इंद्रावती सहुआइन : This is a true Hindi story of Indrawati Sahuwaene aged 111 years at present. Indra is a very straggliest women. More difficulties came in her life but she had taken no burden about that and faced them happily . We should learn lesson from her life.
इन्से मेरी मुलाकात तब हुई जब मै अपने ससूराल शँादी करके नई-नई आई थी। मै इनसे अपरिचित भी, पर जब इनसे मेरा परिचय करवाया गया तो मै इनसे बहुत प्रभावित हुई। इनकी उम्र उस वक्त एक सो तीन (103) साल की थी लेकिन ये तो साठ सत्तर साल की महिला का काम करने मे मात दे दे। मेरी सास ने कहा कि में अभी भी अपने कपड़े खुद धोती है, ये अभी भी आईना लेकर खुद इ अपने बाल सुलझा लेती है ये अपने गाँव में रोज सुबह पाँच बजे उठकर अपने खेत खलिहान का हाल चाल देखकर आती है।
मुझे अपनी सास की बातों पर यकीन नहींे हो रहा था क्योकि आजकल तो पचास पार करते ही सौ बिमारी, कमजोरी, आँखो में धुधलापन और न जाने क्या-क्या होेने लगता है, और इनकी उम्र तो एक सौ तीन साल की हो गई है। मुझे लगा कि मेरी सास अपनी सास की माँ की झूठी तारीफ कर रही है। कुछ दिनों बाद वो अपने गाँव चली गई थी।
चार साल बाद मेरी ही कहने पर मेरे ससुरजी अपने नानी को हमारे घर पर कुछ दिनों के लिए लेकर आए। सबसे पहली हैरानी की बात यह हुई कि मेरे ससुरजी उन्हे गाँव से अपने स्कूटर पर विठा कर लाए । कम से कम साठ (60) किलो मिटर की दूरी तय करके आई थी वहा इनकी आँखों में जो तेज, हौसला और आवाज में ताजगी दिखी, उन सभी चीजोे से मै बहुत ही प्रभावित हुई। उसके बाद मै इनमें रूची लेने लगी। इनके हाव -भाव देखने का नजरीया , इनकी खान-पान इनकी बोली का वो लस्स आदि सभी चीजों पर मैें गौर करने लगी।
एक दिन मेरा मन हुआ कि क्यों न मै इनके उपर कुछ लिखुॅ। पहले तो मैने देनिक जागरण प्रभात खबर इन दोनो अखबार बालों को घर पर बुलाया । ये लोग मेरे ससूर जी को नानी से मिलकर बहुत खुश हुए। इनका फोटो लिया गया और पेपर में छापा गया।
इन्द्रवती जी, बहुत खुश हुई, और मुझे बहुत सारा आशीवाद दिया। उनकी आखोें से खुशी के मारे आसूँ छलक पडें । मेरी भी आँख भर आई। मेरा मन हुआ कि मै इनके जीवन से जूड़ी हर कहानी जानूँ और मै काँपी और कलम लेकर बैठ गई इनके पास। इन्द्रावती जी ने खुश होकर अपनी जीवन से जुड़ी हर उस सच से अवगत कराया जिससे मे अंजान थी। उनके जीवन का सच आत्मकथा जानकर मुझे बहुत दुख हुआ। मेरे आँखों से आँशु निकल पडे, मुझे यकीन नही हो रहा था कि कोई इतना सहनशाील, अंदर से इतना मजबूत कैसे हो सकता है इतनी सहन शक्ति तो सिर्फ किसी देवी में हो सकती और वे देवी मेरे सामने है जिसे मै हाथ जोडकर प्रणाम करती हूँ ।
कुछ दिनों बाद वो अपनी मीठी यादें छोड अपने गाँव वापस चली गई। उनकी जीवन से जुड़ी सारी कहानी मेरे जेहन में बस गई और मुझे लगा कि मुझे इनके बारे में लिखना चाहिए । इसलिए आज में लिखने जा रही हूँ इन्द्रावती जी की कहानी अपनी जूबानी बचपन का जीवन ‘‘इन्द्रावती जी का बचपन का जीवन बहुत अच्छा रहा है इन्द्रावती जी की माँ का नाम स्व0 बाची सुहाआइन और पिता का नाम स्व0 गणपत साह‘‘ था। इन्द्रावती जी की चार बहने ‘‘फुलझारो, संझारो इन्द्रावती और अंजोरा थी और छः भाई ‘‘ रामनारायण साह, बाबुलाल साह, लालमोहन साह भीम साह, सहदेव साह, दुखी साह, थे।
इन्द्रावती जी अपनी बहनों में तीसरे स्थान पर थी। इन्द्रावती जी का जन्म 1903 में हुआ था। इस समय बंगाल में पहला अकाल पड़ा था।
इन्द्रावती जी का बचपन का जीवन काफी सुखद रहा है इसलिए अब यहाँ से शुरू होता है इनका सफर ।
‘‘बचपन का वो सुखद आनंदित जीवन पंक्षी एक डाल से दूसरे डाल पर जाकर आनंद ले रहे है। खेतों के चारों तरफ उपजाउ जमीन है। इन्द्रावती जी अपने बहनो के साथ खेल रही है तभी दूर से इनकी माँ की आवाज आती है।’’
‘‘इन्द्रा , अगे इन्द्रा, अगे फूलवा। तू सब यहाँ कि करहि। चल बहुत खेल लेले , घर मे काम ने हो किं।’’
(इन्द्रावती जी कहती है।)
‘‘कि होली माँई। जरी खेलें दे ना। अभी थोडा देर खेलवे फिर आ जेवे। जो तू। जो घर जो।’’
‘‘हम नै जैवे। चल तु लोग। साँझ होवे वाला है। केतना खेलवीं। अब चल। ने तो सबके एकक लप्पड़ लगतों। चल। ’’
(‘‘सभी बहने अपने घर कोै आ जाती है। फूलझारो संझारो हाथ मूँह धोकर रात का खाना बनाने में जूट जाती है। इन्द्रा और अंजोरा गायों को घर में आँगन में बाँधने लगते है। गाय बँाधने के बाद दोनों बहने अपने छोटे भाइयों को गोद में खेलाने लगती है और कुछ भाई आपस मंै बैठकर कुछ खेल खेलते है इन्द्र की माँ अपने पति के पास आकर एक बेटे को अपनी गोद में बिठाकर दूध पीलाते हुए अपने पति से कहती हे कि।
का हो बाबुआ के बापू ? अपने खाली खेत खलिहान देखते रहब का ? फूलवा के शादी ब्याह के बारे में सोचल जाई की ना। अपने खबर वा कि फूलवा अब ग्यारह पार कर लेल बिया। ओकरा लायक कोेनौ लड़का देखके ओकरा पार लगैवा की ना?
