इसी तरह दिन बीतने लगते है। धीरे-धीरे सूलोचना को इन्द्रा से नफरत होने लगती है। उसे लगता हे कि उसकी वजह से ही उर्मी उसे छोड़ कर चली गई लेकिन फिर भी वह इन्द्रा की बेटी से कोई बेर नहीं रखती थी। क्योकि उसमें उसे उर्मीला की छवि दिखाई पड़ती थी। इस तरह दिन बीतने लगे । इन्द्रा का जीवन भी संघर्ष मे बीतता जा रहा था।
इन्द्रा के पति का करोबार जैसे खेती धान गाय आदि में घाटा पड़ने लगा । इन्द्रा के पति ने अपना कारोबार फिर से खड़ा करने के लिए जाी तोड़ महनत की लेकिन उनकी मेहनत उतनी सफलता ना हो पाई । इस कारन उनको गहरा सदमा लगा। इन्द्रा के पति काफी बिमार रहने लगे । इस तरह आहिस्ता आहिस्ता उन्हें भूलने की बिमारी लग गई। वे कोई भी बात भूलने लगे थे। उन्हें कोई याद दिलाता तो उन्हे याद आती नही ंतो वे कोई बात को ध्यान में नही रख पाते थें इसी दौरान इन्द्रा फिर से गर्भवती हुई और हरिकेष जी को एक अच्छी खुशी प्राप्त हुई। को काफी खुश हो गए थे इधर सूलोचना ने इस बार काई गलत इरादा नहीं पाला था। उसकी सिर्फ दो बेटिया थी और वह नहीं चाहती थी कि अपनी बेवकुफी की वजह से उन्हें खोे दे उधर इन्द्रा के गर्भवती होने के कारण उसके काम का बोझ काफी बढ़ गया । इन्द्रा को अपने पति का खयाल भी रखना पड़ता था। बार-बार इन्द्रा अपने पति को उसके काम की बात याद दिलाती रहती , लेकिन धीरे -धीरे उनकी बिमारी बढ़ती चली गई । हरिकेष जी को बीमार देखकर उसकी माँ को सोच ढुक गया और वह भी बीमार रहने लगी। उसका किसी भी चीज में मन नहीं लगने लगा। जाहिर सी बात है जब किसी माँ का बेटा बीमार और असहाय होने लगे तो सबसे ज्यादा पीड़ा सबसे ज्यादा दुख माँ के ही होता है। उससे अपने बेटे का दुख देखा नही गया और कुछ ही महीनों में संसार छोडकर चली गई । सास के मरने के बाद इन्द्रा पर उसकी जोठानी का अत्याचार बढ गया एक दिन इन्द्रा को उसहानीय पीड़ा उइने लगी पर उसकी जोठानी को उस पर तनिक भी दया नहीं आई। इन्द्रा के ससुर ने इन्द्रा के कराहने की आवाज सुनी तो उसके पास जाकर कहा कि
(ससुर जी)
‘‘का होकल इन्द्रा काहे एतना कराहा तारे तू कहबे ता हम बैध जी के बुला दीं’’
(इन्द्रा)
‘‘ हाँ बाबाुजी । आप बेध के बुलादि । हमरा के पीड़ा सहन ना होवता । आप जल्दी बुला देई बाबुजी ’’
(ससूर जी )
ठीक बा । हम अभी जा तानि तु चिंता न कर इन्द्रा । तोहार सास नैखे तो का होईल । हम अभी जिंदा बानि । हम अभी बैध जी के बुलावा तानि । गंगाधर जी बैध को बुलाकर लाते है बैध जी इन्द्रा जी तबीयत देखते हैं उन्हंे इन्द्रा बहुत ही बीमार लगती हे। इन्द्रा को दबाई देकर बैध जी गंगाधर जी से अकेले कहते हे कि
(बैध जी )
‘‘गंगाधर बाबु । तोहर पतोहु के तबीयत बहुते खराब बा। ओकरा के अभी आराम के जरूरत बा। एक डेढ महिना में एकर बच्चा हो जाई लेकिन तब तक एकरा अच्छा से रखे के होइ।
अभी इ समय में एकरा के आराम के जरूरत बा। अगर तोर पतोहु के शरीर मे आराम न मिल तो ना तोहार पतोहु बची आरो ना तोहार घर के चिराग । काहे कि हमर अनुमान से तोहार पतोहू इस बार बेटा जन्माई
(गंगाधर जी)
‘‘ई का कहा तारा का इे सच बा ’’
(बैध जी)
