी कि राउवा का चाहातनि एहिलिए हम रउवा से एगो बात कहे चाहातनि। रउवा आपन दोनो कान खोल के सूनलिं हम आपन घर द्वार छोड़ के कहि ना जाइब और रउवा के एक फूटी कोड़ी ना मिली।
गोपाल जेठ शर्म से पानी हो रहा था क्योंकि इन्द्रा ने ये सारी बात गाँव के दो व्यक्तियों के सामने कही ;सुलोचना का गुस्सा भी उतार चढाव कर रहा था उसे उपनी बेजत्ती बर्दाशात नहीं हो रही थी । सूलोचना ने इन्द्रा का मुँह चुप करने के लिए कहा किद्ध
;सूलोचना द्ध
अरी इन्द्रा जरा भी शर्म लिहाज बाकी रहल बा या सबके बेच देलु। अपन जेठ से कोई ऐसे बात कराता ।
(इन्द्रा)
तव का करि हम। ई जेठ बड़न अरे ई दुख के समय में हमार आँसू पोछे के बजाय हमरा के हमार घर से निकले कहातरन, आर हम इनकर लिहाज करि
(गोपाल जेठ)
इन्द्रा बहुत हो गईल नाटक अब हमार बात ध्यान से सून इ सब जमीन जायदाद हमार बा तोहार के कुछो ना देव तु जो आपन बाप घर।
(इन्द्रा)
काहे जाइब। खबरदार जेठ जी । हम राउर इज्जत करातानि एहिलिए अब तक राउर के बदार्शात करत बानि नै ता धक्का मार के घर से निकाल देतनी
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