(इन्द्रा के बापू)
‘‘हाँ -हाँ । हमसब सूना तानि और सब समझा तानि। अबकि फसल कट जाई तो जाईब। आर कोनो अच्छा सा खाता कमाता लड़का देखे के व्याह कर देब। तू चिंता मत कर। सब बेटी के इसी तरह पार लगा देव। तू जो बचवा के देख और ओकरा सूता। जो माथा मत खा।’’
(इन्द्रा की माँ बूदबुदाते हुए अंदर चली गयी।
इन्द्रा और उसकी बहन अंजोरा दोनो अपने छोटे भाई को खाना खिलाकर सूला देती है इन्द्रा अपनी बहन फूलझारो के पास जाती है और उससे कहती है कि।)
‘‘ भात बन गेलो दीदी ? ’’
‘‘हाँ बन गेले। अवै सबके खिला देवे।
बस होइ गेले काम । फिर सूतवै।
‘‘गे दीदी । ’’
‘‘कि होलो ’’?
‘‘माई है ने , तोर शादी-व्याह के बात करा
हलो।’’
‘‘जाने छिए । रोजे के वही किस्सा।’’
‘‘तोर व्याह हो जैतो तो तू चल जैमी हमलोंग के छोड़ के।’’
‘‘ देख इन्द्रा। (गालो पर हाथ फेरते हुए।)
इ सब हमर हाथ में नै न है। माई बाबु जेकर हाथ मे हाथ देते , औकरे साथै जिंदगी काटै पड़ते।
‘‘ तू सच बोलही दीदी। बेटी जात के जिंदगी खराब है। जहाँ पैदा होले । जहाँ बड़ा होले वही घरवा द्वारवा छोड़के एक दिन दोसर के संगे चल जो। वहाँ पर ओकर घर में काम कर, भात रिहन ,बच्चा के देख , मर्द के देख, सास .ससूर ननद देवर के लुगा खिच। ओकरा में दस गो बात सुन ’’
(फूलझारो कहती है। )
‘‘देख इन्द्रा इ सब भाग्य के उपर है जेकर भाग खराब होते ओकर जिंदगी भर दूख है, और जेकर भाग्य अच्छा हे ओकर जिंदगी भर सुख लिखल है। इ सब करम क लिखल है। एकरा कोई ना मिटा सकैला। माई-बाप जन्म दे है। करम नै ।
(इन्द्रा कहती है।)
चल छोड़ दीदी इ सब बात। हम सब भाई बहन के नसीब अच्छा है। तू उदास मत हो चल सब कोई खा लेते तो आराम से सुतवे ।
(सभी लोग खाना खाकर सो गए। कुछ दिनों बाद इन्द्रा के बाबू फूलझारो के लिए लड़का देखने गए। उन्हें लड़़का पसंद आया। लड़का अच्छे घर से था । लड़के के पिता फूलझारो को देखने आए। उन्हें फुलझारो पसंद आई और वे बात पक्की करके चले गए। कुछ दिनों बाद फुलझारों की शादी उसके पति काशीनाथ साह से हो गई और वे सबको छोडकर रोते-रोते अपने पति के साथ ससूराल चती गई । फूलझारो के जाने के बाद इन्द्रा खुब रोई। उसे अपनी वहन की बहुत याद आ रही थी इन्द्रा के सभी घरवाले उदास थे लेकिन कुछ दिनों में सबलोग फिर से पहले तरह चलने लगे। कुछ महीनो बाद सेझारो की भी शादी हो जाती है वे भी अपने ससुराल चली जाती है। अब इन्द्रने की बारी आती है उनकी उम्र उस समय लगभग ग्यारह के आस-पास पहुँच चुकी थी । उसकी भी शादी की बात चलने लगती है। एक दिन इन्द्रा जी अपनी छोटी बहन अंजीरा और अपने भाई रामनारायण, बाबुलाल, और लालमोहन से बाल करते हुए कहती है कि)
‘‘तू लोग जानहि अब हमरो व्याह के बात माई बाबु से बोले लगलो।
‘‘हूँ ? तूहो चल जेमी गे इन्द्रा ? (रामनारायण कहते है) तु दोनो बहन के शादी हो जैतो तो बाबु हमरो व्याह करा देतो। एक दिन सब भाय के व्याह हो जैते। सबहै अपने-अपने दुनिया मे मग्न हो जेते।
(एक दिन गाँव में शोर होने लगा। सभी लोग चिल्लाने लगे और इधर-उधर भागने लगे। सभी लोग बोल रहे थे कि मिलिट्री लोग फिर से गाँव मे आ पहुँचे है। हमलोग को परेशान करने।
मिलिट्री लोग आ चुकी थी। उसने सारे गाँव वालो को कहा कि)
‘‘ सूनो गाँव वालो हर साल की भाँति इस साल भी हमलोग ‘कर’ लेने आए है इसलिए कोई भी गाँव वाला विना मार पीट खाए अपना ‘कर’ आगे करके देते जाए।
(एक मिलिट्री वोला) एक गाँव वाला आगे आते हुए बोला कि)
‘‘हर साल हम कर देते-देते कंगाल होते जा रहे हे इसलिए अब हम कर रहम कीजिए मालिक। अब हम कर नहीं दे पाऐगे।’’
तभी एक मिलिट्री वाला आगे आया और उस गाँव वाले को अपनी चमोटी (बैल्ट) निकाल कर कम से कम दस बार उसे मारा। उसके कपड़े फट गए और उसके बदन शरीर से खुन की रिसे आने लगी । उसके बाद उसने उस गाँव वाले से कहा कि।)