‘‘हाँ ई सच बा हमर अनुमान कभी धोखा ना खाला हमर के बीस साल के अनुमान बा । एहि लिए हम कहा तानि कि तोहार पतोहू बहूते कमजोर हे गइल बिया। ओकरा तु ओकर माई के घर भेजवा दा ओकर माई -बाप के धर में ओकरा आराम मिली और बच्चा और माई दोनो जीवित रही।’’
(गंगाधर जी)
‘‘तु ठीक कहात बरा। काहे कि हमरा बेटा अपनी बीमारी के वजह से अपनी पत्नी के ख्याल ना रख पावेला आरो एकर सास भी अपन बेटा के दुख में इ संसार छोड़ के ेचल गेल एकर जेठानी भी एकरा पर अत्याचार करे लागल । इ सब में हमार पतोहू अकेला पड़ गईला ओकरा उपर ध्यान देवे वाला कोई ना बचल। एहि लिए बेचारी के ऐसन समय में इ हालत हो गईल । हम कल्हे ही एकर माइका भेजे के लिए एगो आदमी के एकर बाप घरे भेजा तानि । यहाँ के खबर सुनकर एकर बाप-भाई आके एकरा ले जाई ।
(इन्द्रा के ससूर ने अपनी जान-पहचान के आदमी को एक चिट्ठी देकर कहा कि वो ये चिटठी ले जाकर उसकी वहुं के घर पहुँचा दे और कहे कि जल्दी ही इस चिटठी पर विचार करे। दूसरे दिन वह आदमी सबेरे चिटठी लेकर निकल पड़ा और इन्द्रा के मायके जाकर गनपत साह को चिटठी थमा दी । गनपत साह ने उस चिटठी के बडे़ ध्यान से पढ़ा और अपनी पत्नी से कहा कि ।
(गनपत साह )
‘‘अगे .. इन्द्रा के माई जरी सुन तो ‘‘
(इन्द्रा की माँ )
‘‘का बात बा । अपने का बोला तानि।’’
( गनपत साह )
‘‘इन्द्रा के ससूर के चिटठी आईल बा इन्द्रा के हाल चाल ठीक नैखे । बहुते कमजोर हो गइल बिया। ’’
(इन्द्रा की माँ )
‘‘ई का बोलरलबनि अपने । हमार इन्द्रा ठीक नैखे बिया । एकर मतलब हमार इन्द्रा के हमलोगन के जरूरत वा’’
(इन्द्रा के बापू )
‘‘तू ठीक कहत बड़े । हम काल्हे सबेरे निकलब। आरो इन्द्रा के यहाँ ले आइब जब तक ओकर बच्चा ठीक से ना हो जाई तक तक उ यहीें रही। ’’
(सुबह सुबह इन्द्रा के बापू इन्द्रा के घर जाने के लिए निकल पड़े इन्द्रा के ससुराल पहुँचने में गनपत साह को ज्यादा वक्त नहीं लगा। दिन ढलते – ढलते गनपत साह इन्द्रा के घर पहुँच गए।
इन्द्रा के ससुर ने जब इन्द्रा के बापू के अपने घर आते हुए देेखा तो वे बहुत प्रसन्न् हुए । तुरन्त जाकर अपने समधी का गले से लगाया । उन्हें आदरपूर्वक विठाकर जलपान कराया ।जलपान करने के बाद इन्द्रा के बापू इन्द्रा के पास गए। इन्द्रा को देखकर गनपत साह स्तम्ध रह गए। इन्द्रा बहुत दुबली हो गई थी उसकी आँखो के नीचे काले घेरे जमा हो गए थे।
इन्द्रा अपने बापू को अपने करीब देखकर बहुत खुश हुई । खुशी के मारे उसके आखों से आसु बहने लगे। गनपत साह ने उसे चुप कराया और कहा कि
(गनपत साह बापु)
‘‘चुप हो जा इन्द्रा अब हम आगेल बनी। तु आपन समान समेट ले । हमलोग काल्हे सबेरे यहाँ से निकल जाइब तोर माई तोहर आसरा देखा तिया । एहिलिए आपन समान समेट ले। ’’
(इन्द्रा)
‘‘ठीक बा बापू तु जाेके आराम करा । हम अपन कपड़ा लाता समेट लेब।’’
( इतना कहकर इन्द्रा अपना समान समेटने लगती हे । इधर इन्द्रा के बापू अपने दामाद बाबु से भेट करने के लिए उसने पास जाते है।
हरिकेश् जी अपनी बेटी के साथ बैठकर कोई खेल खेल रहे होते हैं तभी गनपत साह वहाँ पर आकर हरिकेष जी का प्रणाम पाती करते हैं पहले तो हरिकेष जी उन्हे पहचान नहीेे पाते है और कहते कि
(हरिकेष जी)
‘‘हम तोहरा के ना पहचाननी कोन होबा तू।’’
गनपत साह के आँख से आँसू टपक पड़ते है फिर वे अपने आपकोे ढाढ़स देकर अपना परिचय देते है। तो हरिकेष जी शर्मीदा हो पड़ते है। और उन्हें फिर याद आ जाता है तो फिर वह कहते है कि
(हरिकेष जी)
‘‘हमरा के माफ कर देइं ससूर जी । इधर हमार के पता ना कोन बीमारी हो गईल बा कुछो यादे नेखे रहता’’
(गनपत साह)
‘‘ कोनो बात नैखे पहुना। हमरा के सब पता बा । आरो हम तो साल भर के बाद तोहरा से भेंट करातानि ता कैसे तोहरा के हमार शकल याद रही।’’
(गनपत साह अपनी चिंता कोे हरिकेष जी के सामने नहीं रखते बल्कि उन्हे ढाढ़स देकर वहाँ स ेचले आते है और खाना खाकर विश्राम करते है।
सुबह इन्द्रा तैयार होकर अपनी बेटी की भी तैयार कर देती है और फिर वह अपनी पति के पास जाकर कहती है कि
(इन्द्रा)
अपने सुना तानि हमें अपन माई के घर जा रहल बानि
( हरिकेष जी )
ठीक बा ठीक से रहिए। आपन ध्यान रखिए ओरो सुमित्रा के भी देखिए।
( इन्द्रा)
‘‘हम ठीक से रहब अपने दवाई समय पर खा लेब । काहे कि हम नैखे बानि ना। एहिलिए बाबूजी के बोल के जारहल बानि उहि आपन के दबाई समय पर दे दिहेे।
(हरिकेष जी)
‘‘ठीक बा। तोहार बिन मन ना लगी। के हमरा देखी हमरा के तो अपन होश नैखे रहता के हमरा के सब बात याद कराई। ’’
(यह सब सुनका इन्द्रा सुबक -सुबक कर रो पड़ती हें। तब हरिकेष जी उसे चुप कराते हे और कहते है कि
( हरिकष जी )
‘‘न इन्द्रा ना तु रोके जैबे तो हमरा ओरो खराब लागी। एहिलिए तु ठीक से मन हल्का कर के जोा यहाँ हमार देख के लिए बाबाुजी बड़न । तू चिंता मत कर।’’
(इसके बार इन्द्रा अपने पति को प्रणाम करती है। उसके बाद बाहर आकर अपने ससूर को प्रणाम करती है और घर के सभी बड़े को प्रणाम कर वहाँ से विदा लेती है । इन्द्रा का ध्यान अपने पति पह पर ही टिका रहता हे बस वे अपना शरीर लेकर मेके जाती है।
इन्द्रा जब अपने मायके पहुँचती हे तो सभी देखकर उसे फूले नहीं समाते लेकिन उसे देखकर मायुस भी हो जाते है क्योंकि इन्द्रा बहुत दुबली और बेजान लग रही थी । इन्द्रा की माँ उसे अपनी छाती से लगाकर रो पडती है। तब इन्द्रा उसे चूप कराती है और कहती है कि
(इन्द्रा)
‘‘ना माई ऐसे मत रो। ऐसे मत रो माई हमरा के बदॆाशत ना होई। हम ठीक बानि’’
(इन्द्रा की माँ)
‘‘ का ठीक बड़े इ का हाल बना लेल बडै इन्द्रा तू पहचाने में नेखे आवत । एतना तू अपना शरीर के काहे गिरा लेले । तोर भोजाय डायन बिया का ओकरा के सुझाता नेैखे उ तोर तनि ख्याल ना राखि।
(इन्द्रा)
तू तो जानते बडे भाई उ केसन बिया। तोरा से तो कुछो छूपल नैख एहिलिए तो तोर पास आइल बनी । बैध बाबु कहत रहे कि इ बार हमे बेटा जनमाबाईब इसलिए मार्ह हमर घर के चिराब क बचा ले रोते हुए।
इतना कहकर इन्द्रा फूट-फूट कर रो पड़ती हे तब इन्द्रा की माँ उसे चूप करा कर दिलासा देते हुए कहती है।
(इन्द्रा की माँ )
तू चिंता मत कर बेटी । तोर बच्चा के कुछ ना होई अब से तू सब कुछ भूल के खाली अपन शरीर और अपन बच्चा के देख। बाकि सब भगवान पर छोड़ दे। उ सब ठीक करिहैं
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