‘‘देखा हससे जवान लगाने का नतीजा। आगे से मूँह खोलना तो हाँ मालिक कहने के लिए। ना कहा तो साँस खींच लूगा।
‘‘हमे क्षमा करे मालिक । लेकिन हम ‘कर’ देगें तो खाएगे क्या। ’’
‘‘हम कुछ सुन्ना नहीं चाहते हमें ना सुन्ने की आदत नहीं। ’’
(मिलिट्री वाले ने अपने साथ लाए जवान को आदेश दिया और कहा कि )
‘‘जाओं जाकर एक एक से ‘कर’ वसुलो और ये नारा भी ले लेना ताकि दरोगा लोग को खाने के कुछ दिया जा सके। ’’
(इन्द्र सब वाक्या अपनी आँख से देख रही थी। उसे दरोगा लोगों पर रहम आ रहा था कि दरोगा लेगों को नारा (पुवाल) खाकर अपना जीवन व्यतीत करना पड़ता है एक तरह से वे भी अंग्रेजों के गुलाम बन कर रह चुके थे। इन्द्रा ने अपने बाबु से कहा कि)
‘‘बाबु हम लोग सबहै मिलके अगर एक साथ बोलवे कि हम लोग ‘कर’ ना देवे तो केतना अच्छाा होते। ’’
(इन्द्रा के बाबु)
‘‘नै इन्द्रा इ सब सोचबे भी ना। देखले ना अभी अपन अखिया से केतना मारलके ओकरा। हमरा केकरो से पंगा नैखे लैना। तु अपन मुँह बंद रख। हम जाइए ‘कर’ देवेला।
(इन्द्रा चुप हो गई। उसे लग रहा था कि अगर सभी गाँव वाले एक साथ अन्याय के खिलाफ विरोध करते ता शायद ये मिलिट्री वाले इस गाँव की तरफ दुबारा कदम नहीं रखते। लेकिन उसके बाबुजी ने सख्त मना कर दिया इन सब झमले में पड़ने के लिए। क्योकि वै अंदर से डर हुए थै इसी तरह दिन बितते गए और इन्द्रा अपनी आखें से गरीबों का खुन चुसता हुआ देखती रही। आखिर वह अकेली कर भी क्या यकती थी सिवाय प्रार्थना के कि काश कोई हिम्मत वाला आए और इस परेशानी को हल कर पाए। इन्द्रा सोच में डुबी हुई थी कि एक तो मिलिट्री वाले आकर हर गाँव को परेाशान करते है और दूसरा यहाँ के जमींदार लोग। ये लोग भी कम बुरे नहीं है ये जमींदार लोग भी हमारे दुशमन ही हे तभी तो शखुआ का पेड़ शीशम का पेड़ और न जोन कोन-कोन से पेड़ो के लिए कर बसुलने चला आता है। इन्द्रा ने अपनी माँ से कहा कि)
‘‘माई ई अत्याचार कब तक होतै कौनों रास्ता ने है सब से छुटकारा पाइके उ दिना बाबु के बोलले रही कि बाबु सब मिलके विरोध करवा तो कुछो बात बनी पर बाबु तो डरपोकका निकलल ।
(माँ कहती है।)
‘‘ चूप इन्द्रा , जूवान के लगाम दे, शर्म नै आवहै अपने बापके डरपोक्का बोलहि तोर बापू काहै ने केकरीो से बैर लहहो जानहि । इसलिए ताकि हमो लोगन पर कोई आँच ने आवे । हमे लोग अपन जीवन जी सकै। ओकर तो कुछो नै बिगड़ते , तोर बापू जिंदा नै बचता आरो जब तोर बाबू नै रहतो तो हम लोब कि करवे र हके इ सब बात दिमाग से निकाल दे। तोर व्याह के दिन आ गैले । अवै तोर व्याह करके ही दम लना बा हमरा के जमाना खराब छै । आरो कोनों उच्च नीच होई जाई तो केकरो के मुँह ना दिखावे पारब’’
इतना कहकर इन्द्रा की माँ अंदर चली गई इन्द्रा को लगा कि शायद उसकी माँ सही कह रही है। आखिर हम अकेले किसी के खिलाफ आवाज उठा ले भी तो क्या होगा। जब तक एक नही सौ गाँव एक साथ आवाज नहीं उठाएगें तब तक कुछ नहीं हो सकेगा । उसने इन सब बातों को अपनेदीमाग से निकालना ही सही समझा । इधर इन्द्रा को दिन रात इन्द्रा की शादी के लिए अपने पति से कहती रहती । एक दिन उसके पति ने कहा कि
(इन्द्रा क बापू )
‘‘देख इन्द्रा के माई हमे बहुत दिनो से विचार करइए कि काहे नाहि हमें अपन इन्द्र के व्याह उ हिरकेष साहु से कर दि । काफी पैसे वाले लोग है अपन इन्द्रा वहाँ पर बहुत राज करते लडकवार जातल सुनल घर से भी है अच्छा दिन से आकर बाबु से हमार परिचय रहल हे और ओकर घर हमर गाँव से एकै किलोमिटर की दूरी पर है जब मन करते । हमे अपने इन्द्रा के देख के चल ऐवे।’’
(इन्द्रा की माँ)
‘‘बतबा तो सही बा लेकिन शदिया हो जाई तो अच्छा होई अपने कालहे भोरे निकल जाई ओरो बात पक्की करके ही आई। ’’
( इन्द्रा के बापू )
ठीक बा जैसन तोर विचार हमें कलहे सबेर ही चल जैवे और अपन इन्द्रा के बात चलेबे।
(इन्द्र के बापू सुबह-सबेरे नहा धोकर तैयार होकर चल दिया। एक किलोमिटर की दूरी तय करने में ज्यादा समय नहीं लगा। उसके बाद कुछ ही देर में इन्द्र के बापू इन्द्रा के ससूराल पहुँच गए। इन्द्रा का ससुराल देखकर इन्द्रा के बापू बहुत प्रसन्न हुए। उनके घर में नौकर, चाकर सब था । उनका घर किसी राजा-रजोरिया से कम नहीं था।
इधर हरिकेष साहु के पिता गनपत साह को देखकर बहुत खुश और आश्चर्य हुए कि अचानक ये यहाँ कैसे। उन्होनें इन्द्रा के बापू का खुब अच्छा से स्वागत सत्कार किया और अपने यहाँ आने का कारन पूछा और कहा कि
(हरिकेष के पिता)
‘‘का बात बा गनपत साह अचानक से हमर घर में सबहे ठीक -ठाक तो बा ना ’’
(इन्द्रा के बापू)
‘‘हॉं गंगाधर जी सबहे कुशल मंगल बा । हम तो यहाँ कोनो जरूरी बात करेला आइलरहिं।
(हरिकेष के बापू)
‘‘का जरूरी बात? तनि ख्ु।ल के बोला ?
(इन्द्रा के बापू )
‘‘हम तोह।र हरिकेष के अपन इन्द्रा के ष्ष।दी व्याह के बात छेडेला आईल रहिं । तोहरा के मंजूर बा तो वोला नै तो साफ – साफ मना कर दा।’’
(हरिकेष के बापू )
‘‘अरे नाहि गनपत साहु । इ का कहातरा । हमार के काहे ना मंजूर हाई । एतना अच्छा रिशता के कोनो दुकराला का । हामर के मुजूर बा। हम आइब एक दिना तोहर घर आरो इन्द्रा के देख सूनके बात पक्की कर देब । ठीक वा।
(इन्द्रा के बापू )
‘‘तू तो हमार मुँह के बात छिन लेला । एतना खुशी के बात सुनकर हमर पाँव जमीन में ना टिक रहल वा । हम जा तानि अपने मेहरारू के इ खुशखबरी सुना वेला ’’
( दोनो खुश होकर एक -दूसरे के गले मिले उसके बाद इन्द्रा के बापू वहाँ से अपने घर के लिए निकल पड़े रास्ते में वे सोचते जा रहे थे कि इन्द्रा का तो भाग्य ही खुल जाएगा। अगर उसका व्याह इस घर में ही जाए तो। इतना अच्छा घर परिवार । ये तो बहुत पैसे बाले लोग हैं । मेरी इन्द।्र तो राज करेगी इस घर में । इन्द्रा को बापू के पाँव तो जमीन में टिक ही नहीं रहे थे। उन्हें लग रहा था कि काश कोई ऐसी चीज होती जो उन्हे फोरन उनके घर पहुँच देती । उनके चेहरे की चमक, उन्की आँखों की सामने सच होते हुए सपने उनके चलने की गति को तेज कर रही थी लेकिन उन्हें लग रहा था कि उनका गाँव कितना दूर है और वे कितना धीरे-धीरे चल रहे है।
आखिर यह सच ही तो है कोई भी माँ बाप यही चाहेगा कि उसकी बेटी की शादी ऐसे घर में हो जहाँ पर उसे सारी दुनिया की खुशी मिले उस बेटी को अपने मैके की कमी कभी ना खले। कितना आंनदित होता है वो पल जब एक बेटी को बाप विदा करता है कितना हार्षित और कितना दुख होता हैं जब कोई माँ बाप अपने कलेजे के टूकड़े को पाल पोस कर एक अंजान घर में एक अंजान लड़के के हाथ में हाथ देकर अपनी बेटी का विदा करता हे। मन में एक खुशी के साथ साथ एक डर भी होता कि पता नहीं मेरी व्यारी बिटिया रानी कैसे एक अंजान घर में एक अंजान लोगों के साथ अपना पुरा जीवन गुजारेगी।
इस तरह इन्द्रा के बापू को घर पहुँचते शाम हो गई । घर पहुँचते ही उन्होने अपनी बीबी को सारी बात बताई । वे खुशी से फुले नहीं समा रही थी। उसे भी यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी बेटी की शादी इतने बडे़ घर में होगी। उसने ये बात सभी को बताई। सभी भाइ्र -बहन ये खबर सूनकर खुश थे ।इन्द्रा भी शम्र से लाल हुई जा रही थी । उसकी भी खुशी का ठिकाना नहीं था। उसे भी यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी शादी एक बड़े घर में हो रही है।
कुछ दिनो बाद गंगाधर जी अपने कुछ रिशतेदारो के साथ गनपत साह के घर आए। गनपत साह ने उनलोगों का खुब स्वागत -सत्कार किया। गंगाधर जी ने अपने नाते रिशतेदारो की सहमति से गनपत साह को शादी के लिए हाँ कह दिया और पंडित को बुलाकर इन्द्रा कीे शगुण की सारी रस्में पुरी की। इसके बाद पंडित से शादी की शुभ तीथी ली। उसके बाद शादी-व्याह की सारी बाते करके गंगाघर जी ने विदाई माँगी दोनों समध्री एक -दूसरे को हाथ जोडे उसके बाद गंगाधर जी गनपत से जाने की अनुमती माँग कर चले गए।
घर में खुशी का माहोल छा गया था। सारे गाँव बाले भी इन्द्रा का इतने अच्छे घर में व्याह होने से खुश थे। शादी की तारीख नजदिक आ रही थी। एक दिन इन्द्रा बैठ के रोने लगी तो इन्द्रा की माँ ने इन्द्रा से पुछा कि )
‘‘अगे इन्द्रा का होकल हमर लाडो बेटी एतना काहे रोरल बिया। का बात बा। ’’
इन्द्रा रोते हुए
‘‘ माई कानो बात नैखे।’’
(इन्द्रा की माँ )
‘‘कोनो बात नैखे तो ऐसी हमर बेटी एतना आँसू बहारल बिया । अपन माई से छूपैवे ।हमरा के बता बिटवा काहे तु एतना रोअतरे।
(इन्द्रा अपनी माँ के गले से लिपट जाती है और कहती है। कि)
‘‘माई हमार व्याह हो जाई तो हम उहलोगन के घर में तु लोक से बिछड़ के कैसे रहब हमरा के कैसे निमन लागी माई, दीदी लोग व्याह करके कैसे अपन ससुराल में बस गेल बिया । हमरा के बहुते डर लगता । हमे तु लोग के छोड़ के वहाँ पर अकेले ना रहे पारब। ना रहे पारब माई । (रोते हुए)
(इन्द्रा की माँ )
‘‘अगे इन्द्रा (पुचकारते हुए) गे इन्द्रा बेटा । ऐस रोबे तो कैसे होई । इ शादी -व्याह ससुराल मैका हर लड़की के भाग्य से जुडल बा। इ रीत हम अकेले तो ना बनैले बानि। इ तो बरसो से चली आ रही परमपरा है सब तो सबेैह बेटी के साथ हो ला चाहे उ राजा के बेटी हो या रंक के बेटी । हर माँ बाप अपन बेटी के हाथ पीले करत है । इही तो दुनिया के रित बा। अपन बेटी दोसरा के घर आरो दोसरा के बेटी अपन घर । अगर ऐसन ना होई तो दुनिया आगे कैसे वढी केसै विकास होई । आर वसै भी, हमार बैटी कोनो जादे दूर व्याह करके थोडे जारल बिया । उ तो यही पर बस एक किलोमिटर की दूरी पर रही । जब मन होई हमरा के । अपन बेटी से मिले चल जाईब आरो हमर बेटी के हमलोग से मिले के मन करि तो अपन पति के साथ इहाँ आ जाई ।
(इन्द्रा)
‘‘लेकिन माई । आज तक हम तू लोग के छोड़ के अकेले कहि ना रहनि ता हम अपन ससूराल के अकेले तू लोग से विछड़ के कैसे रहे पारव।’’
(इन्द्रा की माँ)
‘‘देख बेटी । सब बेटी के एक दिन ससूराल जाइके होला। शुरूआत के दिन में अपन ससूराल में अजीब लागता । कभी मन न लागी ता कभी रोए के मन करी । लेकिन अपन अंदर ठाठस रखे के हाला ओकर बाद आहिस्ता -आहिस्ता दिन बिते लागला आरो फिर सबहे कुछ अच्छा लागे । फिर हमार बेटी क वही पर अच्छा लागे लागी, लेकिन इ सब में थोड़ा समय लागे ला। इसलिए हर लडकी के थोडा सा ठाठास और हिमम्त राखे क होला । ओकर बाद आपन पति और बच्चा के देख के ही ओकर दिन कटे ल्रगेला । हमें कैसे रहा तानि अपन माई बाबु के छोड़ के। हमरो शुरू -शुुरू में अच्छा ना लागत रहे । खूबहे रोअत रहीं हम लेकिन आहिसता आहिस्ता दिन बिते लागल तो फिर सब कुछ बदल गेल । अब हमार यही अच्छा लागता । इसी तरह तोरो लागे लागी तुहो अपन ससूराल में खुशी से रहे लगवे। ।
इसी तरह इन्द्रा की माँ इन्द्रा को शादी शुदा जीवन के बारे में समझाती है तभी उसका बड़ा भाई रामनारायन वहाँ पर आता है और इन्द्रा से कहता है कि
(रामनारायण)
‘‘इन्द्रा तु रोअतरे कार्हे । देख तोर छः गो माई बा। अगर तोहर ससूराल में तोरा कोई दुख दिहि तो हम छेओ भाई डन्डा लेके ताहार घर पहुँच जाइव।
(इतना सुनते ही इन्द्रा मुसकूराने लगी । राम नारायन के कहा कि वेा हमेशा अपनी बहन का साथ देगे। अगर कभी इन्द्रा को ससुराल में कोई तकलीफ हुई तो वे हमेशा उसकी मदद करेगंे। इस तरह कुछ ही दिनों में इन्द्रा की शादी हरिकेष जी से हो गई। विदाइै क वक्त इन्द्रा सुब रोई । उसके माँ बाप भाई बहन सभी का कलेजा फट रहा था। सभी ने नम आँखों से इन्द्रा को विदा किया इन्द्रा अपने ससूराल चली आई ।
इन्द्रा का ससूराल बहुत ही अच्छा है। उनका घर बहुत बड़ा है। उनका ससूराल जैसे किसी राजा रजोरिया के घर जैसा लग रहा था। उनके घर में ब्राहमण नौकर थे। खेत खलिहान, ,जमीन जायदात बहुत थी । इन्द्रा के ससूराल वालो ने खुब अच्छी तरह से नई दुलहन का स्वागत किया। इन्द्रा की सास इन्द्रा को देखकर बहुत खुश हुई । इन्द्रा उनके घर पर दूसरी बहू थी।
इन्द्रा की सास ने इन्द्रा का सभी लोगों से परिचय करवाया । इन्द्रा के जेठ गोपाल साह और जेठानी सूलोचना भी इन्द्रा को देखकर प्रसन्न थे। इन्द्रा के दो देवर भी थे। पहला रामतपस्या दूसरा राधेशयाम ।ये लोग भी इन्द्रा से मिलकर खुश थे। सभी से परिचय होने के बाद इन्द्रा को उसके कमरे में ले जाया गया। सभी लोग नई बहु के घर आने से खुश थे । इन्द्रा अपने कमरे में बैठअपनी माँ को याद कर खूब रोए जा रही थी । उसे ये सब अजीब लग रहा था। उसे अपने परिवार वालो की खुब याद कर रही थी । आखिर सच ही तो है, एक गयारह साल की कन्या जिसकी उम्र अभी खेलने खाने की हो और माँ बाप उसकी शादी करादे तो क्या बीतती होगी उस दुलहन पर जो आभी शादीशुदा जीवन की जानकारी से अवगत हीो ना हो उसक माँ बाप ने भले ही उसकी शादी करा दी है लेकिन उसकी उम्र के हिसाब से ये शादी व्याह उसे गुड्डे गुड्डियांे का खेल जैसा लगता है उसकी बुद्धि में अभी भी बचपना है । उसका मन एक बच्चे की तरह कोमल है उस छोटी सी व्यारी सी दुलहन को तो ये भी नहीे पता की शादी के बाद क्या होता है। उसका अपने पति के प्रति क्या जिम्मेदारी बनती है अपने सास ससूर और घर के सभी बडे का आदर उनका सम्मान कैसे करें ये सब तो उसने सीखा ही नहीं अभी तो इन्द्रा जीवन के हर पहलू इको समझना परखना सीख रही थी। इस निर्दयी दुनिया के हर सुख दुख को समझना सीख रही थी की उसकी माँ ने उसके पाँव मे बेडिया डालकर उसे झोंक दिया दुनिया-दारी की आग में उसका लडकपन उसका वो खिलखिला के हसना वो जोर से चिल्लाते हूए पक्षियों से बाते करना वे तालाबों में मछलियों को पकडते हुए उत्सुक होना, वो अपनी व्यारी सहेलियों के साथ मस्ती करना वो गुल्ली डन्डा वो सारे अनोखे खेल खेलना और पता नहीं क्या क्या करना ये सारी खुशियाँ उससे एक पल में छीनकर उसके माँ -बाप ने उसे किसी के घर की इज्जत बना कर भेज दिया अकेले । अब वे छोटी सी दुलहन जो ग्यारह साल की है, किसै सम्भालेगी उस घर को, खुद को, अपने पति को, अपने परिवार बालो को, क्या ग्यारह साल की उम्र में ही चालिस साल को महिला बनाकर इस घर -परिवार को सम्भलना होगा।
यही सब सोच के इन्द्रा का मन बैठा जा रहा था। उसे लग रहा था कि वो अपने माँ के पल्लु में छुपा जाए। अपनी माँ की गोद मे सो जाए ताकि उसे शकून और तनावमुक्त नींद आए। इसी तरह कुछ दिन बितने लगे । इन्द्रा उस घर के हिसाब से खुद को ढालने लगी । इन्द्रा के पति हरिकेष साहु बहुत ही अच्छे और समझदार इंसान थे। उन्होंने इन्द्रा को हर वो खुशी दी जिसको वो हकदार है। इन्द्रा सभी का ख्याल, सबकी पसंद नापसंद को समझने लगी थी। इस करण इन्द्रा के सास -ससूर उसे बहूत पसंद करने लगे वे लोगों हर अच्छी बात में इन्द्रा की तारीफ करने लगे। यह सब देखकर इनद्रा की जेठानी आग बबूला होने लगी। उसे इन्द्रा फूटे आँख नहीं सुहाती थी जबकि इन्द्रा अपनी जेढानी की हर बात मानती थी पर सूलोचना ;जेठानीद्ध इन्द्रा को नीचा दिखाने का मौका ढूढ़ती रहती । एक दिन इन्द्रा ने पपीते की सब्जी बनायी, तो सूलोचना ने चूपके से जाकर उसमें चार चम्मच ;एक मुट्ठी भरद्ध नमक मिला दिया जब खाना परोसा गया तो सभी ने पपीते की सब्जी खाते हूए थूक दिया और इनद्रा की सास ने कहा कि
(इन्द्रा की सास)
‘‘छिः छीः? इ का इन्द्रा ? इ कैसन पपीता बनैले बड़े सबहे मर्दाना खाना से उठ गैइल? इ सब बहूत बडा अपशकुन बा ? तोाहार से इतना बड़ बलती कैसे हो गेईल ’?’
(इन्द्रा)
‘‘हमरा के माफ कर दे सासु अम्मा । हमरा के समझ नैखे आवत । इ सब कैसे हो गइल । हमरा के माफ कर देई (रोते हुए)
(इन्द्रा की सास)
‘‘इ कोनो छोटा गलती नैखे वा जेकर खातिर तोहरा के माफी मिल जाई ।
(गुस्सा होते हुएद्ध
;सुलोचनाद्ध
‘‘टीक कहातानि सासु अम्मा एकरा से बहुत बड़ गलति हो गइल एकरा तो सजा मिलेके चाहि। इस तरह घर के सबहे मर्दाना के थाली से उठ जाना तो अपशकुण होला इ सब कोनो छोटा बात नैखे’’
(सूलोचना ने आग में घी का काम किया और इन्द्रा को दो दिन भूखे रहने की सजा दिलवायीै दो दिनो तक इन्द्रा को समझ नहीें आ रहा था कि उससे इतनी बड़ी गलती हो गई । आखिर उसने तीसरे दिन अपने मूँह में अन्न का दाना भरा , इसके बाद थोड़े ही दिनो में इन्द्रा ने अपने अच्छे व्यवहार से फिर से घर के सभी लोगों का दिल जीत लिया। सुलोचना की चाल कामयाब नही हुई।एक दिन हरिकेष ने इन्द्रा से कहा कि वो उसके साथ उसके खेत-खलिहान देखन चले। उसके बाद हिरकेष ने इन्द्रा को अपने सारे खेत खलिहान जमीन आदि दिखाया और कहा कि
(हरिकेष)
‘‘देख इन्द्रा इ सब जमीन जायदाद हमलोग के बा । अगर हमरा के कुछो हो भी जाई तो कभी तोहरा दूख ना होई। ’’
( इन्द्रा )
‘‘इ अपने का कहतबानी। ऐेसन बात अपने के मन मे आइल तो कैसे आइल एतना बड़ बात कह देला। भगवान ऐसन मनहुस दिन कबहों ना दिखाए। हमरा के कुछो ना चाहि अपन के सिबा हमरा के खलि अपने के देखके खुशी मिलेला आरो हमरा कुछहो ना चाहि । भगवान आपन के लंबी उमरिया दे । अब ऐसन बात कबहो भी अपन जुबान पे ना लाइब नाहि तो हमर मरल मूँह देखब अपने (रोते हुए)
(हरिकेष)
‘‘अरे इन्द्रा तू तो गोसा गैले । हम तो बस इसी तरह कैह देनी । तु रोए काहे लगले । ठीक बा हम कान पकड़ तानि अब ऐसन बात कबहि ना बोलब । ठीक बा ।
(इन्द्रा)
‘‘हाँ ठीक बा (मुसकुराते हुए )
एक लड़की का अपनी शादी के बादी उसका संसार सिर्फ पति और बच्चा होता है। वह लड़की अपनी जान से भी ज्यदा अपने पति और बच्चौ को चाहतीहै अपने पति और अपने बच्चें के सूख में खुश और उसक दूख में आँसू निकल आते है। और उसे बहुत दुख होता है वह लड़की जब तक उन दोनो के चेहरेे मे वापस हसी नही देख लेती तब तक उसे चैन नहीें मिलेगा । आखिर यही तो है एक भारतीय नारी की पहचान । एक भारतीय नारी अपने परिवार की खुशी में ही अपने लिए खुशी ढूढ लेती है। उसका पुरा जीवन उन्ही लोगों के सूख-दुख में कट जाता है। इन्द्रा भी उसी भारतीय नारियो में से एक थी इसी तरह दिन बितने लगे कुछ दिनों बाद इन्द्रा अपने मायके चली गई उसे अपने माँ बाप की याद सता रही थी अपन मायके आकर इन्द्रा बहुत खुश थी उसके भाई बहन भी इन्द्रा को देखकर बहुत प्रसन्न हुए। एक दिन इन्द्रा अपने खेतो में बैठ कुछ सोच रही थी तभी थोडी देर बार उसकी माँ वहाँ पर पहुँची और उसके ससुराल का हाल चाल पूछा तो इन्द्रा ने कहा कि
(इन्द्रा)
‘‘हाँ माई । सबहे ठीक बा। ’’
(माँ)
‘‘तोहार गोतनी कैसन बिया। ओकरा से तोरा केसन पटरी खाता। ओकर चाल स्वभाव केैसन वा।’’
( इन्द्रा )
‘‘ठिके बा माई उही तनी ज्यादा होशियार बिया ’’
(माई)
‘‘ज्यादा होशियार के का मतलब बा। कौनो बात भईल बा का।’’
(इन्द्रा)
‘‘का बताई माई । दिन रात हमरे पिछे पड़ल रही । हमर सास से ज्यादा इही टोका-टोकी रकते रहो । कभीयो इ बात के लिए कभियो ऊ बात के लिए ओकरा तो मौका चाहिं हमराके उपर चिल्लावे का
(माई)
‘‘अगे इन्द्रा तोहरा उ परेशान करातिया ता तु पहुना के काहे नाहि बतावा तारे
(इन्द्रा)
‘‘का बताई माई । उ घर के रिबाज दोसर बा । अगर हम अपन मर्द से अपन गोतनी के बारे में बतैवेे तो उल्टा हमरे चार गौ बात सूने पड़ते । काहें कि हमर गोतनी सबहे के नजर मे सीधा और गुणी बहुँ बनके बैठल बिया । बहूतै होशियार बिया हमर गोतनी ।
;माईद्ध
देख इन्द्रा तोर गोतनी चाहे कितनो होशियारी कर ले। भगवान सबहे देख रले आरो तू हमर एगो बात गाठ बाँध ले। अबकी ससूराल जबै तो आपन गोतनी से होशियार रहबै ’’
(इन्द्रा)
‘‘ठीक बा माई । तू जादे चिंता मत कर एक दिन सब ठीक हो जैते।
अपनी माँ को इन्द्रा ने झूटा दिलासा देकर शांत कर दिया लेकिन खूद सोच में डुबी हुई थी कि उसकी जेठानी न जाने अगली बार कोन सा जाल बुनेगी।
अगले दिन इन्द्रा के भाई रामनारायण के लिए अच्छे घर से रिशता आया । घर से सभी लोग खुशा थे। कूछ ही दिनो में बात पक्की हो गई और फिर शादी की तारिक भी नजदीक आ गई उसके बाद रामनारायण की शादी का दिन भी आ गया और वह अपनी दूलहन को डोली में बिटाकर घर भी ले आया।
नई दुलहन ने घर के सभी लोगां के दिल में अपनी खास जगह बना ली उसके बाद इन्द्रा के ससूराल जाने का वक्त आ गया। एक दिन इन्द्रा अपने सारे कपड़े समेटकर बक्से में भर रही थी ताकि ससूराल जाते वक्त हड़बडी ना हो तभी वहाँ पर इन्द्रो का भाई राम नारायण, बाबुलाल , लाल मोहन और भीम आते है अपने भाइयों का एक साथ अचानक देखकर इन्द्रा चैक पड़ती है और अपने भाइयों से पूँछतीी है की ’’
(इन्द्रा)
का भईल । तु लोग एक साथे हमरा पास आगेला । कौनो बात बा का । हमरा से कोनो भूल हो गईल बा का । बताबा भइया।
तभी इन्द्रा की ये बातें सुनकर सभी भाई हंसे पड़ते है और रामनारायण कहते है कि ।
(रामनारायण )
‘‘अरे हमार प्यारी बहनिया । तू चैका तरे काहे । ऐसन कोई बात नैखे जेकर खातीर तु परेशान होवतरे। हमलेग तो तोहार पास ऐेही खातिर आईल रहीं कि तनी हम भाई बहन आपन दुख-सूख बतियाइब । काहे कि तु तो कान्हे परसो चल जेमीं , फिरो कब आवेकें मोका मिली ना मिली ऐहीे खातिर हमलोग आइल रहिं।
यह बा सुनकर इन्द्रा फूले नहि समा रही थी। उसे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि उसके भाई उसकी बहुत फ्रिक करते है तभी एक साथ मेरा हाल चाल पूछने आ गया। उसके बाद वे सभी एक जगह बैठकर खुब बाते किए और अंत में सभी भाईयो ने इन्द्रा को एक वचन भी दिया कि वे लोग हमेशा अपनी बहन का साथ देगे । कभी भी उसे परायापन का एहसास नहीं होने देगं। और फिर दूसरे दिन दामाद बाबु हिरकेष जी इन्द्रा को अपने घर ले जाने के लिए आए। इन्द्रा के घर वालो ने दामाद बाबु की खुब खातिरदारी की । सभी भाईयो ने दामाद बाबु के साथ बैठकर खुब गप्पे बाजी की और दामाद बाबु के घर के सभी लोगों का हाल चाल पूछा । इसी तरह एक दिन बीत गया। दूसरे दिन सूबह इन्द्रा की विदाई का समय आ गया। इन्द्रा खुब रोने लगी तो उसकी माँ ने उसे दिलासा देते हुए कहा कि ।
(माई )
‘‘जो बेटी। अपन घरे जो। अब वही तोरा अपन घर हो। रो मत बेटी। यही दुनिया के रीत बा। आपन बेटी दोसरा के घर आरो दोसरा के बेटी अपन घर मेे लाए के पर्डेला । जो बेटी टीक से रहिए। तोर बापू और भाई लोग जाते रही तौर हाल चाल पूछेला।
उसके बाद दामाद बाबु से कहती है कि
दामाद बाबु हमार इन्द्रा बहुत सीधा बिया । ओकरा दिल में छे पाँच नैखे। अगर फिर भी ओकरा के कोनो गलती है गईल तो ओकरा माफ देई । आरो कभी फूर्सत मिली तो आप फिर से आई ।हमर इन्द्रा के मन बहल जाई ।
(हरिकेष जी)
ठीक बा सासूजी । हम फिर आइब । अब हमरा के इजाजत दे दी। हमलोग अब चलब।
हरिकेष जी ने अपनी ससूर और साले सालियों को भी अपने यहाँ आने के लिए कहा फिर वे इन्द्रा के लेकर चले गए।
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